बंगाल चुनाव : मोदी-शाह की जोड़ी पर भाजपा पूरी तरह निर्भर; उनकी रिकॉर्ड 40 रैलियां कराने की योजना
कोलकाता: धन संसाधनों से मालामाल भारतीय जनता पार्टी पश्चिम बंगाल में मोदी-शाह की रिकॉर्ड 40 चुनावी रैलियां कराने के साथ कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाह रही है। इन दोनों नेताओं की इतनी तादाद में रैलियां किसी भी प्रदेश में अब तक आयोजित हुईं चुनाव रैलियों में सबसे ज्यादा होंगी। इसमें उत्तर प्रदेश शामिल नहीं है, जो भौगोलिक रूप से देश का बड़ा राज्य है।
दरअसल, पश्चिम बंगाल के पिछले 50 वर्षों के चुनावी इतिहास में यह संभवत: पहली बार होगा, जब किसी प्रधानमंत्री ने इतनी तादाद में चुनावी रैलियों को संबोधित किया होगा।
भाजपा प्रदेश में पहले ही पांच परिवर्तन यात्राएं कर चुकी है। इनमें से दो की शुरुआत भाजपा के पूर्व अध्यक्ष और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने की है, जबकि तीन परिवर्तन यात्राओं की शुरुआत पार्टी के मौजूदा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने की।
हालांकि केसरिया पार्टी प्रदेश में अपनी चुनावी किस्मत चमकाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह पर सर्वाधिक आश्रित होगी, अगर भाजपा की परिवर्तन यात्रा और मातृशक्ति सम्मेलन में मनचाही भीड़ नहीं जुटती है। मातृशक्ति सम्मेलन का आयोजन प्रदेश की महिला मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की काट के लिए किया जा रहा है।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि भाजपा काफी मालदार पार्टी है। उसने अपने केंद्रीय नेताओं से हरी झंडी मिलने के बाद राज्य के हर विधानसभा क्षेत्र के कोने-कोने में अपनी मौजूदगी दर्ज कराने के लिए तूफानी प्रचार अभियान की योजना बना रही है। इसमें, दलों को तोड़ कर उनके नेताओं को अपनी पार्टी में लाने का काम भी शामिल है, जैसा कि त्रिपुरा में 2018 में किया गया था।
त्रिपुरा में भाजपा के चुनावी अभियान के तौर-तरीके पर अमल किया जा रहा है। वहां भारी संख्या में दल-बदल कराया गया था और चुनाव जीतने के लिए आखिरी चरण में राजधानी अगरतला तथा शांति बाजार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सभाएं कराई गई थीं। कहा जाता है कि इन रैलियों ने त्रिपुरा के मतदाताओं का मन-मिजाज एकदम बदल दिया था। भाजपा इसी तरह की रणनीति पश्चिमी बंगाल में भी अपनाने जा रही है।
विगत लोकसभा चुनाव में 18 सीटें जीतने के बाद भाजपा की रणनीति चुनाव में कद्दावर प्रचारकों को उतारने की रही है, जैसा उसने उत्तर प्रदेश और बिहार के विधानसभा चुनावों में किया था। वहां भाजपा ने दल-बदल आधारित चुनावी कार्यनीति का भी बखूबी इस्तेमाल किया था।
त्रिपुरा में तो चुनाव के ठीक पहले, पूरी कांग्रेस पार्टी ही भाजपा में शामिल हो गई थी। इसका मीडिया में खूब प्रचार-प्रसार किया गया और उसी ने मोदी-शाह की जोड़ी को भीड़ का “मुख्य आकर्षण” बना दिया।
बंगाल चुनाव अभियान
सूत्रों के मुताबिक, बंगाल में भाजपा की चुनावी रणनीति बड़ी-बड़ी रैलियां कराने की है, जहां दो या तीन विधायक (इनमें तृणमूल कांग्रेस से टूट कर आए विधायक ज्यादा होंगे) मौजूद रहेंगे। भाजपा की पैठ होने की संभावना के आधार पर राज्य को चार जोनों-ए,बी,सी और डी-में बांटा गया है। मालदा, आसनसोल, रायगंज और कूचबिहार को ए जोन में रखा गया है, जहां विगत में हिंदू-मुस्लिमों के बीच हिंसक संघर्ष हुआ था। वहां उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जैसे कट्टर हिंदुत्व के प्रचारकों का उपयोग किया जा रहा है।
लोकसभा सीटें और वे क्षेत्र जहां भारतीय जनता पार्टी ने पहले चुनाव जीते हैं, उन्हें बी जोन में रखा गया है। सी जोन में उन विधानसभा क्षेत्रों को रखा गया है, जहां भाजपा ने कभी चुनाव नहीं जीता है। डी जोन के अंतर्गत उन क्षेत्रों को रखा गया है, जहां पार्टी को कड़ी चुनौतियां मिलने की संभावना है; जैसे कोलकाता दक्षिण, जादवपुर, डायमंड हर्बर, जयनगर और हुगली विधानसभा क्षेत्र।
