यमन पर सऊदी अत्याचार के सात साल
यमन में सऊदी अरब के नेतृत्व वाला युद्ध अब आधिकारिक तौर पर आठवें साल में पहुंच चुका है। सऊदी नेतृत्व वाले हमले को विफल करने की प्रतिबद्धता को मजबूत करने के लिए हज़ारों यमन लोगों ने 26 मार्च, शनिवार को राजधानी साना समेत तीन बड़े शहरों में सड़कों पर प्रदर्शन किया। इस दिन "दृढ़ता दिवस" के तौर पर मनाया जाता है, 2015 में इसी दिन सऊदी अरब के नेतृत्व वाले गठबंधन ने हमला किया था।
शनिवार को प्रदर्शनकारियों ने अपने हाथों में अंसार अल्लाह (हाउदी) आंदोलन के नेता हुसैन बद्रेद्दीन और अब्देल मलिक के बैनर लेकर प्रदर्शन किया। इन प्रदर्शनकारियों को आंदोलन के नेताओं और क्षेत्रीय गवर्नरों ने संबोधित किया। उन्होंने लोगों से अमेरिका और इज़रायल को हराने के लिए ज़्यादा दृढ़संकल्पित होने का आह्वान किया, हाउदी नेताओं के मुताबिक़ यही देश युद्ध को भड़काने के लिे मुख्य तौर पर ज़िम्मेदार हैं और यमन के लोगों के दुश्मन हैं।
वक्ताओं ने युद्ध के चलते आ रही समस्याओं पर भी ध्यान केंद्रित करवाया। खासकर गठबंधन फौज़ों द्वारा किए जा रहे हवाई हमले, जिनमें हज़ारों निर्दोष लोगों की मौत हो रही है, घर और दूसरी इमारतें बर्बाद हो रही हैं। अपने भाषण में बद्रेद्दीन और मलिक ने सऊदी और सहयोगियों द्वारा पूरे यमन पर समुद्र, हवा और ज़मीन पर लगाए गए सात साल के ब्लॉकेड की आपराधिकता पर भी चर्चा की। इस ब्लॉकेड के चलते यमन के लोगों को स्वास्थ्य और खाद्यान्न जैसी अहम चीजों से वंचित होना पड़ा है। इसके चलते लाखों लोग भुखमरी की कगार पर आ गए हैं और कई लोग अच्छी स्वास्थ्य सुविधा न मिलने के चलते काल के गले में समा गए।
क्षेत्रीय प्रभुत बनाने की सऊदी की कोशिशें
यमन में युद्ध सऊदी अरब, यूएई और दूसरे सहयोगियों द्वारा 2015 में क्षेत्रीय प्रभुत्व स्थापित करने लक्ष्य के साथ शुरू किया गया था। यमन के लोगों को अब्द्राब्बुह मंसूर हादी की अकुशल और भ्रष्ट सरकार के खिलाफ़ विद्रोह करने के लिए सजा दी जा रही है, जो सऊदी अरब के मित्र थे। सऊदी अरब और उसके सहयोगियों को अमेरिका, ब्रिटेन और दूसरे पश्चिमी देशों का समर्थन हासिल है। इन लोगों ने अब भी हादी को ही यमन के राष्ट्रपति की मान्यता दी हुई है और उनकी अलोकप्रियता के बावजूद, फिर से उन्हें तख़्त पर बिठाना चाहते हैं। हाउदी लड़ाकों ने जब साना पर कब्ज़ा किया, तो हादी देश से भाग गए थे और अब वे रियाद में रहते हैं। उन्हें हमला करने वाला गठबंधन एक अहम सहयोगी मानता है, जो अमेरिका और उसके क्षेत्रीय मित्र देशों को यमन और उसके संसाधन उपलब्ध करवा सकते हैं।
