तेहरान में एक नई सुबह की शुरुआत
गुरूवार को, ईरान के नए राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी ने तेहरान में मजलिस में एक समारोह में पद की शपथ ली। यह इस्लामिक गणतंत्र के राजनीतिक इतिहास में एक निर्णायक क्षण साबित होने जा रहा है क्योंकि देश कई मायनों में चौराहे पर खड़ा है।
इस्लामिक व्यवस्था के लिए अभी भी एक व्यापक सामाजिक जनाधार मौजूद है, लेकिन इसमें क्षरण हो रहा है। अर्थव्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गई है और प्रतिबंधों के हटने से लोगों की मुश्किलों में भारी राहत मिल सकती है। बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार ने शासन को बदनाम कर रखा है और लोगों के बीच में अलगाव की स्थिति को पैदा कर दिया है। लेकिन, विडंबना यह है कि एक क्षेत्रीय शक्ति के रूप में ईरान का निर्मम उत्थान आज एक सम्मोहक वास्तविकता भी है।
भ्रष्टाचार पर नकेल कसने के लिए मुख्य न्यायाधीश के रूप में अपने रिकॉर्ड को देखते हुए, रईसी पहले से ही एक लोकप्रिय हस्ती रहे हैं। ईरान के राष्ट्रीय चुनावों में भागीदारी उन उम्मीदवारों तक ही सीमित है जो विलायत-ए-फकीह के प्रति वफादार हैं - या इस्लामिक न्यायवेत्ता की मातहती को स्वीकार करते हैं – एक ऐसी शासन व्यवस्था जिसे देश ने 1979 की इस्लामिक क्रांति के बाद अपना लिया था, जिसकी जड़ें शिया इस्लाम में निहित हैं और राज्य के उपर पुरोहित वर्ग के शासन को सही ठहराती है। लेकिन यह स्वतंत्र चुनावों की अनुमति देता है, क्योंकि लोगों का सशक्तिकरण देश की राजनीतिक व्यवस्था के लिए वैधता का आधार मुहैय्या कराता है।
संयुक्त राज्य अमेरिका को रईसी के साथ एक समस्या रही है क्योंकि वे मुजाहिदीन-ए खल्क के नाम से विख्यात एक उग्रवादी सशस्त्र संगठन, जिसने खुले तौर पर हिंसक तरीकों से इस्लामी गणराज्य को उखाड़ फेंकने की वकालत की थी, के कार्यकर्ताओं के मुकदमे और फांसी से जुड़े सह-अभियोजकों में से एक थे।
यह कहना पर्याप्त होगा कि, रईसी की छवि को दागदार करने के लिए मानवाधिकार के मुद्दे को प्रमुखता से लाना आज का वास्तविक मुद्दा नहीं है, बल्कि यह एक ऐसे नए नेता का अभ्युदय है, जिससे उम्मीद की जा रही है कि वह ईरान की क्रांतिकारी विरासत को एक ऐसे महत्वपूर्ण मोड़ पर मजबूती प्रदान करने में योगदान करेगा जब देश की घरेलू राजनीति एक बार फिर से अमेरिका के साथ संबंधों को काटने की राह पर है।
शिया राजनीति बेलगाम होने के लिए कुख्यात रही है। इमाम खुमैनी ने अपने दूरदर्शी समझ के साथ राजनीतिक व्यवस्था में संस्थागत रूप से रोकथाम और संतुलन को स्थापित कर रखा था, लेकिन इस सबके बावजूद गुटबाजी जारी रही। इस लिहाज से रईसी का चुनाव एक ऐतिहासिक घटना बन जाता है। 1990 के दशक के अंत के बाद पहली बार राष्ट्रपति पद के लिए मजलिस और न्यायपालिका एक साथ मिलकर आगे बढ़ने के लिए तैयार है।
