बनारसः सर्व सेवा संघ को लेकर बढ़ी तनातनी, गांधी के अनुयायियों का हुजूम पहुंचने लगा राजघाट
गांधी की विरासत बचाने का संकल्प लेते गांधी के अनुयायी
उत्तर प्रदेश के बनारस स्थित सर्व सेवा संघ की जमीन को लेकर रेलवे और गांधी के अनुयायियों के बीच अब आर-पार की लड़ाई छिड़ गई है। भारतरत्न आचार्य विनोबा भावे के चंदे से जुटाए गए पैसे से सर्व सेवा संघ ने 63 बरस पहले राजघाट में जमीन खरीदी थी। बनारस की सरकार ने अभिलेखों और नियमों की अनदेखी करते हुए समूची जमीन अब रेलवे के हवाले कर दी है। बनारस के कलेक्टर एम.राजलिंगम ने 27 जून 2023 को रेलवे के पक्ष में एकतरफा आदेश पारित किया तो महकमे के अफसरों ने आनन-फानन में सर्वे सेवा संघ परिसर में ध्वस्तीकरण की कार्रवाई की नोटिसें चस्पा करा दी। रेल अफसरों ने महात्मा गांधी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी आचार्य विनोबा भावे और लोकनायक जयप्रकाश नारायण की विरासत पर 30 जून (शुक्रवार) को बुल्डोजर चलाने का अल्टीमेटम दिया है।
उत्तर रेलवे का ध्वस्तीकरण आदेश
बनारस के जिलाधिकारी एम.राजलिंगम के एकतरफा फैसले के खिलाफ सर्व सेवा संघ की ओर से इलाहाबाद हाईकोर्ट में दायर याचिका पर 28 जून 2023 को सुनवाई हुई। कोर्ट ने रेलवे और उत्तर प्रदेश सरकार के अधिवक्ताओं को निर्देश दिया कि वह सर्व सेवा संघ परिसर में ध्वस्तीकरण की कार्रवाई स्थगित रखें। 30 जून 2023 को हाईकोर्ट पुनः इस मामले की सुनवाई करेगा और फैसला देगा। बनारस के राजघाट स्थित सर्व सेवा संघ का परिसर ओल्ड जीटी रोड और वरुणा नदी के बीच स्थित है। संस्था की जमीन काफी कीमती है। गांधीवादियों का आरोप है कि पीएम नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट नमो घाट की परियोजनाओं को विस्तार देने के लिए महात्मा गांधी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी विनोबा भावे की विरासत को जबरन छीनने की कोशिश की जा रही है। जिला प्रशासन मनमाने फैसले से गांधीवादियों में आक्रोश है।
ध्वस्तीकरण की कार्रवाई का विरोध करने के लिए देश भर से गांधी, विनोबा व जयप्रकाश के समर्थक और बड़ी संख्या में किसान राजघाट स्थित सर्व सेवा संघ परिसर की ओर कूच करने लगे हैं। नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटेकर, जाने-माने समाजशास्त्री प्रो.आनंद कुमार, समाजवादी चिंतक डा.सुनीलम, लोहिया के सहयोगी रघु ठाकुर, डा.सगुन बरंठ, संजय सिंह, जल पुरुष राजेंद्र सिंह समेत बड़ी संख्या में समाजवादी और गांधीवादी समर्थक 29 जून की शाम तक सर्व सेवा संघ में डेरा डाल देंगे। उत्तर प्रदेश सर्वोदय मंडल के कार्यालय प्रभारी सौरभ सिंह ने ‘न्यूजक्लिक’ से कहा, ''बीजेपी सरकार महात्मा गांधी की कर्मस्थली साबरमती आश्रम को गांधीवादियों से छीन चुकी है और अब सर्व सेवा संघ को कब्जाने की तैयारी में है। गांधीवादियों के लिए यह जीवन-मरण का सवाल है। गांधी की प्रेरणास्थली और विनोबा-जयप्रकाश की कर्मस्थली को बचाने का यह आखिरी प्रयास है। हाईकोर्ट के आदेश की अनदेखी करते हुए प्रशासन अगर भारी फोर्स और बुल्डोजर लेकर धावा बोलेगा तो गांधी के अनुयायी भी पीछे नहीं हटेंगे। गांधावादी लोग बुल्जोडर का मुंह दिल्ली की ओर मोड़ने के लिए तैयार बैठे हैं।''
