ग्राउंड रिपोर्टः बनारस में गंगा की चपेट में विश्वनाथ कॉरिडोर, शहर-देहात हर जगह तबाही
उत्तर प्रदेश के वाराणसी में कराहती गंगा ने रौद्र रूप दिखाना शुरू कर दिया है। खतरे के निशान से काफी ऊपर बह रही गंगा की उफनती लहरें अब काशी विश्वनाथ कॉरिडोर में पहुंच गई हैं। जलासेन पथ से बाढ़ का पानी अंदर घुस गया है, जिससे समूचा रैंप डूब गया है। उफनाई नदी का प्रवाह और गंगा द्वार के बीच अब कुछ ही कदम का फासला है। यह नौबत इसलिए आई है, क्योंकि हुक्मरानों ने काशी विश्वनाथ कॉरिडोर बनवाने के लिए गंगा के प्रवाह को करीब सौ मीटर अंदर तक पटवा दिया है। यह वही स्थान है जहां कॉरिडोर का लोकार्पण करने आए पीएम नरेंद्र मोदी ने गंगा में डुबकी लगाई थी। काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के आवागमन वाले हिस्से और भवन आदि को हाईफ्लड लेवल से ऊपर बनाया गया है।
काशी विश्वनाथ कॉरिडोर में जलासेन पथ के बगल में लगी हनुमान मूर्ति के ठीक नीचे गंगा का उफान फुंफकार मारते हुए आगे बढ़ने लगा है। गंगा में बाढ़ का नजारा देखने के लिए गैलरी के पास बड़ी संख्या में सैलानी और पर्यटक जुट रहे हैं। बाढ़ से काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का सिर्फ जलासेन पथ ही नहीं डूबा है। इसी के समीप मणिकर्णिका घाट पर बनाए जा रहे रैंप के एक बड़े हिस्से से होता हुआ बाढ़ का पानी सीवेज पंपिंग प्लांट में भी घुस गया है। मणिकर्णिका घाट पर शवदाह के लिए लोगों को भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। यहां गंगा का पानी गलियों में भी घुस गया है। शवों के अंतिम संस्कार के लिए जगह कम होने के कारण मुर्दों की कतारें लगाई जा रही हैं। शवदाह के लिए लोगों को घंटों इंतजार करना पड़ रहा है। सिर्फ दाह संस्कार के लिए ही नहीं, लकड़ियों के लिए भी लाइन लगानी पड़ रही है। कुछ ऐसी ही स्थिति हरिश्चद्र घाट पर भी है। यहां भी मुर्दों को जलाने के लिए गलियों में जगह छोटी पड़ने लगी है। यही स्थिति सामने घाट, रमना, डोमरी, रामनगर आदि शवदाह स्थलों की है।
दशाश्वमेध घाट, शीतलाघाट से होते हुए बाढ़ का पानी सब्जी मंडी तक पहुंच गया है। गंगा के सभी तटवर्ती इलाकों में बड़ी संख्या में लोग छतों पर शरण लिए हुए हैं। नमो घाट पर नमस्कार की मुद्रा वाली आकृति भी पूरी तरह डूबने की स्थिति में है। बनारस के सभी पक्के घाट डूबते जा रहे हैं। वाराणसी शहर के दशाश्वमेध घाट पर स्थित जल पुलिस थाना भी पानी में डूब गया है। वाराणसी में गंगा के जलस्तर में लगातार बढ़ाव जारी है, जिसका असर अब शहर की पॉश कॉलोनियों में नजर आने लगा है। अस्सी घाट से नगवां की ओर जाने वाली सड़क पर आवागमन पूरी तरह रोक दिया गया है। वहां रहने वाले लोगों ने अपने मकान खाली कर दिए हैं। कुछ लोग सड़क के किनारे टेंड डालकर रह रहे हैं तो कुछ ने सुरक्षित स्थान तलाश लिया है। गंगा के किनारे सामने घाट के आसपास बाढ़ का पानी लोगों के घरों में घुस गया है। साकेतनगर, छित्तूपुर, सामने-घाट लंका मार्ग, मदरवां बस स्टैंड, रविदास मार्ग पर गंगा का पानी लगातार बढ़ता जा रहा है।
