टेक्सास व लीबिया : सुनहरे ख़्वाबों की चाहत में घुट-घुट कर मौत
दुनिया भर की : अमेरिका के टेक्सास में जो हुआ वह भयावह है, हमारी संवेदनाओं को कचोटता है। लेकिन हकीकत यह है कि इस तरह की मौतों के प्रति हमारी याद्दाश्त बहेद कमजोर रहती है।
अमेरिका के इतिहास में मानव तस्करी की सबसे भयावह घटना में टेक्सास प्रांत के सेंट एंटोनियो शहर में एक लावारिस छोड़ दिए गए ट्रक में 51 लाशें मिलीं और 16 लोग जिंदा मिले। ये सभी मध्य अमेरिकी देशों से अवैध तरीके से अमेरिका में लाए गए लोग थे। इनमें से ज्यादातर मेक्सिको के निवासी थे और कुछ ग्वाटेमाला और होंडुरास से लाए जा रहे थे।
जिस जगह यह ट्रक मिला, वहां से अमेरिका व मेक्सिको की सीमा करीब 250 किलोमीटर दूर है। इस तरह से आने वाले लोग अमूमन पैदल छिपते-छिपाते, दुर्गम रास्तों से सीमा पार करते हैं और फिर इन्हें इकट्ठा करके तस्कर ट्रक में भरकर अमेरिका में किसी ठिकाने लाते हैं और वहां से छोटे-छोटे वाहनों में अमेरिका के अलग-अलग शहरों में भेज दिया जाता है जहां वे सालों तक, और कुछ तो जिंदगी भर नकली पहचान के साथ गुजर-बसर करते हैं और अपने अमेरिकी ख़्वाब को जीते हैं।
लेकिन तभी, अगर वे जिंदा बच पाए तो...
टेक्सास में उबलते गर्म मौसम में दमघोंटू बंद ट्रक में बगैर हवा-पानी के छोड़ दिए गए ये लोग इतने किस्मतवाले नहीं थे। यह सोमवार की घटना है।
ठीक अगले दिन, यानी मंगलवार को हजारों किलोमीटर दूर समुद्र के उस पार अफ्रीका में चाड की सीमा से लगे लीबिया के रेगिस्तान में 20 लोगों की लाशें मिलीं। ये सब भी अवैध प्रवासी थे जो चाड छोड़कर संभवतया बेहतर जिंदगी की तलाश में लीबिया और वहां से हो सके तो अवैध रूप से भूमध्य सागर पार करके यूरोप जाने की फिराक में थे।
ये लोग ट्रक में थे और शायद इनका ड्राइवर रास्ता भटक गया होगा। इन लोगों से आखिरी संपर्क दो सप्ताह पहले का बताया जाता है। रास्ता भटकने के बाद तपते रेगिस्तान में भूख व प्यास के मारे इन सभी ने जान गंवा दी। वह तो कोई दूसरा ट्रक उधर से निकला और उसने रेगिस्तान में लाशें बिखरी देखीं तो इस घटना का पता लगा।
टेक्सास व लीबिया की घटनाएं एक-दूसरे से हजारों किलोमीटर दूर घटीं लेकिन एक साझे तार से जुड़ी हैं। बेहतर जिंदगी की तलाश का तार। यह इस बात का भी साक्ष्य है कि धरती के उत्तरी गोलार्ध व दक्षिणी गोलार्ध के बीच जीवन-स्तर व आर्थिक संपन्नता को लेकर स्थित खाई उनके बीच के समुद्रों से भी कहीं ज्यादा गहरी है।
चिंता की बात यह है कि यह किसी के लिए भी चिंता की बात नहीं। जो लोग चिंता कर सकते हैं, उनके लिए यह कोई मसला नहीं और जो लोग बरदाश्त कर रहे हैं वे चिंता करके भी कुछ कर नहीं सकते। वे लोग यही सोचकर तसल्ली कर लेते हैं कि मरने वाले जहां थे, वहां भी भीषण गरीबी में कुछ समय बाद दम तोड़ ही देते।
अपने तेल व गैस के लिए परेशान रहने वाले विकसित देशों को अफ्रीका व दक्षिण अमेरिका के गरीब देशों में गरीबी की बस उतनी भर चिंता है जिससे उनकी अपनी पेशानी पर कहीं कोई बल नहीं पड़े।
समझना यह है कि इन देशों में गरीबी, भुखमरी, हिंसा व गृहयुद्ध का समाधान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जब तक मिलकर नहीं किया जाएगा, तब तक उन सारे अमीर देशों पर अवैध प्रवासियों को जोर इसी तरह बढ़ता जाएगा। इस तरह के हादसे लगातार बढ़ते जाएंगे।