प्रियंका ने बीजेपी को घेरा
गांधीवादी संस्था का वजूद बचाने के लिए विपक्ष के सभी सियासी दल मैदान में कूद गए हैं। कांग्रेस की वरिष्ठ नेत्री प्रियंका गांधी ने एक खुला पत्र जारी करते हुए कहा है, ''सर्व सेवा संघ परिसर को बीजेपी सरकार द्वारा खाली कराने और ढहाने की कार्रवाई शुरू कराना राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की विरासत पर हमला है। विनोबा भावे, डा.राजेंद्र प्रसाद, लाल बहादुर शास्त्री और बाबू जगजीवन राम के प्रयास से बनारस के राजघाट पर सर्व सेवा संघ की स्थापना हुई थी। इसका मकसद गांधी के विचारों का प्रचार-प्रसार करना था। इन्हीं महापुरुषों के नेतृत्व में यह जमीन भी खरीदी गई। जिला प्रशासन इसे अवैध बताकर कार्रवाई शुरू कर रहा है जो गांधी के विचारों पर हमला है। बीजेपी की यह शर्मनाक कार्रवाई निंदनीय है। हम संकल्प लेते हैं कि महात्मा गांधी के विरासत पर हो रहे हर हमलों के खिलाफ डटकर खड़े रहेंगे। हमारे देश के महानायकों और राष्ट्रीय विरासतों पर भाजपाई हमले को देश की जनता कभी बर्दाश्त नहीं करेगी।''
इस बीच मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, समाजवादी पार्टी, आम आदमी पार्टी के अलावा पूर्वांचल के सभी किसान संगठनों ने रेलवे और जिला प्रशासन के रवैये के कड़ी भर्त्सना करते हुए बीजेपी सरकार को कटघरे में खड़ा किया है। समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व मंत्री सुरेंद्र सिंह पटेल ने एक बयान में कहा है, ''जो जमीन विनोबा भावे के चंदे से खरीदी गई, उसे रेलवे कैसे कूटरचित दस्तावेज करार दे सकता है? बनारस के कलेक्टर को सर्वे सेवा संघ के बैनामे की डीड को निरस्त करने का कानूनी अधिकार नहीं है। अगर कोई बैनामा अवैध है तो उसे सिर्फ तीन साल के अंदर सिविल कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है, 63 बरस बाद नहीं। उत्तर रेलवे के अफसरों ने विनोबा और जेपी पर फर्जीवाड़े का जो आरोप लगाया है वह तथ्यहीन और बलहीन है। इनके सनसनीखेज आरोपों से देश का हर प्रबुद्ध नागरिक अचंभित है और बीजेपी सरकार की नीयत पर सवालिया निशान लगा रहा है। सर्व सेवा संघ की जमीन खरीदने में जिन लोगों पर फर्जीवाड़े का आरोप लगाया जा रहा है उनमें आचार्य विनोबा भावे हैं तो तत्कालीन राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद भी। आरएसएस के इशारे पर आजादी के पुरोधाओं की नीति और नीयत पर अशोभनीय आरोप चस्पा किए जा रहे हैं। तत्कालीन रेल मंत्री जगजीवन राम, उद्योग एवं वाणिज्य मंत्री लाल बहादुर शास्त्री से लेकर सर्व सेवा संघ के राधाकृष्ण बजाज पर उंगलियां उठाई जा रही हैं। गौर करने की बात यह है कि प्रशासन के शर्मनाक और निंदनीय रवैये पर भला कौन भरोसा करेगा?''