रामनगर पुल का सामनेघाट छोर पर अप्रोच मार्ग भी पानी में डूब गया है। आसपास की कालोनियों में भी पानी फैलता जा रहा है। बनारस में सबसे वीभत्स स्थिति मारुति नगर की है। यह वह इलाका है जहां वाराणसी विकास प्राधिकरण (वीडीए) के अफसरों और कारिंदों ने रिश्वत लेकर हजारों इमारतें खड़ा करा दी है। स्थिति भयावह मोड़ पर पहुंची है तो प्रशासन अब अवैध निर्माण वाले भवनों की सूची तैयार कराने की तैयारी कर रहा है। कलेक्टर कौशल राज शर्मा ने मीडिया को जारी एक बयान में कहा है कि वीडीए के अफसरों को निर्देश दिए गए हैं कि बेसिन क्षेत्र में साल भर के अंदर हुए अवैध निर्माण सील कराया जाएगा। कलेक्टर कौशल राज दावा करते हैं, "बाढ़ से निपटने के लिए बनारस में चाक-चौबंद व्यवस्था है। प्रभावित लोगों को आश्रय देने के लिए बाढ़ राहत चौकियां खोल दी गई हैं। बाढ़ग्रस्त इलाकों में नावों के प्रबंध किए गए हैं। घर-घर भोजन और राशन भी पहुंचाया जा रहा है। शहर के बीस वार्डों के अलावा जिले 119 गांवों के लोग बाढ़ से प्रभावित हुए हैं। बचाव और राहत के लिए डेढ़ दर्जन से ज्यादा राहत चौकियां स्थापित की गई हैं, जहां एनडीआरएफ के जवान तैनात किए गए हैं। बाढ़ को देखते हए शहर में 19 राहत शिवर बनाए गए हैं, जहां 3500 से अधिक लोगों को शरण दिया गया है। राहत और बचाव के लिए 58 नौकाएं लगाई गई हैं।"
गंगा से भद्दे मज़ाक का नतीजा है बाढ़
वाराणसी के वरिष्ठ पत्रकार एवं चिंतक प्रदीप कुमार नौकरशाही की कोशिशों को सिर्फ दिखावा मानते हैं। वह कहते हैं, "बाढ़ पीड़ितों को सिर्फ राहत पहुंचा देना और राहत के नाम पर भोजन बांट देना ही काफी नहीं है। सबसे पहले हमें बाढ़ की वजहों पर सबसे पहले गौर करना होगा। हर दो साल बाद बाढ़ हमें परेशान करती है। ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि नदी के स्वभाविक और प्राकृतिक चरित्र के साथ लगातार खिलवाड़ चल रहा है। यह काम बड़ी नदियों के साथ ज्यादा हुआ है। गंगा इसकी शिकार है। बिना प्राकृतिक पारिस्थिति का विश्लेषण किए उसकी धारा को रोकने का दुस्साहस करने की वजह से बाढ़ लोग बाढ़ के शिकार हो रहे हैं।"
"बनारस में पिछले आठ सालों से गंगा के साथ भद्दा मजाक किया गया। गंगा के तटवर्ती इलाकों और प्राचीन घाटों की पारिस्थितिकी को बदलने की कोशिश की है जिसका खामियाजा बनारस की जनता को भुगतना पड़ रहा है। दुनिया में विकास के ना पर अपनी प्रकृति के साथ इतना बड़ा खिलवाड़ कभी नहीं हुआ। दुनिया के उन देशों का अध्ययन किया जाए जो विकासशील से विकसित होने की श्रेणी में पहुंच गए हैं, उन्होंने अपने प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण व संवर्धन करते हुए विकास की योजनाओं को मूर्त रूप दिया है।"
प्रदीप यह भी कहते हैं, "भारत दुनिया का अकेला ऐसा मुल्क है जिसने न सिर्फ नदियों की जबर्दस्त उपेक्षा की, बल्कि खिलवाड़ भी किया। नदियों के साथ मनमानी का सबसे बड़ा उदाहरण पीएम नरेंद्र मोदी के बनारस में देखने को मिल रहा है। यहां कभी बालू में नहर बनाई जाती है तो कभी गंगा में जलपोत चलाने के लिए ड्रेजिंग पर मनमाना धन लुटा दिया जाता है। हाल ऐसा है कि यहां अंधेर नगरी चौपट राज की कहवात चरितार्थ होती नजर आती है। बाढ़ प्रभावित इलाकों में आवासीय कालोनियों का विस्तार होता रहता है और प्रशासन आंख बंद किए रहता है। सीधी सी बात है कि हम अगर गंगा में घुसने की कोशिश करेंगे तो गंगा हमारे इलाके में घुसेंगी ही। गंगा का बाढ़ हमेशा सौम्य नहीं होता, उसका रौद्र रूप कई बार तबाही की पटकथा लिख जाता है। इस बार भी ऐसा ही हो रहा है। विश्वनाथ कॉरिडोर के नाम पर ललिता घाट पर हुई मनमानी और छेड़छाड़ का नतीजा है कि आज गंगा कॉरिडोर में घुसने को आतुर नजर आती हैं। बनारस के इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ था।"
