चिंता: प्लास्टिक प्रदूषण में नंबर वन शहर क्यों बना मुंबई?
मुंबई जैसे महानगर को प्लास्टिक मुक्त करने के लिए चलाए जा रहे प्रयास बहुत छोटे स्तर पर हैं। तस्वीर साभार: प्लास्टिक्स फॉर चेंज
गए 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया, इस साल इसकी थीम थी- प्लास्टिक प्रदूषण को हराना, इस लिहाज से यदि भारत में प्लास्टिक प्रदूषण के चलते सबसे प्रदूषित शहरों की सूची देखें तो देश की आर्थिक राजधानी कही जाने वाली मुंबई सबसे अधिक और खतरनाक स्तर तक प्लास्टिक प्रदूषित शहर की श्रेणी में आती है।
मुंबई जैसे शहर का 'प्लास्टिक कचरे का शहर' के तौर पर उभरना कई कारणों से एक गंभीर समस्या है। लेकिन, सवाल है कि जिस स्तर पर यह एक चिंता का विषय होना चाहिए, क्या उस स्तर पर इस ख्वाबों के खूबसूरत शहर को आधुनिक विकास के सबसे खतरनाक जहर प्लास्टिक कचरे से बचाने के लिए सोचा भी जा रहा है? यदि हां, तो अब तक की सारी कोशिश बेकार साबित होती हुई क्यों दिख रही हैं? आखिर क्यों यह शहर प्लास्टिक कचरे के समंदर से घिरता जा रहा है?
सवाल है कि मुंबई में प्लास्टिक प्रदूषण कैसे और किस हद तक खतरनाक है? पर्यावरण दिवस के अवसर पर आईआईटी खड़गपुर द्वारा सार्वजानिक की गई एक रिपोर्ट मुताबिक देश के 496 छोटे, मध्यम और बड़े शहरों में मुंबई प्लास्टिक प्रदूषण के सबसे जोखिम वाले शहर के रूप में उभरा है। इस हिसाब से यह जानना भी जरूरी है कि मुंबई में इतनी प्लास्टिक कैसे जमा हो रही है।
डंपिंग ग्राउंड बने ज़हर का साम्राज्य
मुंबई में भारत और दुनिया के कोने-कोने से आए हुए लोग मिल जाएंगे और शहर में हर जगह 'स्वच्छ मुंबई, सुंदर मुंबई' जैसे नारे लिखे मिल जाएंगे। इन दोनों तथ्यों को ध्यान में रखते हुए बात करें तो मुंबई के प्रदूषण से जुड़ी लगभग सारी रिपोर्ट सकारात्मक नहीं हैं। वर्ष 2022 में भी 'एल्सेवियर जर्नल रिसोर्सेज, कंजर्वेशन एंड रिसाइक्लिंग' में 'रिस्क ऑफ प्लास्टिक लॉस टू द एनवायरनमेंट फ्रॉम इंडियन लैंडफिल्स' शीर्षक से एक रिपोर्ट पेश की गई थी। इस रिपोर्ट में प्लास्टिक प्रदूषण के दृष्टिकोण से भारत के प्रमुख शहरों का सर्वेक्षण किया गया। रिपोर्ट में बताया गया था कि यदि मुंबई के डंपिंग ग्राउंड को लोकेशन और कामकाज के लिहाज से देखा जाए तो मुंबई सबसे खतरनाक शहर है।
साथ ही, आईआईटी खड़गपुर के शोधकर्ताओं द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट में भी यही कारण सामने आया। रिपोर्ट में इस बात का जिक्र किया गया है कि भारत के 496 प्रमुख शहरों में से मुंबई प्लास्टिक प्रदूषण से सबसे ज्यादा खतरे वाला शहर है और प्लास्टिक प्रदूषण के उच्च जोखिम की मुख्य वजह मुंबई में डंपिंग ग्राउंड हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि कचरे के रिसाव और हवा, बारिश और बाढ़ के कारण कचरे के बहने से प्रदूषण का खतरा बढ़ रहा है।
मुंबई शहर में देवनार, कांजुरमार्ग और मुलुंड में प्रमुख डंपिंग ग्राउंड समुद्र के बहुत करीब हैं। इन डंपिंग ग्राउंड से निकलने वाला कचरा तथा प्लास्टिक विभिन्न तरीकों से वातावरण और समुद्र में प्रवेश करता है। हवा, बारिश, बाढ़, आवारा जानवर और मानवीय हस्तक्षेप जैसे कारक प्लास्टिक और प्लास्टिक कचरे को पर्यावरण में प्रवेश करने का कारण बनते हैं। जानकार बताते हैं कि यदि डंपिंग ग्राउंड या लैंडफिल, अपशिष्ट भंडारण स्थल आर्द्रभूमि के करीब स्थित हैं तो कचरे का फैलाव अधिक होता है।