बनारस के राजघाट स्थित सर्व सेवा संघ
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सर्वे सेवा संघ के मामले की सुनवाई करते हुए बनारस के जिलाधिकारी एम.राजलिंग को दो महीने के अंदर अभिलेखों की जांच-पड़ताल करने का निर्देश दिया था। सर्व सेवा संघ के संयोजक राम धीरज ने न्यूजक्लिक से कहा, ''हाईकोर्ट के निर्देशों के अनुपालन में बनारस के डीएम ने हमारे अभिलेखों की कोई जांच-पड़ताल ही नहीं की। हमने उन्हें अभी आधे अभिलेख ही सौंपे थे और बचे हुए अभिलेखों को देने के लिए उनसे समय की मांग की जा रही थी। हमारे पक्ष को नजरंदाज करते हुए मनमाने तरीके से रेलवे के पक्ष में फैसला सुना दिया। इससे पहले बनारस के कमिश्नर कौशलराज शर्मा के निर्देश पर प्रशासन ने दिसंबर 2020 में सर्व सेवा संघ की करीब ढाई एकड़ जमीन जबरन कब्जा ली थी। 15 मई 2023 को संघ की जिस जमीन पर गांधी विद्या संस्थान खोला गया था उस पर प्रशासन ने जबरिया कब्जा किया कर लिया और मनमाने तरीके से इंदिरा गांधी कला केंद्र के हवाले कर दिया, जिसके मुखिया वरिष्ठ पत्रकार राम बहादुर राय है जो फिलहाल राष्ट्रीय सेवक संघ से जुड़े हैं।''
डीएम ने क्या सुनाया फैसला
बनारस के जिलाधिकारी एम.राजलिंग ने 27 जून 2023 को हाईकोर्ट के निर्देश पर जो फैसला सुनाया है उसमें कहा है, ''सर्व सेवा संघ उस जमीन पर अपना स्वामित्व साबित करने में पूरी तरह विफल रहा। अखिल भारतीय सर्व सेवा संघ द्वारा वर्ष 1960, 1961 एवं 1970 के विक्रय पत्रों की वैधानिकता की पुष्टि में कोई प्रामाणिक साक्ष्य/अभिलेख मुहैया नहीं कराया गया। इसलिए वह भूमि उत्तर रेलवे की है।''
सर्वोदयी नेता सौरभ सिंह बनारस के जिलाधिकारी एम.राजलिंग के फैसले पर सवाल उठाते हुए कहते हैं, ''डीएम ने तो हमें मिलने और अपना पक्ष रखने का समय ही नहीं दिया। उन्होंने हमारे अभिलेखों की जांच-पड़ताल करने की जरूरत तक नहीं समझी। उत्तर रेलवे ने विनोबा भावे के चंदे से खरीदी गई जमीन को अपना बताते हुए सालों पुराने अभिलेखों को कूटरचित दस्तावेज करार दिया है। रेल अफसरों ने अपने दावे को प्रमाणित करने के लिए कोई साक्ष्य पेश नहीं किया है। उल्टा विनोबा भावे, जयप्रकाश नारायण और पूर्व राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद को ही जालसाज बता दिया। हर कोई जानता है कि जिस स्थान पर 63 साल पहले सर्व सेवा संघ की स्थापना की गई थी, उसे पैसा चुकाकर खरीदा गया था। इस समूचे तथ्य को बनारस के जिलाधिकारी और रेलवे के अफसर सिरे से हजम कर गए, जबकि हमारे पास चालान के अभिलेख व देनदारी का रिकार्ड मौजूद है। गांधीवादियों को परेशान करने के लिए रेलवे ने 30 मई 2023 को एसडीएम कोर्ट में एक फर्जी मुकदमा भी दायर कराया। यह ऐसा मुकदमा था जिसके याची का कहीं अता-पता ही नहीं था। मेरा मानना है कि सरकार के संरक्षण के बगैर विनोबा और जयप्रकाश नारायण की विरासत को ढहाने की हिम्मत कोई अफसर नहीं जुटा सकता है। बीजेपी व आरएसएस के लोग गांधीजी के प्रतीकों को मिटाने और गोडसेवाद को बढ़ावा देने की मुहिम में जुटे हैं।''
