ऐपवा का 8वां राष्ट्रीय सम्मेलन : तानाशाही राज के खिलाफ महिलाएं लड़ेंगी !
“जब हम अपने 8 वें राष्ट्रीय सम्मेलन में एकत्रित हैं उस समय देश भर की महिलाएं संविधान के पक्ष में आंदोलन का नेतृत्व कर रहीं हैं। वे भारत के संविधान के संविधान के समवेशी और धर्मनिरपेक्ष वादे की रक्षा कर रहीं हैं। असम से लेकर पूरे देश में अनेक शाहीन बाग समेत जामिया, जेएनयू , एएमयू , यादवपुर व पुडुचेरी विश्वविद्यालयों और देशभर के कैम्पसों में बूढ़ी दादियों से लेकर युवतियाँ–छात्राएं सब उठ खड़ी हुईं हैं। जो अपनी बातों,अपने गीत,रंगोलियों और कलम से भारत के तानाशाहों–दमनकारी शासकों को जबर्दरस्त चुनौती दे रहीं हैं ”. इस संघर्ष अभियान को गति देने की दिशा में 8-9 फरवरी को देश की प्रतिनिधि वामपंथी महिला संगठन अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला एसोशिएशन ने अपने 8 वें राष्ट्रीय सम्मेलन से संकल्प लिया कि वर्तमान के तानाशाही राज के खिलाफ महिलाएं लड़ेंगी, जीतेंगी !
राजस्थान के सुरजपोल (उदयपुर) में कॉमरेड श्रीलता स्वामीनाथन हॉल (राजस्थान कृषि महाविद्यालय सभागार) के शहीद काली बाई मंच पर आयोजित इस सम्मेलन का केंद्रीय थीम था – फातिमा शेख और सावित्री बाई की साझी विरासत और साझी नागरिकता हम सब की ! सम्मेलन की विधिवत शुरुआत से पहले तानाशाही राज के खिलाफ ‘साझी शहादत चेनम्मा, हज़रत महल और लक्ष्मीबाई की साझी नागरीकता हम सबकी ’ बैनर के साथ नगर के टाउन हॉल से सम्मेलन स्थल तक जोशपूर्ण प्रतिवाद – मार्च निकाला गया।
सम्मेलन का उदघाटन करते हुए ‘ गुजरात फ़ाईल्स ’ की लेखिका व चर्चित पत्रकार राणा अयूब ने कहा – हम जिस समय में रह रहें हैं, उसमें चुप रहना कोई विकल्प नहीं है। यह गांधी का देश है, दुर्भाग्य है कि ‘ वैष्णव जन तो तैने कहिए … ’की बजाय ‘गोली मारो ....’ जैसे जुमलों का प्रयोग सत्ता में बैठे लोग कर रहें हैं। नरेंद्र मोदी शासन काल ने हमारी सारी कड़ुवाहट को बाहर निकाल दिया है। अब यह सामने आ गया है कि कौन किधर है । यहाँ बैठे हम सभी देशप्रेमी हैं क्योंकि हम सभी को साथ रखना चाहते हैं। गुजरात फाइल्स की चर्चा-संदर्भ में कहा कि उस काल की पत्रकारिता पर उन्हें गर्व है । जिसके कारण अमित शाह को जेल जाना पड़ा और सर्वोच्च न्यायालय ने उन्हें तड़ीपार कर दिया था। आज देश की महिलाओं का ज़मीर जाग गया है । जो दिल्ली में बैठे हैं उन्हें पता ही नहीं चलेगा कि कब उनकी कुर्सी चली गयी । हिंदोस्तान मेरा मुल्क़ है मैं इसे छोड़कर कहीं नहीं जानेवाली।
मुख्य अतिथि कन्नड़ की जानी मानी लेखिका व नाट्यकर्मी डी सरस्वती ने अपने सम्बोधन में देश में चल रहें महिलाओं के जुझारू प्रतिवाद को रेखांकित करते हुए कहा कि पितृसत्ता पूंजीवाद और संप्रदायवाद में ही अच्छी तरह से पनपती है। इसलिए इसके खिलाफ संघर्ष करते हुए पूंजीवाद और संप्रदायवाद को समाप्त करना ज़रूरी है । महिलाओं की भागीदारी बिना कोई भी आंदोलन अधूरा है।
