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इलाहाबाद हाई कोर्ट : जबरन धर्मांतरण कराने वाले “फादर, कर्मकांडी या मुल्ला” पर यूपी एंटी-कंवर्जन लॉ के तहत मुक़दमा चलाया जा सकता है

इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल की पीठ ने मौलाना मोहम्मद शाने आलम की ज़मानत याचिका ख़ारिज करते हुए कहा कि कोई भी ‘धर्मांतरण कराने वाला’ व्यक्ति ‘ग़ैर-क़ानूनी धर्मांतरण’ में किसी भी तरह से मदद करता है तो उसे उत्तर प्रदेश धर्मांतरण निषेध अधिनियम, 2021 के तहत सज़ा दी जा सकती है।
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न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल ने कहा कि धर्मांतरण करने वाले फादर, कर्मकांडी, मौलवी या मुल्ला कोई भी हों ‘जबरन धर्मांतरण’ में मदद करते पाए जाने पर धर्मांतरण विरोधी क़ानून के तहत सज़ा दी जा सकती है।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल की पीठ ने मौलाना मोहम्मद शाने आलम की ज़मानत याचिका ख़ारिज करते हुए कहा कि कोई भी ‘धर्मांतरण कराने वाला’ व्यक्ति ‘ग़ैर-क़ानूनी धर्मांतरण’ में किसी भी तरह से मदद करता है तो उसे उत्तर प्रदेश धर्मांतरण निषेध अधिनियम, 2021 के तहत सज़ा दी जा सकती है। आलम के ख़िलाफ़ ग़ाज़ियाबाद के अंकुर विहार पुलिस स्टेशन में उत्तर प्रदेश धर्मांतरण विरोधी क़ानून के तहत मामला दर्ज किया गया था (केस क्राइम नंबर 183/2024)।

शिकायतकर्ता के मुताबिक़, आरोपी "अमान ने उसका शारीरिक शोषण किया और उसे 'इस्लाम' स्वीकार करने के लिए मजबूर किया। 11 मार्च 2024 को 'धर्म परिवर्तन कराने वाले' द्वारा निकाह कराया गया।" आलम ने दलील दी कि "उसने केवल आरोपी अमान के साथ उसके कहने पर निकाह कराया था, और उसको जबरन 'इस्लाम' में परिवर्तित नहीं किया था। उसका कोई आपराधिक इतिहास नहीं है और वह 2 जून, 2024 से जेल में बंद है।" आलम ने यह भी कहा कि निकाहनामे पर अपनी मुहर और दस्तख़त करने के अलावा उसकी कोई भूमिका नहीं थी।

न्यायमूर्ति अग्रवाल ने लिखा कि “अधिनियम, 2021 की धारा 2(ए), (बी), (सी), (डी) और (आई) में ‘लालच देना’, ‘जबरदस्ती’, ‘धर्मांतरण’, ‘बल’, ‘धर्म परिवर्तन कराने वाले’ को परिभाषित किया गया है” और “इसी तरह, 'धर्म परिवर्तन कराने वाले' का मतलब किसी भी धर्म का व्यक्ति है जो एक धर्म से दूसरे धर्म में धर्मांतरण का काम करता है और उसे किसी भी नाम से संबोधित किया जाता है जैसे कि फादर, कर्मकांडी, मौलवी या मुल्ला आदि।” उन्होंने आगे कहा कि धर्मांतरण विरोधी क़ानून की धारा 3 ग़ैरक़ानूनी तरीक़े से धर्म परिवर्तन पर रोक लगाती है, जबकि धारा 8 में यह अनिवार्य है कि धर्मांतरण से पहले ज़िला मजिस्ट्रेट (डीएम) से ज़रूरी घोषणा प्राप्त करनी होगी। इस आदेश में इस्तेमाल किए गए ये कुछ सख़्त शब्द हैं।

इस आदेश में कहा गया है कि इस मामले में अधिनियम की धारा 8 के तहत डीएम को आवश्यक घोषणा उपलब्ध कराए बिना "आवेदक जो अधिनियम 2021 की धारा 2 (i) में परिभाषित 'धर्म परिवर्तन कराने वाले' की परिभाषा के अंतर्गत आता है, उसने सूचनाकर्ता का निकाह समारोह आरोपी अमन के साथ कराया था।" इसकी आवश्यकता का उल्लंघन दिए गए अधिनियम की धारा 5 के तहत दंडनीय है। कोर्ट ने आदेश में यह लिखा है कि "...उसे 'इस्लाम' स्वीकार करने के लिए मजबूर किया गया और निकाह किया गया। 'धर्म परिवर्तन कराने वाला' होने के नाते आवेदक अधिनियम, 2021 के तहत समान रूप से उत्तरदायी है।"

उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा बनाए गए धर्मांतरण और धर्मांतरण-विरोधी क़ानून के मामले पर टिप्पणी करते हुए न्यायाधीश ने कहा कि "इस अधिनियम को लागू करने के उद्देश्यों और कारणों के तथ्यों का मतलब भारत में धर्मनिरपेक्षता की भावना को बनाए रखना था। भारत का संविधान सभी व्यक्तियों को धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देता है जो भारत की सामाजिक सद्भाव और भावना को दर्शाता है।" "हालांकि, हाल के दिनों में ऐसे कई मामले सामने आए हैं जहां भोले-भाले लोगों को गलत बयानी, बल, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती, लालच या धोखाधड़ी के ज़रिए एक धर्म से दूसरे धर्म में परिवर्तित किया गया है।"

अदालत ने याचिकाकर्ता की ज़मानत याचिका को यह कहते हुए ख़ारिज कर दिया कि प्रथम दृष्टया आरोपी के ख़िलाफ़ धर्मांतरण विरोधी क़ानून के तहत अपराध बनता है।

अदालत के फ़ैसले की कॉपी यहां देखी जा सकती है:

साभार : सबरंग 

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