मोदी और शाह उन सभी चार जोनों में चुनावी रैलियों को संबोधित करेंगे। केशव भवन (कोलकाता में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का राज्य मुख्यालय) से मिली जानकारियों के मुताबिक, उनके अलावा ‘स्टार’ प्रचारक भी होंगे, जैसे स्मृति ईरानी राज्य के शहरी क्षेत्रों में प्रचार करेंगी। ध्रुवीकरण वाले विधानसभा क्षेत्रों में साध्वी प्रज्ञा और योगी आदित्यनाथ को पहले ही उतारा जा चुका है।
मीडिया की भूमिका
अंतिम चरण के चुनाव में भाजपा की योजना (यद्यपि इस समय राज्य में निर्धारित 8 चरणों के चुनाव मोदी शाह के लिए थोड़ी परेशानियां वाला होगा।) तमाम सड़कों को लोगों से पाट देने की है। इसके तूफानी कवरेज के लिए वह मीडिया के सभी अंगों, खासकर टीवी चैनलों, के इस्तेमाल की योजना बना रही है। अगरतला में भाजपा का यह तरीका काम कर गया था, हालांकि वह बंगाल की अपेक्षा बहुत छोटा राज्य है और इसी लिहाजन, उसका चुनाव अभियान भी काफी छोटा था।
दिलचस्प तरीके से, बंगाल के मीडिया में भाजपा का निवेश पिछले दो-तीन महीनों में दोगुना हो गया है। इसके अलावा, पार्टी ने सोशल मीडिया के वालंटियर्स को भी दिहाड़ी के आधार पर नियुक्त किये हैं, जिनमें से बहुतों ने इस काम को राज्य के बेरोजगार युवाओं को सौंप रखा है। ये लोग आरएसएस के 1000 वालंटियर्स के अलावा हैं, जिन्हें भाजपा के चुनाव अभियान के लिए तैनात किया गया है। यह सभी जानते हैं कि आरएसएस भाजपा की विचारधारा की प्रवर्तक-मार्गदर्शक संस्था है।
चुनाव अभियान की रणनीति
बंगाल में पिछले विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा ने राम माधव को बंगाल में तैनात किया था, जो त्रिपुरा विधानसभा चुनाव में पार्टी की जीत के ‘वास्तुकार’ रहे हैं। लेकिन उन्हें तत्काल ही इस काम से मुक्त कर दिया गया और उनकी जगह, असम में कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए और मौजूदा वित्त मंत्री हेमंत बिस्व शर्मा, आरएसएस के सुनील देवधर तथा केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को राज्य में भाजपा के कार्यकर्ताओं से रोजाना संपर्क करने और फिर उनके ब्योरे आरएसएस को देने का जिम्मा दे दिया गया।
अब चुनाव की प्रक्रिया शुरू होने में एक महीना बाकी रह गया है, भाजपा ने उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रकाश मौर्या, सांसद संजीव बुलियान (जो मुजफ्फरनगर सांप्रदायिक दंगे के अभियुक्त हैं) और भाजपा के महासचिव सुनील बंसल को बंगाल की अतिरिक्त जवाबदेही दी गई है।
यहां यह भी याद किया जा सकता है कि भाजपा ने उप रेल खंडों में सफर करने वाले दैनिक यात्रियों के मन-मिजाज की टोह लेने के लिए उनके बीच अपने लोगों को लगा रखे हैं। यह जानकारी देते हुए सूत्रों ने बताया कि एक गैर सरकारी प्रकोष्ठ का भी गठन किया है, जो आम लोगों से मिली सूचनाओं को राज्य में बनाए गए आईटी सेल के समन्वयक को देते हैं।
आईटी सेल
भाजपा के आईटी सेल के मुख्य अमित मालब्य, तेजिंदर बग्गा और कपिल मिश्रा (जिनके पिछले साल दिल्ली में सीएए-विरोधी कार्यकर्ताओं के विरोध में भाषण देने के बाद वहां दंगा भड़क उठा था) भाजपा के सोशल मीडिया अभियान की कमान संभाले हुए हैं। इन लोगों ने प्रदेश के विभिन्न जिलों में सैकड़ों 200 से ज्यादा वालंटियर्स को ट्रेनिंग दी है कि कैसे किसी “सटीक” मिजाज की घटना पर ध्रुवीकरण कर अधिक से अधिक फायदा कैसे उठाया जा सकता है। वह इन कार्यकर्ताओं को सोशल मीडिया के मैट्रिक्स के गुर सिखा रहे हैं और हर एक जिले में कानाफूसी अभियान के बारे में भी बता रहे हैं।
