कोरोना संकट: अर्थव्यवस्था को लेकर सरकार के सामने चुनौतियों का चक्रव्यूह !
दिल्ली: कांग्रेस नेता और वायनाड से सांसद राहुल गांधी ने रविवार को कहा कि आर्थिक सुस्ती ने कई भारतीय कॉरपोरेट को कमजोर कर दिया है। राष्ट्रीय संकट की इस घड़ी में कोई विदेशी कंपनी किसी देशी कंपनी का नियंत्रण न कर पाए। इसके लिए सरकार को कदम उठाने चाहिए।
राहुल गांधी ने ट्वीट करते हुए लिखा, 'बड़े पैमाने पर आर्थिक मंदी ने कई भारतीय कॉरपोरेट्स को कमजोर कर दिया है, जिससे उन्हें अधिग्रहण के लिए आकर्षक लक्ष्य बनाया गया है। राष्ट्रीय संकट के समय सरकार को किसी भी विदेशी लाभ को देखते हुए भारतीय कॉर्पोरेट पर नियंत्रण रखने की अनुमति नहीं देनी चाहिए।'
उन्होंने यह चिंता मीडिया में आई उन खबरों पर प्रकट की है, जिनमें कहा गया था कि विदेशी संस्थानों ने स्टॉक बाजार के गिरने के मद्देनजर भारतीय कंपनियों में हिस्सेदारी खरीदी है।
कुछ ऐसा ही चिंता स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय सह-संयोजक अश्वनी महाजन ने भी जताई। उन्होंने ट्वीट कर पीएम नरेंद्र मोदी और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से यह अनुरोध किया कि वे भारतीय संस्थाओं का स्वामित्व विदेशी हाथों में न जानें दें।
दरअसल इस मसले पर सबका ध्यान तब गया जब खबर आई कि पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना ने हाउजिंग लोन देने वाली देश की दिग्गज कंपनी एचडीएफसी लिमिटेड के 1.75 करोड़ शेयर खरीद लिए हैं। हालांकि सोशल मीडिया पर इसे लेकर तमाम तरह की अफवाहें चलने लगीं। इसमें कहा गया कि विदेशी कंपनियां देशी कंपनियों का अधिग्रहण कर ले रही हैं जबकि ऐसा नहीं था।
इंडिया टुडे की एक खबर के मुताबिक बीएसई को दी गई जानकारी के मुताबिक पिछले वित्त वर्ष की अंतिम यानी मार्च तिमाही में चीन के केंद्रीय बैंक की एचडीएफसी में हिस्सेदारी 1.75 करोड़ शेयरों की हो गई। हालांकि एचडीएफसी में मार्च 2019 तक भी पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना की 0.8 फीसदी हिस्सेदारी थी। इसका मतलब यह है कि एक साल में चीनी बैंक की एचडीएफसी में हिस्सेदारी महज 0.21 फीसदी बढ़ी है। यह शेयर बढ़ने के बाद भी एचडीएफसी में चीनी केंद्रीय बैंक की हिस्सेदारी महज 1.01 फीसदी है।
आपको बता दें कि कि एचडीएफसी में पहले से ही कई विदेशी कंपनियों या संस्थाओं की इससे ज्यादा हिस्सेदारी है। इनमें इनवेस्को ओपनहीमर डेवलपिंग मार्केट फंड (3.33 फीसदी), सिंगापुर सरकार (3.23 फीसदी) और वैनगॉर्ड टोटल इंटरनेशनल स्टॉक इंडेक्स फंड (1.74 फीसदी) शामिल हैं।
गौरतलब है कि चीन के केंद्रीय बैंक ने यह खरीदारी ऐसे वक्त में की है, जब कोरोना वायरस महामारी के कारण एचडीएफसी लिमिटेड के शेयरों में बड़ी गिरावट आई है। फरवरी के पहले सप्ताह के बाद से लेकर अब तक शेयर में 41% की गिरावट आ चुकी है।
फिलहाल ख़बर यह भी है कि कोरोना वायरस महामारी के कारण दुनियाभर के शेयर बाजारों में आए भूचाल के बाद चीन दुनिया के बड़े देशों की कंपनियों में ताबड़तोड़ हिस्सेदारी खरीद रहा है। हाल के वर्षों में चीन ने पाकिस्तान तथा बांग्लादेश सहित एशियाई देशों में भी खासकर इनफ्रास्ट्रक्चर तथा टेक्नॉलजी कंपनियों में निवेश में भारी बढ़ोतरी की है।
