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दिल्ली नगर निगमों और सरकार की लापरवाही से रोज़ जा रही हैं सफाई कर्मियों की जान: एसकेयू

रिपोर्ट के मुताबिक़ तीनों नगर निगमों में कुल 94 कर्मचारियों की मौत कोरोना से हुई है जबकि इसमें 39 सफ़ाई कर्मचारी है। यूनियन ने कहा जिनकी महामारी के दौरान मृत्यु हुई है, सरकार और निगम उन सभी सफाई कर्मचारियों के परिवारों को 1 करोड़ मुआवज़ा और परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी दे।
दिल्ली नगर निगमों और सरकार की लापरवाही से रोज़ जा रही हैं सफाई कर्मियों की जान: एसकेयू
फोटो साभार : अमर उजाला

दिल्ली नगर निगम के तीन नगर निगमों - उत्तर, दक्षिण और पूर्व - में 39 सफाई कर्मचारियों ने कोरोना के कारण अपनी जान गंवई। जबकि तीनों नगर निगमों में कोरोना से कुल  94 कर्मचारी की मौत हुई। इसको लेकर सफाई कर्मचारी यूनियनों का कहना है ये मौतें सरकारी लापरवाही से हुई हैं। सफाई कामगार यूनियन (एसकेयू) ने दिल्ली के विभिन्न नगर निगम और दिल्ली सरकार द्वारा सफाई कर्मचारियों की सुरक्षा के जरूरी उपायों में लगातार हो रही लापरवाही की कड़ी निंदा की और कहा कि  एक प्रमुख अखबार में आई खबर के अनुसार विभिन्न नगर निगमों में कोविड-19 से मृतक हुए कर्मियों में आधे सफाई कर्मचारी हैं| दहला देने वाला यह तथ्य इंगित करता है कि सरकारी और निजी क्षेत्रों में कोरोना महामारी से सबसे अधिक त्रस्त सफाई कर्मी ही रहे हैं।  

द इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि दक्षिणी दिल्ली नगर निगम में 29 में से 16, उत्तरी दिल्ली नगर निगम  में 49 में से 25 और पूर्वीदिल्ली  नगर निगम  में 16 में से 8 मौतें   सफाई कर्मचारियों की हुई हैं, जो कोरोना के दौरान काम कर रहे थे।

रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि लगभग 50,000 सफाई कर्मचारी तीन निगमों के स्थायी या अस्थायी कर्मचारी हैं ,जो  कोरोना महामारी के बाद से लगातर शहर में सफ़ाई का काम कर रहे है।  

इसमें कहा गया है कि शेष 45 मौतों में से 13 स्वास्थ्य कर्मियों थे , जिनमें पांच डॉक्टर भी शामिल हैं। दो डॉक्टर दक्षिणनगर निगम  से थे, एक पूर्वी दिल्ली नगर निगम के स्वामी दयानंद अस्पताल के थे, जबकि एक उत्तरी दिल्ली के  हिंदू राव अस्पताल में मेडिसिन के प्रोफेसर और वरिष्ठ मुख्य चिकित्सा अधिकारी थे। कोरोना  से शिक्षा विभाग के सात अधिकारियों की मौत हुई, जिनमें से कुछ राशन वितरण में भी लगे हुए थे। रिपोर्ट में कहा गया है कि चार शिक्षक, दो प्रिंसिपल और एक स्कूल अटेंडेंट  की भी मौत कोरोना के कारण हुई है।

पूर्वी दिल्ली के मेयर निर्मल जैन ने अखबार को बताया कि मंडल के प्रत्येक कर्मचारी जिनकी कोविड-19 से मृत्यु हुई है, उन्हें 10 लाख रुपये का मुआवजा दिया जाएगा और एक योजना तैयार की जा रही है ताकि उनके परिवारों में किसी एक को नौकरी  दी जा सके।