आरएसएस के अग्रिम संगठनों, जैसे इसकी स्कूली ईकाइयों-सरस्वती विद्या मंदिरों एवं सर्व विद्यापीठों-के शिक्षकों को भी अपने स्कूल में पढ़ने वाले छात्रों के अभिभावकों से बातचीत उनके असंतोष को चैनेलाइज करने की जवाबदेही दी गई है। इनके अलावा, इन शिक्षकों के निजी, आधिकारिक और स्कूल नेटवर्क के लिए “उपयुक्त” ऑडियो-विजुअल क्लिपिंग भी मुहैया कराई गई है।
यहां तक कि आरएसएस के साथ मजबूत जुड़ाव रखने वाले व्यवसायियों के मातहत काम करने वाले लोगों को भी संघ के निर्देश पर भाजपा के लिए चलाए जा रहे चुनाव अभियान का हिस्सा बनाया जा रहा है।
भाजपा के अन्य ‘स्टार’ चुनाव प्रचारक, जो लोग बंगाल के दौरे कर रहे हैं, उनमें मध्य प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा, झारखंड से लोकसभा सांसद निशिकांत दुबे और केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान शामिल हैं, जो मुख्यतः हिंदी भाषी क्षेत्रों में अपना जोर लगाए हुए हैं। दुबे और प्रधान को चुनाव अभियान के लिए वित्तीय संसाधन जुटाने का भी अतिरिक्त जिम्मा सौंपा गया है।
भाजपा के चुनाव प्रचारक मुख्य रूप से टीएमसी के सुप्रीमो और राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की बंगाल केंद्रित दृष्टिकोण पर हमलावर हैं, जिसने केसरिया पार्टी को कठिनाई में डाल दिया है,क्योंकि उसके पास तृणमूल कांग्रेस से पाला बदलकर आए शुभेंदु अधिकारी, राजीव बनर्जी, वैशाली डालमिया और मुकुल राय को छोड़कर अपना कोई चेहरा नहीं है।
जातीय कोण
सूत्रों ने बताया कि जहां सांप्रदायिकता (जिसे भाजपा सोशल इंजीनियरिंग कहती है।) के बनिस्बत जातिवाद ही मुख्य है, उनकी शिनाख्त कर भाजपा ने वहां के लिए दिल्ली के अपने सांसद रमेश बिधुड़ी, राजस्थान के राज्यवर्धन सिंह राठौर, गुजरात के नेता प्रदीप सिंह बघेल, बसंत पांड्या, विनय सहस्त्रबुद्धे और विनोद सोनकर, जिन्हें नई दिल्ली में आरएसएस के सर्किल में “सोशल इंजीनियरिंग का मास्टर” माना जाता है, को तैनात कर दिया है।
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष ने एक इंटरव्यू में बताया, “1980 के दशक में हमारा वोट 4 फ़ीसदी था,1990 के दशक में यह बढ़कर 10 फीसदी हो गया था। 2014 में हम 17 फ़ीसदी तक पहुंचे थे। मुझे प्रदेश अध्यक्ष का जिम्मा मिलने के बाद, 2018 में हुए पंचायत चुनाव में हमारा मत फ़ीसदी 35 के पार चला गया। 2019 के लोकसभा चुनाव में हम 40 फ़ीसदी को भी लांघ गये हैं। इसीलिए आप इस परिपथ को देख सकते हैं।”
हालांकि घोष भाजपा के जिस प्रक्षेप-पथ की बात कह रहे हैं, वह इस चुनाव में नहीं टिक सकता है, इसलिए पार्टी मीडिया में तूफानी प्रचार अभियान पर भरोसा कर रही है।
किसान और निजीकरण के मुद्दों से परहेज
घोष ने हाल में जितनी रैलियों को संबोधित किया है, उनमें ‘सोनार बांग्ला’ के निर्माण का वादा और तृणमूल कांग्रेस के भ्रष्टाचार को खत्म करने की बात ही पहली नजर में दिखाई देती है। हालांकि भाजपा नेता विवादास्पद मुद्दों, जैसे किसानों के धरना-प्रदर्शन और सार्वजनिक उपक्रमों के निजीकरण, पर अपने चुनावी अभियान में कुछ भी कहने से बचते हैं।
दिलचस्प तरीके से, जब पश्चिम बंगाल में वाममोर्चा की सरकार थी, तब भारतीय जनता पार्टी को 10 फ़ीसदी मत पाने के लिए भी काफी जद्दोजहद करनी पड़ती थी। 2011 में वाम मोर्चे सरकार के जाने के बाद ही बंगाल में केसरिया पार्टी के ‘अच्छे दिन’ शुरू हो सके थे।
भाजपा त्रिपुरा-मॉडल को पश्चिम बंगाल में भी दोहराने की योजना बना रही है। लेकिन यह बंगाल जैसे बड़ी आबादी वाले और बड़े राज्य में हूबहू नहीं दोहराया जा सकता है, जहां 30 फ़ीसदी अल्पसंख्यकों के वोट हैं और अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजातियों के मतदाता भी बड़ी तादाद में हैं, जो आरएसएस के परिभाषित “सोशल इंजीनियरिंग” के दायरे में अभी तक नहीं आए हैं।
अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें ।
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