भारत के संदर्भ में जानकारों का कहना है कि अपने पूर्वाग्रहों के चलते जानबूझकर इस मामले को ज्यादा तूल दिया गया है। हालांकि अभी देश की अर्थव्यवस्था के सामने इस तरह का संकट नहीं है लेकिन इस पर सतर्क रहने की जरूरत है।
गौरतलब है कि देश की अर्थव्यवस्था इस समय चुनौतियों के चक्रव्यूह में फंसी है। पिछले वित्त वर्ष के आखिरी महीने यानी मार्च में कोरोनावायरस के कहर के कारण शेयर बाजारों में हड़कंप का माहौल था। अभी देश में लॉकडाउन की स्थिति है जिससे इकॉनॉमी पर बड़ा असर पड़ा है। आयात, निर्यात, उत्पाद सब कुछ बंद चल रहा है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ़) की प्रमुख क्रिस्टलिना गोर्गिवा ने शुक्रवार को एक ऑनलाइन प्रेस वार्ता में कहा था कि "यह स्पष्ट है कि हम मंदी की दौर में प्रवेश कर चुके हैं और ये दौर साल 2009 की मंदी से भी बुरा होगा."
उन्होंने कहा, "वैश्विक अर्थव्यवस्था इस समय बड़े संकट के दौर से गुज़र रही है और अभी जो नुक़सान हुआ है, उससे निपटने के लिए देशों खासकर विकासशील देशों को बहुत ज्यादा फंडिंग की जरूरत होगी।" दुनिया के 80 देश पहले ही आईएमएफ़ से मदद की गुहार लगा चुके हैं।
ऐसे में इस तरह की ख़बरें सरकार के सामने दोहरी चुनौती लेकर आ रही है। इस समय विदेशी निवेश आना भी सरकार के लिए फायदेमंद है। इससे देश के शेयर बाज़ार में रौनक वापस लौटेगी। साथ ही इस बात का ख्याल रखना होगा कि देश की कंपनियों को हित न प्रभावित हों। जिस तरफ कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने आगाह किया है।
ऐसे में बेहतर यही होगा कि शेयर बाजार को रेग्युलेट करने वाली संस्था भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) देशी कंपनियों के शेयर में किसी भी बड़ी खरीद फरोख्त को लेकर सतर्क रहे और इसके बारे में सरकार को तत्काल सूचना दे। ऐसे में सरकार को स्वास्थ्य के मोर्चे के साथ ही इकॉनमी के मोर्चे पर भी हर तरह से निगाह रखनी होगी और बदली हुई परिस्थितियों के आधार पर पॉलिसी बनानी होगी।
हालांकि भारत में कोराना वायरस के बढ़ते संक्रमण के बाद केंद्र सरकार ने कई प्रकार की आर्थिक राहतों का ऐलान किया है लेकिन यह पर्याप्त नहीं है। पिछले हफ्ते ही एसबीआई के अर्थशास्त्रियों ने कहा कि कोरोना वायरस संकट से निपटने के लिए सरकार के 1.75 लाख करोड़ रुपये के पैकेज का ज्यादातर हिस्सा पहले ही बजट में प्रस्तावित था और उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि महामारी से संबंधित चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए अर्थव्यवस्था को तीन लाख करोड़ रुपये की अतिरिक्त सहायता चाहिए।
फिलहाल कोरोना के साथ ही साथ इकॉनमी के मोर्चे पर भी सरकार को लंबी लड़ाई लड़नी होगी। वह भी बेहद सर्तकता के साथ अपने आंख, नाक और कान खोलकर। इसी में देश की भलाई है।
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