सबके अपने-अपने राम!
आज दशहरा है यानी विजयादशमी। पौराणिक मान्यता के अनुसार आज के रोज़ राम ने रावण का वध किया था। कहीं-कहीं इसे महिषासुर वध के रूप में मनाते हैं। वर्षों से यह परंपरा चली आ रही है किंतु उसके अच्छे-बुरे पहलुओं को समझने का प्रयास कभी नहीं किया गया। राम के चरित्र का उज्ज्वल पक्ष क्या है और स्याह पक्ष कौन-सा है, जब तक यह नहीं समझा जाएगा, तब तक इस तरह लकीर पीटने से क्या फ़ायदा! नौ दिन तक राम लीला हुई और दसवें दिन रावण फुँक गया। बस क़िस्सा ख़त्म। होना तो यह चाहिए, कि इस पूरे आख्यान को भारत में उखड़ती हुई मातृसत्ता और पनपते हुए सामन्तवाद के रूप में देखे जाने का प्रयास किया जाता। तब शायद हम अधिक बेहतर ढंग से अपने पुराणों को समझ पाते। लेकिन इसके बावजूद राम के चरित्र का एक अत्यंत उज्ज्वल पक्ष हम नहीं देख पाते और वह है राम के द्वारा शत्रु पक्ष के प्रति अपनायी गई नीति। राम ने विभीषण को बिना किसी लाभ के शरण दी थी। वह तो बाद में विभीषण उनके लिए उपयोगी बना।
कम्बन रामायण का एक प्रसंग है। विभीषण राम की शरण में आए हैं, मंथन चल रहा है कि इन पर भरोसा किया जाए या नहीं। सुग्रीव भी तय नहीं कर पा रहे हैं न जामवंत। कई वानर वीर तो विभीषण को साथ लेने के घोर विरोधी है, उनका कहना है कि राक्षसों को कोई भरोसा नहीं। क्या पता रावण ने कोई भेदिया भेजा हो। राम को विभीषण की बातों से सच्चाई तो झलकती है, लेकिन राम अपनी ही राय थोपना नहीं चाहते। वे चुप बैठे सब को सुन रहे हैं। सिर्फ बालि का पुत्र अंगद ही इस राय का है कि विभीषण पर भरोसा किया जाए। तब राम ने हनुमान की ओर देखा। हनुमान अत्यंत विनम्र स्वर में बोले- “प्रभु आप हमसे क्यों अभिप्राय मांगते हैं? स्वयं गुरु वृहस्पति भी आपसे अधिक समझदार नहीं हो सकते। लेकिन मेरा मानना है कि विभीषण को अपने पक्ष में शामिल करने में कोई डर नहीं है। क्योंकि यदि वह हमारा अहित करना चाहता तो छिपकर आता, इस प्रकार खुल्लम-खुल्ला न आता। हमारे मित्र कहते हैं कि शत्रु पक्ष से जो इस प्रकार अचानक हमारे पास आता है, उस पर भरोसा कैसे किया जाए! किन्तु यदि कोई अपने भाई के दुर्गुणों को देखकर उसे चाहना छोड़ दे तो इसमें आश्चर्य की क्या बात है। आपकी महिमा से विभीषण प्रभावित हो, तो इसमें आश्चर्य कैसा! परिस्थितियों को देखते हुए मुझे विभीषण पर किसी प्रकार की शंका नहीं होती”। अब राम चाहते तो विभीषण के बारे में अपना फैसला सुना देते, लेकिन उन्होंने अपने समस्त सहयोगियों की राय ली। यही उनकी महानता है और सबकी राय को ग्रहण करने की क्षमता। वे वानर वीरों को भी अपने बराबर का सम्मान देते हैं। (कंबन की तमिल रामायण का यह अंश, चक्रवर्ती राज गोपालाचारी की पुस्तक दशरथ-नंदन श्रीराम से है। चक्रवर्ती जी की इस अंग्रेजी पुस्तक का हिंदी अनुवाद उनकी पुत्री और महात्मा गाँधी की पुत्रवधू लक्ष्मी देवदास गाँधी ने किया है)
राम का यह चरित्र एकाएक उन्हें शत्रुओं के प्रति उदार बना देता है। आज के संदर्भ में देखिए, कि जब हम नागरिकता की सीमाएँ बाँध रहे हों। साफ़ कह रहे हों कि सारे शरणार्थी स्वीकार हैं बस मुसलमान शरणार्थियों को नागरिकता नहीं देंगे, तब यह प्रश्न खड़ा होता है कि राम के चरित्र से हमने क्या सीखा। दरअसल समाज में सदैव दो तरह के लोग होते हैं। एक लिबरल जो सामाजिक उदारवाद के हामी होते हैं। वे ऊँच-नीच की भावना से परे और समाज में पिछड़ चुके लोगों के उत्थान के लिए प्रयासरत रहते हैं। ये लोग थोथी नैतिकता के विरोधी तथा प्रेम और सौहार्द को बढ़ावा देते हैं। दूसरे वे जिन्हें कट्टरपंथी कहा जाता है। ये लोग प्राचीन मान्यताओं को जस की तस अमल में लाने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं और मानते हैं कि समाज में ऊँच-नीच तो विधि का विधान है। पिछड़े और वंचित तबके के प्रति इनका व्यवहार दुराग्रही होता व स्त्रियों को खुल कर जीने या जाति, बिरादरी