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AIUFWP: राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक में गूंजे आमजन और वनाश्रित समुदायों के अधिकार के मुद्दे

अखिल भारतीय वन जन श्रमजीवी यूनियन (AIUFWP) की दो दिनी राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक में आमजन और वनाश्रित समुदायों के अधिकार के मुद्दे गूंजे तो राजनैतिक बंदियों की रिहाई की मांग की गई।
AIUFWP

नई दिल्ली गांधी प्रतिष्ठान में आयोजित बैठक में यूनियन की राष्ट्रीय महासचिव रोमा ने कहा कि इस समय देश बेहद ही कठिन परिस्थितियों से गुजर रहा है। जिसमें आम जनता और विशेषकर वन आश्रित समुदाय के मूलभूत मुद्दे गायब होते चले जा रहे हैं। श्रमजीवी समाज के तमाम कानूनी अधिकारों को खत्म किया जा रहा है। वनाधिकार कानून को निष्प्रभावी करने के लिए एवं कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए वन संरक्षण कानून तथा वन से अन्य जुड़े कानूनों को संशोधित करने के लिए सरकार पूरी तरह से जुटी है। सरकार की इस साजिश के खिलाफ राष्ट्रीय और क्षेत्र में प्रतिरोधी आंदोलन को मजबूत करना बेहद जरूरी है। ऐसे में यह बैठक बेहद महत्वपूर्ण है। 

बैठक के 6 सूत्री मुख्य एजेंडा की बाबत रोमा ने बताया कि...

1. राजनैतिक परिस्थिति पर विशेष चर्चा।
2. वनाधिकार आंदोलन का वर्तमान में चल रहे अन्य आंदोलनों के साथ जुड़ाव पर चर्चा तथा नए वन क्षेत्र में वनाधिकार आंदोलन को मजबूत करना। 
3. क्षेत्रीय रिपोर्ट पर चर्चा।
4. सांगठनिक मुद्दे।
5. राजनैतिक बंदियों की रिहाई पर विशेष चर्चा व प्रस्ताव।
6. सांस्कृतिक आंदोलन के कार्यक्रम

रोमा के अनुसार, राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक में इस बार देश भर के वन क्षेत्रों से सदस्यों को विशेष रूप से आमंत्रित किया गया है। जैसे छत्तीसगढ़, तमिलनाडु, तेलंगाना, असम, जम्मू कश्मीर, उड़ीसा, बंगाल नदी घाटी मोर्चा आदि। ताकि इन क्षेत्रों में भी वनाधिकार आंदोलन को मजबूत किया जा सके। 
रोमा

दो दिनी राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक के पहले दिन अलग अलग संगठनों से जुड़े सामाजिक- राजनीतिक कार्यकर्ताओं और वक्ताओं ने विचार रखे। मधु प्रसाद ने कहा कि "हाल ही में मैंने पुरानी दिल्ली में रिक्शा पुलर के साथ बातचीत की। उन्होंने कहा कि भारत की स्वतंत्रता के 75 वर्षों में सरकार ने गरीबों के लिए बहुत कुछ नहीं किया है। लेकिन 75 वर्षों में यह पहली सरकार है जिसने गरीबों की जेब को सबसे ज्यादा लूटा है। सरकार गरीबों से पाई पाई लूट रही हैं। कहा- आज चार गुजराती देश की अर्थव्यवस्था को चला रहे हैं। दो बेच रहे हैं और दो इसे खरीद रहे हैं। सरकार देश के मेहनतकश श्रमिक वर्ग को आत्महत्या करने को मजबूर कर रही है। यही नहीं, यह सरकार न सिर्फ भारत की भूमि और वनों को लूट रही हैं बल्कि आदिवासी, दलित और मुसलमानों के आजीविका और जीवन जीने के अधिकार को भी छीनने का काम किया जा रहा है।

