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दिल्ली के गरीब भूखे और हताश हैं, उनके पेट में भूख की 'आग' जल रही है

राशन कार्ड नहीं होने और दिल्ली सरकार की खाद्य सुरक्षा योजना में ख़ामियां होने से पीडीएस योजना के ग़ैर-लाभार्थी लोग भयंकर भुखमरी के शिकार बने हुए हैं।
hunger crisis

नई दिल्ली: बढ़ते कर्ज़, महीनों का बकाया किराया, बेटी की शादी के लिए लिया गया कर्ज़ और अपने दो बेटों की शिक्षा पर होने वाले खर्च ने, हसनारा बेगम की रातों की नींद हराम कर रखी है और उसका परिवार दैनिक भोजन के इंतजाम के लिए संघर्ष कर रहा है।

पश्चिम बंगाल के उत्तर दिनाजपुर की रहने वाली हसनारा बेगम दिल्ली के उन लाखों निवासियों में शामिल हैं जिनके पास राशन कार्ड नहीं है। “हम 10 साल से अधिक समय पहले दिल्ली  आए थे, लेकिन अभी भी कोई सरकारी लाभ नहीं मिल रहा है। महामारी के बाद से हमारा जीवन नर्क़ हो गया है। वे कहती हैं कि, मैं लोगों के घरों में काम करती हूं लेकिन अब कुछ ही घर मुझे रोजगार दे पाते हैं। मेरे बेटे दिल्ली से वापस नहीं जाना चाहते हैं; वे यहाँ पढ़ना चाहते हैं।”

हसनारा कहती हैं, “अगर हमें कम से कम नियमित रूप से मुफ्त राशन मिले जाए, तो जीवन थोड़ा बेहतर हो सकता है,” जिनके पति, एक दिहाड़ी मजदूर हैं और बढ़ते प्रदूषण के कारण निर्माण कार्य पर प्रतिबंध है जिसके चलते उनकी आजीविका बंद हो गई है।

हसनारा बेगम और उनके पति महीनों से क़र्ज़ से जूझ रहे हैं। महामारी के दौरान दंपति के पास महीनों तक कोई काम नहीं था। आज भी काम काफी अव्यवस्थित है।

2021 के ग्लोबल हंगर इंडेक्स के अनुसार, भारत 27.5 के स्कोर के साथ 116 देशों में 101वें स्थान पर आया है, जिसका मतलब है कि देश के भीतर भूख की स्थिति काफी 'गंभीर' है।

जैसा कि पिछले साल राष्ट्रीय राजधानी में महामारी के कारण लाखों लोग बिना आमदनी के रह गए थे, अरविंद केजरीवाल सरकार ने गैर-पीडीएस लोगों के लिए 69.60 लाख ई-कूपन के माध्यम से खाद्यान्न वितरित करने का प्रावधान किया था। इस साल मई में, दिल्ली सरकार ने घोषणा की कि वह सार्वजनिक वितरण प्रणाली के 40 लाख गैर-लाभार्थियों को 4 किलो गेहूं और 1 किलो चावल उपलब्ध कराएगी।

भारी संख्या में लोग सार्वजनिक वितरण प्रणाली योजना से बाहर हैं, यहां तक कि इसके लाभार्थी भी बुनियादी खाद्य पदार्थों को हासिल करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। बेहद दुखी हसनारा ने बताया कि “दूसरे दिन, मैं हौज़ रानी के एक स्कूल में पाँच घंटे तक कतार में खड़ी रही। जब दोपहर 2 बजे के आसपास मेरी बारी आई, तो मुझे बताया गया कि स्टॉक खत्म हो गया है, और अनाज आने पर मुझसे संपर्क किया जाएगा।”

कई महीनों से स्कूल बंद होने के कारण उनके बेटों के लिए मध्याह्न भोजन की सुविधा भी समाप्त हो गई है। पश्चिम बंगाल में अपने लेनदारों की अंतहीन कॉल पर बात करना बंद कर चुकी हसनारा कहती हैं, "एकमात्र बचत या दया यह है कि मेरे मकान मालिक मुझे किराए के लिए परेशान नहीं करते हैं।" "मैं और क्या कर सकती हुँ?"।

राजधानी में खाद्य असुरक्षा के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे 30 संगठनों के नेटवर्क दिल्ली रोजी रोटी अभियान (डीआरआरए) ने हाल ही में केजरीवाल को पत्र लिखकर पीडीएस के गैर-लाभार्थियों के लिए राशन की अनुपलब्धता पर प्रकाश डाला है। डीआरआरए के कार्यकर्ताओं ने राशन वितरण के लिए नामित 282 स्कूलों में से 106 में वितरण की स्थिति की जाँच की है। उन्होंने यह भी बताया कि स्टॉक और राशन उपलब्ध कराने में सरकार की विफलता सीधे-सीधे सुप्रीम कोर्ट और दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेशों का उल्लंघन है।

इसमें “सबसे बड़ी समस्या एक सार्वभौमिक खाद्य सुरक्षा और सामाजिक सुरक्षा तंत्र की कमी की है। दिल्ली की सिर्फ 37 फीसदी आबादी के पास ही राशन कार्ड हैं। लगभग 70-80 प्रतिशत लोगों को विशेष रूप से संकट के समय में सरकार की सहायता की जरूरत होती है, उनकी आय अभी भी पूर्व-महामारी के स्तर से नीचे है, ”खाद्य अधिकार कार्यकर्ता अमृता जौहरी ने उक्त बातें बताई। 

