मणिपुर की घटना के बाद विश्व आदिवासी दिवस पर कैसे मनाएंगे ख़ुशी !
9 अगस्त, यह दिन आदिवासी समाज के लिए खुशी और उत्साह से भरा हुआ होता है। इस दिन समूचा आदिवासी समाज विश्व आदिवासी दिवस मनाता है, एक दूसरे को बधाई देता है, पारंपरिक वेषभूषा में नाचता, गाता और क्षेत्रीय पकवानों का आनंद लेता है। इतना ही नहीं, सामाजिक ताने—बाने पर विचार—विमर्श करता है। यह दिन इनके लिए होली और दीपावली से कम नहीं होता। इस दिन को 1984 में संयुक्त राष्ट्र संघ में मान्यता मिली थी और 1994 से इसे अनवरत मनाया जा रहा है। इतिहास में पहली बार होगा, जब 2023 में इस दिवस को खुशी के स्वरूप में नहीं, बल्कि दु:ख और आक्रोश के रूप में मनाया जाएगा। इसकी वजह मणिपुर, मध्यप्रदेश समेत देशभर में आदिवासी समाज पर बढ़ते अपराध हैं।
मणिपुर के आदिवासी समाज के वायरल वीडियो चीख—चीख कर कह रहे हैं कि हमारे साथ बलात्कार हुआ, हमारे लोगों की हत्या कर दी गई, आपत्तिजनक स्थिति में घुमाया गया, बंधक बनाया गया। अभी भी हजारों आदिवासी शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं।
मणिपुर की ये घटनाएं तो ताजा उदाहरण हैं ही, मध्यप्रदेश में भी आदिवासियों के साथ अपराध हो रहे हैं।
इन्हीं अपराधों से समूचा आदिवासी समाज विचलित है।
इन अपराधों और खासकर मणिपुर में जो कुछ हुआ और हो रहा है, ऐसी स्थिति में विश्व आदिवासी दिवस पर कैसे खुशी मना सकते हैं इसलिए तय किया है कि इस दिन लोकतांत्रिक तरीके से आक्रोश प्रकट करेंगे।
शंकर तलवाड़ खेडूत मजदूर चेतना संगठन के संयोजक और मप्र आदिवासी एकता परिषद के उपाध्यक्ष है। वह कहते हैं, मणिपुर में हमारे समाज के लोग प्रायोजित हिंसा का शिकार हो रहे हैं, उन्हें जान गंवानी पड़ रही है, आदिवासी महिलाओं, बेटियों के साथ बलात्कार हो रहे हैं, बच्चे भूख से बिलख रहे हैं, हमारे ही देश में हमारे ही समाज के लोग शरणार्थी की तरह जीवन यापन कर रहे हैं ऐसे में हम खुशी कैसे मना सकते है।
चाहे आदिवासी नारी शक्ति संगठन हो, जय आदिवासी युवा आदिवासी शक्ति संगठन हो, आदिवासी एकता परिषद हो, आदिवासी महापंचायत हो, आदिवासी छात्र संगठन हो, सभी ने तय किया है कि अपने—अपने प्रभाव वाले क्षेत्रों में इस दिन आक्रोश प्रकट करेंगे। 9 अगस्त को सड़कों पर निकलेंगे, विरोध रैली निकालेंगे, सभाओं को संबोधित करेंगे, युवाओं, महिलाओं, बुजुर्गों को बताएंगे कि आदिवासियों के साथ किस तरह अन्याय हो रहा है। यही बात राष्ट्रपति, राज्यपाल को भी ज्ञापन देकर बताएंगे और विरोध दर्ज कराएंगे।
बालाघाट की परसवाड़ा विधानसभा सीट से वर्ष 2003 से 2008 तक विधायक रहे आदिवासी दरबू सिंह उइके कहते हैं, मणिपुर में जो कुछ हुआ और हो रहा है वह सोची समझी हिंसा लगती है। जिसके लिए विश्व भर में आदिवासी समाज के संरक्षण को लेकर आवाजें उठी है। सोशल मीडिया का जमाना है, हमारे आदिवासी युवा समझने लगे हैं कि उनके समाज के लोगों के साथ किस तरह अन्याय किया जा रहा है। पहले अपराधों की जानकारी नहीं लगती थी, लेकिन अब गांव—गांव और घर—घर तक मणिपुर हिंसा की जानकारी है। मध्यप्रदेश का सीधी पेशाबकांड से भी समाज बेखबर नहीं है।
मणिपुर में आदिवासियों के खिलाफ हुई घटनाओं के विरोध में मंडला में राज्यपाल के नाम ज्ञापन देते आदिवासी समाज के लोग।
समाज से ही विश्व आदिवासी दिवस पर खुशी की बजाए आक्रोश प्रकट करने की मांग उठी है इसलिए इस दिन समूचा समाज अपनी पीड़ा व्यक्त करेगा और सरकार चलाने वालों से मांग करेगा कि उनकी रक्षा की जाए।
एनसीआरबी के आंकड़ों का हवाला देते हुए पूर्व विधायक दरबू सिंह उइके कहते हैं कि आदिवासियों पर अपराध के मामले में मप्र पहले स्थान पर है। यहां 2627 अपराध दर्ज हैं, यह स्थिति वर्ष 2021 तक की है।