हम 2006 के एफआरए कानून के कार्यान्वयन के लिए लड़ रहे हैं। लेकिन वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में भारत सरकार एफआरए-2006 को कमजोर करने और ग्राम सभा की राजनीतिक स्वायत्तता को कम करने की कोशिश कर रही है। इस सब के बीच पॉपुलर मीडिया चैनलों के आज के राजनीतिक प्रवचन यह हैं कि हम ईदगाह मैदान में गणेश चतुर्थी मनाने के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं। क्या हम मदरसा और मस्जिदों को बुलडोज कर देना चाह रहे हैं? बीजेपी के एमपी, एमएलए और पार्टी कार्डधारक, मुस्लिम समुदायों के खिलाफ सार्वजनिक तौर से नरसंहार जैसी मांग कर रहे हैं।

एनटीयूआई के गौतम मोदी फासीवादी ताकतों और उनके नेताओं से लड़ने के लिए जम्हूरियत के महत्व पर चर्चा करते हुए कहते हैं कि भीमा कोरेगांव की घटना में हमारे सभी साथी, झूठे और मनगढ़ंत आरोपों में जेलों में बंद हैं। उन्हें माओवादी कहा जा रहा है। जो कोई भी इस मामले में कुछ बोलता है, उसे माओवादी करार दिया जा रहा है। राज्य नागरिकों में भय का मनोविकार पैदा कर रहा है। उन्होंने बैठक में मौजूद लोगों को आह्वान करते हुए कहा कि इस कायर सरकार द्वारा माओवादी कहे जाने वाले अधिकांश कॉमरेड मूल रूप से अंबानी और अदानी जैसे साम्राज्यवादी और क्रोनी कैपिटलिस्ट के खिलाफ हैं जिन्हें सरकार द्वारा यह तमगा दिया गया है।
गौतम मोदी

सलाखों के पीछे सभी साथियों ने इस सरकार के करीबी क्रोनी दोस्तों को चुनौती दी। उन्होंने वैज्ञानिक तरीके से क्रोनी कैपिटलिस्ट के खिलाफ सबूतों और लूट का दस्तावेजीकरण किया और लोकतांत्रिक लड़ाई लड़ी। इसी से इस कायर सरकार ने उन्हें सलाखों के पीछे डाल दिया। उन्होंने कहा कि हम भारत के नागरिक एक साथ लड़ेंगे और किसी रेवड़ी पर भरोसा नहीं करेंगे। हम अपने सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक अधिकारों पर जोर देंगे। हम लड़ेंगे और अपने साथियों और दोस्तों को फासीवाद के चंगुल से मुक्त कराएंगे। हम दक्षिणपंथी उग्रवाद के खिलाफ लड़ेंगे और विजयी होंगे।

आगे कहा कि भारत में हैव्स (अमीरों) की तुलना में गरीब अधिक कर (टैक्स) का भुगतान करते हैं। प्रतिरोध की इस लड़ाई में उन्हें उम्मीद है कि सामूहिक रूप से एकजुट होकर हम फासीवादी ताकतों को हरा देंगे। इसके लिए सभी संगठनों को एक न्यूनतम साझा कार्यक्रम पर एक साथ आना चाहिए और कायर फासीवादी ताकतों से लड़ना चाहिए।

औपनिवेशिक राजद्रोह कानूनों पर बोलते हुए सामाजिक कार्यकर्ता बनोजत्सना कहती हैं कि आज सरकार अदालत में बहस नहीं कर रही है बल्कि समाचार चैनलों में बहस कर रही है और ईमानदार कार्यकर्ताओं के खिलाफ प्रोपेगंडा मीडिया ट्रायल कर रही है। भीमा कोरेगांव मामले में कई कार्यकर्ताओ के खिलाफ चार्जशीट दायर करने में ही अरसा लगा दिया। वहीं, सरकार अदालत में बहस नहीं कर रही हैं क्योंकि उनके पास कोई तर्कसंगत जवाब नहीं है। हम इस ज़ेनोफोबिक, नस्लवादी और जनविरोधी कृत्यों से कैसे सहमत हो सकते हैं। उमर और गुलफिशा ने उस जनविरोधी कृत्यों के खिलाफ लड़ाई लड़ी, जिस पर उन्हें जेल में डाल दिया गया था। लेकिन हमें यह तथ्य याद रखना होगा कि हम भी जेलों में ही हैं। अगर हम चुप रहे और सच नहीं बोले तब भी हमें कैद किया जा रहा है। जेलों में बंद किया जा रहा है।

