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कोरोना संकट : क्या ‘आरोग्य सेतु ऐप’ आपको सुरक्षित करता है?

इस महामारी से बचने के लिए दुनिया के कई देश साइबर तकनीक का सहारा ले रहे हैं। लेकिन दुनियाभर के साइबर एक्सपर्ट इसे लोगों की निजता के लिए ख़तरा और डिजिटल स्वतंत्रता पर हमला मान रहे हैं।
आरोग्य सेतु ऐप

कोरोना का कहर देश में दिन- प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। इस वायरस के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए अब सरकार सख्त से सख्त कदम उठाने की बातें कर रही है। इसी दिशा में आगे बढ़ते हुए भारत सरकार ने कोरोना से बचने के लिए एक नया ऐप 'आरोग्य सेतु' लॉन्च किया है। इस ऐप के जरिए सरकार कोरोना संक्रमित लोगों के मूवमेंट पर नज़र रखेगी, साथ ही इसकी मदद से कोई भी आसपास कोरोना के मरीज़ों की जानकारी भी हासिल कर सकता है। ऐप को लेकर सरकार का दावा है कि इसे यूजर्स की निजता को ध्यान में रखकर बनाया गया है। लेकिन साइबर जानकार इसे बिना किसी कानून के दायरे में लाए जाने पर सवाल उठा रहे हैं, डेटा सुरक्षा को लेकर चिंता व्यक्त कर रहे हैं।

क्या है इस ऐप में?

आरोग्य सेतु ऐप को गुरुवार, 2 अप्रैल को लॉन्च किया गया। इसे राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र ने इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप के ज़रिए तैयार किया गया है। इसका उद्देश्य लोगों को कोरोना वायरस संक्रमण से बचाना है। जिस व्यक्ति के फ़ोन में ये ऐप होगा वो दूसरों के संपर्क में कितना रहे हैं, यह पता लगाने के लिए ब्लूटूथ तकनीक, एल्गोरिदम और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का भी इस्तेमाल किया जा रहा है।

इस ऐप को कोई भी एंड्रॉयड गूगल प्ले स्टोर और आईओएस स्टोर से डाउनलोड कर सकता है। अगर आपके फ़ोन में ये ऐप इंस्टॉल है तो ये अपने आस-पास के उन लोगों को भी खोज लेगा जो आपके आसपास रहते हैं और उनके फ़ोन में भी ये ऐप है। ये ऐप बताएगा कि आपके आसपास रहने वाला कोई भी व्यक्ति अगर कोरोना वायरस से संक्रमित है तो आपको कितना ख़तरा है और जीपीएस लोकेशन की मदद से वो यह भी पता लगाएगा कि आप कब उनके संपर्क में आए हैं।

ऐप की मदद से सरकार आइसोलेशन और वायरस संक्रमण फैलने से रोकने के लिए ज़रूरी कदम भी वक़्त रहते उठा पाएगी। ये ऐप हिंदी, अंग्रेजी समेत कुल 11 भाषाओं में उपलब्ध है। सरकार की ओर से जारी नोटिफिकेशन में यह भी कहा गया है कि ऐप में नाम, मोबाइल नंबर, जेंडर, पेशा, ट्रैवेल हिस्ट्री और आप धूम्रपान करते हैं या नहीं, ये ब्योरा पूछा जाएगा। ऐप में मौजूद आपकी निजी जानकारी और डेटा का इस्तेमाल भारत सरकार करेगी ताकि कोरोना से संबंधित डेटाबेस तैयार किया जा सके और वायरस संक्रमण को फैलने से रोका जा सके।

सभी जानकारी क्लाउड में अपलोड की जाएगी और इसके जरिए आपको लगातार कोरोना वायरस से संबंधित सूचनाएं भी दी जाएंगी। मोबाइल नंबर पर सरकार की ओर से मैसेज और दूसरे माध्यमों से जानकारी दी जाती रहेगी।

किसी भी तरह की जानकारी का इस्तेमाल कोरोना वायरस की महामारी से निपटने के अलावा किसी अन्य वजह से इस्तेमाल नहीं किया जाएगा। अगर आप ऐप डिलीट करते हैं तो 30 दिनों के भीतर आपका डेटा क्लाउड से हटा दिया जाएगा।

