दलित लड़कियों-महिलाओं के लिए सुरक्षा और इंसाफ़ की पुकार
भारतीय न्याय व्यवस्था के बारे में ठीक ही कहा जाता है कि यहां तारीख पर तारीख तो मिलती है पर न्याय जल्दी नहीं मिलता। खासकर यदि मामला दलितों-आदिवासियों-पिछड़ों-वंचितों और हाशिए के लोगों का हो। शासन-प्रशासन की जातिवादी मानसिकता एक बड़ा कारण बनती है। सरकार कानून बना देती है पर जातिवादी मानसिकता वाला प्रशासन उसे लागू नहीं करता और न सरकार उसे लागू कराने में कुछ दिलचस्पी दिखाती है। हाथरस की बेटी का उदहारण देख लीजिए। एससी/एसटी एक्ट के अनुसार अनुसूचित जाति और जनजाति के मामले फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट में चलाए जाने का प्रावधान है और उन्हें 60 दिन के अन्दर न्याय मिल जाना चाहिए। यहां तो मामला फास्ट ट्रैक में होने के बाबजूद एक साल हो गया पर अभी भी मामला लंबित है।
इसी मुद्दे को लेकर हाथरस की बेटी की याद में राष्ट्रीय महिला संगठनों, मानवाधिकार संस्थाओं तथा दलित आंदोलन ने एक साथ मिलकर बुधवार, 29 सितम्बर को दिल्ली के कॉन्टीट्यूशन क्लब में “दलित महिलाओं व बालिकाओं के लिए राष्ट्रीय सम्मेलन” का आयोजन किया।
सम्मलेन को संबोधित करते हुए ऑल इंडिया दलित महिला अधिकार मंच की महासचिव अबिरामी ने कहा – हाथरस की गैंगरेप और हत्या का शिकार हमारी दलित युवती की घटना को एक साल हो गया है। हमारा SC/ST एक्ट कहता है कि 60 दिन के अंदर न्याय मिलना चाहिए। पर एक साल हो गया अभी तक हमारी दलित युवती को न्याय नही मिला। इसी के खिलाफ हम 25 संगठन मिलकर आवाज उठा रहे हैं। उन्होंने कहा कि जब तक हमारी दलित युवती को न्याय नहीं मिलेगा तब तक हम फॉलोअप करते रहेंगे।
नेशनल फेडरेशन ऑफ़ इंडियन वीमेन की महासचिव एनी राजा ने अपनी बात रखते हुए कहा कि उनकी संस्था आज 25 राज्यों में हाथरस की घटना पर चर्चा कर रही है। अगर हाथरस की बालिका को न्याय नहीं मिला तो हम सड़क पर उतरेंगे। इसको लेकर हम संवैधानिक लड़ाई लड़ेंगे। उन्होंने नारे दिए – लड़ेंगे और जीतेंगे , हर जोर जुल्म की टक्कर में संघर्ष हमारा नारा है, संघर्ष करेंगे जीतेंगे इस बार हम नहीं छोड़ेंगे।
प्रोफ़ेसर हेमलता महिश्वर ने कहा कि पितृसत्ता हमारी सबसे बड़ी दुश्मन है। हमे संस्कारों की बेड़ियों को तोड़ना होगा। न्याय पाने के लिए हमें संवैधानिक संस्थानों के सामने धरना प्रदर्शन करना होगा।
नेशनल कैंपेन ऑन दलित ह्यूमन राइट्स की को-कन्विनर और जानी-मानी सोशल एक्टिविस्ट व लेखिका प्रोफ़ेसर विमल थोराट ने कहा कि एनसीआरबी के आंकड़े बहुत हैरान करने वाले हैं। उन्होंने कहा कि जब तक जाति रहेगी तब तक दलितों पर अत्याचार जारी रहेगा। खासतौर से दलित महिलाएं उत्पीड़ित होती रहेंगी अब समय आ गया है कि हमें हॉल से बाहर निकल कर सड़कों पर आना होगा।
इसके अलावा ‘द वायर’ की पत्रकार आरफा खानम शेरवानी न कहा कि 2014 के बाद शासन और प्रशासन रेप की घटनाओं पर शर्मिंदा नहीं होता बल्कि पीड़िताओं और पत्रकारों को ही झूठा ठहराने की कोशिश करता है।
हाथरस की बालिका का केस लड़ रही वकील सीमा कुशवाहा ने कहा कि प्रशासन जिसे मृत्यु कह रहे थे वो हत्या थी। प्रशासन सिर्फ हाथरस की बेटी के शव को ही नहीं जला रहे थे बल्कि दलित अस्मिता को उनकी आइडेंटिटी को जला रहे थे। उन्होंने कहा कि सिर्फ कानून से ही ये लड़ाई नहीं जीती जा सकती इसके लिए सामाजिक संगठनों का आगे आना जरूरी है। ये लड़ाई हमारी गरिमा की लड़ाई है।