इसका अर्थ हुआ, एक तरफ क्रांति के समाजिक आधार को बरकरार रखने पर पहले से कहीं अधिक ध्यान केंद्रित दिया जायेगा, जो बेरोजगारी और गरीबी, समाजिक न्याय, धन के समान वितरण इत्यादि की आर्थिक चुनौतियों को हल करने की मांग करता है। मंगलवार को तेहरान में उद्घाटन समारोह में खामेनेई ने रईसी से “समाज के मध्यम एवं निम्न वर्ग के लोगों को सशक्त बनाने, जो आर्थिक समस्याओं के बोझ को वहन कर रहे हैं” का आह्वान किया है।
वहीँ दूसरी तरफ, राजनीतिक व्यवस्था एक बार फिर से राष्ट्रवादी धार्मिक श्रृद्धा की ओर झुक जाएगी, पश्चिमी अर्थव्यवस्थाओं से ईरान के एकीकरण के शोरगुल की ओर पीठ कर सकती है, जो कि रौहानी सरकार के द्वारा 2015 के परमाणु समझौते पर वार्ता का मुख्य आधार था।
कुलमिलाकर कहें तो पिछले 8 वर्षों की अवधि के दौरान “सुधारवादियों” ने ईरानी रणनीतियों में जितना कुछ भी प्रयास किया था, ने अपनी जमीन खो दी है। बाईडेन प्रशासन के हिसाब में राष्ट्रपति हसन रौहानी की सुधारवादी सरकार के साथ परमाणु समझौता संपन्न होना था जो रईसी के राष्ट्रपति कार्यकाल को पश्चिम के साथ जुड़ाव के प्रवाह की ओर उन्मुख प्रक्षेपवक्र के लिए प्रतिबद्ध करता है।
लेकिन ऐसा नहीं हो सका, इसकी मुख्य वजह रुढ़िवादी शक्तियों के प्रभुत्व वाली मजलिस के द्वारा निभाई जाने वाली सशक्त भूमिका में है, एक आभासी युद्ध की लड़ाई जिसे रौहानी अंततः हार चुके हैं।
न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक, बाईडेन के वार्ताकार इतने उत्तेजित थे कि “एक प्रमुख अमेरिकी वार्ताकार वियना में एक होटल में भण्डारगृह में रखे अपने कपड़े तक छोड़ दिए, जहाँ पर बातचीत चल रही थी।” वियेना में छठे दौर की वार्ता के बाद मध्यावकाश के दौरान की यह घटना है। अगस्त में ईरान में सत्ता हस्तांतरण से पहले अंतिम दौर की वार्ता को लेकर वे इतने आश्वस्त थे।
लेकिन ईरानी वार्ताकार वियना नहीं लौटे। सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई ने रौहानी और उनके मंत्रिमंडल के लिए अपने “विदाई भाषण” में अमेरिका पर भरोसा नहीं करने के कारणों को बताया और स्पष्ट रूप से ईरान के प्रति अमेरिका के शत्रुतापूर्ण इरादों के बारे में उनके भोलेपन के लिए उनकी अव्यक्त रूप से निंदा की।
यहाँ तक कि ईरान के कुछ साझीदारों तक ने जो वियना में एक “रचनात्मक” भूमिका निभाने के इच्छुक थे, हक्के-बक्के रह गए। सोमवार को, मास्को के दैनिक इजवेस्तिया ने आईएईए में रुसी राजदूत को अफ़सोस जताते हुए उद्धृत किया, “ईरान अपने जेसीपीओए के तहत प्रारंभिक वचनबद्धता से भी दूर जा रहा है। वास्तव में, इसमें कहीं न कहीं अतार्किकता है क्योंकि यदि वार्ता एक समझौते की ओर बढ़ती है, तो इन सभी भटकावों को उलटना होगा। जितना ही ईरान अपने प्रारंभिक दायित्वों से अलग होता जायेगा, प्रकिया में उतना ही अधिक समय लगने वाला है, जो प्रतिबंधों को हटाने के लिए तय समयसीमा को प्रभावित करेगा।”
यह पूछे जाने पर कि तेहरान के अपने समृद्ध यूरेनियम के भंडारण को बढ़ाने की पहल को रूस कैसे देखता है, तो राजदूत की टिप्पणी थी: “हम निश्चित तौर पर इस बारे में उत्साहित नहीं हैं।” जाहिर तौर पर, रूस इस बात से नाखुश है कि वियेना में बातचीत टूट गई। यहाँ पर हमें यह देखना होगा कि ईरान अपनी सामरिक स्वायत्तता को बरकरार रखने के लिए किस हद तक जा सकता है।