लिबरेशन पत्रिका की संपादक व ऐपवा सचिव कविता कृष्णन ने कहा कि पहले नागरिक सरकारें चुनते थे, अब सरकार तय कर रही है कि उसका नागरिक कौन होगा। आज देश में हर वर्ग–समुदाय की महिलाओं के सामने चुनौतियाँ बढ़ीं हैं। वहीं छात्राएं कॉलेज-विश्वविद्यालयों तो दफ्तरों में महिलाएं शोषण के खिलाफ लड़ रहीं हैं। गौरी लंकेश की भांति आवाज़ उठानेवाली महिलाओं की हत्या तक कर दी जा रही है तो मोदी सरकार मनुस्मृति लागू करना चाहती है। हम ऐसा नया भारत नहीं चाहते।
सत्र को ऐपवा राष्ट्रीय अध्यक्ष रतिराव तथा महासचिव मीना तिवारी ने मोदी सरकार के एनआरसी – सीएए व एनपीआर को समाज को बांटनेवाला कानून बताते हुए कहा कि इसके खिलाफ आज जो महिलाएं लड़ रहीं हैं कभी पीछे नहीं हटेंगी।सम्मेलन की अतिथि एडवा नेता सुमित्रा चोपड़ा , पीयूसीएल की कविता श्रीवास्तव, भारतीय महिला फ़ेडेरेशन की निशा सिद्धू तथा जेएनएसयू की पूर्व अध्यक्ष सुचेता डे इत्यादि ने भी अपने सम्बोधन में मोदी सरकार की देश व महिला विरोधी नीतियों के खिलाफ छात्राओं -महिलाओं के जारी संघर्ष को और व्यापक बनाने तथा एकजुट संघर्ष को आगे बढ़ाने का आह्वान किया । ऐपवा राजस्थान की सचिव प्रो. सुधा चौधरी ने तैयारी समिति की ओर से सम्मेलन में आए लोगों का स्वागत किया।
सम्मेलन के बहस सत्र में विभिन्न प्रान्तों की राज्य कमेटियों ने आंदोलन और काम–काज की रिपोर्ट पेश किया। सम्मेलन में प्रस्तुत मसविदा दस्तावेज़ पर कई महिला प्रतिनिधियों ने भी अपने विचार व सुझाव रखे।अंतिम सत्र में सर्वसम्मति से नयी राष्ट्रीय कमेटी व कार्यकारिणी का चुनाव कर पुनः वैज्ञानिक रति राव ( कर्नाटक ) को राष्ट्रीय अध्यक्ष तथा मीना तिवारी ( बिहार ) को महाचिव बनाया गया। ’70 के दशक से ही क्रांतिकारी महिला आंदोलन की अगुवा रहीं वरिष्ठ कम्युनिष्ट नेता मीरा दी को विशेष रूप से सम्मानित किया गया।
सम्मेलन में पूर्वोत्तर के असम–कार्बी आंगलांग से लेकर दक्षिण के तमिलनाडू–आंध्रप्रदेश–कर्नाटक व केरल तथा राजस्थान समेत महाराष्ट्र , ओड़ीसा , छत्तीसगढ़,पश्चिम बंगाल , झारखंड , बिहार , उत्तर प्रदेश , पंजाब , दिल्ली , हरियाणा और उत्तराखंड इत्यादि राज्यों से आयीं 700 से भी अधिक महिला प्रतिनिधियों ने भाग लिया ।
सम्मेलन के दौरान कर्नाटक की महिला सफाईकर्मियों व कपड़ा मजदूरों के सवालों - संघर्षों से जुड़ी कन्नड़ नाट्यकर्मी डी सरस्वती द्वारा प्रस्तुत एकल अभिनय ने काफी प्रभावित किया। राजस्थान की महिला कलाकारों के जत्थे द्वा राजस्थानी लोक नृत्य की प्रस्तुति ने सम्मेलन को रंगारंग बना दिया।
सम्मेलन ने कई प्रस्ताव पारित करते हुए सर्वसम्मति से यह घोषणा की कि मोदी सरकार द्वारा थोपा गये सीएए–एनआरसी–एनपीआर का सबसे अधिक खामियाजा महिलाओं को ही भुगतना पड़ेगा इसलिए पूरे देश में इस काले कानून के खिलाफ जोरदार संघर्ष चलाया जाएगा। देश कि साझी विरासत और संविधान बचाने के लिए विभिन्न हिस्सों में जारी महिला आंदोलनों व अन्य लोकतान्त्रिक संघर्षों के साथ मजबूत एकता कायम करते हुए तानाशाही राज के खिलाफ महिलाओं की दावेदारी तेज़ करने की भी घोषणा की गयी।
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