‘सुलह समझौते का उल्लंघन’: रक्षा फ़ेडरेशनों ने ओएफ़बी के निगमीकरण पर राजनाथ सिंह को चिट्ठी लिखी
नई दिल्ली: नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार पर प्रभावित लोगों को विश्वास में लिए बिना "ग़ैर-क़ानूनी, असंवैधानिक, अनुचित" फ़ैसला लेने का आरोप लगाया गया है, इससे इस बात का संदेश मिलता है कि कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ चल रहे आंदोलन से कोई सबक नहीं लिया जा रहा है।
सरकार पर यह आरोप देश भर के 41 आयुध कारखानों में कार्य कर रहे रक्षा कर्मचारियों की नुमाइंदगी करने वाले रक्षा फ़ेडरेशन(संघों) की तरफ़ से लगाया गया है। ये यूनियन, ऑर्डनेंस फ़ैक्ट्री बोर्ड (OFB) को निगमित करने और बाद में शेयर बाज़ार में इसकी लिस्टिंग के प्रस्ताव के ख़िलाफ़ विरोध कर रहे हैं।
ऐसी आशंकायें हैं कि ओएफ़बी की सरकारी स्वामित्व वाली कॉर्पोरेट इकाई में प्रस्तावित बदलाव से तत्काल नहीं, तो आने वाले दिनों में उन रक्षा कर्मचारियों की सेवा शर्तों पर नकारात्मक असर पड़ेगा, जिनकी तादाद एक लाख से ज़्यादा है।
देश के तीन सशस्त्र बलों और अर्धसैनिक बलों के लिए महत्वपूर्ण हथियारों और गोला-बारूद सहित रक्षा उपकरणों के उत्पादन में लगा ओएफ़बी इस समय रक्षा उत्पादन विभाग (DDP) के तहत रक्षा मंत्रालय की एक इकाई के रूप में कार्य करता है।
रक्षा मंत्री, राजनाथ सिंह को संबोधित 9 मार्च को एक पत्र में आरोप लगाये हुआ कहा गया था कि रक्षा मंत्रालय (MoD), डीडीपी के ज़रिये "बार-बार उस सुलह समझौते का उल्लंघन कर रहा है", जो औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 के प्रावधान के मुताबिक़ रक्षा मंत्रालय और रक्षा संघों के बीच हुआ था।
सिंह की तरफ़ से इस महीने के शुरू में मंत्रियों के अधिकार प्राप्त समूह (ईजीओएम) की कथित बैठक आयोजित करने के बाद रक्षा मंत्री को इस "उल्लंघन" पर ध्यान देने की ज़रूरत थी। वह बैठक ओएफ़बी के निगमीकरण की देखरेख के लिए आयोजित की गयी थी।
इस चिट्ठी में कहा गया है, "...हम यह जानकर बहुत हैरान हैं कि माननीय सभापति के की अध्यक्षता में ईजीओएम की बैठक हाल ही में हुई है और इसमें सरकार की तरफ़ से आयुध कारखानों को निगमित करने के फ़ैसले के कार्यान्वयन को लेकर अलग-अलग तरीक़ों के बारे में चर्चा की गयी है (शब्द थोड़े अलग हो सकते हैं, मगर भाव यही था)।" दूसरे शब्दों में यह सुझाव दिया गया था कि केंद्र ऐसे समय में ओएफ़बी को निगमित करने के फ़ैसले के साथ आगे बढ़ रहा है, जब यह मामला "कर्मचारियों और नियोक्ताओं" के बीच चल रहा है।
खिन्नता के साथ इन संघों का कहना है कि फ़ैसला अगर इस तरह से लिया जाता है, तो यह "ग़ैर-क़ानूनी, असंवैधानिक, अनुचित और क़ानून की नज़र में बुरा होगा"। गुरुवार को न्यूज़क्लिक को हाथ लगे इस पत्र पर तीनों मान्यता प्राप्त रक्षा संघों-ऑल इंडिया डिफ़ेंस एम्प्लाइज़ फ़ेडरेशन (AIDEF), इंडियन नेशनल डिफ़ेंस वर्कर्स फ़ेडरेशन (INDWF) और आरएसएस से जुड़े भारतीय प्रतिरक्षा मज़दूर संघ (BPMS) के प्रतिनिधियों के हस्ताक्षर हैं।
‘सरकार गंभीर नहीं’