पत्रकार अमित सेनगुप्ता ने स्वतंत्रता आंदोलन के बारे में बोलते हुए कहा कि आज कई मोर्चों पर स्वतंत्रता आंदोलनों की आवश्यकता है। पश्चिम बंगाल पर्यावरण आंदोलन के बारे में बोलते हुए तापस दास ने फरक्का किसान आंदोलन का जिक्र किया। कहा कि फरक्का में आम और लीची के कई हेक्टेयर बागान नष्ट कर दिए गए थे। क्षेत्र में वृक्षारोपण ने कई गरीब दलित और मुस्लिम परिवारों को आजीविका प्रदान की। औसतन देखा जाए तो इससे कृषक समुदाय को डेढ़ से दो लाख की वार्षिक आय हो जाती है। लेकिन अब फरक्का में अदानी समूह इन जमीनों को हथियाने का काम कर रहा है। मोदी और दीदी दोनों अडानी के दोस्त हैं।

वन गुर्जर आदिवासी आदिवासी युवा संगठन के मीर हमजा ने आंदोलन में युवाओं की भागीदारी पर चर्चा की। कहा फासीवादी शासन से लड़ने के लिए युवाओं तक पहुंचने की जरूरत हैं। किसान नेता हन्नान मोल्ला ने कहा कि आज, ईमानदार नागरिकों को देशद्रोही करार दिया जाता है और उन्हें जेलों में डाल दिया जाता है। ईमानदार नागरिकों की संस्थागत हत्याएं की जा रही हैं और अपराधी संसद मार्ग तक पर खुलेआम घूम रहे हैं। 
हन्नान मोल्ला

उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि क्या यही है आज के अच्छे दिनों का भारत? 2019 के बाद इस सूट-बूट वाली भाजपा सरकार द्वारा आदिवासियों की जमीनें लूटी जा रही है। उन्होंने किसान आंदोलन में छोटे और भूमिहीन किसानों को भी शामिल करने की वकालत करते हुए कहा कि आज अधिकांश आदिवासी परिवार गन्ने के खेतों में बंधुआ मजदूर के रूप में काम कर रहे हैं। मध्य प्रदेश में वन विभाग और स्थानीय प्रशासन द्वारा वन क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासियों पर बड़े पैमाने पर हमले हो रहे हैं। 

बिरसा झारखंड से अजिता ने कहा कि हम एफआरए- 2006 के कार्यान्वयन के लिए लड़ रहे हैं। लेकिन वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में भारत सरकार उल्टे, एफआरए 2006 और ग्राम सभा की राजनीतिक स्वायत्तता को कमजोर करने के हरसंभव प्रयास कर रही है।

वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता व दिल्ली फोरम से जुड़े एमजे विजयन ने आंदोलन में नारों की महत्ता गिनाई तो वहीं उत्साह और भावना (स्प्रिट) पर भी प्रकाश डाला। विजयन ने हबीब जालिब की प्रसिद्ध नज़्म दस्तूर सुनाकर सभी को जोश से लबरेज कर दिया। अंत में यूनियन के कार्यकारी अध्यक्ष अशोक चौधरी ने प्रमुख मानवाधिकार कार्यकर्ता व वरिष्ठ पत्रकार तीस्ता सेतलवाड को अंतरिम जमानत मिलने की जानकारी को साझा करते हुए खुशी जताई और पहले दिन की कार्यवाही के समापन की घोषणा की।
एमजे विजयन

इससे पूर्व सामुदायिक वन अधिकार आदि को लेकर सदस्यों द्वारा यूनियन की प्रगति रिपोर्ट, कार्यकलापों और कार्यक्रमों पर व्यापक चर्चा की गई तथा सदस्यों को जानकारी दी गई। 

