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बिहार: आखिर क्यों धीमी है बिहार में सोलर लाइट के विकास की रफ्तार?

2021 में नितीश सरकार द्वारा सात निश्चय योजना पार्ट -2 को लाया गया था। जिसके तहत ग्रामीण सोलर लाइट योजना के अन्तर्गत 2 हजार करोड़ का बजट निर्धारित किया गया है। वर्तमान में बिहार में 8387 ग्राम पंचायत हैं। मतलब प्रत्येक पंचायत के लिए लगभग 24 लाख रुपया दिया गया है। सोलर लाइट लगाने के लिए इतने पैसे का खर्च कैसे किया गया ? कितना काम हुआ और कितना लूट हुआ ? इसी बात का इस रिपोर्ट में जिक्र है।  
solar light
बिहार के सहरसा जिला स्थित बनगांव और महिषी गांव स्थित सोलर लाइट। फोटो क्रेडिट: आदित्य खां

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सितंबर 2022 को सात निश्चय पार्ट-टू के तहत एकबार फिर ग्रामीण सोलर लाइट योजना का शुभारंभ किया। जानकारी के लिए बता दूं कि बिहार सरकार ने 2015 में राज्य की स्थिति को बेहतर बनाने के लिए सात निश्चय योजना की शुरुवात की थीं। फिर 2021 में नितीश सरकार द्वारा सात निश्चय योजना पार्ट -2 को लाया गया था। जिसके तहत ग्रामीण सोलर लाइट योजना के अन्तर्गत 2 हजार करोड़ का बजट निर्धारित किया गया है। वर्तमान में बिहार में 8387 ग्राम पंचायत हैं। मतलब प्रत्येक पंचायत के लिए लगभग 24 लाख रुपया दिया गया है।

सुपौल के आरटीआई एक्टिविस्ट अमरेश झा बताते हैं कि, "बिहार के गांवों में सोलर लाइट लगाने की योजना नई नहीं है। इससे पहले जब बिहार के गांवों में सोलर लाइट लगाई गई, तो उसमें बड़े पैमाने पर गड़बड़ी सामने आई थीं। पंचायत जनप्रतिनिधियों ने अपने घर और चहेतों के घर में सोलर लाइटें लगवा दीं। कई जगह ऐसी घटिया सोलर लाइट लगी कि वह चंद दिनों भी रोशनी नहीं दे सकी। इस बार देखते हैं सरकार की योजना कितनी बेहतर रहतीं हैं।"

बिहार के गावों में क्यों दम तोड़ देती हैं सोलर परियोजनाएं?

सरकारी के साथ-साथ गैर सरकारी संस्थाओं के द्वारा भी बिहार के कई गांवों में सोलर परियोजना लगाई गई हैं। लेकिन देखभाल की कमी, समय पर मरम्मत नहीं होना और सफाई की कमी के वजह से सौर परियोजनाएं की तमाम योजनाएं धड़ातल पर असफल साबित हो रही हैं।  सुपौल के सहरसा जिला स्थित बनगांव गांव बिहार का सबसे बड़ा गांव है। इस गांव में स्थित प्रसिद्ध मंदिर 'बाबा जी की कुटी' के बाहर 2017 में चार सोलर लाइट लगी थी। जिसमें अभी एक सोलर लाइट से हल्की रोशनी आती है। एक सोलर लाइट से लाइट ही गायब है। बाकी दो सोलर लाइट खराब हो चुकी है। इस बात की जानकारी बनगांव गांव के ही नंदन खां देते हैं।

सहरसा के बाद हमने बहुत के सबसे बड़े

सहरसा के बनगांव के बाद हम गया जिला के गहलौर गांव के सोलर लाइट की स्थिति को पता किए। जहां दशरथ मांझी का जन्म हुआ था। बिहार के गया जिला के स्थानीय पत्रकार ऋषिकेश शर्मा फोन पर बताते हैं कि, "माउंटेन मेन के नाम से प्रसिद्ध हुए दशरथ मांझी के गांव 'गहलौर' में 2018 में लगभग 10 सोलर लाइट लगाई गई थीं। लाइट लगाने का मुख्य उद्देश्य पर्यटन था। दशरथ मांझी की वजह से बहुत सारे लोग 'गहलौर' घूमने आते हैं। मांझी के घर के बाहर लगे दो सोलर स्ट्रीटलाइट सालों से खराब पड़े हैं। इसके अलावा गांव में दो से तीन सौर स्ट्रीट लाइट ठीक है। जब इतने प्रसिद्ध गांव की यह स्थिति यह हैं तो बिहार के अन्य गांवों की स्थिति बताने की जरूरत नहीं है।"

आंकड़ों की कहानी

आंकड़ों के मुताबिक एक तरफ 'मुख्यमंत्री ग्रामीणस्ट्रीट लाइट निश्चय योजना' के वेबसाइट के मुताबिक बिहार राज्य के कई ग्रामीण इलाकों में सौर स्ट्रीट लाइट का विस्तार हुआ है। वहीं दूसरी तरफ प्रति व्यक्ति ऊर्जा खपत के मामलें में बिहार सबसे पीछे  है। अक्टूबर 2021 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी यह बयान दिया था कि राज्य की किसी भी इकाई में अभी बिजली उत्पादन में नहीं हो रहा है। इसलिए
कोयला संकट के वक्त बिहार सरकार को मजबूरी में अधिक मूल्य पर कोयले से बनी बिजली खरीदनी पड़ी थी।

