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बिलासपुर विधानसभा: अपने गृह क्षेत्र में नेताओं को नहीं संभाल पा रहे नड्डा

हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव में सत्ताधारी पार्टी भाजपा आंतरिक कलह से जूझ रही है, जिसमें ख़ुद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का गृह क्षेत्र शामिल है।
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फ़ोटो साभार: पीटीआई

हिमाचल की पहाड़ियों पर कौन राज करने वाला है, इसका फैसला तो कुछ दिनों में हो जाएगा। लेकिन उससे पहले राज्य की सत्ताधारी भाजपा में जिस तरह बग़ावत की जंग छिड़ी हुई है, उससे तो यही लगता है कि पांच साल में सरकार बदलने वाली राजनीतिक परंपरा फिलहाल बरकरार रहने वाली है, यानी पार्टी के अपने ही नेता ब़ागी हो चुके हैं।

हम बात कर रहे हैं बिलासपुर की... इस सीट पर भाजपा नेताओं का बागी होना इस लिए भी बड़ा मुद्दा है, क्योंकि ये भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का गृह क्षेत्र है। अब खास बात ये है कि भाजपा बिलासपुर के अंदर जो नेता बग़ावत पर उतर आए हैं, वो जेपी नड्डा के करीबी भी माने जाते हैं।

आपको बता दें कि बिलासपुर ज़िले में चार विधानसभा क्षेत्र हैं, जिसमें तीन पर भाजपा तो एक पर कांग्रेस का कब्ज़ा है। पिछले चुनाव में भाजपा ने ज़िले की बिलासपुर सदर और झनदत्त (एससी) सीट हासिल कर ली थी, इसके अलावा घुमारविन विधानसभा सीट भी भाजपा के ही खाते में आई थी, जबकि कांग्रेस के हाथ श्री नैना देवीजी सीट लगी थी।

यानी यूं कहें कि पिछले चुनावों में यहां जनता ने ज्यादा विश्वास भाजपा पर जताया था, लेकिन इस बार जनता विश्वास जताती उससे पहले बिलासपुर सदर और झनदत्त(एससी) सीट पर भाजपा खुद ही सर फुटव्वल में लगी है।

भाजपा में बाग़ियों की बात करें तो सुभाष शर्मा बड़ा नाम हैं, जो फिलहाल सदर बिलासपुर सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ने जा रहे हैं। उन्होंने टिकट कटने की नाराज़गी में अपना इस्तीफा दे दिया था।

जब न्यूज़क्लिक ने सदर विधानसभा क्षेत्र में स्थानीय निवासी विशेष नेगी से सुभाष शर्मा के बारे में बात की... तब उनकी नाराज़गी भाजपा के ख़िलाफ दिखी। उन्होंने कहा यही कारण है कि कोई सरकार पांच साल से ज्यादा टिक नहीं पाती, क्योंकि जो उनके ईमानदार नेता होते हैं, उन्हे सिर्फ इसलिए निकाल दिया जाता है ताकि अपने करीबियों को विधायक बनाया जा सके।

दरअसल ये सारी कहानी मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के राजनीतिक सलाहकार त्रिलोक जामवाल को उम्मीदवार बनाने के चक्कर में गढ़ी है, और उन्हें भाजपा में बिलासपुर सदर से टिकट दिया है।

नाम नहीं लेने की शर्त के साथ एक स्थानीय भाजपा कार्यकर्ता ने न्यूज़क्लिक को बताया कि मौजूदा विधायक सुभाष ठाकुर के साथ हम लोग बेहतर ढंग से काम कर रहे थे, वो हमारी बातें सुनते थे, लेकिन यहां फैसला सिर्फ हाईकमान कर रहा है। भाजपा कार्यकर्ता कहते हैं, यहां भी अब हाईकमान सीधे तौर पर हस्तक्षेप करने लगा है और जनता से जुड़े नेताओं की जगह अपने करीबियों को तवज्जो देने में लगा है।

मज़े की बात यह है कि सुभाष शर्मा, त्रिलोक जामवाल और मौजूदा विधायक सुभाष ठाकुर... तीनों ही जेपी नड्डा के करीबी हैं।

इसके अलावा ज़िले की झनदत्त सीट भी चर्चा का विषय है जहां टिकट नहीं मिलने पर भाजपा नेता राजकुमार कौंदल ने निर्दलीय पर्चा भर दिया। हालांकि उनके बेटे उत्कर्ष कौंदल ने कई बार उनसे नामांकन वापस लेने की बात कही, लेकिन राजकुमार के समर्थकों ने उनसे अब निर्दलीय लड़ने की ही बात की।

राजकुमार कौंदल के एक समर्थक ने न्यूज़क्लिक को बताया कि पार्टी के लिए इतना मेहनत करने के बावजूद उन्हें टिकट नहीं दिया गया, इसलिए अब हमें किसी पार्टी से नहीं बल्कि सिर्फ अपने नेता से मतलब है, और उन्हें जिताने के लिए हम हर भरसक प्रयास कर रहे हैं।

राजकुमार के समर्थक का कहना था, कि पार्टी ने आख़िरकार फिर से जीतराम कटवाल को ही टिकट दे दिया, जबकि उनके विधायक रहते, यहां सड़क, पानी और बिजली की समस्या बनी हुई है।

फिलहाल बिलासपुर की चारों सीटें भाजपा के लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि यहां से पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा खुद आते हैं, ऐसे में यहां जीतना पार्टी के लिए साख का विषय भी बना हुआ है।

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