फ़ैक्ट फ़ाइंडिग रिपोर्ट: “समुदाय विशेष पर हुए सुनियोजित हमले, पुलिस-प्रशासन की भूमिका संदिग्ध”
बिहार शरीफ में रामनवमी की शोभायात्रा के दौरान कुछ असामाजिक तत्वों द्वारा दिनदहाड़े जला दिए गए चर्चित और ऐतिहासिक अजीजिया मदरसा और पुस्तकालय की राख़ से उठ रहे सवालों की चिंगारियां ठंढी होने का नाम ही नहीं ले रही हैं। सीपीआईएमएल और ऐपवा ने कहा कि जिस पुलिस प्रशासन ने 9 अप्रैल के दिन इस घटना की जांच करने बिहार शरीफ पहुंचे उसके राष्ट्रीय नेताओं और विधायक को अघोषित “हाउस एरेस्ट” कर पार्टी कार्यालय से बाहर निकालने नहीं दिया था उसने दूसरे ही दिन मीडिया को बयान जारी कर मामले के दोषियों पर मुकदमा करने और गिरफ्तारी की जानकारी देने की अपनी सक्रियता दिखाई लेकिन वो जितनी क़वायद कर ले, सवालों से नहीं बच पा रहा है।
बिहार शरीफ़ पुलिस-प्रशासन की इस नाटकीय सक्रियता का भंडाफोड़ करते हुए ऐपवा-माले की जांच टीम को जब पुलिस ने पार्टी कार्यालय से बाहर नहीं निकलने दिया तो उन्होंने पार्टी के कार्यकर्ताओं को भेजकर कुछ पीड़ितों को वहीँ बुलाकर उनके बयान सुने। जिसके आधार पर पार्टी की ओर से मुखरता के साथ ये मांग उठायी गई कि रामनवमी की शोभायात्रा के दौरान बिहार शरीफ में “समुदाय विशेष के लोगों” पर हुए सुनियोजित हमले और अजीजिया मदरसा व पुस्तकालय जलाए जाने की घटना के लिए पुलिस-प्रशासन की संदिग्ध भूमिका की अविलंब जांच हो और साथ ही जिले के एसपी के खिलाफ त्वरित कार्रवाई हो।
गौरतलब है कि गत 31 मार्च को बिहार शरीफ में हुए सांप्रदायिक हिंसा की जांच के लिए राजधानी पटना से ऐपवा-माले की उच्चस्तरीय जांच टीम बिहार शरीफ़ पहुंची थी। जिसका नेतृत्व बिहार विधान सभा में माले के विधायक गोपाल रविदास, ऐपवा राष्ट्रीय महासचिव मीना तिवारी, राज्य सचिव शशि यादव, जूही निशां व अफसाज़बीं इत्यादि कर रही थीं।
जांच टीम को पीड़ितों ने अपनी दर्द भरी गाथा के साथ-साथ पूरे मामले में पुलिस-प्रशासन की एकतरफ़ा कार्रवाई की जानकारी दी। उनके अनुसार "उस दिन रामनवमी के मद्देनज़र पूरे शहर में धारा 144 के तहत पूरी तरह से निषेधाज्ञा लागू थी फिर भी 1 अप्रैल को दंगाइयों के जुलूस ने उन्माद भरे धार्मिक नारे लगाते हुए और हथियार लहराते हुए पूरे शहर में खुलकर तांडव मचाया। मुस्लिमों की दर्जनों दुकानें लूट कर आगजनी-फायरिंग की गयीं। सारा कृत्य पुलिस की आंखों के सामने ही हुआ। उन्मादी दंगाई जब मुसलमानों को टार्गेट कर हमले कर रहे थे तो आस पास के हिंदुओं ने जान पर खेलकर सभी मुसलमानों के जानो-माल की रक्षा की। जिससे हिंसा-उन्माद का बड़ा खेल नहीं सफल हो सका।"
हिंसा के शिकार हुए लोगों द्वारा दी गई जानकारियों के आधार पर जांच टीम के सदस्यों ने तीखा आरोप लगाया कि "बेहद सुनियोजित ढंग से मुस्लिम समुदाय पर हमले के साथ-साथ दंगाइयों ने ऐतिहासिक अजीजिया मदरसा और पुस्तकालय को पूरी तरह से जलाकर नष्ट कर दिया है। उक्त कांड को अंजाम देनेवाले दंगाई बजरंग दल, विश्व हिंदू परिषद और आरएसएस के कार्यकर्ता-नेता हैं। जिसमें स्थानीय भाजपा विधायक की भी अहम भूमिका रही है। उन्मादी जब मुसलमानों की दुकानें-घरों को लूट कर आगजनी कर रहे थे तो मौके पर से पुलिस-प्रशासन पूरी तरह से नदारद रहा। लेकिन दूसरी ओर, स्थानीय हिंदू निवासियों ने मुसलमानों की जान बचा कर मानवता की मिसाल पेश की।"