केरल का दौरा 

संगठन की तरफ से कहा गया कि केरल में हमारे सोनभद्र, लखीमपुर खीरी और मानिकपुर के- सुकालो गोंड, निबादा राना, सहवनिया, मातादयाल, मुन्नर द्वारा 29 अप्रैल से 10 मई तक दौरा किया गया और आदिवासी संगठन एके वैदिका और डायनेमिक एक्शन ग्रुप के साथियों के साथ मिलकर वन अधिकार के मुद्दे पर कई गांव का दौरा किया और वहां के मुद्दों के बारे में समझदारी बनाई। ये दौरा बहुत ही महत्वपूर्ण रहा जिससे केरल के लोगों को वनाधिकार के मुददों और वनाधिकार कानून को लागू करने के बारे में जानकारी बढ़ी। यही नहीं भाषा की दिक्कत होते हुए भी यूनियन के साथियों की भी काफी समझदारी बढ़ी। यूनियन द्वारा समुदाय के वरिष्ठ साथियों को केरल जैसे सुदूर इलाके में वहां के समुदाय के साथ तालमेल बढ़ाने का यह काफी सफल प्रयोग रहा। 

यही नहीं, इस दौरे के बाद दो बार यूनियन के सभी साथियों के साथ जूम बैठक कर मुद्दों पर विस्तार पूर्वक चर्चा की गई। ये समझदारी बनी कि केरल में वाम सरकार के सत्ता में रहते हुए भी आदिवासियों और वनाश्रित समुदाय की उपेक्षा की जा रही है और वनाधिकार कानून को प्रभावी ढ़ंग से लागू नहीं किया जा रहा है। इस पर यूनियन द्वारा काफी गंभीरता से विचार किया गया और ये फैसला लिया गया की केरल में वनाधिकार कानून को लागू करने के लिए समुदाय के साथियों का प्रशिक्षण होने की जरूरत है और सामुदायिक दावों को दायर करने के लिए केरल में ही जाकर प्रशिक्षण करना जरूरी है। इसके लिए यूनियन द्वारा तैयार किये गये सामुदायिक वनाधिकारों के बारे में प्रशिक्षण मैनुअल को मलयालम भाषा में अनुवाद किया जायेगा और प्रशिक्षणकर्ताओं की एक टीम को केरल भेजा जाएगा जिससे की सामुदायिक वन अधिकारों के दावों को दायर किया जा सके।
 
त्रिपुरा राज्य के अनुभव 

यूनियन और दिल्ली फोरम के वरिष्ठ साथियों अशोक चौधरी, सोनू यादव, राजा रब्बी हुसैन की एक टीम अप्रैल 2022 के आखिरी हफ्ते में त्रिपुरा गई। टीम द्वारा कई गांव का दौरा किया गया और वहां पर कार्यरत संगठन के अगुवा साथियों और समुदाय के साथियों के साथ कई बैठकें की। यह दौरा काफी महत्वपूर्ण और सफल रहा। इस दौरे की संक्षिप्त रिपोर्ट भी तैयार की गई है। इस दौरे में मुख्य रूप से यह मुद्दा सामने आया कि त्रिपुरा में वनाधिकार कानून को लेकर पूर्व सत्ता सीन रही वाम सरकार द्वारा व्यक्तिगत वनाधिकार कानून के तहत व्यक्तिगत दावों को तो दिया गया लेकिन सामुदायिक दावे पूरे प्रदेश में कहीं भी नहीं किये गये। यहीं नहीं जो व्यक्तिगत दावे किये गये हैं उसमें कई गड़बडियां हैं जिसकी और तत्कालीन सरकार द्वारा कोई ध्यान नहीं दिया गया। मौजूदा भाजपा सरकार द्वारा इस मुद्दे पर किसी प्रकार का काम नहीं किया जा रहा है। बल्कि प्रदेश में बेहद चिंताजनक सांप्रदायिक माहौल बनाया जा रहा है जिससे कि समुदायों में आपसी टकराव काफी बढ़ गया है। ऐसे साम्प्रदायिक महौल में वहां काम कर रहे संगठनों के लिए दोतरफा चुनौती है, एक लोगों में तालमेल कैसे स्थापित किया जाये दूसरा लोगों के मुद्दे खासकर वनाधिकार कानून को कैसे लागू किया जाये। 
अशोक चौधरी