बनारस में सिविल मामलों के जाने-माने अधिवक्ता आनंद पाठक ने समूचे मामले पर त्वरित प्रतिक्रिया देते हुए कहा, '' कलेक्टर एम.राजलिंगम का आदेश एकतरफा, गलत और न्याय के विपरीत है। आप संघ के बैनामे को फर्जी बताने वाले कौन होते हैं? उसे सही अथवा फर्जी साबित करना सिविल कोर्ट का काम है। सर्व सेवा संघ का बैनामा ओरिजनल है अथवा फर्जी, इस पर फैसला सुनाना सिविल कोर्ट का काम है, डीएम का नहीं। एकतरफा आदेश के आधार पर गांधीवादियों की अरबों की संपत्ति रेलवे के हवाले कर देना अनुचित है। हमें लगता है कि बनारस के जिलाधिकारी सत्ता पक्ष की सहानुभूति में काम कर रहे है, ताकि किसी भी तरह से सर्व सेवा संघ की जमीन रेलवे बोर्ड के अधीन हो जाए। डीएम ने फैसला दिया और रेलवे ने बिना देर किया तत्काल नोटिस चस्पा करा दी।''
''ऐसे में तो कोई यह भी समझ जाएगा कि विनोबा और जेपी की विरासत को ढहाने की योजना किसके इशारे पर बनाई गई होगी? सबसे बड़ी बात यह है कि किसी भी कोर्ट में जब कोई फैसला होता है तो अपील करने के लिए एक महीने से 90 दिन की मोहलत दी जाती है, लेकिन बनारस के कलेक्टर ने इस मामले में कोई समय ही नहीं दिया। इससे आसानी से समझा जा सकता है कि उनकी मंशा क्या है? सर्व सेवा संघ ने जो बैनामा लिया अगर वह फर्जी है तो रेलवे को सिविल कोर्ट में जाना चाहिए। सर्व सेवा संघ के मामले में डीएम ने अपने तरीके से समूचे मामल की व्याख्या की और दूसरे पक्ष को सुने बगैर मनमाने तरीके से फैसला सुना दिया। मनमाना फैसला सुनाने वाले अफसरों को देर-सबेर इसका खामियाजा जरूर भुगतना पड़ेगा।''
सर्वे सेवा संघ के भवनों के ध्वस्तीकरण की नोटिस चस्पा किए जाने से परिसर में रहने वाले कर्मचारियों और उनके परिजनों में जबर्दस्त आक्रोश है। परिसर में मौजूद खुशी कुमार ने न्यूजक्लिक से कहा, ''गांधीवादी विचारों को दुनिया भर में प्रचारित करने के लिए स्थापित सर्व सेवा संघ महात्मा गांधी, जयप्रकाश नारायण, जेसी कुमारप्पा, दादा धर्माधिकारी सरीखे मनीषियों की पुस्तकें भी प्रकाशित करता है। रेलवे प्रशासन ने हमें दो दिन के अंदर कार्यालय और आवास खाली करने के लिए नोटिस दिया है। देश की हर अदालत ऊपर की कोर्ट में सुनवाई अथवा पुनर्वास के लिए एक से तीन महीने की मोहलत देती है।''
''बनारस के जिलाधिकारी ने तो हमें 72 घंटे तक मोहलत नहीं दी। यह संवैधानिक व मानवीय दृष्टि से अनुचित और अव्यावहारिक है। अफसरों की बदनीयती का पता इस बात से भी चलता है कि डीएम का फैसला आने के एक घंटे बाद ही सर्व सेवा संघ परिसर पुलिस की छावनी बन गई। रेलवे, पुलिस और प्रशासनिक अफसर इस बात की जांच-पड़ताल में जुट गए कि भवनों को कैसे तोड़ा जाएगा और कितना मलबा निकलेगा? किन-किन रास्तों को रोका जाएगा और विरोध करने वालों से कैसे निपटा जाएगा? प्रशासन के रवैये से सिर्फ बनारस शहर ही नहीं, समूचा देश अवाक है।''
