बिहार: नीतीश की अगुआई वाली कैबिनेट में कोई मुस्लिम नहीं, अल्पसंख्यक मतदाता चकित
पटना: “इस बार नीतीश कुमार की नहीं बीजेपी की सरकार है बिहार में, इसीलिए एक भी मुसलमानों की मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया गया है। ये एक संदेश है (मुसलमानों के लिए)।” ये बात पटना के बाहरी इलाके में स्थित फुलवारीशरीफ के रहने वाले अब्दुल रहमान ने राज्य में नई सरकार के गठन पर टिप्पणी करते हुए कहा।
नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली कैबिनेट में मुस्लिम मंत्री की अनुपस्थिति ने कई लोगों को आश्चर्य में डाल दिया है क्योंकि यह स्वतंत्रता के बाद पहला मौका है जब बिहार के सबसे बड़े अल्पसंख्यक समुदाय के किसी सदस्य को राज्य मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया गया है। लगभग 12 करोड़ की राज्य की आबादी में मुस्लिम 16.5% हैं।
राजनीतिक विश्लेषक सुरूर अहमद ने बिना मुस्लिम वाले कैबिनेट के राजनीतिक नतीजों की ओर इशारा करते हुए कहा, "यह हालिया फैसला बिहार में मुसलमानों के राजनीतिक हाशिए पर होने का संकेत देता है, हालांकि हाल ही में संपन्न बिहार विधानसभा चुनाव में पांच सीट जीतने वाली असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम (ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन) दावा करती रही है कि उन्होंने इस समुदाय को राज्य में सशक्त बनाया है। यह उल्लेख करने की आवश्यकता है कि 243 सदस्यों वाली बिहार विधानसभा में इस बार मुस्लिम विधायकों की संख्या पहले के 24 सदस्य से घटकर 19 हो गई है। सत्तारूढ़ जद-यू से इस बार कोई नहीं जीता है हालांकि पार्टी ने 11 मुसलमानों को टिकट दिया था।”
उन्होंने आगे कहा कि भाजपा के वरिष्ठ नेता तारकिशोर प्रसाद का उप मुख्यमंत्री के रूप में चयन भी बेहद प्रतीकात्मक है क्योंकि वह कटिहार से आते हैं जो सीमांचल क्षेत्र के अंतर्गत आता है और जहां भगवा पार्टी और आरएसएस पिछले दो दशकों से एक या अन्य मुद्दों के नाम पर पर सक्रिय रूप से मुसलमानों को निशाना बनाती रही है।
विशेष रूप से बीजेपी सहित एनडीए के तीन अन्य सहयोगी दल पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की हिंदुस्तान अवाम मोर्चा और मुकेश साहनी के नेतृत्व वाली वीआईपी ने इस विधानसभा चुनावों में किसी भी मुस्लिम उम्मीदवार को नहीं उतारा था। इस तरह सत्तारूढ़ एनडीए के पास 125 सीटों में से एक भी मुस्लिम विधायक नहीं है।
इस बीच, नीतीश कुमार ने एक दलित नेता अशोक चौधरी को अपने मंत्रिमंडल में शामिल किया है जो कि किसी भी सदन के सदस्य नहीं हैं। इसी तरह सीएम ने इन चुनावों में पराजित हुए विकासशील इंसान पार्टी के प्रमुख मुकेश सहनी को अपने मंत्रिमंडल में शामिल किया है। अहमद कहते हैं कि इसने सभी को चौंका दिया है।
दूसरी ओर, विपक्ष के महागठबंधन में 13 मुस्लिम विधायक हैं। राष्ट्रीय जनता दल के आठ, कांग्रेस के चार और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) लिबरेशन के एक विधायक हैं।
सड़क किनारे एक छोटी सी चाय की दुकान चलाने वाले अब्दुर रहमान हालांकि पढ़े लिखे नहीं हैं लेकिन नए मंत्रिमंडल में किसी भी मुस्लिम नेता के न होने के चलते गंभीर स्थिति को समझते हैं और इस पर अपनी नाराज़गी व्यक्त की हैं।
रहमान उन हज़ारों मुसलमानों में से एक हैं जो नीतीश के नेतृत्व वाली नई एनडीए सरकार में इस समुदाय को दरकिनार करने के इस राजनीतिक फैसले के मतलब पर चर्चा करने में व्यस्त हैं। नीतीश कुमार बीजेपी की सहयोगी पार्टी जद-यू के अध्यक्ष हैं।
गया के निवासी डॉ. रूमी और दानिश खान ने कहा कि यह स्पष्ट है कि बीजेपी नीतीश पर हावी हो रही है जो उनके मंत्रिमंडल में एक भी मुस्लिम को शामिल करने में उनकी विफलता से दिखाई देती है।
गया के राजनीतिक पर्यवेक्षक दानिश ने न्यूज़क्लिक को बताया कि नीतीश कुमार ने मुस्लिम बहुल सीमांचल क्षेत्र में चुनाव प्रचार के अपने अंतिम चरण के दौरान यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ के सीएए (नागरिकता संशोधन अधिनियम) के साथ पड़ोसी देश में बाहरी लोगों को वापस भेजने के दावे को खारिज कर दिया था। उन्होंने मुसलमानों को पर्याप्त सुरक्षा देने के बारे में भी आश्वासन दिया था और कहा था कि इस देश में मुसलमानों की नागरिकता से वंचित करने की शक्ति किसी में नहीं है। हालांकि, दानिश ने कहा जब सरकार बनाने की बात आई तो मुसलमानों को नीतीश की योजनाओं से हटा दिया गया है।
पटना में साहुलर माइक्रो फाइनेंस के उपाध्यक्ष अरशद अजमल जो 90 के दशक के मध्य में समता पार्टी के दिनों से नीतीश को जानते हैं उन्होंने कहा, “मुझे नीतीश के इस चेहरे के बारे में पता नहीं था। मैं एक अलग प्रकार के नीतीश को जानता था, जो दावा करते थे कि वह सांप्रदायिक शक्तियों और भ्रष्टाचार के साथ कोई समझौता नहीं करेंगे।”
राज्य के एक नागरिक संगठन जन पहल के प्रमुख सत्यनारायण मदान ने कहा कि नीतीश का गैर-धर्मनिरपेक्ष चेहरा उजागर हो गया है और समाजवादी राजनीति के प्रति उनकी वास्तविक प्रतिबद्धता का भी खुलासा हो गया है।
उन्होंने आगे कहा, "नीतीश अब कमज़ोर स्थिति में हैं, सबसे बेहतर वह मुख्यमंत्री की कुर्सी पर एक सहायक इंजीनियर हैं, जो विकास योजनाओं को लागू करने के लिए काम कर सकते हैं, लेकिन राजनीति और शासन पूरी तरह से बीजेपी के नियंत्रण में हैं। वह आरएसएस के एजेंडे को लागू करने तक उनका उपयोग करेगा और उस पल उन्हें इस उच्च पद से हटा देगा जब वे खुद अपना स्टैंड लेंगे।”
अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल ख़बर पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें-
Bihar: Nitish Kumar-led Cabinet Minus Muslims Surprises Minority Voters Among Others
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