यह तथ्य गौरतलब है कि पीड़ित परिवार आज भी चुनौतियों का सामना कर रहा है क्योंकि परिवार अत्यधिक दबाव में है, पुलिस की लगातार निगरानी के कारण पीड़ित परिवार घर में नज़रबंद होने के लिए मजबूर है, उनके घर में आज भी सी.सी.टी.वी. कैमरा लगा हुआ है, पीड़ित परिवार को गांव से बाहर जाने के लिए सरकार व प्रशासन से अनुमति लेनी पड़ती है यहां तक कि प्रकारण की सुनवाई के लिए भी।
अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम 1989 व सशोधन अधिनियम 2015 न केवल जाति आधारित हिंसा रोकता है व सजा देता है बल्कि पीड़ितों व आश्रितों के पुनर्वास की भी बात करता है। परन्तु हाथरस, उत्तर प्रदेश प्रकरण में पीड़ित परिवार को न्याय व राहत दिलाने के लिए विधि द्वारा स्थापित प्रत्येक प्रावधान (मुख्यतः अत्याचार निवारण अधिनियम) का राज्य सरकार, पुलिस व प्रशासन द्वारा उल्लंघन किया गया। मृत पीड़ि़ता के पार्थिव शरीर को पीड़िता के परिवार की सहमति व उपस्थिति के बिना जला दिया गया तथा राज्य के उच्च पदाधिकारियों द्वारा पीड़ित परिवार को डराया धमकाया गया। तत्पश्चात विभिन्न आन्दोलनों के बहुस्तरीय पैरवी के कारण प्रकरण की जांच सीबीआई को सौंप दी गई। वर्तमान में प्रकरण हाथरस विशेष न्यायालय में विचाराधीन है।
एनसीआरबी 2020 के आंकड़ों के अनुसार उत्तर प्रदेश अनुसूचित जाति के विरुद्ध उत्पीड़न के 12,714 (कुल अपराध का 25.2%) मामलों के साथ प्रथम श्रेणी पर बना हुआ है। 2020 के आंकड़ों के अनुसार उत्तर प्रदेश में दलित महिलाओं के विरुद्ध होने वाली हिंसा जैसे बलात्कार (604), बलात्कार का प्रयास (6), लज्जाभंग करने के आशय से हमला (534) तथा विवाह करने के उद्देश्य से अपहरण व व्यपहरण (269) के मामलों के कुल 1,413 प्रकरण दर्ज किए गए जो अन्य राज्यों की तुलना में सबसे अधिक है। यदि वर्ष 2014 से 2019 के पिछले 7 वर्ष के आकड़ों की तुलना की जाए तो उत्तर प्रदेश पुनः 10,901 प्रकरणों के साथ प्रथम दर्जे पर विद्यमान है जिसमें बलात्कार के 3,551, बलात्कार का प्रयास के 237, लज्जाभंग करने के आशय से हमले के 4,731 तथा विवाह करने के उद्देश्य से अपहरण व व्यपहरण के 2,382 मामले शामिल हैं।
पूरे भारतवर्ष में, 2019 (45,922 प्रकरण) की तुलना में अनुसूचित जाति (दलित) के विरुद्ध उत्पीड़न के मामलों में वर्ष 2020 (50,268 प्रकरण) में 9.4% बढ़ोतरी दर्ज की गई। जिसमें से 15% मामले (7,397 प्रकरण) दलित महिलाओं से संबंधित थे। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अधिनियम के अन्तर्गत दलित महिलाओं से संबंधित दर्ज प्रकरणों में से केवल 73. 11% मामलों में पुलिस द्वारा चालान प्रस्तुत किया गया।
एनसीआरबी 2020 के अनुसार प्रतिदिन औसतन 9 से अधिक दलित महिलाओं व बालिकाओं के साथ बलात्कार की घटना होती है तथा उसी प्रकार 9 से अधिक दलित महिलाएं व बालिकाएं लज्जाभंग करने के आशय से हमले का शिकार होती हैं। 37% मामलों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अधिनियम सपठित भारतीय दण्ड संहिता के अन्तर्गत धाराओं में चालान पेश किया गया। न्यायालयों में, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अधिनियम के अन्तर्गत 97% दलित महिलाओं के विरुद्ध उत्पीड़न के मामले लम्बित हैं। वर्ष 2014 की तुलना में 2020 में दलित महिलाओं के साथ बलात्कार की घटनाओं में 51% की वृद्धि दर्ज की गई, उसी प्रकार लज्जाभंग करने के आशय से हमले के प्रकरणों में 43.77% बढ़ोतरी पाई गई।
सभी संगठनों से संयुक्त रूप से अपनी मांगे रखते हुए कहा कि हाथरस प्रकरण में हम उत्तर प्रदेश सरकार से मांग करते हैं कि-
