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बैंक ऑफ बड़ौदा: ग्रामीण बैंकों में नई भर्ती की मांग को लेकर दो दिवसीय हड़ताल, ग्राहक परेशान

राजस्थान, उत्तर प्रदेश और गुजरात की लगभग 3000 से ज़्यादा शाखाओं में वित्तीय लेन-देन पूरी तरह से ठप है।
Bank of Baroda

एक ओर केंद्र की मोदी सरकार जन धन योजना के तहत हर घर को बैंक से जोड़ने के लिए अपनी पीठ थपथपाती है, तो वहीं दूसरी ओर ग्राहकों के बढ़ने और सालों से नई नियुक्तियां नहीं होने से ग्रामीण बैंकों की स्थिति लगातार बदहाल होती जा रही है। बैंक ऑफ बड़ौदा (BOB) द्वारा संचालित तीन ग्रामीण बैंकों के लगभग 15,000 से ज्यादा अधिकारी-कर्मचारी रिक्त पदों को भरे जाने की मांग को लेकर आज यानी सोमवार 19 जून से दो दिवसीय हड़ताल पर चले गए हैं। इसके चलते राजस्थान, उत्तर प्रदेश और गुजरात की लगभग 3000 से ज्यादा शाखाओं में वित्तीय लेनदेन पूरी तरह से ठप रहेगा।

बता दें कि बैंक ऑफ बड़ौदा के स्वामित्व में इस समय 3 क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक हैं। इनमें गुजरात का बड़ौदा गुजरात ग्रामीण बैंक, राजस्थान का बड़ौदा राजस्थान ग्रामीण बैंक और उत्तर प्रदेश में बड़ौदा यूपी बैंक शामिल हैं। ज्वाइंट फोरम ऑफ बैंक ऑफ बड़ौदा के आरआरबी यूनियन के बैनर तले जारी इस हड़ताल में ग्रामीण बैंकों के अधिकारी एवं कर्मचारी संयुक्त रूप से भाग ले रहे हैं। इससे पहले ये फोरम इस बाबत कई बार केंद्रीय वित्त मंत्रालय, नाबार्ड और बैंक ऑफ बड़ौदा प्रबंधन को ज्ञापन भी सौंप चुका है। बावजूद इसके सरकार और बैंक मैंनेजमेंट ने चुप्पी साध रखी है, जिसके बाद इन अधिकारियों-कर्मचारियों ने ये कदम उठाया है।

क्या है पूरा मामला?

बड़ौदा राजस्थान क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक ऑफिसर्स एसोसिएशन से जुड़े अनिल सैनी न्यूज़क्लिक को इस हड़ताल की जानकारी देते हुए बताते हैं कि पिछले कई वर्षों से ग्रामीण बैंकों का व्यवसाय तो बढ़ रहा है लेकिन प्रबंधन द्वारा नई भर्ती नहीं की जा रही। बड़ौदा राजस्थान क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक का वित्तीय वर्ष 2020 के बाद व्यवसाय में 40 प्रतिशत वृद्धि हुई है। इस दौरान करीब हजा़रों स्टाफ सेवानिवृत्त हो गए या नौकरी छोड़ गए, लेकिन इन रिक्तियों को अभी तक भरा नहीं गया। इन बैंकों में जितने स्टाफ की जरूरत है, फिलहाल उसका केवल 50 प्रतिशत ही स्टाफ ही है, जिससे ग्राहकों को अच्छी सुविधा देना संभव नहीं है।

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अनिल सैनी बताते हैं कि मौजूदा स्टाफ पर काम का बोझ बहुत अधिक बढ़ गया है, जो कर्मचारियों को मानसिक तनाव भी देता है। घंटों बैठकर अतिरिक्त काम करने से शारीरिक दिक्कतें भी बढ़ रही हैं। इसके अलावा ग्राहकों की सुविधाओं को लेकर भी परेशानी आती है। भर्तियां नहीं निकलने से हजारों युवाओं का भविष्य भी खतरे में पड़ रहा है जो सालों से इन बैंक परीक्षाओं की तैयारी करते हैं।

मानसिक तनाव से गुजर रहे हैं बैंककर्मी

ज्वाइंट फोरम से जुड़े शिवकांत द्विवेदी का कहना है कि ग्रामीण बैंकों के सभी अधिकारी कर्मचारी बैंक ऑफ बड़ौदा के सौतेले व्यवहार के कारण परेशान हैं। इनका दावा है कि इस तरह की स्थिति अन्य बैंकों द्वारा प्रायोजित ग्रामीण बैंकों में नहीं है। वहां नियमित रिक्तियों को भी भरा जा रहा है और नई नियुक्तियां भी निकाली जा रही हैं। लेकिन बैंक ऑफ बड़ौदा के इन तीनों ग्रामीण बैंकों की हज़ारों शाखाओं में साल 2021 में करीब 3,000 अधिकारियों एवं कर्मचारियों की भर्ती प्रक्रिया को रोक दिया गया। इसके बाद अभी तक कोई नई भर्ती हुई ही नहीं है।

शिवकांत के अनुसार पहले अन्य ग्रामीण बैंकों की तरह ही इन तीनों ग्रामीण बैंकों में भी केंद्र सरकार के मापदंडों के आधार पर सभी पदों पर नई भर्ती और प्रोमोशन किया जाता था। लेकिन साल 2020-21 के बाद कारोबार के आधार पर इन तीनों बैंकों में कोई नई नियुक्ति नहीं हुई। 2021 में आईबीपीएस (Institute of Banking Personnel Selection) के द्वारा नियुक्ति प्रक्रिया अपने अंतिम चरण में थी। लेकिन, अचानक बैंक ऑफ बड़ौदा के निर्देश पर तीनों ग्रामीण बैंकों आईबीपीएस (IBPS) को पत्र लिख कर नई भर्ती रूकवा दी। यह केंद्र सरकार के मापदंड का उल्लंघन था, अभी तक जारी है।

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ग्राहकों के गुस्सेे का शिकार

उत्तर प्रदेश में संगठन से जुड़े कई अधिकारियों और कर्मचारियों ने न्यूज़क्लिक को बताया कि यहां करीब 31 जिलों में बड़ौदा यूपी बैंक ग्राहकों को सेवाएं दे रहा है। ज्यादातर बैंक की शाखाएं कर्मियों की कमी से जूझ रही हैं। इसका असर ग्राहकों पर पड़ रहा है। ग्राहकों का काम समय से न होने से उन्हें उनके गुस्से का शिकार भी होना पड़ रहा है। तमाम ग्राहक इसी वजह से बैंक से अपना खाता बंद करा रहे हैं। कर्मचारियों पर बोझ बढ़ रहा है, उन्हें जरूरी अवकाश तक नहीं मिल पाता है।

गौरतलब है कि बीते लंबे समय से ग्रामीण बैंकों के कर्मचारी अपनी अनेक मांगों को लेकर प्रदर्शन और हड़ताल करते रहे हैं। लेकिन इनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है। एक से दो दिन राष्ट्रीय खबरों में जगह बनाने और फिर गायब होने के बाद इन कर्मचारियों की दिक्कतें ऐसे ही चलती रहती हैं। ऐसे में अब ज्वाइंट फोरम का कहना है कि अगर सरकार और बैंक प्रबंधन जल्द ही उनकी मांगों पर सुनवाई नहीं करता है तो मजबूरन उन्हें अनिश्चितकालीन हड़ताल पर जाना पड़ेगा जिससे निकट भविष्य में ग्रामीण इलाकों में बैंक का पूरा कामकाज ठप हो सकता है।

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