अंधविश्वास: बनारस के पिशाचमोचन में सजी भूतों की मंडी, परेशान लोगों को लूटने-खसोटने में जुटे दलाल और ठग
हमारे संविधान में वैज्ञानिक चेतना विकसित करना हर नागरिक का मौलिक कर्तव्य बताया गया है। भारतीय संविधान के भाग- "4 क" के अनुच्छेद - "51 क" के अनुसार यह भारत के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य होगा वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करे।
हमारा संविधान सभी को अपने धर्म और रीति-रिवाज़ के पालन का भी अधिकार देता है, लेकिन उसके नाम पर अंधविश्वास फ़ैलाने की कतई इजाजत नहीं है। इसलिए हर तरह के अंधविश्वास का विरोध करना, उसका पर्दाफ़ाश करना हमारा नैतिक ही नहीं संवैधानिक कर्तव्य है। यह पड़ताल इसी का हिस्सा है:-
उत्तर प्रदेश के बनारस शहर में पिशाचमोचन एक ऐसा मोहल्ला है जहां दुनिया के हर मर्ज का इलाज और सभी मुश्किलों के समाधान का दावा किया जाता है। शर्त इतनी है कि इसके लिए मानना होगा कि आपके ऊपर किसी भूत-पिशाच अथवा प्रेत का साया है और आप सचमुच उनसे मुक्ति पाना चाहते हैं। दूसरी शर्त यह है कि पिशाचमोचन के पंडों के हाथों हर तरह का इलाज कराने के लिए आप तैयार हैं। भूतों से मुक्ति पाने की तीसरी और अंतिम शर्त होती है इलाज के नाम पर गाली-गलौज झेलने और हद तक मारपीट सहने की ताकत भी होनी चाहिए।
"भूत", जैसा कि अंधविश्वास है कि व्यक्ति के मरने के बाद की योनि। अंशविश्वास पर भरोसा करने वालों को बताया जाता है कि पिशाच या प्रेत बहुत से लोगों को हमेशा परेशान करते रहते हैं। यदि 'पिशाच-मोचन' कहें तो ज़ाहिर है कि पिशाच से मुक्ति का उपाय। वैसे तो पिशाचमोचन कुंड पुराने समय में मौत के बाद होने वाली सभी तरह की धार्मिक क्रियाओं का पूर्वी उत्तर-प्रदेश में एक प्रमुख केंद्र रहा है। श्राद्ध और आत्मा की शांति के लिए होने वाले सभी विधि-विधान यहां संपन्न कराए जाते हैं। पिशाचमोचन पर पूर्वी उत्तर प्रदेश और पश्चिमी बिहार के लगभग सभी शहरों, ख़ासकर ग्रामीण क्षेत्रों से और हर उम्र के लोग आते हैं जिनमें महिलाओं की संख्या बहुतायत होती है। इनमें अधिसंख्य वे अंधविश्वासी लोग होते हैं जो पुरानी रुढ़ियों में जकड़े हुए हैं।
भूत-पिशाचों के अस्तित्व पर आधुनिक दौर के लोग भले ही सवालिया निशान लगाते हों, लेकिन बनारस के पिशाचमोचन में हर साल पितृ पक्ष में भूतों की बकायदा मंडी लगती है। यह अनोखी मंडी इन दिनों सज गई है। भूतों को बैठाने के नाम पर मोल-भाव शुरू हो गया है। पिशाचमोचन पर भूतों से मुक्ति दिलाने के नाम पर रुपये ऐंठने वालों का एक बड़ा जत्था शहर भर में घूम रहा है। दलालों के चंगुल और अंधविश्वास में फंसे लाखों लोग यहां हर साल भूतों से मुक्ति पाने के लिए आते हैं और ठगे जाते हैं। पिशाचमोचन कुंड में भूतों को बैठाने के नाम पर मोटी उगाही की जाती है।
