ग्राउंड रिपोर्ट: देश का पसंदीदा ‘हिमाचली सेब’... बागवान के लिए क्यों होता जा रहा है घाटे का सौदा
हिमाचल प्रदेश के अंदर जब बड़े स्तर पर रोज़गार की बात आती है, या फिर प्रदेश की आर्थिक स्थिति में भागीदारी की बात की जाती है... तो सबसे पहला स्थान सेब कारोबार को मिलता है। क्योंकि सेब की फसल हिमाचल का वो हिस्सा है, जिसमें बागवान, आढ़ती, व्यापारी, ट्रक ऑपरेटर, चालक और मज़दूर समेत तमाम तबके अपनी अजीविका तलाशते हैं।
कार्टन की बात हो या ट्रे की, सेब के पेड़ों में छिड़की जाने वाली दवा हो या फिर खाद के विक्रेता, चाहे बागों को बचाने वाली जालियों को बुनने वाले कारीगर हों... एक बड़ा तबका सेब के सहारे अपना जीवन गुज़ार देता है।
कहने को हिमाचल प्रदेश के शिमला, कुल्लू, मंडी, किन्नौर, सिरमौर, चंबा और सोलन में ही सेब के बागान हैं, लेकिन यही सात ज़िले पूरे देश में सेब की 21 प्रतिशत आपूर्ति करते हैं। यानी आप अंदाज़ा लगा सकते हैं, कि हिमाचल प्रदेश में पैदा किया जाने वाला सेब प्रदेश की आर्थिकी के लिए कितना ज़रूरी है, और यही कारण है कि यहां के किसानों के साथ तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र के लदानियों और व्यापारियों से लेकर नेपाल तक का मजदूर इसी पर निर्भर है।
सेब के इन्ही बागवानों और इसके ज़रिए अपना जीवन यापन करने वालों के बीच पहुंचकर न्यूज़क्लिक ने जब असली नब्ज़ टटोलनी चाही, तब व्यापार के भीतर की सच्चाई कुछ और ही नज़र आने लगी। जिसकी पूरी कहानी हिमाचल सेब उत्पादक संघ के अध्यक्ष सोहन सिंह ठाकुर ने बताई। उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश में 5000 करोड़ की इकोनॉमी सेब की है, ये अपने आप में एक बहुत बड़ा रोज़गार देता है, लेकिन सरकार की अनदेखी के चलते ये संकट में जा रही है। बागवानी में इस्तेमाल होने वाली चीजें, जैसे खाद, बीज, दवाई, की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं, जो 25 फीसदी इनपुट कॉस्ट थी वो 60 फीसदी पर चली गई है, जिससे किसानों को नुकसान हो रहा है। खाद और दवाई में मिलने वाला अनुदान बिल्कुल खत्म कर दिया है।
सेब व्यापार में हो रही सरकारी धांधलियों और किसानों की परेशानी को और ज्यादा जानने के लिए हमने किसान सभा और संयुक्त किसान मंच के सदस्य पंकज वर्मा से बात की, उनके मुताबिक जो इनपुट कॉस्ट है वो लगातार बढ़ रही है, सब्सिडी में सरकार ने हाथ पीछे खींच लिए हैं, जिसके कारण बड़े कॉरपोरेट घरानों को फायदा हो रहा है, किसान कर्ज के नीचे दब रहा है। उन्होंने आंशका जताई कि जिस तरह से सेब के व्यापार ख़राब हो रहे हैं, उससे किसान कब आत्महत्या की ओर चला जाए कुछ पता नहीं। उन्होंने बताया कि इस साल सेब बिल्कुल रद्दी के भाव बिका है, सरकार को सकारात्मक स्टेप लेना चाहिए। कोल्ड स्टोरेज को सार्वजनिक क्षेत्र में करना चाहिए, ताकि सेब की बागवानी को फायदा हो।