तबाही ज़्यादा, आकलन कम
वाराणसी जिला प्रशासन करीब 15 हजार लोगों को बाढ़ पीड़ित मान रहा है, जबकि स्थिति इससे कई गुना ज्यादा भयावह है। गंगा की बाढ़ के चलते वरुणा और असि नदियों के तटवर्ती इलाकों में रहने वाले लोगों की दुश्वारियां बढ़ गई हैं। ढेलवरिया, कोनिया, सामने घाट, सरैया, डोमरी, नगवा, रमना, बनपुरवा, शूलटंकेश्वर के कुछ गांव, फुलवरिया, सुअरबड़वा, नक्खीघाट, सरैया समेत कई इलाकों में बाढ़ ने अपना कहर बरपाना शुरू कर दिया है। सभी इलाकों में लोगों के घरों में पानी घुस गया है। आवागमन पूरी तरह से ठप है। बड़ी संख्या में लोग घर छोड़ने के लिए मजबूर हो गए हैं। पिछले दो-तीन दिनों से पलायन का सिलसिला तेज हो गया है। कुछ लोग अपने घरों का सामान लेकर रिश्तेदारों और परिचितों के यहां जा रहे हैं। कोनिया, सरैया, पुल कोहना, सोना तालाब, बघवा नाला, सलारपुर से लगायत सराय मोहाना तक के इलाके में लोग दुश्वारियों के बीच बस किसी तरह से दिन काटने के लिए विवश हैं। जिन लोगों को राहत शिविरों में जगह नहीं मिल पाई है उन्होंने सामान दूसरों के यहां रखकर घर की छत पर अपना ठिकाना बना लिया है। सोनातालाब इलाके के महावीरनगर कालोनी के रमेश, रमजान समेत 50 से अधिक ऐसे परिवार हैं जिनके घर पानी से डूबे हुए हैं।
बाढ़ के पानी में बहकर आए सांप-बिच्छू भी लोगों के घरों में घुस गए हैं। मरे हुए मवेशियों के दुर्गंध से बाढ़ पीड़ितों की मुश्किलें बढ़ गई हैं। गंगा, वरुणा और असि नदियों में पानी से जिन लोगों के मकान डूब गए हैं अथवा बाढ़ से घिर गए हैं उनके बच्चों के सामने मुश्किलें ज्यादा हैं। कोनिया सट्टी में भी पानी घुस गया है। मुहल्ले अमरपुर मढ़िया में रहने वाले रहीम, रोशन, वकील अहमद कहते हैं, "वरुणा के तटवर्ती इलाकों में रहने वाले रहने वाले लोगों के बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे हैं। शिक्षा विभाग के बेसिक शिक्षा अधिकारी डा.अरविंद पाठक अब सपना दिखा रहे हैं कि बाढ़ प्रभावित बच्चों को आनलाइन मोड में पढ़ाया जाएगा। जब लोगों के घरों में बिजली ही नहीं, तो झूठा और भ्रामक प्रचार क्यों किया जा रहा है।"
फिर डूब गई हज़ारों की गृहस्थी
बनारस के नक्खीघाट पुल पर कई दिनों से मेला लग रहा है। सैकड़ों लोगों का हुजूम सुबह से ही बाढ़ से होने वाली तबाही का मंजर देखने के लिए जुट रहा है। हिदायतनगर के मोहम्मद बसीम बताते हैं, "हर तीन साल में ऐसी भीषण बाढ़ आती है। इससे पहले साल 2013, 2016 और 2019 में ऐसी ही भयानक बाढ़ आई थी। पिछली मर्तबा बाढ़ की वजह से करीब एक महीने तक कारख़ाना बंद रहा, जिसकी वजह से हमारी बरसों की बनाई गृहस्थी उजड़ गई थी।" सिधवा इलाके के नवाब अली कहते हैं, "गंगा ने रौद्र रूप धारण किया तो अचानक वरुणा भी फुंफकार मारने लगी। कुछ ही घंटों में हमारे साथ-साथ पड़ोसियों की सारी गृहस्थी डूब गई। लूम और करघों पर चढ़ीं साड़ियां काली पड़ गई हैं। यह बात हमारी समझ में नहीं आ रही है कि नुकसान की भरपाई कैसे हो पाएगी?"