शहर में घूम-घूम कर लोगों को पकड़ते हैं दलाल
पिशाचमोचन पर भूत बैठाने वालों की एक गद्दी पर मिले राजेश मिश्रा। बनारसी पान का चौघड़ा मुंह में दबाए हमें देखा तो उनकी आंखों में पुतलियों की चमक बढ़ गई। बोले, " आइए..आइए... जजमान...। हम आपकी क्या सेवा कर सकते हैं? हम असली कर्मकांडी हैं। देखिए, इधर हजारों दलाल और ठग घूम रहे हैं। उनके चंगुल में फंस गए तो लुट जाएंगे।"
भूतों से मुक्ति पाने के लिए राजेश मिश्र ने एक उपाय सुझाया, "पहले चंदौली जिले के रामपुर गांव में जाइए। वहां रामेश्वर बाबा मिलेंगे। पहले वह जांचेंगे कि भूतों ने आपको कितनी मजबूती से पकड़ रखा है। मुक्ति का रास्ता भी वही बताएंगे। अगर भागने वाले भूत नहीं होंगे तब हम आपसे भूत खरीद लेंगे। बस कीमत चुकानी होगी। ब्रह्म होगा तो एक-डेढ़ लाख रुपये खर्च आएगा। आप हों या आपके परिजन, हमेशा के लिए मुक्त हो जाएंगे भूतों से। हम भूत हमेशा के लिए भगाने की गारंटी भी देंगे।"
उत्सुक्ता बढ़ी तो राजेश मिश्र ने परत-दर-परत भूतों का खेल उधेड़ना शुरू कर दिया। बताया "भूत कई तरह के होते हैं। सिर्फ ब्रह्म (बरम) ही नहीं, दैत्रा (बीर) और जिन्न पकड़ लेते हैं तो आसानी से नहीं छोड़ते। डाइन, मरी, नट्टिन, डोमिन तो और भी ज्यादा खतरनाक होती हैं। इनके चंगुल से निकल पाना आसान नहीं है।" राजेश ने अपनी गद्दी के पास कुछ मूर्तियों को दिखाया और बताया कि पिशाचमोचन के वह इकलौते ऐसे ब्रह्मदेव हैं जो शातिर पिशाचों को कैदकर इंसान को मुक्त करा देते हैं। यह भी बताया कि उनके ठौर पर जो बाकी मूर्तियां हैं वो बड़े ब्रह्मदेव महाराज के खानदान के लोगों की हैं।
अंधविश्वास का पुट मारते हुए राजेश मिश्र बातों-बातों में यह भी बता गए कि दस-बारह तरीके से ब्रह्म भी होते हैं, जिनमें कुछ बहुत जिद्दी होते हैं। वो बहुत शातिर होते हैं। जिन्हें पकड़ लेते हैं, उन्हें कभी छोड़ते ही नहीं हैं। ऐसे खतारनाक ब्रह्म का इलाज सिर्फ हमारे यहां होता है। जो लोग कीमत चुकाकर अपना भूत हमें देते हैं हम उन्हें सचमुच आजाद करा देते हैं। हमारा काम और हमारी बातें फेबिकोल सरीखी मजबूत होती हैं। यकीन कीजिए हम जिन्हें भूत-प्रेतों से मुक्ति दिलाते है वो दोबारा कभी नहीं लौटते।"
पिशाचमोचन के पंडा राजेश मिश्र ने कई राज की बातें भी बताई और कहा हर कोई प्रेतबाधा से परेशान नहीं होता। कुछ भूत बातों से नहीं, लातों से ही मानते हैं। मेरे पास ढेर सारी औरतें आती हैं, जिन्हें देखते ही हम पहचान जाते हैं कि भूत असली है अथवा नकली। असली भूतों को पूजा-पाठ से और नकली को लात-घूसों से पीटकर भगाया जाता है।"
त्रिपंडी पूजा कराते लोग
मेले जैसा माहौल
