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2021: हिंसक घटनाओं को राजसत्ता का समर्थन

दिखायी दे रहा है कि लिंचिंग और जेनोसाइड को सामाजिक-राजनीतिक वैधता दिलाने की कोशिश की जा रही है। इसमें भाजपा और कांग्रेस की मिलीभगत लग रही है। वर्ष 2021 को इसलिए भी याद किया जायेगा।
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फ़ोटो साभार: डेक्कन हेराल्ड

वर्ष 2021 जब बीत चला है, तब यह कुछ हिंसक घटनाओं के लिए याद किया जायेगा। ख़ासकर नवंबर और दिसंबर के महीनों में घटी घटनाएं, जिन्हें भारतीय राजसत्ता व राजनीतिक प्रतिष्ठान का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष समर्थन हासिल था।

कश्मीर व नगालैंड में भारतीय सेना की गोलाबारी में भारतीय नागरिक मारे जाते रहे। इसे ‘मुठभेड़’ का नाम दिया जाता रहा, हालांकि वे सिर्फ़ हत्याएं थीं। नगालैंड की एक घटना (4-5 दिसंबर) में सेना का झूठ पकड़ में आ गया। लेकिन कश्मीर में सेना के झूठ को पकड़ पाना और उसका परदाफ़ाश कर पाना लोहे के चने चबाने-जैसा काम रहा है।

पंजाब के दो गुरुद्वारों में लिंचिंग (पीट-पीट कर मार डालने) की दो घटनाओं पर पंजाब सरकार, राजनीतिक पार्टियों व किसान संगठनों की शर्मनाक चुप्पी हत्या के इन अपराधों को धार्मिक-राजनीतिक वैधता प्रदान करती नज़र आयी। इन्हें लिंचिंग कहने से भी परहेज किया जाता रहा। ऐसा संदेश दिया जाता रहा, मानो गुरुद्वारे या मंदिर में की गयी हत्या एक आध्यात्मिक कर्म है!

महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश व छत्तीसगढ़ में आदिवासियों का सरकारी सफ़ाया अभियान बेरोकटोक जारी रहा। इसे तथाकथित माओवाद का मुक़ाबला करने की मुहिम बताया जाता रहा। माओवादी बताकर आदिवासयों की हत्या करने की छूट सुरक्षा एजेंसियों को मिली हुई है। इन हत्याओं की जवाबदेही कभी भी तय नहीं की जाती। हम न भूलें कि अपने जल, जंगल व ज़मीन को सरकार-समर्थित कारपोरेटी लूट से बचाने की लड़ाई में लगे व मारे जा रहे आदिवासी भारतीय नागरिक हैं। मारे गये आदिवासियों में महिलाओं की संख्या अच्छी-ख़ासी है।

हरिद्वार की तथाकथित धर्म संसद में मुसलमानों का क़त्लेआम (जेनोसाइड) करने की जो अपील सार्वजनिक तौर पर जारी की गयी, उस पर केंद्र व राज्य सरकारों और राजनीतिक प्रप्तिष्ठान की अपराधपूर्ण चुप्पी कुछ ज़्यादा ही मुखर रही। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी भारतीय जनता पार्टी तो इस पर पूरी तरह ख़ामोश रही। लेकिन विपक्षी कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और आम आदमी पार्टी भी इस मसले पर पूरी ख़ामोश रहीं। इस मुद्दे पर सड़क पर उतरना तो बहुत दूर की बात रही, उन्होंने इसके विरोध में एक बयान तक नहीं जारी किया। क्या यह मान लिया जाये कि विपक्षी पार्टियों ने भाजपा-आरएसएस के हिंदुत्ववादी आख्यान को एक प्रकार से स्वीकार कर लिया है? क्या अब मुसलमानों का क़त्लेआम करने की बात को भी सामान्य प्रक्रिया बनाया जायेगा?

दिखायी दे रहा है कि लिंचिंग और जेनोसाइड को सामाजिक-राजनीतिक वैधता दिलाने की कोशिश की जा रही है। इसमें भाजपा और कांग्रेस की मिलीभगत लग रही है। वर्ष 2021 को इसलिए भी याद किया जायेगा।

वर्ष 2021 को इसलिए भी याद किया जायेगा कि अत्यंत दमनकारी क़ानून सशस्त्र बल विशेष अधिकार क़ानून (आफ़्सपा) को रद्द करने की मांग का प्रस्ताव एक राज्य की विधानसभा ने सर्वसम्मति से पास किया। नगालैंड विधानसभा ने 20 दिसंबर को यह प्रस्ताव पास किया। यह क़ानून 1958 में देश की संसद ने बनाया था। तब से शायद पहली बार ऐसा हुआ है कि किसी राज्य की विधानसभा ने इसे रद्द करने का प्रस्ताव पास किया। यह एक बहुत महत्वपूर्ण राजनीतिक घटना है। इसके लिए नगालैंड विधानसभा को सलाम!

(लेखक कवि व राजनीतिक विश्लेषक हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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