1- पीड़ित परिवार के पुनर्वास के लिए, उत्तर प्रदेश सरकार जैसा कि उद्घोषणा की गई थी, पीड़ित परिवार को रहने के लिए घर सुनिश्चित करे तथा अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अधिनियम के नियम 12(4) के अन्तर्गत परिवार के किसी एक सदस्य के लिए सरकारी नौकरी की व्यवस्था की जाए।
2- हाथरस परिवार को त्वरित न्याय के लिए अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अधिनियम की धारा 14(2) के अन्तर्गत प्रकरण की प्रतिदिन सुनवाई की व्यवस्था कर प्रकरण का विचारण का शीघ्र निस्तारित किया जाए।
3- हाथरस प्रकरण में जानबूझकर कर्तव्यों की अवहेलना करने वाले पुलिस अधिकारियों के विरुद्ध एसआईटी द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट पर लखनऊ उच्च न्यायालय तुरन्त निर्णय ले तथा उक्त पुलिस अधिकारियों के विरुद्ध अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अधिनियम की धारा 4 के अन्तर्गत तुरन्त कार्यवाही प्रारम्भ करें।
4- हाथरस प्रकारण में पीड़ित परिवार को उनके प्रकरण में सहयोग करने वाली अधिवक्ता को उत्तर प्रदेश सरकार सुरक्षा उपलब्ध करवाए जिनके ऊपर प्रकरण से पीछे हटने के लिए लगातार दबाव बनाया जा रहा है।
5- प्रकरण को कवर करने के लिए केरल के पत्रकार श्री सिद्दीक कप्पन को तुरन्त रिहा किया जाए जिन्हें हाथरस गांव जाने के रास्ते में से गिरफ्तार किया गया था तथा जो आज तक जेल में बंद हैं।
6- दलित महिलाओं व बालिकाओं के विरुद्ध जाति व जेण्डर आधारित हिंसा को रोकने के लिए अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम 1989 व संशोधन अधिनियम 2015 के प्रभावीशाली व कड़े तौर पर कार्यान्वयन किया जाए।
7- दलित, मुख्यतः दलित महिलाओं के विरुद्ध होने वाली हिंसा की रोकथाम के लिए उचित कदम उठाए जाएं तथा सरकार द्वारा दलित समुदाय में विधिक प्रवधानों पर जागरुकता पैदा करने के लिए आन्दोलन/कार्यक्रम चलाए जाएं।
8- अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम की धारा 15(ए) में दिए गए “पीड़ितों और गवाहों के अधिकारों” के बारे में और यौनिक शोषण के मामलों में न्याय तक पहुंचने के लिए प्रक्रियाओं के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए सार्वजनिक अभियान चलाएँ।
9- अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) की धारा 14 के अन्तर्गत, प्रकरण के त्वरित रूप से दो माह के भीतर निस्तारण के लिए प्रत्येक जिले में विशेष न्यायालय और अनन्य विशेष न्यायालय की स्थापना सुनिश्चित किया जाए।
यह आयोजन इन सब संगठनों ने मिलकर किया : ऑल इंडिया दलित महिला अधिकार मंच, ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक वीमेन’स एसोसिएशन, ऑल इंडिया प्रोग्रेसिव वीमेन’स एसोसिएशन, ऑल इंडिया सेक्युलर फोरम, एक्ट नाऊ फॉर हारमनी एंड डेमोक्रेसी, सिटीजन फॉर जस्टिस एंड पीस, दलित आर्थिक अधिकार मंच, दलित आदिवासी शक्ति अधिकार मंच, डेल्ही सॉलिडेरिटी ग्रुप, इंडियन क्रिस्चियन विमेंस मूवमेंट, इंडियन सोशल एक्शन फोरम, कबीर कला मंच, मुस्लिम वीमेंस फेडरेशन, नेशनल अलायन्स ऑफ़ पीपल्स मूवमेंट, नेशनल अलायन्स फॉर वीमेन आर्गेनाइजेशन, नेशनल कैंपेन फॉर दलित ह्यूमन राइट्स, नेशनल दलित मूवमेंट फॉर जस्टिस, नेशनल फेडरेशन फॉर दलित वीमेन, नेशनल फेडरेशन फॉर इंडियन वीमेन, पहचान, साझी दुनिया, सफाई कर्मचारी आंदोलन, सम्बुद्ध महिला संगठन, सतर्क नागरिक संगठन, वादा न तोड़ो अभियान और यंग वीमेन’स क्रिस्चियन एसोसिएशन।
(लेखक : सफाई कर्मचारी आन्दोलन से जुड़े हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)
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