इस दौरे के बाद यह समझदारी बनी कि इस राज्य में यूनियन को लंबे समय के लिए काम करना होगा और इन चुनौतियों का सामना करना होगा। इस दौरे के बाद सहमति बनी कि त्रिपुरा की ज़मीनी परिस्थिति को और नजदीक से अध्ययन करने के लिए जांच दल को भेजा जाना चाहिए। जो विस्तृत रिपोर्ट तैयार करें। उस रिपोर्ट के आधार पर त्रिपुरा के लिए क्षेत्रीय संगठन के साथ मिलकर लंबा कार्यक्रम बनाया जा सके।

इस फैसले के तहत एक जांच दल जिसमें वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार अमित सेन गुप्ता, तपस मंडल यूनियन से और शबीना व ऐश्वर्या दिल्ली फोरम द्वारा त्रिपुरा अगस्त के पहले हफ्ते में त्रिपुरा का दौरा किया गया। इस दौरे में बेहद महत्वपूर्ण तथ्य निकलकर आये कि त्रिपुरा में अगामी विधानसभा चुनाव से पहले वनाधिकार को लेकर एक बड़ी जनसुनवाई की जाए तथा वहां के साथियों के साथ मिलकर वनाधिकार कानून को लागू करने की प्रक्रिया का कार्यक्रम बनाये जाये।

वनाधिकार आंदोलन के तहत उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड और बिहार में किये गये कार्यक्रम 

उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड में वनाधिकार कानून के तहत सामुदायिक दावे दायर करने की अच्छी प्रगति है। लेकिन बिहार की प्रगति धीमी है जिसकी काफी वजह भी है। जैसे जागरूकता की कमी, प्रशासन की तरफ से किसी तरह का सहयोग न होना और सबसे बड़ा कारण है राजनितिक इच्छाशक्ति का न होना। अभी तक समुदाय द्वारा जो सामुदायिक दावे दायर किये गए है उनका विविरण इस प्रकार है -----

1-  लखीमपुर खीरी – 23
2-  सोनभद्र – 22
3-  चंदौली – 8
4-  मानिकपुर – 20
5 – वन गुर्जर- उत्तराखंड – 10  
कुल – 83

दावे करने में सबसे महत्वपूर्ण इलाके में जनसंगठन का मजबूत होना है, अगर जनसंगठन नहीं है तो सामुदायिक दावों को भरने का काम बेहद मुश्किल होता है। सरकार व प्रशासन से किसी प्रकार की मदद न होने की वजह से यह कार्य जनसंगठन के माध्यम से ही संभव हो सकता है। इसलिए दावे दायर करने की प्रगति काफी धीमी है। वनों में रहने वाले वन समुदाय निरंतर एक संघर्ष में रहते हैं जहाँ एक तरफ वनविभाग और पुलिस से जूझना होता है जो कि कंपनियों और भूमाफियाओं के लिए जंगल की ज़मीन को लूटने में इनका इस्तमाल करते हैं और दूसरी तरफ स्थानीय समुदाय को सामंती तत्वों से भी जूझना पड़ता है। जैसे की अधौरा बिहार में हमारे यूनियन के सदस्यों पर लगातार वनविभाग व पुलिस का दमन जारी है जो कि वहां स्थित 108 गाँव में वन सेंचुरी की घोषणा कर वहां के समुदायों को उनकी भूमि से बेदख़ल करना चाहते हैं। वहां मुख्य कार्यकर्ता को झूठे फर्जी मुकदमों में फंसाकर जेल में ठूसा जा रहा है जिसके कारण वे वनाधिकार कानून के तहत अपने दावों को सही समय पर नही कर पा रहे हैं | इसके अलावा बारिश कम होने की वजह से सूखा पड़ना, बेरोजगारी और भुखमरी दावों को करने में एक मुख्य समस्या उभर कर आ रही है।