दिल्ली नगर निगम सफाई मजदूर संघ के प्रभारी राजेंद्र मेवाती ने कथित तौर पर कहा कि सुपरवाइजर  को मास्क दिए जाते हैं इसके बावजूद  शायद ही कभी कर्मचारियों को मास्क मिला हो। उन्होंने समाचार पत्र को बताया कि "इन चीजों के लिए उचित व्यवस्था होनी चाहिए। साथ ही, प्रत्येक सफ़ाई कर्मचारी को मौत के एक सप्ताह में 1 करोड़ रुपये का मुआवजा दिया जाना चाहिए और उनके आश्रितों के लिए स्थायी नौकरी दी जानी चाहिए। ज्यादातर ऐसा होता है कि एक या दो पीड़ितों को लाभ दे दिया जाता है, उनके परिवार के सदस्यों के  साथ फोटो खिचवाएं जाते हैं, जबकि अन्य लोगों की फाइलों को प्रक्रिया में रखा जाता है, जिससे अत्यधिक देरी होती है।”

पूर्वी दिल्ली के मेयर ने कहा कि पूर्वी एमसीडी में सात लोगों को पहले ही मुआवजा दिया जा चुका है और वे शेष मामलों में कागजी कार्रवाई का इंतजार कर रहे हैं।  

नॉर्थ एमसीडी के मेयर जय प्रकाश ने कहा कि वह यह सुनिश्चित करेंगे कि प्रत्येक परिवार के एक आश्रित को नौकरी मिले और पांच से दस लाख रुपये के राहत कोष की व्यवस्था की जा रही हो। उन्होंने कथित तौर पर कहा, "हम दिल्ली सरकार को एक फाइल भी भेज रहे हैं, जिसमें कोरोना  ड्यूटी पर मरने वालों के लिए 1 करोड़ रुपये की मांग की गई है।"

एसकेयू के नेता हरीश गौतम द्वारा जारी एक बयान में कहा गया कि सफाई कर्मियों की सुरक्षा में अनदेखी के पीछे समाज में व्यापक रूप से व्याप्त जातिवादी मानसिकता और वर्गीय भेदभाव हैं।  बहुसंख्यक सफाई कर्मी दलित समुदाय से आते हैं और बेहद खराब हालातों में काम करने और रहने के लिए मजबूर हैं। इन आर्थिक व सामाजिक अक्षमताओं के चलते ही वे सरकार व अधिकारियों की उदासीनता का शिकार होते हैं।

उन्होंने  कर्मचारियों की इस दशा के लिए ठेकाकरण को ज़िम्मेदार माना और कहा  "सभी सरकारी विभागों में सफाई कर्मचारियों की कान्ट्रैक्ट आधारित नियुक्ति उनके लिए और भी मुश्किलें खड़ी करती हैं।  अधिकतर सरकारी व निजी संस्थानों द्वारा ठेके पर नियुक्त किए गए सफाई कर्मियों को जरूरत अनुसार न तो मास्क उपलब्ध करवाए जा रहे हैं और न ही सैनिटाइज़र दिया जाता है। कोविड-19 की जांच करवाने में अनदेखी, जबरन काम पर बुलाया जाना बेहद आम है, जबकि जान का खतरा सभी को समान रूप से है।"

हरीश ने दिल्ली सरकार के तहत आने वाले अंबेडकर विश्वविद्यालय का उदाहरण देते हुए कहा कि "जहाँ विश्वविद्यालय अधिकारियों, दिल्ली के श्रम मंत्री, स्वास्थ्य मंत्री और मुख्यमंत्री को तमाम माध्यमों से सूचित करने के बावजूद, लगातार लापरवाही बनी हुई है। इसी तरह के हालात दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार की विभिन्न संस्थानों में भी देखने को मिल सकते हैं।"

एसकेयू ने प्रेस बयान के माध्यम से मांग उठाई  कि सभी सफाई कर्मचारियों के लिए स्थायी नौकरी के साथ महामारी भत्ता सुनिश्चित किया जाए। साथ ही, यदि कोई सफाई कामगार संक्रमित हों, तो उन्हें और उनके परिवारों को अनिवार्य रूप से इलाज मुहैया किया जाए। इसके अतिरिक्त, उन सभी सफाई कर्मचारियों के परिवारों को 1 करोड़ मुआवज़ा और परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी दी जाए, जिनकी महामारी के दौरान मृत्यु हुई है, और टीकाकरण प्रक्रिया में सफाई कामगारों को प्राथमिकता दी जाए।

इसके साथ ही सफाई कामगार यूनियन ने राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग को भी एक ज्ञापन भेजा है और कहा है कि वो  प्रण लेते हैं कि आने वाले दिनों में सफाई कर्मचारी के प्रति उदासीनता के खिलाफ अपना आन्दोलन तेज़ करेंगे।

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