वाशिंगटन ने इसके बाद से मानवीय आधार पर बंदियों की अदला-बदली पर बनी समझ से हटकर चिड़चिड़ाहट से भरी प्रतिकिया व्यक्त की है। अमेरिकी बयानबाजी भी अब शत्रुतापूर्ण स्वरुप में परिवर्तित हो चुकी है। बाईडेन प्रशासन बाड़बंदी कर रहा है क्योंकि उसने मान लिया है कि उसे अब रईसी के रूप में एक दुर्जेय विरोधी से निपटना होगा।
मूल रूप से, अमेरिका फारस की खाड़ी के राज्य के साथ बराबरी के स्तर पर सौदा करने का अभ्यस्त नहीं रहा है। रईसी ने अपने बयान में कहा है कि वियना में हो रही वार्ता को लेकर वे खुला दिमाग रखते हैं और यह भी चाहते हैं कि ईरान के विकास की पूर्ण संभावनाओं को हासिल करने के लिए प्रतिबंधों को हटा दिया जाए, लेकिन उन्होंने इस बात को रेखांकित किया है कि वे सिर्फ दिखावे की खातिर बातचीत में दिलचस्पी नहीं रखते हैं।
मंगलवार को तेहरान में उद्घाटन समारोह में रईसी की टिप्पणी ने एक बार फिर से उनके राष्ट्रपति पद के कार्यकाल के बारे में संकेत दे दिया है कि वे अर्थव्यवस्था को प्राथमिकता देने जा रहे हैं, विशेष तौर पर लोगों की आजीविका को बेहतर बनाने के सन्दर्भ में। विदेश नीति के मोर्चे पर उन्होंने संक्षेप में कहा “स्थायी सुरक्षा और क्षेत्रीय स्थिरता को स्थापित करने में मदद करने के लिए इस क्षेत्र में मौजूद क्षेत्रीय राज्यों के बीच में आपसी सहयोग की आवश्यकता है, जो पारस्परिक विश्वास और क्षेत्र में विदेशी शक्तियों के हस्तक्षेप के विरोध पर आधारित है।”
गौरतलब है कि रईसी ने अपना भाषण तकरीबन पूरी तरह से ईरान के आंतरिक मुद्दों पर ही केन्द्रित रखा था। वे इस बारे में पूरे तौर पर सचेत हैं कि उनका जनादेश निर्विवाद रूप से लोगों की “परिवर्तन, न्याय, भ्रष्टाचार, भेदभावपूर्ण व्यवहार और अन्याय के खिलाफ लड़ाई लड़ने और समाज की आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक समस्याओं को हल करने की जरूरत के संदेश” की इच्छा से उपजा है। रईसी ने शिनाख्त किये गए 10 मुख्य मुद्दों से निपटने के लिए “तत्काल, अल्पकालिक परिवर्तनकारी योजना” की घोषणा की है।
रईसी को मिला जनादेश ईरान-अमेरिकी संबंधों को लेकर नहीं है। वे ऐसी किसी भी हड़बड़ी में नहीं हैं कि परमाणु समझौते के लिए वार्ता में जाएँ, जब तक कि अमेरिका सभी प्रतिबंधों को हटाने की मुख्य मांग को समायोजित करने के प्रति अपनी तत्परता को दिखाने के साथ-साथ इस बात की गारंटी नहीं देता कि यह एक टिकाऊ ढांचा होगा।
रईसी का दृष्टिकोण बाईडेन प्रशासन पर दबाव डालने वाला है क्योंकि इस बीच आईएईए के मुताबिक, ईरान के उन्नत अपकेन्द्रण यंत्र में मई की शुरुआत में पहले से ही 63 प्रतिशत शुद्धता के साथ समृद्ध यूरेनियम को तैयार किया जा रहा है और तथाकथित “संबंध-विच्छेद की समय सीमा” लगातार सिकुड़ती जा रही है।
एमके भद्रकुमार एक पूर्व राजनयिक हैं। वे उज्बेकिस्तान और तुर्की में भारत के राजदूत रह चुके हैं। व्यक्त किये गये विचार व्यक्तिगत हैं।
साभार: इंडियन पंचलाइन
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