बीते वर्षों में सेब की खेती, व्यापार में किस तरह के बदलाव आया है, मौजूदा वक्त में सेब किन दामों में बेचे जा रहे हैं, इसे लेकर हमने शरोक ग्राम पंचायत के उपप्रधान बालानंद से बातचीत की, बालानंद ने बताया कि वो करीब 55 सालों से सेब की खेती देख रहे हैं, लेकिन अब वो बात नहीं रह गई जो पहले हुई करती थी। यानी जहां हर किसी की खेती सेब पर ही निर्भर है, वहां आज की सरकार उचित दाम के लिए प्रबंध नहीं कर रही। उन्होंने बताया कि लेबर का भी खर्चा नहीं मिल पा रहा है। सरकार द्वारा अनुदान भी बंद कर दिया गया, और सिर्फ 9-10 रुपये में सेब खरीद रहे हैं। पेटियों के दाम बढ़ा दिए हैं, कार्टन की कीमतें बढ़ा दी हैं।
आख़िर में हमने एक ऐसे एडवोकेट से बात की, जिनका परिवार सेब की खेती करता है। न्यूज़क्लिक के साथ बातचीत में एडवोकेट बालकिशन बाली बताते हैं कि हमारे कार्टन, जिसमें सेब भरते हैं, उसकी कीमत हर साल बढ़ जाती है, इसके साथ एक बॉक्स पर 18 प्रतिशत जीएसटी सरकार लेती है। जिसके कारण किसान परेशान है। जो सेब की दवाइयां है, हर दिन उसके दाम बढ़ रहे हैं। जिसकी वजह से खेती पर संकट आ गया है। सरकार से निवेदन है कि 5000 करोड़ की आर्थिकी को बचाने के लिए किसानों की सब्सिडी बहाल करे, ताकि किसान अपनी खेती बचा सकें।
सेब व्यापार से जुड़े लोगों की ज़ुबानी ये साफ बयां करती है, कि सरकार का ध्यान इस ओर बिल्कुल भी नहीं है। इन बयानों के अलावा आप को भी मालूम होने बेहद ज़रूरी है कि जो सेब प्रदेश के कोल्ड स्टोरेज में रखा जाता है, भले ही वो ए ग्रेड का ही क्यों न हो, औने पौने दाम में खरीदा जाता है, जिसका औसत दाम 50 रुपये होता है। और इसी सेब को कंज्यूमर एंड पर तीन से साढ़े तीन सौ रुपये किलो बेचा जाता है। यानी सरकार ने बागान और कंज्यूमर के बीच रेट की जो खाई पैदा कर दी है, उसे अगर नहीं भरा गया तो इसका असर आने वाले वक्त में प्रदेश की आर्थिक स्थिति पर पड़ा सकता है।
आपको बता दें कि जब हम बागानों में पहुंचे, लोगों से बात की, उन्होंने तो शिकायत के साथ अपनी कई मांगे रखी हीं, साथ में वहां मौजूद अन्य लोगों ने भी बताया कि वो सरकार से क्या चाहते हैं।
सेब व्यापार के लिए प्रमुख मांगे
- सेब का लाभकारी मूल्य होना चाहिए।
- स्वामीनाथन कमीशन की रिपोर्ट लागू होनी चाहिए।
- विदेश से आने वाले सेबों पर 100 प्रतिशत एक्साइज़ होना चाहिए।
- यूनिवर्सल कार्टन को अनिवार्य करना चाहिए।
- दवाओं या अन्य उपकरणों पर सब्सिडी की बहाली की जानी चाहिए।
- राज्य में सेब के बड़े-बड़े उद्योग लगने चाहिए।
- किसान आसानी से सेब बेच सके इसके लिए कॉपरेटिव लेवल पर स्टोर होने चाहिए।
इन मांगों और शिकायतों के अलावा कुछ का ये भी कहना था कि बेमौसम गर्मी और फिर हद से ज्यादा बरसात भी फसल को काफी नुकसान पहुंचाती है। हालांकि देखने वाली चीज़ है कि परेशान बागवानों को सरकार की मदद मिलती है, या फिर ऐसे ही हर पांच साल पर सिर्फ सरकार बदलते का इंतज़ार होता रहेगा।
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