जौहरी कहती हैं कि, कार्यक्रम का कार्यान्वयन "इतना खराब रहा है कि खाद्यान्न की उपलब्धता की भविष्यवाणी करना मुश्किल है। सरकार को खाद्य भंडार की उपलब्धता के बारे में पारदर्शी होना चाहिए।”

अनिश्चितता के माहौल में रहना 

सोलह वर्षीय रेशमा, जो हसनारा से कुछ घर दूर रहती है, और उसकी 14 वर्षीय बहन मुस्कान, कक्षा के साथ-साथ उनके कामों में हाथ बंटाती है। “मेरे पति टाइल्स पॉलिश करते हैं लेकिन कोई काम नहीं है। अगर हमें कम से कम हर महीने राशन मिल जाए तो यह बहुत बड़ी मदद होगी। हमने महीनों से किराया नहीं दिया है। हमें पता नहीं है कि हमें क्या करना चाहिए, ”उनकी माँ नजमा कहती हैं कि रेशमा मुस्कान की मदद से चपाती बनाने के बाद गैस चूल्हे को खुरचती है।

नजमा की यह चिंता अकारण नहीं है कि उसका परिवार, जिसके पास राशन कार्ड नहीं है, कैसे ज़िंदा रहेगा, उन्हें इस वर्ष केवल दो बार राशन मिला है। 

नजमा इस बात के लिए हमेश चिंतित रहती है कि वे अपनी बेटियों का पेट कैसे पालेगी। वे कई महीनों से अपना किराया नहीं दे पा रही है। बढ़ता कर्ज भी उन्हे परेशान कर रहा है।

नुजहत बानो और रामबेटी जोकि क्रमश बिहार और उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं, ने राशन की कमी के कारण खुद के भोजन की खपत में भारी कमी कर दी है।

नुजहत बानो जोकि अपने 6, 5 और 3 साल की उम्र के बच्चों के पोषण के बारे में काफी चिंतित है, कहती हैं, “मेरे पति बिसलेरी का पानी बेचते हैं। लेकिन सर्दी के कारण पानी की मांग में तेजी से गिरावट आई है। मेरे बच्चे इतने छोटे हैं कि मैं काम नहीं कर सकती हूं। हम राशन पर निर्भर नहीं रह सकते। पिछले साल से हमें सिर्फ तीन बार अनाज मिला है। मैं अपने बच्चों को कैसे खिलाऊंगी"।

खाद्य अधिकार कार्यकर्ता अंजली भारद्वाज को लगता है कि कार्यक्रम को लागू करने में खामियों के अलावा, यह स्पष्ट नहीं है कि एक व्यक्ति को कितनी बार राशन मिल सकता है। “झुग्गीवासी असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं, जिनमें से कई प्रवासी श्रमिक हैं। बढ़ती बेरोजगारी और महंगाई को देखते हुए इन परिवारों के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की जानी चाहिए।'

भारद्वाज ने कहा कि कार्यक्रम काफी अस्पष्ट है। “भूखे लोगों वापस कर देना, उन्हे अनाज न देकर लाभार्थियों की संख्या पर एक मनमानी सीमा थोपी हुई है। सरकार ने न तो नीति स्पष्ट की है और न ही लोगों की शिकायतों का समाधान किया है।

पीडीएस के गैर-लाभार्थियों के सामने आने वाली चुनौतियों पर दिल्ली के खाद्य आपूर्ति मंत्री इमरान हुसैन के कार्यालय में बार-बार फोन करने के बावजूद कोई जवाब नहीं मिला है।

'मैं भूखी सोती हूं' 

रानी को खुद की उम्र नहीं पता है। उसकी पोतियों का कहना है कि वह अपनी उम्र के मध्य या 60 के दशक के अंत में होगी। वे कहती हैं, अपनी बड़ी पोती और उसके पति से कभी-कभार सहायता के अलावा आय का कोई स्रोत नहीं होने के कारण, रानी अधिकांश दिनों में भूखी रहती है। “मेरे पति और बेटे दोनों का निधन हो गया है। मैं क्या कर सकती हूं? मैं भूखी सोती हूं।“

वह जो कुछ भी इंतजाम कर पाती है, रानी उसे अपनी छोटी बेटी के लिए अलग रख देती है। “मैंने आज उसे कुछ अंडे और चपातियाँ खिलाईं। वह कल पड़ोसी के घर में खेलते समय गंभीर रूप से झुलस गई थी। मेरे अलावा उसका कोई नहीं है।"

रानी ने कहा कि वह ज्यादातर दिन भूखी सोती हैं। वह अपनी छोटी पोती के लिए भोजन का इंतजाम करने  की कोशिश करती है।

अरविंद सिंह, तकनीकी सलाहकार, पोषण, मातृ सुधा, ने बताया कि कैसे महामारी ने खाद्य सुरक्षा के लिए एक गंभीर खतरा पैदा कर दिया है, खासकर उन लोगों के लिए जो पीडीएस के दायरे में नहीं आते हैं। “सार्वजनिक वितरण प्रणाली का विस्तार करना खाद्य सुरक्षा संकट से निपटने का एक मात्र तरीका है। पीडीएस कवरेज काफी अपर्याप्त है। दिल्ली को एक सार्वजनिक वितरण प्रणाली के बारे में सोचना चाहिए जो सबसे गरीब और प्राथमिकता वाले परिवारों को मदद कर सके।”

लेखिका नई दिल्ली स्थित एक स्वतंत्र पत्रकार हैं। व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Famished and Frustrated, Delhi’s Poor Have Raging ‘Fire’ in Their Bellies

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