मध्य प्रदेश में कुल जनसंख्या का 21.5 प्रतिशत आदिवासी हैं। यह संख्या 2011 की जनगणना के मुताबिक है। मध्यप्रदेश में किसी भी राज्य की तुलना में सबसे अधिक आदिवासी रहते है। इतनी बड़ी संख्या में जहां आदिवासी रहते हैं, वहां के आदिवासियों द्वारा यह तय करना कि विश्व आदिवासी दिवस पर 9 अगस्त को आक्रोश प्रकट करेंगे, सांस्कृतिक कार्यक्रम होंगे, लेकिन उनमें विरोध की ही ध्वनि होगी, उस दिन एक—दूसरे को बधाई नहीं देंगे, बल्कि आदिवासियों पर हो रहे अत्याचारों पर विचार—विमर्श करेंगे। ऐसा करने के लिए सरकारों ने ही मजबूर किया है, समाज के लोग आंदोलित है। प्रत्येक जिलों में इसकी शुरूआत हो चुकी है। 2 अगस्त को छिंदवाड़ा जिला मुख्यालय पर 10 हजार आदिवासी जुटे थे। यह विरोध का ही प्रतीक है। इसकी शुरूआत हो चुकी है, जो सरकारें ये समझती है कि आदिवासी अपराध सहते रहेंगे, तो यह उनकी गलतफहमी होगी।
आदिवासियों का पैदल मार्च
27 वर्ष के देवरावन भलावी राष्ट्रीय क्रांति मोर्चा के संस्थापक है। वह कहते हैं, बुरी तरह से समाज पीड़ित, शोषित है। इसके लिए आदिवासियों के नाम पर राजनीति करने वाले जनप्रतिनिधि और तब से लेकर अब तक राज्य करने वाली सरकारें जिम्मेदार हैं।
चाहे मणिपुर का मामला हो या मध्यप्रदेश का। इन राज्यों में सभी समाजों की तुलना में आदिवासियों के खिलाफ ही अपराध अधिक हुए हैं। ये आंकड़े स्वयं सरकार और उनकी एजेंसियों ने ही एकत्र किए है।
आखिर कब तक आदिवासी अत्याचार बर्दाश्त करता रहेगा। इन अत्याचारों के खिलाफ समाज उठ खड़ा हुआ है, युवाओं को समूची जानकारी है। सोशल मीडिया ने इसमें अहम भूमिका निभाई है, कुछ स्वतंत्रत समाचार प्रकाशित करने वाले न्यूज पोर्टल, वेबसाइट ने भी सच्चाई सामने रखी है।
अब हम चुप नहीं रहेंगे।
छिंदवाड़ा हो या अलीराजपुर, बड़वानी, बैतूल, मंडला, डिंडौरी, बालाघाट सभी आदिवासी बाहुल्य जिलों में बीते एक महीने से आदिवासी समाज मणिपुर और मध्यप्रदेश में समाज पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ विरोध दर्ज कराते आ रहा है।
मणिपुर घटना से नाराज होकर तीन आदिवासी युवतियां पैदल मार्च पर निकली।
तीन आदिवासी युवतियों द्वारा मणिपुर व मप्र में आदिवासियों पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ पैदल मार्च निकाला गया है।
मप्र की साधना उइके, राजस्थान की सोनिया जोया और बांसवाड़ा की भगवती भील, ये तीन युवतियां, मणिपुर की घटना के खिलाफ जन जाग्रति करने के लिए पैदल मार्च कर रही है। इन्होंने 30 जुलाई को राजस्थान के जयपुर से यह यात्रा शुरू की है, जो अभी बांदीपुर पहुंची है, यह यात्रा 9 अगस्त को दिल्ली के जंतर—मंतर पहुंचेगी। यहां देशभर से लोग जुटेंगे और विरोध दर्ज कराएंगे।
मप्र में इन घटनाओं ने बढ़ाया आदिवासी समाज का गुस्सा
जुलाई 2023 के पहले सप्ताह में एक वीडियो सामने आया। पता चला कि सीधी के एक पिछड़ी जाति के युवक पर प्रवेश शुक्ला नामक व्यक्ति ने पेशाब की है। प्रवेश का रिश्ता भाजपा से बताया गया, जो कि वर्तमान में मप्र में सत्ता में है। इस बात की पुष्टि उस वक्त और हो गई जब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पीड़ित के पैर धोए और समूचे समाज से उक्त कृत्य के लिए माफी मांगी। मार्च 2023 में इंदौर में एक आदिवासी युवती की मौत के बाद न्याय की मांंग कर रहे आदिवासियों पर आंसू गैस के गोल दागे थे, फायरिंग में एक आदिवासी की मौत हो गई थी। अगस्त 2022 में विदिशा के लटेरी में लकड़ी चोरी से जुड़े एक मामले में हुई फायरिंग में एक आदिवासी की गोली लगने से मौत हो गई थी और चार आदिवासी घायल हुए थे। मई 2021 में देवास के नेमावर में आदिवासी परिवार के पांच व्यक्तियों की हत्या करके खेत में गाड़ दिया था। 29 जून 2021 को खेत की खुदाई के बाद एक परिवार के पांच लोगों के शव मिले थे। ये शव 1 महिला, 3 युवती और 1 युवक के थे। पांचों शव को खेत में बने 10 फीट गहरे गड्ढे में गाड़ा गया था। मृतकों में रूपाली, ममता बाई, दिव्या, पवन और पूजा शामिल थे। ये सभी आदिवासी थे।
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