राज्य सरकारों की पहल

राज्य सरकारें टेलिकॉम कंपनियों की मदद से कोरोना संक्रमित व्यक्तियों की लोकेशन और कॉल हिस्ट्री के जरिए कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग का काम कर रही हैं। इसके अलावा पंजाब, तमिलनाडु, कर्नाटक और गोवा की सरकारों ने ऐसे मोबाइल ऐप शुरू किए हैं तो वहीं आंध्र प्रदेश सरकार कोरोना एलर्ट ट्रेसिंग सिस्टम का इस्तेमाल कर संक्रमित लोगों के मोबाइल नंबरों के आधार पर डेटाबेस निकाल कर इनके संपर्क में आने वालों की तलाश कर रही है।

हिमाचल सरकार कोरोना मुक्त हिमाचल ऐप लॉन्च करने की तैयारी में है। राज्य प्रशासन तकनीक के सहारे कोरोना संक्रमित लोगों और होम क्वारंटीन पर रखे गए लोगों पर नज़र भी रख रहा है।

साइबर जानकारों की चिंता

सरकार इस ऐप के डेटा को लेकर भले ही दावा कर रही हो कि ये किसी थर्ड पार्टी के हाथ में नहीं जाएगा। लेकिन विशेषज्ञों की चिंता है कि इस कदम से लोगों के निजता के अधिकार का हनन होगा। साथ ही लोगों की जानकारी कब तक और कैसे इस्तेमाल होगी इसकी भी स्थिति स्पष्ट नहीं है।  

साइबर क़ानून एक्सपर्ट अमित श्रीवास्तव ने न्यूज़क्लिक से बातचीत में कहा, “कम्युनिटी ट्रांसमिशन के खतरे को रोकने के लिए सरकार फिलहाल इसे एक जरूरी कदम बता सकती है लेकिन क्या सरकार ऐसी कोई गारंटी भी दे सकती है कि हालात सुधरने के बाद इस डेटा को नष्ट कर दिया जाएगा, इसका ग़लत इस्तेमाल नहीं होगा। पूरी दुनिया में इस महामारी के आधार पर सरकारें लोगों के अधिकारों का उल्लंघन कर रहीं हैं और लोग ये नहीं समझ रहे हैं कि ये महामारी सिर्फ़ इंसानों को ख़त्म नहीं करेगी, बल्कि उनकी निजता को भी खत्म कर देगी। जब हालात सामान्य होंगे तो लोगों को पता चलेगा कि उनकी जानकारियों का दुरुपयोग हो रहा है।"

इंटरनेट फ्रीडम फ़ाउंडेशन के आलोक गुप्ता बताते हैं, “सरकार जो डेटा ले रही है वो बिना किसी क़ानूनी दायरे के ले रही है ऐसे में इसका इस्तेमाल वो कैसे करती है और कब तक करती है किसी को नहीं पता। हमारे सामने आधार कार्ड का उदाहरण है जिसमें डेटा लीक का मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया। जिस तरह आधार नंबर एक सर्विलांस सिस्टम बन गया है और उसे हर चीज़ से जोड़ा जा रहा है वैसे ही कोरोना वायरस से जुड़े एप्लिकेशन में लोगों का डेटा लिया जा रहा है, उनका हेल्थ डेटा और निजी जानकारियां भी शामिल हैं वो सरकार किस तरह और कब तक इस्तेमाल करती है इसकी कोई गारंटी नहीं है।”

सामाजिक कार्यकर्ता ऋचा सिंह के अनुसार इस तरह इलेक्ट्रॉनिक सर्विलांस के ज़रिए इकट्ठा किया जा रहा डेटा निजता के अधिकार का हनन है साथ ही सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन भी है जिसमें निजता के अधिकार को संवैधानिक अधिकार बताया गया है। अभी इस महामारी को देखते हुए सरकार कह सकती है कि ट्रेसिंग जनस्वास्थ्य को ध्यान में रखकर किया जा रहा है लेकिन क्या सरकार इसके डेटा का भी ध्यान रख रही है? आगे चलकर अगर किसी भी तरह से इसका गलत इस्तेमाल हुआ, तो उसका ज़िम्मेदार कौन होगा?"

गौरतलब है कि इस महामारी से बचने के लिए दुनिया के कई देश साइबर तकनीक का सहारा ले रहे हैं। इजराइल सरकार ने रातोंरात डेटा ट्रेसिंग के लिए अस्थाई कानून पास कर दिया तो वहीं चीन, दक्षिण कोरिया, अमरीका, सिंगापुर, हाँगकाँग की सरकारें भी इस दिशा में आगे बढ़ रही हैं लेकिन दुनियाभर के साइबर एक्सपर्ट इसे लोगों की निजता का हनन बता रहे हैं, डिजिटल स्वतंत्रता पर हमला मान रहे हैं।

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