कहीं प्लास्टिक में तब्दील न हो जाए मायालोक! तस्वीर: सुनील प्रभु
महामारी के बाद भी अनदेखी
इससे न केवल प्रदूषित कचरा फैलता है, बल्कि जल और वायु प्रदूषण भी होता है। इससे तटीय शहरों में अधिक गर्मी और अधिक तापमान बढ़ने का अनुभव होता है। तेज गर्मी, तेज हवाओं से फैल रही धूल से मुंबई जैसे शहर में तापमान सामान्य स्थितियों से कहीं बहुत अधिक बढ़ता जा रहा है। यही वजह है कि प्रदूषण के हर रूप और मानक पर भी मुंबई देश के सबसे अधिक प्रदूषित शहरों में शामिल है।
वहीं, जनसंख्या की दृष्टि से मुंबई शहर बहुत विशाल है। जनसंख्या जितनी अधिक है, उतनी अधिक मात्रा में प्लास्टिक का इस्तेमाल हो रहा है। इसी तरह, देखा गया कि 'कोविड-19' काल में चिकित्सा संबंधी और अन्य दूसरे कारकों के चलते प्लास्टिक का इस्तेमाल बढ़ा। इस दौरान खपत की तुलना में कचरे का उचित प्रबंधन नहीं किया गया। बदले में प्रदूषण में वृद्धि हुई।भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि भारत में प्रतिदिन लगभग 25 मिलियन पीपीई किट, 101 टन बायोमेडिकल कचरा और लगभग 14.5 टीपीडी प्लास्टिक कचरा उत्पन्न होता है। जाहिर है कि आपदा के समय मुंबई जैसे महानगर में बायोमेडिकल कचरा बड़े पैमाने पर पैदा हुआ।
मुंबई नगर निगम द्वारा दिसंबर 2022 में पेश की गई जानकारी के अनुसार, जनवरी से दिसंबर 2021 तक अकेले मुंबई नगर निगम की सीमा के भीतर 46 लाख, 98 हजार, 164 किलोग्राम प्लास्टिक की बोतलें पाई गईं। इसमें जनवरी से दिसंबर 2022 तक 58 लाख 98 हजार 114 किलो प्लास्टिक की बोतलें मिली हैं। साथ ही 'यूज एंड थ्रो अवे' सिस्टम में कूड़ा ज्यादा होता है। देखा जा सकता है कि कोरोना काल में इसमें बढ़ोतरी हुई है। लेकिन, महामारी के बाद इस कचरे से निदान के लिए कोई ठोस कार्य-योजना नहीं बनी।
प्लास्टिक से पार पाना आसान नहीं
कहने के लिए मुंबई में प्लास्टिक प्रतिबंध नीति लागू की गई है। कुछ हद तक वे सफल भी रहीं। लेकिन, इन दिनों की स्थितियों को देखते हुए और आबादी के मुकाबले प्लास्टिक पर काबू पाना मुश्किल होता जा रहा है। आज भी मुंबई में प्लास्टिक की रोजाना खपत करीब 9 हजार टन है। बहुत से लोग पुन: प्रयोज्य प्लास्टिक बैग सहित एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक बैग का उपयोग करते हैं। मुंबई नगर निगम के आंकड़ों के मुताबिक सैनिटरी पैड, डायपर से पैदा होने वाला कचरा कुल कचरे का 6 फीसदी है। मुंबई नगर निगम के कई हिस्सों में लोग सैनिटरी पैड और डायपर नालियों और शौचालयों में फेंकते पाए जाते हैं।
इससे जलभराव की दर बढ़ जाती है। आईआईटी खड़गपुर की ओर से पेश की गई रिपोर्ट में यह बात स्पष्ट तौर पर कही गई है कि मुंबई में समुद्र के पास डंपिंग ग्राउंड की स्थिति बेहद खतरनाक है। यह कचरा मानव जीवन के साथ-साथ समुद्री जीवन पर भी खतरनाक प्रभाव डाल रहा है।
प्लास्टिक के साथ एक संकट और है कि यह जल्दी नहीं सड़ता है। साथ ही इसे जलाना पर्यावरण के लिए हानिकारक है। नदियों, समुद्रों में फेंकना भी हानिकारक होता है। इसलिए कहा जाता है कि अनिवार्य कार्यों के लिए ही प्लास्टिक का इस्तेमाल करना उचित है। लेकिन, शहरी जीवनशैली के भीतर यह कथन नागरिक व्यवहार में प्रदर्शित होता नहीं दिखता।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)
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