वर्ष 2017 में राजद और जदयू की सरकार के वक्त नवीकरणीय ऊर्जा नीति बनाया गया था। वर्ष 2022 तक बिहार राज्य में 3,433 मेगावॉट स्वच्छ ऊर्जा की क्षमता हासिल करने का लक्ष्य रखा गया। लेकिन अगस्त 2022 तक लगभग 400 मेगावॉट स्थापित क्षमता को ही हासिल किया जा सका है। छह महीने में 3,433 मेगावॉट स्वच्छ ऊर्जा की क्षमता हासिल करने का लक्ष्य को हासिल करना काफी मुश्किल प्रतीत होता है।

पंचायती राज विभाग के एक अधिकारी नाम न बताने की शर्त पर फोन से बताते हैं कि, "सरकार के द्वारा कई योजनाएं चलाई जा रही हैं, जिससे प्रदेश के बिजली उत्पादन में अक्षय ऊर्जा की भागीदारी बढ़ सके। ग्रामीण सोलर लाइट योजना भी इसी का भाग है। इसके साथ ही राज्य के सारे सरकारी भवनो में सोलर रूफ़टॉप लगाने का काम तेजी से चल रहा है। जल्द ही हमलोग कम से कम समय में ज्यादा से ज्यादा नवीकरणीय उर्जा योजना का विस्तार करने पर काम कर रहे हैं।" हालांकि अधिकारी ने इस बात को माना कि बिहार के गांवों में सौर ऊर्जा से संबंधित योजना धरातल पर ना के बराबर काम कर रही है।

बिहार का पहला सौर ग्राम की स्थिति

बिहार के जहानाबाद ज़िले के धरनई गांव में 2014 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक मिनी सौर ग्रिड का उद्घाटन किया था। जिसके माध्यम से पूरे गांव में बिजली आती थी। इसलिए इस गांव को बिहार का पहला सौर ग्राम कहा जाने लगा। अभी इस गांव की स्थिति क्या हैं?

इस सवाल के जवाब पर धरनई गांव के 42 वर्षीय किसान सुरेंद्र मंडल बताते हैं कि, "1984 के बाद हमारे गांव में बिजली नहीं आई थी। हमारे गांव की आबादी करीब 2500 के लगभग है। 2014 में  गांव में 60 स्ट्रीट लाइट लगाई गई थीं। गांव के लगभग घर में इलेक्ट्रॉनिक पंखा और कई घर में टीवी मंगाया गया था। गांव में रोशनी के साथ-साथ सोलर सिंचाई पंप भी चलाई गई थी। शुरूआती दिन तो अच्छे गुजरे। लेकिन 3 से 4 साल होते होते देख-रेख के अभाव में सौर मिनी ग्रिड धाराशायी हो गया। तब से अब तक निष्क्रिय पड़ा है। अब गांव कोयले से बनने वाली थर्मल बिजली पर आश्रित हैं।"

विशेषज्ञ का तर्क

एनआईटी जमशेदपुर और आईआईएम रोहतक से पढ़ चुके अतुल रोहित कई सौर परियोजनाओं पर काम कर चुके हैं। वो अभी फिलहाल टी०सी०एस में काम कर रहे है। वो बताते हैं कि, "बड़े शहर में चल रहे सौर परियोजनाओं पर सरकार के लोगों की नजर रहती है। जो अच्छी देख-रेख में संचालित हैं। लेकिन राज्य के गांव इलाकों में परियोजना की नींव तो रखी चली जाती है। हालांकि अधिक दिनों तक चल नहीं पाती है। गांव के अधिकांश परियोजनाओं की देखभाल, मरम्मत आम मैकेनिक से संभव नहीं है और तकनीकी कुशलता वाले मैकेनिक सरकार उपलब्ध कराती नहीं है। सरकार को गांव के ही मैकेनिक को अच्छी तरीके से ट्रेनिंग देनी चाहिए। प्राइवेट सोलर कंपनी भी सिर्फ 5 से 6 साल तक ही परियोजनाओं की देख रेख के लिए बाध्य हैं। जबकि सोलर परियोजना की आयु 15-25 साल की होती है। अगर बिहार और देश के गांवों में सोलर परियोजना की स्थिति ठीक हो जाए तो हम हकीकत में कार्बन उत्सर्जन में कमी ला सकते है।"

इस बार की योजना में अलग क्या हैं?

पंचायती राज विभाग में कार्यरत सोशल मीडिया एक्जीक्यूटिव राहुल तिवारी बताते हैं कि, "इस योजना के अंतर्गत प्रत्येक वार्ड और गांव में 10-10 सोलर स्ट्रीट लाइटों की स्थापना की जायेगी। सोलर स्ट्रीट लाइट काफी हाईटेक होगी। मतलब यह लाइटें ऑटोमेटिक ऑन और ऑफ के अलावा मोशन सेंसर से युक्त होंगी। सात निश्चय पार्ट-टू में हर वार्ड में 10 स्ट्रीट लाइट लगनी है। अगर कोई गांव बड़ा है तो उसके अनुसार लाइटों की संख्या बढा दी जाएगी। प्रत्येक गांव में लगने वाले सोलर स्ट्रीट लाइट को लेकर तकनीकी व्यवस्था यह भी की गयी हैं कि सोलर लाइट की बैट्री अगर चोरी भी हो गयी तो उसका इस्तेमाल संभव नहीं हो सकेगा। मतलब चोरी की गयी बैट्री अगर दूसरे जगह  लगती है तो तुरंत ही नियंत्रण कक्ष को लोकेशन के साथ यह मैसेज आएगा कि उसे कहां लगाया गया है।"

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