अथवा समुदाय से बाहर जा कर विवाह करने की छूट देने के विरोधी होते हैं। ठीक इसी के अनुरूप इस तरह के लोगों के अपने-अपने राजनीतिक दल होते हैं। मोटे तौर पर इन्हें लिबरल और कंजरवेटिव कह सकते हैं। लेकिन कोई भी समाज विकास तब ही करता है, जब उसके अंदर लिबरल विचार के लोगों की बढ़त हो। कोई धार्मिक है या अधार्मिक अथवा आस्तिक है या नास्तिक इससे कुछ फ़र्क़ नहीं पड़ता। धार्मिक होकर भी व्यक्ति सामाजिक रूप से उदार हो सकता है और एकदम नास्तिक होकर भी वह कट्टरपंथी विचारों का पैरोकार। असल बात है कि वह चीजों को लेता किस तरह है।
फ़्रेडरिक एंगेल्स ने अपनी पुस्तक “परिवार, निजी सम्पत्ति और राज्य का उदय” में ग्रीक पुराणों में वर्णित स्त्री-पुरुष संबंधों की नैतिकता पर टिप्पणी करते हुए लिखा है कि उस समय के समाज के मूल्यों और नैतिकता को आज के नैतिक मूल्यों से जोड़ कर हम व्याख्यायित करें तो इसका अर्थ है कि हम खुद अनैतिक हैं। इसी तरह विश्वनाथ काशीनाथ रजवाड़े ने ‘भारतीय विवाह परंपरा का इतिहास’ में लिखा है कि समाज और उसके मूल्य उत्तरोत्तर तरक़्क़ी करते हैं। जो कल नैतिक था, वह आज अनैतिक है। किंतु भारतीय समाज का कट्टरपंथी तबके में अपने मिथकीय चरित्रों से इतना मोह है कि वह प्राचीन मूल्यों को ढोने को आतुर है। आज के त्योहारी सीजन में तो यही दिखता है। नवरात्रि में लोगों को अपने पौराणिक चरित्रों के साथ ऐसी आसक्ति जागती है, जैसे उनका वश चले तो उन चरित्रों को जीवंत कर दें। लेकिन सिर्फ़ दिखावे के तौर पर क्योंकि यह उन्हें भी पता है कि उन पौराणिक चरित्रों की नैतिकता आज के समय के लिए क़तई व्यावहारिक नहीं हैं।
इसलिए हमें अपने पौराणिक चरित्रों को भी इतिहास और समाज के बदलते मूल्यों के संदर्भ में लेना चाहिए। समाज बदलता है तो मूल्य और नैतिकता भी। आज हम उस प्रागऐतिहासिक काल से बहुत आगे बढ़ गए हैं। इसीलिए अब मिथकों के काल में जीने का मतलब है कि हम हज़ारों वर्ष पीछे जा रहे हैं। हमें यह स्वीकार करना ही होगा कि राम ऐतिहासिक पुरुष तो नहीं थे किंतु वे अपने समय की सत्ता को स्थापित कर रहे थे। वह समय था स्त्री-पतन का और दासत्त्व को स्थापित करने का। दुनिया भर में पराजित लोगों को स्लेव या दास बनाए जाने के उदाहरण मिलते हैं। इसीलिए ताड़का वध से लेकर शूर्पणखा के नाक-कान काटने के क़िस्से वाल्मीकि रामायण में हैं तो सीता की अग्नि परीक्षा, सीता वनवास के भी। लेकिन परवर्ती रामायणों में उस समय के मानकों के अनुसार बहुत सारे प्रसंग ग़ायब होते रहे। जैसे अग्नि परीक्षा को तुलसी दास ने माया करार दिया और सीता वनवास को वे गोल कर गए। तमिल कवि कम्बन (12वीं शताब्दी) ने कई प्रसंग हटा दिए और कई जोड़ दिए। ऐसा ही कई अन्य रामायणों में भी हुआ।
लेकिन राम के चरित्र के साथ शम्बूक वध भी जुड़ा और स्त्रियों के प्रति दोयम दर्जा अपनाने का भाव भी। हर रामायण में वे प्रजा वत्सल और समदर्शी व न्यायी कहे गए हैं, फिर उनका चरित्र शूद्र व स्त्री के प्रति भेद-भाव वाला कैसे रहा, इसका जवाब किसी के पास नहीं है। इसलिए फ़्रेडरिक एंगेल्स की तरह इस सच्चाई को स्वीकार करिए कि राम के आदर्श आज के लिए उपयुक्त नहीं हैं। हमें उन्हीं को लेना चाहिए जो चिरंतन सत्य हैं। जो हमें शरण में आए व्यक्ति की रक्षा की प्रेरणा देते हैं। जहां शत्रु रावण के प्रति भी आदर का भाव है इसीलिए राम अपने भई लक्ष्मण को युद्ध में घायल पड़े रावण के पास भेजते हैं कि लक्ष्मण! आज विश्व का सबसे बड़ा विद्वान और बलशाली नरेश मरणासन्न है, जा कर उससे कुछ ज्ञान लो। ऐसे राम सदैव लुभाते रहेंगे। धनुर्धारी और राक्षसों और निरीह वानरों का अकारण वध करने वाले, महिला के नाक-कान काटने वाले, पत्नी के सतीत्त्व की अग्नि परीक्षा लेने वाले राम से विरक्ति रहेगी।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)
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