अन्य महत्वपूर्ण तथ्य

लखीमपुर खीरी के दुधवा नेशनल पार्क में 2013 से 25 गांव के सामुदायिक दावों को पास करने में डीएम द्वारा वन विभाग के साथ मिलकर विभिन्न अड़चनें लगायी जा रही हैं और ग्राम वनाधिकार समितियों को पूरी तरह से नजर अंदाज किया जा रहा है। समुदाय द्वारा आपत्तियों को लेकर महिलाओं के नेतृत्व में 4-5 अगस्त 2022 को विशाल रैली की गई और कोरोना महामारी की आड़ लेकर किस तरह लोगों की अनदेखी की गयी उस पर जनसुनवाई की गयी। 

सोनभद्र, चंदौली, मानिकपुर जिले में भी कोरोना महामारी की आड़ में किस तरह से वन आश्रित समुदाय का दमन किया गया इस मुद्दे पर तीनो जगहों पर दिसंबर 2021 को जनसुनवाई की गयी।

वहीं, शहीद दिवस के उपलक्ष्य में सहारनपुर, सोनभद्र, मानिकपुर में मार्च 2022 में मजदूर विरोधी नीतियों के खिलाफ जनसभा आयोजित की गयी।

उत्तराखंड के भवाली शहर में जून 2022 में उत्तराखंड महिला मंच के साथ वनाधिकार कानून पर एकदिवसीय कार्यक्रम किया गया।

यही नहीं, प्रतिध्वनि के साथ मिलकर जून के पहले सप्ताह में एक हफ्ते का संस्कृतिक कार्यशाला का आयोजन किया गया जिसमें हमारे यूनियन से चार युवा महिला साथी अनीता, सहवनिया, रामबेटी और सुसम्मा ने भाग लिया। 14 जुलाई 2022 को आदिवासी बालक मिथलेश गोंड की हिंडाल्को में हत्या पर मंझौली सोनभद्र में जनसभा में वन क्षेत्र में बच्चों के स्वास्थ्य और शिक्षा के कार्यक्रम पर रणनीति बनाई। इसके साथ ही वन गुर्जर समुदाय द्वारा उत्तराखंड के कई इलाकों में सामुदायिक दावे भरे गये। 

टौंगिया वन ग्राम में वनधिकारों की प्रगति पर रिपोर्ट

उत्तर प्रदेश सहारनपुर जिले के चार टौंगिया गांव को राजस्व गांव में परिवर्तन करने की कार्यवाही हो चुकी है। बहराइच के 5 वन ग्रामों को राजस्व गांव में तब्दील किया जा चुका है। बहराइच में अभी 15 और टौंगिया बस्तियों को राजस्व का दर्जा दिया जाना है जिसके लिए बहराइच के साथी लगातार संघर्षरत है। इस तरह से उत्तरी बंगाल और उत्तर प्रदेश में 250 वनटांगिया गांव को अधिकार प्राप्त हुए हैं जिसमें उत्तरी बंगाल में 214 व उत्तर प्रदेश में 36 गांव को राजस्व का दर्जा प्राप्त हो चुका है। अन्य वन क्षेत्रों में जैसे दक्षिणी बंगाल (जंगल महल), उड़ीसा, तापी (गुजरात) में भी वनाधिकार कानून के प्रभावी क्रियान्वन के लिए स्थानीय संगठनों के साथ तालमेल बनाकर कोशिश जारी है। इसी तरह अन्य राज्यों जैसे असम, अरूणांचल, छत्तीसगढ़, तमिलनाडु, जम्मू कश्मीर में वनाधिकार आंदोलन को मजबूत करने के लिए क्षेत्रीय संगठनों के साथ ताल मेल जारी है। भूमि व वनाधिकार आंदोलन के राष्ट्रीय स्वरूप को कायम करने के हेतु सांगठनिक प्रक्रिया को मजबूत करना नितांत जरुरी है।
        

