तिरछी नज़र: “बड़ा ही भयंकर प्रोग्राम था…बड़ा मज़ा आया”
अभी कल दोपहर को ही सक्सेना जी मुझे मिले। वे सोसाइटी के गेट पर ही मिल गए। मैं अपने क्लीनिक से मरीज देख कर लौट रहा था। मुझे देखते ही हाथ हिला कर रोका और बाईस जनवरी के बारे में बात करने लगे। यही नई दीवाली के बारे में। बोले, "आप प्राण प्रतिष्ठा समारोह में नहीं आए"।
मुझे गुप्ता जी से पहले ही पता चल चुका था कि सक्सेना जी प्राण प्रतिष्ठा को लेकर बहुत गम्भीर थे। उन्होंने इस नई दीवाली पर न केवल दिए जलाए थे अपितु घर पर लड़ियां भी लगाईं थीं। मैंने कहा, "कहां, अयोध्या में? वहां तो सुना गया है कि कुछ विशिष्ठ लोगों को ही निमंत्रण दिया गया था। और शायद कुछ लोगों को न आने का निमंत्रण भी दिया गया था। निमंत्रण तुम्हें भेजा है प्रियवर, भरी सभा में न आने का। सुना तो यह भी है कि कुछ लोगों ने निमंत्रण के बावजूद जाने से इन्कार कर दिया। पूछा कि हम क्या सिर्फ ताली बजाने जाएंगे"?
अरे! वहां अयोध्या में नहीं। यहीं, सोसायटी के पार्क में। आपको पता है पूरी सोसायटी में आपके घर से ही कोई नहीं था। न तो आप थे और न ही भाभी जी थीं। धर्म के काम में आप हमेशा पीछे रहते हैं, यह अच्छी बात नहीं है"। सक्सेना जी ने कहा। "कार्यक्रम में बड़ा मज़ा आया। पहले तो भजन कीर्तन हुआ। उसके बाद बड़े स्क्रीन पर अयोध्या से सीधा प्रसारण दिखाया गया। मज़ा आ गया, सचमुच। ऐसा लगा जैसे स्वयं अयोध्या में मौजूद हों। और उसके बाद प्रसाद वितरण भी था। बड़ा ही भयंकर प्रोग्राम था"। सक्सेना जी कॉनवेंट में पढ़ें हैं। अंग्रेजी ही पढ़ते लिखते हैं और अंग्रेजी में ही सोचते हैं। यहां तक कि खाते पीते और सोते भी अंग्रेजी ही हैं। तो कई बार हिन्दी के शब्दों का आकाल पड़ जाता है और मुंह से जो मर्जी निकल जाता है। इस बार भी सक्सेना जी शायद भव्य बोलना चाहते थे पर मुंह से भयंकर निकल गया। खैर जो भी निकला ठीक ही निकला।
यह सच्चाई भी है। भगवान राम के नाम से जो भी कुछ किया गया है, किया जा रहा है, वह भयंकर ही तो किया जा रहा है। जहां मर्जी किसी को जय श्री राम न बोलने पर मार मार कर अधमरा कर दिया जाता है, मार दिया जाता है। कहा तो यह जाता है कि औरंगज़ेब अत्याचारी था। उसने सिख गुरु के बच्चों को मुसलमान न बनने पर दीवार में चिनवा दिया था। पर आप तो राम भक्त हो। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के भक्त हो। और इसीलिए महान हो। आप लोगों को जय श्री राम न बोलने पर पीट पीट कर मार देते हो। वंदे मातरम् न सुनाने पर अधमरा कर देते हो। और इतना सब करके भी आप औरंगजेब से अलग हो!
बताया तो यह भी जाता है कि बाबर अत्याचारी था। सुना है कि उसने अयोध्या में मंदिर गिरा मस्जिद बना दी थी। इन कही सुनी बातों पर जाएं तो बाबर सचमुच ही बहुत अत्याचारी था। उसने एक पूजा स्थल ढहा कर दूसरा पूजा स्थल बनवाया। पर वह तो कही सुनी बात है। पर यहां तो हमारे देखते देखते ही सैकड़ों मंदिर, जो सैकड़ों वर्ष पुराने थे, तुड़वा दिए गए। हाल ही में तुड़वा दिए गए। काशी में तुड़वा दिए गए। बहुत सारे बहुत पुराने मंदिर तुड़वा दिए गए। और कोई मंदिर बनवाने के लिए नहीं, एक मंदिर का रास्ता, गलियारा (कॉरिडोर) बनवाने के लिए। तो फिर कौन अधिक खराब हुआ? बाबर या हम?
राम राम, जय सिया राम, सीता राम, जै राम जी की, आदि जैसे अनेक अभिवादन पहले से ही मौजूद थे। कोई भी, कभी भी, कहीं भी इन को बोल सकता था। किसी भी धर्म, जाति, स्थान से ऊपर उठ इन सभी को बोल कर भगवान राम को भी याद कर लेता था। राम कण कण में, राम मन मन में, राम जन जन में इतने अधिक समाए थे कि उनको जन से अलग करना असंभव ही था। पर उन्हें वे राम नहीं चाहिए थे। उन्हें जनता के राम नहीं चाहिए थे। उन्हें तो अपने राम चाहिए थे। तो उन्होंने गढ़ लिए। भयंकर 'जय श्री राम' गढ़ लिए।
आजकल यह देश भयंकर तरीके से ही चल रहा है। हम भयंकर समय में ही जी रहे हैं। यहां योग गुरु तेल और आटा बेच रहा है। यहां वैज्ञानिक राकेट छोड़ने से पहले मंदिरों में दर्शन करने, शुभ मुहूर्त निकलवाने जाते हैं। विज्ञान वेदों और पुराणों में ढूंढ़ा जा रहा है। इतिहास रामायण और महाभारत पढ़ कर लिखा जा रहा है। विदेश में बसे, देश छोड़ कर गए देशी हमें देशप्रेम सिखाते हैं। राजनेता धार्मिक नेता बने हुए हैं और व्यापारी देश चला रहे हैं। देश को चलाने का इससे भयंकर तरीका और क्या होगा भला।
पर यह भयंकर दौर भी खत्म होगा और जरूर होगा। पर कब होगा। जब भी होगा, तब होगा लेकिन तब तक तो ये कम से कम एक पीढ़ी को तो बर्बाद कर ही देंगे।
(लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)
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