पिशाचमोन कुंड के बाहर आजकल मेला लगा हुआ है। भीड़ इतनी अधिक है कि मंदिर की तरफ जाने वाले रास्ते को चारपहिया वाहन वालों के लिए रोक दिया गया है। रास्ते पर विधिवत बैरिकेटिंग कर दी गई है। बड़ी संख्या में पुलिस फोर्स लगाई गई है। पुलिस के जवान पंडों की गद्दियों के आसपास मंडराते नजर आते हैं। पिशाचमोचन कुंड के आसपास कई टेंपरेरी दुकानें भी खुल गई हैं जिनमें पूजा सामग्री बेची जा रही है। चाय-नाश्ता और मिठाई बेचने वालों के भी पौ बारह हैं।
पिशाचमोचन सरोवर के ठीक ऊपर प्रशासन ने कर्मकांड कराने के लिए टिन शेड बनवा रखा है, जो इन दिनों खचा-खच भरा हुआ है। सुबह से लेकर शाम तक यहां पूजा और कर्मकांड कराया जा रहा है। पिशाचमोचन पर जितने पंडे मिलेंगे वो आपको सावधान करते नजर आएंगे कि बचकर रहिएगा, यहां हजारों ठग और दलाल घूम रहे हैं।
कोरोना के चलते पिछले दो साल से श्राद्ध कराने के लिए उतने लोग नहीं आ रहे हैं, जितने पहले आते थे। पिशाचमोचन कुंड के ब्रह्म धाम पर गद्दी लगाए बैठे मिले मुन्ना लाल पांडेय। प्रेतयोनि से मुक्ति का रास्ता बताने वाले मुन्ना के काम में हाथ बटाने के लिए भाई प्रदीप पांडेय और पुत्र नीरज पांडेय काफी उत्साहित नजर आए। नीरज ने भी इस बात की पुष्टि की, यहां यजमानों से ज्यादा यहां दलाल और ठग घूमते दिख रहे हैं। हम तो लोगों को लुटने से बचाने और सही तरीके से कर्मकांड कराने के लिए बैठे हैं। वह बताते हैं, " पिशाचमोचन पर हमारे अलावा जगदीश मिश्र, अंजनी नंदन मिश्र, प्यारेलाल दीक्षित, राजेश मिश्र, राजेंद्र उपाध्याय की गद्दी है। जोशी ब्राह्मण संघ से जुड़े करीब पांच सौ लोग भी भूत-प्रेतों से मुक्ति दिलाते हैं। बाकी जो लोग यहां घूम रहे हैं, सब के सब ठग और लुटेरे हैं। पंडों में बहुत गुटबंदी है। हम किससे कहें, कोई सुनने वाला नहीं है। यह भी जान लीजिए, जहां देवता होते हैं, राक्षस भी वहीं होते हैं। श्राद्ध के दिनों में हर साल हजारों दलाल और ठग यहीं आ जाते हैं, जिनकी काली करतूतों से हम सभी की छवि धूमिल हो रही है।"
पितरों के तर्पण के लिए
नीरज बताते हैं, "पिशाचमोचन की गद्दी काफी अहमियत रखती है। गद्दी की लड़ाई में यहां हत्याएं भी होती हैं। कुछ साल पहले राजेंद्र उपाध्याय ने गद्दी कब्जाने के लिए अपने सगे भाई कृष्णकांत और उनकी पत्नी की हत्या कर दी। राजेंद्र अभी जेल में हैं।" इनके चाचा प्रदीप पांडेय कहते हैं," पितृ ही प्रेत होते हैं। इस बार 20 से 30 लाख लोग भूत-प्रेतों से मुक्ति पाने के लिए यहां आएंगे और पिशाचमोचन कुंड पर पूजा-अर्चना कर दुखों राग से मुक्ति पाएंगे। पिशाचमोचन दुनिया का इकलौता ऐसा कुंड है जहां विधि-विधान से त्रिपिंडी श्राद्ध होता है जो पितरों को प्रेत बाधा और अकाल मृत्यु से मरने के बाद व्याधियों से मुक्ति दिलाता है।"