पीयूसीएल की जांच टीम भी घटना स्थल पर जा चुकी है जिसकी रिपोर्ट भी जारी होनी है।
ऐपवा और भाकपा माले की जांच टीम की बातें और सारे निष्कर्ष लगभग वही सामने आये जो गत 10 अप्रैल को पीयूसीएएल के सरफराज ने 4 अप्रैल को राजधानी पटना स्थित आईएम्ए सभागार में कही। एआईपीएफ द्वारा आयोजित “फ़ासीवाद विरोधी परिचर्चा’ में उन्होंने बोलते हुए गहरी पीड़ा के साथ खुलकर कहा कि, “उस दिन शहर में हर तरफ तनाव का माहौल बना हुआ था। जाने क्यों हर बार की तरह इस बार शहर के संवेदनशील इलाकों में सशत्र पुलिस बल की बजाय निहत्थे होमगार्ड की ड्यूटी लगा दी गयी थी। उत्पाती आये और एक जत्था बाहर खड़े होकर उन्मादी धार्मिक नारे लगाता रहा। जत्थे के कुछ लोगों ने मदरसा के गेट का ताला तोड़वाया और सभी घुस गए और आग लगा दी। उसके बाद पुस्तकालय में भी आग लगा दी गयी।
जांच टीम ने कहा कि "बेहद नाटकीय अंदाज़ में उस समय पुलिस प्रशासन वहां से पूरी तरह से नदारद रहा। दंगाई थोड़ी दूर पर मौजूद मस्जिद में भी आग लगाना चाह रहे थे। गनीमत थी कि उस समय उसमें नमाज़ पढ़ रहे काफी लोग मौजूद थे। सबों ने एकजुट होकर प्रतिकार किया तो दंगाइयों को पीछे हटना पड़ा। व्हाट्सएप से अफ़वाह फैलाई गयी कि मदरसा से कुछ लोगों ने रामनवमी जुलूस पर पत्थर चलाये। जबकि उस दिन जुमा (शुक्रवार) होने के कारण मदरसा बंद था, तो पत्थर किसने चलाये? जांच कर ली जाय। उक्त सिहरा देनेवाली जानकारी खुद पीयूसीएल के युवा एक्टिविस्ट सरफराज़ ने 4 अप्रैल को पटना के आईएम्ए हॉल में एआईपीएफ़ द्वारा आयोजित ‘फ़ासीवाद विरोधी परिचर्चा’ को संबोधित करते हुए दी थी। जो बिहार शरीफ़ स्थित उस मदरसा में वहां के विद्यार्थियों को बिहार सरकार की नयी तालीम-योजना के तहत वहां शैक्षिक कार्य करते हैं।"
सनद रहे कि बिहार शरीफ स्थित अजीजिया मदरसा लगभग 100 बरस से भी अधिक पुराना है। इसके बारे में बताया जाता है कि इस मदरसा की संस्थापक बीबी सोगरा ने अपने पति मौलवी अज़ीज़ के नाम पर खोला था। मौलवी अज़ीज़ 1857 के ग़दर के समय अंग्रेजों की सरकारी नौकरी को छोड़कर वे देश के स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े थे। उनके निधन के उपरांत सारा ज़िम्मा उनकी पत्नी सोगरा बीबी ने उठाया। यह भी कहा जाता है कि सोगरा बीबी उस समय की पहली शिक्षाविद रहीं। अजीजिया मदरसा में 45,000 से भी अधिक धर्म ग्रंथ और हजारों किताबें थीं जिन्हें जला दिया गया। वस्तानिया से लेकर फाज़िल तक की नियमित पढ़ाई होती रही। इसके अलावा कुरान, हदीस व फ़िक़ह के साथ साथ हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू, अरबी, गणित और भूगोल की भी पढ़ाई होती थी। जिसमें 500 से भी अधिक छात्र-छात्राएं पढ़ाई करते थे। लेकिन आज यहां सब कुछ जला कर राख किया जा चुका है और इसके साथ ही सब कुछ नष्ट की जा चुकी है। यह देश की गंगा-जमुनी तहज़ीब, अल्पसंख्यकों की जीवंत पहचान के साथ-साथ आला दर्जे के शिक्षा केंद्र के रूप में स्थापित रहा है।
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