सर्व सेवा संघ परिसर में चक्रमण करती पुलिस
''28 जून 2023 को कमिश्नर व उत्तर रेलवे के एडीआरएम के दफ्तर में पहुंचकर ज्ञापन दिया। ज्ञापन में ध्वस्तीकरण की कार्रवाई को तत्काल प्रभाव से रोकने की मांग की गई है। साथ ही यह भी कहा गया है कि रेलवे का नोटिस अवैधानिक और सुप्रीम कोर्ट के नियमों का उल्लंघन है। साल 1960 में विनोबा भावे, लाल बहादुर शास्त्री, जगजीवन राम जैसे लोगों की मदद से सर्व सेवा संघ ने रेलवे से जमीन खरीदी थी। उस जमीन के दस्तावेज आज फर्जी और कूटरचित कैसे हो गए? डीएम का एकतरफा फैसला आने के एक घंटे के अंदर रेलवे द्वारा ध्वस्तीकरण की नोटिस चस्पा कराया जाना अनुचित है।''
महात्मा गांधी के बलिदान के बाद आचार्य विनोबा भावे के मार्गदर्शन में अप्रैल 1948 में सर्व सेवा संघ का गठन किया गया था। वाराणसी में गंगा नदी के तट पर सर्व सेवा संघ राजघाट पर स्थित है, जो 12.09 एकड़ में फैला है। जमीन का मालिक सर्व सेवा संघ है। 15 मई, 1960 को यह जमीन उत्तर रेलवे से खरीदी गई थी। जमीन की बिक्री का दस्तावेज संस्था के पास मौजूद है। सर्व सेवा संघ के कार्यक्रम समन्वयक रामधीरज कहते हैं, '' महात्मा गांधी के बलिदान के बाद आचार्य विनोबा भावे के मार्गदर्शन में अप्रैल 1948 में सर्व सेवा संघ का गठन किया गया था। वाराणसी में गंगा नदी के तट पर सर्व सेवा संघ राजघाट पर स्थित है, जो 12.09 एकड़ में फैला है।''
''विनोबा भावे और जेपी की पहल पर बनारस में सर्व सेवा संघ की स्थापना की गई थी। विनोबा के दान के पैसे से 15 मई, 1960 को यह जमीन उत्तर रेलवे से खरीदी गई थी। तत्कालीन राष्ट्रपति डा.राजेंद्र प्रसाद की संस्तुति के बाद रेलवे ने पूरी कीमत लेकर जमीन बेची थी। साक्ष्य के तौर पर हमारे पास रजिस्ट्री के तीन दस्तावेज मौजूद हैं। खास बात यह है कि सर्व सेवा संघ के पक्ष में बैनामा बाद में हुआ और जमीनों की कीमत पहले चुकाई गई। सबसे पहले 05 मई 1959 को चालान संख्या 171 के जरिये भारतीय स्टेट बैंक में 27 हजार 730 रुपये जमा किए गए थे। इसके अलावा 750 रुपये स्टांप शुल्क भी अदा किया गया था।''
''इसके बाद 27 अप्रैल 1961 में 3240 रुपये और 18 जनवरी 1968 को 4485 रुपये चालान संख्या क्रमशः03 और 31 के जरिये स्टेट बैंक में जमा किया गया। उस समय यह रकम बहुत बड़ी थी। औपचारिक रूप से 14 अप्रैल, 1952 को उत्तर रेलवे का गठन हो चुका था और उसका दफ्तर दिल्ली में था। सर्व सेवा संघ की स्थापना के समय से ही तत्कालीन उद्योग एवं वाणिज्य मंत्री लाल बहादुर शास्त्री संस्था से जुड़े थे। राष्ट्रपति डॉ.