पिछले साल अक्टूबर में मुख्य श्रम आयुक्त (CLC) की मौजूदगी में दोनों पक्षों-डीडीपी और रक्षा संघों के बीच समझौता हुआ था। उसमें यह तय किया गया था कि इन संघों की तरफ़ से बुलाये जाने वाले अनिश्चितकालीन हड़ताल को फिलहाल स्थगित कर दिया जाये।
इस समझौते के मुताबिक़, हड़ताल को स्थगित करने के बदले रक्षा मंत्रालय को औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 की धारा 33 (1) के प्रावधानों का पालन करना था। यह प्रावधान काम करने वालों के लिए उन लागू सेवाओं की शर्तों से जुड़ा हुआ है, जो इसके मुताबिक़, सुलह वार्ता की कार्यवाही के दौरान "यथावत" रहने हैं।
एआईडीईएफ़ के महासचिव, सी.श्रीकुमार ने न्यूज़क्लिक को बताया, "ऐसा लगता है कि सरकार वार्ता के ज़रिये समय बिता रही है और आयुध कारखानों के निगमीकरण को लेकर हमारी चिंताओं को हल करने के प्रति गंभीर नहीं है।" उन्होंने कहा कि डीडीपी सचिव के साथ रक्षा संघों की दो बैठकें अब तक आयोजित की जा चुकी हैं, जिनमें से आख़िरी बैठक जनवरी में ही बुलायी गयी थी।
श्रीकुमार ने कहा कि उन बैठकों में फ़ेडरेशन को ओएफ़बी के "प्रदर्शन में सुधार" को लेकर एक "वैकल्पिक प्रस्ताव" प्रस्तुत करने के लिए कहा गया था। उनका आरोप है, “हमने नवंबर (पिछले साल) में एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया था। लेकिन, हमें नहीं लगता कि इसे (पर्याप्त) गंभीरता से रक्षा मंत्रालय के सामने रखे जाने पर भी विचार किया गया था।”
न्यूज़क्लिक ने इस सम्बन्ध में डीडीपी के सचिव, राज कुमार के कार्यालय से संपर्क किया, लेकिन बताया गया कि वह उपलब्ध नहीं है। उनके आधिकारिक ईमेल पते पर एक प्रश्नावली भेजी गयी थी। जैसे ही उस प्रश्नावली पर उनकी प्रतिक्रिया सामने आयेगी, उसे इस आलेख में शामिल कर दिया जायेगा।
रक्षा महासंघों की तरफ़ से दिये गये उनके प्रस्ताव में जो सुझाव दिये गये हैं, उनमें औद्योगिक कर्मचारियों की कहीं ज़्यादा सीधी भर्ती, वित्त और लेखा वर्गों का एकीकरण और ओएफ़बी के लिए एक बजट आवंटन में बढ़ोत्तरी शामिल हैं।
बीपीएमएस के मुकेश सिंह ने कहा कि अगर ओएफ़बी के भविष्य के सम्बन्ध में रक्षा कर्मचारियों की बात नहीं सुनी जाती है, तो यह "राष्ट्र और इसकी रक्षा तैयारियों के हित" में नहीं होगा। उन्होंने अफ़सोस जताते हुए कहा, "सवाल है कि मंत्रियों के अधिकार प्राप्त समूह (EGoM) की ओर से बुलाये गए उस बैठक में फ़ेडरेशन को क्यों नहीं बुलाया गया, जहां हम अपने प्रदर्शन को बेहतर बनाने को लेकर अपना प्रस्ताव रख सकते थे?"
‘किसानों से अलग हालात नहीं'
तीन महीने से ज़्यादा समय से दिल्ली के बाहरी इलाक़े में डेरा डाले प्रदर्शनकारी किसान यूनियनों की तरफ़ से कृषि क़ानूनों को लागू करने से पहले पहले जिस तरह उन्हें विश्वास में नहीं लिया गया था, उसी तरह की शिकायतें इन फेडरेशन की तरफ़ से भी उठायी जा रही हैं।
एआईडीईएफ़ के श्रीकुमार का कहना है, “हम श्री सिंह (रक्षामंत्री-राजनाथ सिंह) की तरफ़ से अपनी चिट्ठी के जवाब का इंतज़ार कर रहे हैं। हमारी स्थिति उन किसानों से अलग नहीं है, जिनकी सुनवाई नहीं हो पा रही है।” वह आगे बताते हुए कहते हैं कि अगर "कोई सकारात्मक जवाब नहीं" आता है, तो उस स्थिति में तीनों फ़ेडरेशन आपस में एक "कार्य योजना" पर चर्चा करेंगे।
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