पिशाचमोचन कुंड के आस-पास सैकड़ों गाड़ियां पहुंच रही हैं। बसों पर सवार होकर भी लोग यहां आ रहे हैं। कुंड के किनारे मंदिरों में ताक लगाकर बैठे पंडे, गरीब और अशिक्षित लोगों को लूटने से बाज नहीं आ रहे हैं। इनके एजेंट पूरे शहर भर में फैले हुए हैं।
बनारस के कैंट, मंडुआडीह (बनारस), काशी और सिटी स्टेशन पर भूतों से मुक्ति दिलाने का ठेका लेने वाले एजेंटों का जखेड़ा देखा जा रहा है। बनारस में जिस तरह का नजारा देह की मंडी शिवदासपुर में दिखता है, वैसा ही यहां भी दिख रहा है। बाहर से आने-जाने वालों को पंडे-पुरोहित लपककर पकड़ रहे हैं। अंधविश्वास का जाल फेंककर लूट-पाट करने से बाज नहीं आ रहे हैं। दिलचस्प बात यह है कि पिशाचमोचन कुंड पर तैनात खाकी वर्दी वाले भी पंडों और दलालों के हां में हां मिलाते नजर आ रहे हैं। कुंड पर त्रिपिंडी श्राद्ध कराने वाले के एक पंडे ने बताया, "लगता है कि इस बार पितृ पक्ष में चार-पांच लाख से ज्यादा भूत बैठाए जाएंगे।"
भूतों से कर लेते हैं साल भर की कमाई
दरअसल पिशाचमोचन के पंडे पितृ पक्ष में भूत-पिशाच भगाने के नाम पर इतना कमा लेते हैं कि उन्हें पूरे साल मेहनत करने की जरूरत नहीं पड़ती। यहां के पंडे बताते हैं कि जब तर्पण के लिए पितृ छटपटाते हैं तो लोगों के परिजन परेशान होते हैं। ऐसे पित्रों को शांत करने के लिए ही पिशाचमोचन कुंड पर त्रिपिंडी श्राद्ध कराया जाता है। अंधविश्वास को बढ़ावा देने वाले पंडे इस प्रक्रिया को गलत नहीं मानते। अलबत्ता इसे नैतिक और धार्मिक प्रक्रिया बताते हैं।
ख़तरनाक इलाज
फिलहाल श्राद्ध और आत्मा की शांति का खेल शुरू हो गया है। यहां कहीं जटा वाले बाबा दुकान सजाए बैठे हैं तो कहीं बांसुरी-शहनाई बजाने वाले। विदेशी भक्तों का भूत-प्रेत भगाने वाले अमेरिकन बाबा का भी यहां डेरा है। पिशाचमोचन मोहल्ले का नाम ऐसा बड़ा हो गया है कि ये बाबा अब इस मोहल्ले से जुड़े इलाक़ों में भी अपना ठिकाना बनाने लगे हैं। पिशाचमोचन के पंडे और बाबाओं के पास हर समस्या और हर बीमारी का इलाज है। बीमारियों का शर्तिया करने वाले नीम-हमीम डाक्टरों की तरह। पिशाचमोचन में तमाम ऐसे तांत्रिक भी मिल जाएंगे जो भूत भगाने के लिए लातों का प्रयोग करते हैं। वे हर बीमारी का इलाज यही मानकर करते हैं कि वे किसी प्रेत बाधा के शिकार हैं।
पुरुषों के हाथ-पैर बांधकर बर्बरता पूर्वक पिटाई इलाज का सबसे प्रचलित तरीक़ा है। महिलाओं की स्थिति तो और ज्यादा दयनीय होती है। भूत भगाने के नाम पर इन्हें भी लात-घूसे और डंडों से पीटा जाता है। इस दरम्यान धाराप्रवाह गालियां भी दी जाती हैं।
परिवार के लोग यह सब अपनी आंखों के सामने देखते-सुनते हैं और इलाज की उम्मीद में सब कुछ सहते हैं। पिशचामोचन पर झाड़फूक और पूजा-पाठ कराने वाले लोगों को यही बताते हैं कि वे यजमानों को नहीं, बल्कि पिशाचों को प्रताड़ित करते हैं।
इन्हें प्रेत कहें या मजबूरी