राष्ट्रीय स्तर के कार्यक्रमों की रिपोर्ट

भूमि अधिकार आंदोलन की कई बैठकें आयोजित हुईं जिसमें फैसला लिया गया कि सितंबर के आखिरी हफ्ते में भूमि अधिकार आन्दोलन की दिल्ली में राष्ट्रीय स्तर की बैठक अयोजित की जाएगी जिसमें देश के विभिन्न क्षेत्रों में बढ़ रहे निजी कंपनियों और वन विभाग के हमलों पर चर्चा की जाएगी। इस दौर में बड़े पैमाने पर कार्पोरेट–सरकार –निजी कंपनियों द्वारा मिलकर कृषि भूमि, वन भूमि, मुस्लिम समुदाय की सम्पत्ति एवं भूमि पर जो अतिक्रमण और हिंसा की जा रही है उससे समाज में गंभीर सामाजिक और राजनितिक संकट पैदा हो रहा है। इस स्थिति पर राष्ट्रीय कार्यक्रम बनाने की बेहद जरूरत है।

पूरे देश में मुसलमानों के प्रति हो रहे सांप्रदायिक हमलों पर भी यूनियन द्वारा विशेष कार्यक्रम किए गए। यूनियन के संगठन सचिव आमिर शेरवानी द्वारा मध्यप्रदेश के खरगौन और राजस्थान के करौली जिलों का दौरा मार्च से लेकर जून महीने तक किया गया जिसमें मुस्लिम समुदाय के संगठनों एवं अन्य जन संगठनों एवं जनप्रतिनिधियों के साथ मिलकर हिंसाग्रस्त इलाकों में दौरा किया और कानूनी और आर्थिक मदद पहुंचाई।
 
राजनीतिक बंदियों की रिहाई की मुहिम 

देश में भाजपा के कुशासन की वजह से सैकड़ों आन्दोलनकारियों को झूठे मुक़दमे लगाकर जेलों में ठूसा जा रहा है। मशहूर लेखक, पत्रकार, वकील, सामाजिक कार्यकर्ताओ को जेलों में बिना सुनवाई सजा दी जा रही है। भीमा कोरेगांव में दलितों पर भगवा ब्रिगेड द्वारा किये गये हमलों पर उलटे प्रो आनंद तेलतुम्बले, प्रो शोमा सेन, जनकवि वरवरा राव, शिक्षक हैनी बाबू जैसी सख्शियत, दिल्ली विवि के प्राध्यापक साईं बाबा जो कि पूर्ण रूप से दिव्यांग हैं, नागरिकता संशोधन कानून का विरोध करने वाले कई युवा  गुलफ्शा, उमर खालिद और किसान आंदोलन के हजारों आंदोलनकारी जेलों में पड़े हुए हैं लेकिन उनकी सुनवाई तक नहीं की जा रही। और तो और गुजरात नरसंहार को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा जकिया जाफरी की अर्जी खारिज़ करते ही उनकी सहयाचिकाकर्ता व प्रमुख मानवाधिकार कार्यकर्ता वरिष्ठ पत्रकार तीस्ता सेतलवाड को फैसला आने के तुरंत बाद एसआईटी द्वारा जो कि आतंकवादी बिरोधी दस्ता है को बम्बई में उनके घर से गिरफ्तार करके अहमदाबाद 25 जून 2022 को ले जाया गया और उन्हें जेल में डाल दिया गया। उनके साथ आरबी श्रीकुमार जो तत्कालीन पुलिस उप महानिरीक्षक थे उन्हें भी गिरफ्तार किया गया। 

अखिल भारतीय वन जन श्रमजीवी यूनियन द्वारा कई संगठनों के साथ मिलकर राजनीतिक बंदियों की रिहाई के लिए मुहिम चलाई गई जिसके तहत सबसे पहले यूनियन के सभी इलाके से तीस्ता जी को पोस्ट कार्ड के मध्यम से हजारों की संख्या में एकजुटता संदेश भेजे गए। यह अभियान काफी असरदार रहा जिसमें तीस्ता सेतलवाड़ को 500 से ऊपर पोस्टकार्ड मिले जिससे उनका काफी मनोबल बढ़ा। इस मुहिम को आगे भी जारी रखना है जिसके लिए चर्चा करके रणनीति बनाई जाएगी।

साभार : सबरंग 

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