गरीबी, भुखमरी, गृहयुद्ध व खून-खराबे से तंग आकर और अमेरिका व यूरोप की चमक-दमक के चकाचौंध में हर साल हजारों लोग अवैध तरीके से अपने देश छोड़कर अमेरिका व यूरोप पहुंचने की कोशिश करते हैं। अवैध तरीके से इसलिए क्योंकि वैध तरीके बेहद सीमित हैं और उनके बस के बाहर हैं।
संयुक्त राष्ट्र समेत कई एजेंसियों से सहायता प्राप्त एक एजेंसी है- अंतरराष्ट्रीय प्रवास संगठन (इंटरनेशनल ऑर्गनाइजेशन फॉर माइग्रेशन)। वह लापता हो गए प्रवासियों की संख्या का ब्यौरा रखता है। उसके अनुसार साल 2014 से अब तक 49,235 प्रवासी प्रवास के लिए किसी दूसरे देश जाते हुए अपनी जान गंवा चुके हैं। साल 2014 से इसलिए क्योंकि इस संगठन ने मिसिंग माइग्रेंट्स प्रोजेक्ट 1 जनवरी 2014 से ही शुरू किया था जहां दुनियाभर के प्रवासियों का ब्यौरा रखा जाने लगा।
खुद यह संगठन मानता है कि वह जो संख्या बता रहा है वह महज एक न्यूनतम अनुमान है क्योंकि अवैध प्रवासियों की मौत के ज्यादातर मामले दर्ज ही नहीं होते। जाहिर है कि मरने वालों की संख्या कहीं ज्यादा है। मिसिंग माइग्रेंट्स प्रोजेक्ट का मकसद यही है कि अवैध प्रवासियों की मौतों और पीछे छूटे उनके परिजनों पर उसके असर पर दुनिया की निगाह डाली जा सके और साथ ही यह बहस भी छेड़ी जा सके कि कैसे लोगों के प्रवास को सुरक्षित व वैधानिक बनाया जा सके।
फिलहाल यह सारी बहस कोई कारगर स्वरूप नहीं ले पाई है। दरअसल टेक्सास की घटना में मरने वाले अवैध प्रवासियों की संख्या इतनी ज्यादा न होती तो यह भी एक और मामूली हादसे की ही तरह खो जाती। अमेरिका-मेक्सिको सीमा के लिए वैसे भी यह कोई नई बात नहीं। इंटरनेशनल ऑर्गनाइजेशन फॉर माइग्रेशन के अनुसार इस सीमा पर पिछले साल 650 अवैध प्रवासी अमेरिका में नई जिंदगी जीने की चाह में अपना जान गंवा चुके हैं।
बंद ट्रक में दम घुटने वाली घटना भी यह पहली नहीं है। सेंट एंटोनियो में ही 2017 में इसी तरह एक ट्रक में 10 लाशें मिली थीं। 2003 में इसी तरह 18 लोग ट्रक में मुर्दा मिले थे।
मिसिंग माइग्रेंट्स प्रोजेक्ट के अनुसार मेक्सिको से अमेरिका जाने की कोशिश में 2014 से लेकर अब तक करीब 4000 लोग जान गंवा चुके हैं। लेकिन सबसे ज्यादा हाल खराब है भूमध्य सागर का। उत्तर अफ्रीका, पश्चिम एशिया और दक्षिण यूरोप की संधि पर बैठा भूमध्य सागर हर साल बेहिसाब अवैध प्रवासियों की जल-कब्र बनता है। लोग हर तरह का जोखिम उठाकर यह समुद्र पार करने की कोशिश करते हैं ताकि पानी के रास्ते छुपते-छुपते यूरोप में प्रवेश पा सकें। आंकड़े बताते हैं कि 2014 से लेकर अब तक 24 हजार से ज्यादा लोग यहां जान से हाथ धो चुके हैं।
उत्तर व उत्तर पश्चिम अफ्रीका के देश सबसे ज्यादा बुरे हाल में हैं। गरीबी व लगातार हिंसा की चपेट में यहां के लोग नाउम्मीदी की जिंदगी जी रहे हैं। इसी तरह पिछले दस साल में आईएसआईएस के प्रभाव वाले पश्चिम एशिया के ज्यादातर इलाकों से भी जमकर पलायन हुआ। इन सब देशों के लोगों के लिए भूमध्य सागर एक उम्मीद की वह किरण है जिसके उसपार यूरोप में खुशहाली बसती है। यह उम्मीद इतनी तगड़ी है कि वे बर्फीले पानी में तैरकर, डगमगाती कश्तियों में बैठकर या नावों में एक के ऊपर एक लदकर भी उस पार जाना चाहते हैं।
केवल एक ख़्वाब के लिए इतना बड़ा दांव! सोचकर हमें तो हैरत हो सकती है, लेकिन इस जद्दोजेहद की पीड़ा हम समझ तभी सकते हैं जब उनके हाल से होकर गुजरें। वरना इसी तरह बंद ट्रकों या गहरे पानी में बेजुबान जानें जाती रहेंगी।
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