पिशाचमोचन में पूर्वांचल के लगभग सभी जिलों से मुख्यत: ग्रामीण इलाकों के लोग आ रहे हैं। इनमें महिलाओं की तादाद ज्यादा है। कई बार तंत्र-मंत्र पर विश्वास से ज़्यादा इनकी मजबूरी यहां ले आती है। गोरखपुर के भगेलू भी अपने घर का भूत बैठाने पिशाचमोचन आए हैं। कहते हैं, "मैं बेहद गरीब हूं। महंगा इलाज मेरे बूते की बात नहीं है। नीम-हकीमों के यहां लंबा इलाज करा चुका हूं। अब पिशाचमोचन आया हूं। शायद भूत बैठ जाएं और उन्हें बीमारी आदि से मुक्ति मिल जाए।"
देवरिया जिले के सलेमपुर इलाके के एक गांव की जयदेयी काफी परेशान नजर आईं। काफी कुरेदने पर बताया, " हम पिछले पांच साल से पिशाचमोचन पर आ रहे हैं। हर साल भूत बैठाते हैं, मगर वो लौट आते हैं और कुछ दिनों बाद ही वो हमें परेशान करने लग जाते हैं। भूतों के साथ कई ब्रह्म भी हैं जो पीछा छोड़ने के लिए तैयार नहीं हैं। अमीर होती तो मोटा पैसा देकर अपना ब्रह्म पंडों को बेच देती और उनसे हमेशा के लिए मुक्ति पा जाती। गरीबी के चलते हम भूतों से पीछा नहीं छुड़ा पा रहे हैं।"
पिशाचमोचन पर आने वालों में खासतौर वो लोग ज्यादा हैं जो आर्थिक रूप से बेहद कमजोर हैं और जिनके बस में प्राइवेट अस्पतालों का मंहगा इलाज नहीं है। कुछ लोग लंबे इलाज के बाद हारकर पंडों और तांत्रिकों की शरण में आ गए हैं। बिहार के मैरवां निवासी रामाश्रय की पत्नी अनीता आए दिन हबुआने लगती है। रामाश्रय को लगता है कि अस्पताल की अपेक्षा पिशाचमोचन पर इलाज सस्ता है, इसलिए वह हर साल पितृपक्ष में तांत्रिकों से पूजा-पाठ कराने यहां सपरिवार चले आते हैं।
अंधविश्वासी पीपल का पेड़
पिशाचमोचन कुंड पर पंडे-पुरोहित ही नहीं, पेड़ भी अंधविश्वास की कहानी सुनाते हैं। पिशाचमोचन मंदिर के पास बूढ़े हो चुके पीपल के पेड़ पर बड़ी संख्या में सिक्के और कील गाड़े गए हैं। कुछ लोगों ने अपने परिजनों की तस्वीरें भी टांग रखी है। खासतौर पर उनकी जिनकी अकाल मौतें हुई हैं। तथाकथित चुड़ैल और डायनों को काबू में करने के लिए इन पेड़ों में फीते भी बांधे गए हैं। पंडे और बाबा दावा करते हैं कि हजारों लोगों के खतरनाक ‘भूत’ पेड़ों में जड़े हुए हैं। अगर ये खुल गए तो प्रेतधाम से दोबारा यजमानों के घर पहुंच जाएंगे। पिशाचमोचन मंदिर के पुजारी मुन्ना पांडेय बताते हैं, " ऐसी मान्यता है कि अकाल मौत मरने वालों की आत्माएं तीन तरह-तामसी, राजसी और सात्विक होती हैं। तामसी प्रवृत्ति की आत्माओं को यहां के विशालकाय वृक्ष में कील ठोककर बांध दिया जाता है, जिससे वो यहीं पर बैठ जाएं और परिवार के किसी सदस्य को परेशान न करें। इस पेड़ में अब तक लाखों कीलें ठोकी जा चुकी हैं। यह परंपरा बेहद पुरानी है जो आज भी चली आ रही है।"