राजेंद्र प्रसाद की संस्तुति के बाद तत्कालीन रेल मंत्री जगजीवन राम ने जनहित के आधार पर रेलवे की जमीन सर्व सेवा संघ को बेचने की संस्तुति दी थी। सरकारी जमीनों का विलेख-पत्र पहले किसी व्यक्ति विशेष के नाम से नहीं, उसके पदनाम से ही तैयार कराया जाता था। अचरज की बात यह है कि प्रशासन खुद फ्रॉड करने में जुटा है और वह भूमाफिया की तर्ज पर काम कर रहा है। सर्व सेवा संघ की जमीन पर जबरन कब्जा कराने वालों को हम क्या कहें-अफसर या फिर भूमाफिया? मोदी सरकार के कार्यकाल में गांधीवादी संस्थाओं में आरएसएस के स्वयंसेवकों को बैठाने, गांधीवादियों को बाहर निकालने के लिए पुलिस बल का इस्तेमाल किया जा रहा है।''
राष्ट्रपति-राज्यपाल को ज्ञापन
बनारस जिला प्रशासन के एकतरफा फैसले और रेलवे के ध्वस्तीकरण के आदेश के खिलाफ गांधी के अनुयायियों की ओर से राष्ट्रपति और यूपी की राज्यपाल को संबोधित ज्ञापन भेजा गया है, जिसमें कहा गया है कि सर्व सेवा संघ, गांधी विचार का राष्ट्रीय शीर्ष संगठन है। इसकी स्थापना मार्च 1948 में भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की अध्यक्षता में आयोजित सम्मेलन में हुआ था। इस मौके पर तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के अलावा आचार्य कृपलानी, आचार्य विनोबा भावे, मौलाना अबुल कलाम आजाद, लोकनायक जयप्रकाश नारायण, जेसी कुमारप्पा आदि प्रमुख नेता उपस्थित थे। सर्व सेवा संघ का प्रकाशन विभाग है, जहां से देश भर के 70 रेलवे स्टेशनों पर संचालित ‘सर्वोदय बुक स्टालों’ के माध्यम से ‘गांधी-विनोबा-जेपी’ सहित देश के मनीषियों का सत्साहित्य पहुंचाया जाता है।
साल 1960 में लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने सर्व सेवा संघ को गांधी विचार के उच्च अध्ययन एवं शोध के लिए एक राष्ट्रीय संस्थान की स्थापना का सुझाव दिया तो संघ ने जमीन दी और राजघाट पर ‘दी गांधीयन इन्स्टीट्यूट ऑफ स्टडीज’ (गांधी विद्या संस्थान) की स्थापना की गई। सर्व सेवा संघ ने अपनी क्रयशुदा जमीन उपलब्ध कराया और इस जमीन पर भवनों का निर्माण उत्तर प्रदेश गांधी स्मारक निधि ने किया। संघ और निधि के साथ एक रजिस्टर्ड लीज डीड बनी, जिसका प्रावधान है कि ‘किन्हीं कारणों से गांधी विद्या संस्थान बंद हो जाता है अथवा अन्यत्र कहीं स्थानांतरित हो जाता है, तो जमीन स्वत: सर्व सेवा संघ को वापस कर दी जाएगी। भवन का उपयोग उत्तर प्रदेश गांधी स्मारक निधि की सहमति से कर सकेगा। इस बीच बनारस के कमिश्नर कौशल राज शर्मा ने गांधी विद्या संस्थान को मनमाने तरीके से इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र-वाराणसी के क्षेत्रीय निदेशक के हवाले कर दिया। इस बाबत कमिश्नर ने सर्व सेवा संघ को कोई जानकारी नहीं दी।