सऊदी अरब और अमेरिका, दोनों ने ही यमन में अपनी जंग को न्यायोचित ठहराने के लिए इसे एक क्षेत्रीय आयाम देने की कोशिश की है और हाउदियों को ईरान की कठपुतली बताया है। अमेरिका और ब्रिटेन, जिन्हें सऊदी अरब को अरबों डॉलर के हथियार बेचने से फायदा हुआ है, उन्होंने ईरान पर हाउदी लड़ाकों को हथियारों की आपूर्ति का आरोप लगाया है। हाउदी और ईरान, दोनों ने ही अमेरिका और इज़रायल की इस क्षेत्र में उपस्थिति के साझा वैचारिक विरोध को मान्यता दी है। लेकिन दोनों ने अपने बीच किसी भी तरह के गठबंधन से इंकार किया है। इसके बावजूद, पश्चिमी मीडिया यमन को बिना किसी ठोस आधार के "छद्म युद्ध" करार देती है।
युद्ध ग्रस्त क्षेत्र में मानवीय सहायता के अलावा संयुक्त राष्ट्र, सऊदी अरब के नेतृत्व वाले गठबंधन पर युद्ध खत्म करने के लिए दबाव बनाने में नाकाम रहा है। सऊदी अरब को अमेरिकी समर्थन के चलते, संयुक्त राष्ट्र सऊदी अरब को नागरिक क्षेत्रों में हवाई हमलों और दूसरे मानवाधिकार उल्लंघनों के लिए ज़िम्मेदार ठहराने में भी नाकाम रहा है, जबकि उसके जांचकर्ताओं ने इसके लिए पर्याप्त सबूत उपलब्ध कराए हैं। गठबंधन और उसके सहयोगियों के दबाव के चलते, संयुक्त राष्ट्र को पिछले साल यमन में अपनी जांचकर्ताओं की टीम को भंग करना पड़ा। इससे सऊदी अरब और उसके सहयोगियों को मनमाफ़िक हत्याएं करने की पहले से कहीं ज़्यादा छूट हासिल हो गई है।
यमन का प्रतिरोध
दर्जन भर देशों के गठबंधन के सामने हाउदी नेतृत्व वाले यमन के लोग बेहद कमज़ोर नज़र आते हैं, इसके बावजूद वे हमलावरों को गंभीर नुकसान पहुंचाने में कामयाब रहे हैं। पिछले हफ़्ते, हाउदी लड़ाकों द्वारा चलाए गए ड्रोनों ने जेद्दा में सऊदी तेल शोधन यंत्रों को निशाना बनाया, जिसके चलते तेल उत्पादन प्रभावित हुआ। 2019 के बाद सऊदी अरब के अरामको तेल संयंत्र पर यह तीसरा हमला है, जिसके चलते एक हफ़्ते तक तेल शोधन बंद रहा था। इसी तरह हाउदी लड़ाके जनवरी में यूएई के रक्षातंत्र में घुसने में कामयाब रहे थे और उन्होंने अबू धाबी में एक तेल भंडारण केंद्र व एक एयरपोर्ट पर हमला किया था।
हाउदी, हादी समर्थकों और सऊदी के नेतृत्व वाली गठबंधन फौज़ों के सामने भी जंग में खड़े रहने में कामयाब हुए हैं। उनके पास उत्तर और पश्चिम में ज़्यादा घनी आबादी वाले ज़्यादातर इलाके हैं, वे उत्तर में अपनी सीमा से सऊदी अरब की हमले की कोशिशों को भी पीछे ढकेल चुके हैं।
इस प्रतिरोध के चलते सऊदी अरब को कई बार बातचीत की मेज पर आना पड़ा है। लेकिन सभी बातचीत किसी भी तरह के ठोस नतीज़ों पर पहुंचने में नाकाम रही हैं, क्योंकि सऊदी अरब हादी को वापस पद पर बहाल करने के लिए अड़ा हुआ है। इस बीच प्रतिरोध के चलते सऊदी नेतृत्व वाले गठबंधन में भी दरार पड़ी है और कुछ देशों, जैसे 2019 में सूडान ने इसे छोड़ने का ऐलान किया है। इस बीच सऊदी अरब के सबसे करीबी सहयोगी, यूएई द्वारा समर्थन प्राप्त "सदर्न ट्रांजिशनल काउंसिल (एसटीएफ)" कई मौकों पर हादी समर्थक फ़ौजों के खिलाफ़ विद्रोह कर चुकी है, जिससे कई बार आंतरिक संघर्ष हुआ है।
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