बनरस के साहित्यकार रामजी यादव कहते हैं, "बुद्ध को बिहार के गया में ज्ञान प्राप्त हुआ था। बाद में बनारस में उन्होंने अपने पांच शिष्यों को दीक्षित किया और दोनों शहरों में ज्ञान-विज्ञान का केंद्र बनाया। बाद में गया और काशी, बुद्ध की ज्ञान संपदा से आलोकित होने वाले और मृत्यु के पुनर्जन्म की अवधारणा को नकराने वाले नगर बने। कालांतर में दोनों स्थानों पर ब्रह्मणवादियों ने ऐसे झूठे मिथक रचे की काशी में मरने पर सीधे स्वर्ग मिलता है। जिनके पूर्वजों की आत्मा भटक रही है उनको गया में बैठाने से स्वर्ग में स्थापित हो जाएंगे। ये कपोल-कल्पित कहानियां हैं, जिनकी वजह से पिशाचमोचन घाट बनाया गया, जहां हिन्दुओं के पितरों को पिशाच होने से छुटकारा दिलाने की रवायत शुरू हो गई। बनारस की तरह गया में फल्गु नदी के किनारे गयासुर का मंदिर है, पितरों को खुश करने के लिए अर्पण, समर्पण और तर्पण होता है।
बौद्ध साहित्य को पढ़ेंगे तो पाएंगे कि बुद्ध ने मृत्यु को ही निर्वाण और मोक्ष माना था। उस दौर के समाज में आत्मा और पुनर्जन्म को लेकर जो भटकाव था उसकी बेड़ियां टूटने लगी थीं। यह ब्राह्मणवाद की कमर पर करारा प्रहार था। जहां-जहां बुद्ध की ताकत थी, वहीं ऐसे अंधविश्वास गढ़े गए और वहीं-वहीं प्रचलित मान्यता के मुताबिक लोग पिंडदान करने जाते हैं। दुनिया में सिर्फ गया और बनारस में ही भूतों की मंडियां भी लगती हैं।"
रामजी कहते हैं, "भूत-प्रेत पर विश्वास से ज्यादा गरीबों और अशिक्षित लोगों की मजबूरी यहां ले आती है। पिशाचमोचन में भूतों को भगाने के लिए लोगों से न सिर्फ मोटी रकमें ऐंठी जाती हैं, बल्कि पंडों और बाबाओं की मार और गालियां खानी पड़ती है। हाथ-पैर बांधवाकर बर्बर पिटाई भी यहां भूत-पिशाच भगाने का प्रचलित तरीका है। ढेरों बाबा पीड़ित व्यक्ति के तीमारदारों को बताते हैं कि वे मरीजों को नहीं पिशाचों को पीटकर भगाने की कोशिश करते हैं। इसके बदले वे मोटी रकम भी वसूलते हैं।"
साहित्यकार रामजी यादव की बातों में काफी दम नजर आता है। भूतों की मंडी में प्रेतयोनि से मुक्ति दिलाने वाले कभी जालबट्टा फेंकते हैं तो कभी ताकत दिखाते हैं। मीडिया के पहुंचने पर ये डाक्टर (पंडे और बाबा) हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाने लगते हैं कि प्लीज, उनके पेट पर लात न मारें। जैसा सालों से चल रहा है, वैसा चलने दें।
बनारस के पीएचयू में न्यूरोलाजी विभाग के जाने-माने चिकित्सक डा.वीएन मिश्र कहते हैं, "भूत-पिशाच भगाने के खेल में ज्यादातर अशिक्षित और गरीब लोग फंसते हैं। पूर्वांचल और बिहार के लोगों में अंधविश्वास की समस्या अधिक है। किसी को मिर्गी जैसे झटके आ रहे हैं तो लोग भूत समझ बैठते हैं। ओझा, बाबा, और मौलवियों के चक्कर में फंस जाते हैं। थोड़े इलाज से ऐसे लोगों को ठीक किया जा सकता है।"
सभी तस्वीरें- विजय विनीत
(लेखक बनारस स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।