सर्व सेवा संघ की खरीदी हुई जमीन के संबंध में रेलवे के अफसरों ने ‘कूटरचित आपराधिक कृत्य’ का आरोप लगाया है, जो लज्जाजनक है। इस मामले में आचार्य विनोबा भावे, पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री, तत्कालीन रेलमंत्री जगजीवन राम तथा देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद जैसे महापुरुषों को लांक्षित किया गया है। संबंधित प्रकरण को संज्ञान में लेते हुए गांधी व विनोबा की विरासत को बचाया जाए। साथ ही फर्जी अभिलेखों के आधार पर एकतरफा फैसला सुनाने वाले अफसरों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई की जाए।
आरएसएस के निशाने पर सर्व सेवा संघ
बनारस का सर्व सेवा संघ तभी से आरएसएस के निशाने पर है जब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार सत्ता में आई। उस समय मानव संसाधन विकास मंत्री रहे प्रो. मुरली मनोहर जोशी ने संघ पृष्ठभूमि की कुसुम लता केडिया को यहां प्रोफेसर बनाकर भेजा। गांधी विद्या भवन के तत्कालीन निदेशक प्रो. रामजी सिंह (प्रसिद्ध गांधीवादी एवं पूर्व कुलपति) ने इस नियुक्ति का विरोध किया। साल 2003 में प्रो. रामजी सिंह और कुसुम लता केडिया के बीच तीखा विवाद हुआ। गांधी विद्या संस्थान सर्व सेवा संघ की जमीन पर था, और हर 30 साल बाद उसका नवीनीकरण होना था, लेकिन केडिया ने संस्थान का रजिस्ट्रेशन ही रद्द करा दिया। विवाद बढ़ता गया और 2007 से संस्थान पर ताला लग गया।
सर्व सेवा संघ परिसर में लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ स्टडीज की स्थापना कराई थी। जिसका उद्देश्य ऐसे समाज की स्थापना करना था, जिसका आधार सत्य और अहिंसा हो, जहां कोई किसी का शोषण न करे और जो शासन की अपेक्षा न रखता हो। यह शांति, प्रेम, मैत्री और करुणा की भावनाओं को जागृत करते हुए अहिंसक क्रांति के लिए स्वतंत्र जनशक्ति का निर्माण व आध्यात्मिक, वैज्ञानिक साधनों का उपयोग करना चाहता है। इस ऐतिहासिक विरासत को बचाने के लिए गांधी और जेपी के अनुयायी कई दिनों से धरना और आंदोलन-प्रदर्शन कर रहे हैं। जिला प्रशासन के एकतरफा फैसले से गांधी के समर्थक और किसान गुस्से में हैं।
हाईकोर्ट ने रेलवे और सरकार अधिवक्ताओं को सुनवाई पूरी होने तक भले ही ध्वस्तीकरण की कार्रवाई रोकने का आदेश दिया है, लेकिन गांधी-विनोबा-जयप्रकाश के समर्थकों को लगता है कि प्रशासन और रेलवे अपनी हद पार कर सकते हैं। बुल्डोजर का मुकाबला करने के लिए गांधी अनुयायी राजघाट पहुंचने लगे हैं और तनातनी बढ़ती जा रही है। जेएनयू के प्रोफेसर आनंद कुमार ने एक खुला पत्र जारी करते हुए जनता का आह्वान किया है, ''30 जून को राजशक्ति की तरफ से बनारस में गांधी-जेपी की विरासत पर बुल्डोजर चलाने का ऐलान किया गया है। इस अन्यायी आदेश के प्रतिरोध में लोकशक्ति की तरफ से सविनय अवज्ञा करनी होगी। 30 जून की सुबह बुल्डोजर फोर्स के पहले राजघाट पहुंच रहा हूं। आप भी आइए...।''
(लेखक बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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