बाढ़ पीड़ितों की सहायता के लिए पीएम नरेंद्र मोदी के जवाहरनगर स्थित जनसंपर्क दफ्तर में नियंत्रण कक्ष खोला गया है। साथ ही हेल्पलाइन भी जारी किया गया है, लेकिन भाजपा नेताओं की चिंता सिर्फ प्रचार पाने तक ही सीमित नजर आ रही हैं। नक्खीघाट पर प्रशासन ने तीन नावों की व्यवस्था की है। लोग इन्हीं नावों से अपने घर आ-जा रहे हैं, लेकिन स्थिति काफी भयावह है। लोग दाने-दाने के लिए तरस रहे हैं। नाव से अपने घर की तरफ जा रही महिला बुनकर सितारा देवी ने शिकायत करते हुए कहा, "पहले बाढ़ आती थी तो इलाके के स्कूल और मदरसों में सभी को अस्थायी आश्रय घर सभी को राहत पहुंचाई जाती थी। इस बार भी प्रशासन ने वादा किया था, लेकिन राहत शिविरों में सिर्फ उन्हीं लोगों को शरण दी जा रही है, जिनके इलाकाई पार्षदों अथवा नेताओं से ताल्लुकात हैं। राहत शिवर हमारे नसीब में नहीं है। लाचारी में सड़क के किनारे पालीथीन डालकर रहना पड़ रहा है। 70 वर्षीय सितारा अमरपुर मड़िया में रहती हैं और इनका घर पूरी तरह बाढ़ में डूब गया है।"
पुराना पुल के पास सड़क के किनारे दिन काट रहीं नई बस्ती की सकीला, जानत खातून और इसराइल कहते हैं, "आखिर बिना खाए-पिए कितने दिन तक जिंदगी चलेगी। प्रशासन की मदद नहीं मिल रही है। सड़क के किनारे पालीथिन डाल लिया है। पुराना पुल के पास टेंट लगाकर रह रही शायरा, आशा, आफ्ती बेगम, फिरोज, इदुल खान, मुन्नी, हकीफ, रुखसार, नजमा, जमीला बताती हैं, "अचानक बाढ़ आई तो हम अपना सामान भी नहीं निकाल पाए और सारी गृहस्थी पानी में डूब गई। वाराणसी प्रशासन से अब तक हमें कोई राहत नहीं मिली है। पालीथिन भी अपने पैसे से खरीदनी पड़ी है। रात में भीषण गर्मी और मच्छरों से जीना हराम हो गया है। लूम बंद होने से हम दाने-दाने के लिए मोहताज हो गए हैं।"
खामोश हो गए लूम व करघे
गंगा और वरुणा नदी में आई बाढ़ की वजह से शहर के दर्जन भर मोहल्लों में लूम और करघों की धड़कन बंद हो गई हैं। हालत यह है कि बुनकरों को अब दो वक्त की रोटी जुटा पाना मुहाल हो गया है। घरों में पानी घुसने से बिजली की सप्लाई के साथ-साथ करघे और लूम खामोश हो गए हैं। नक्खीघाट की शकीला के घर में करीब एक फीट तक पानी भर गया है। शकीला के घर में जाने के लिए कोई भी रास्ता नहीं बचा है। करीब पांच फीट पानी भर जाने की वजह से आसपास के कुछ लोग यहां से पलायन कर चुके हैं।
पुराना पुल के पास रहने वाली लक्ष्मीना देवी और जितेंद्र का हाल बुरा है। नक्खीघाट पर इनका छप्पर पानी में डूब गया है। खुले आसमान के नीचे पालीथिन डालकर बाढ़ थमने का इंतजार कर रहे हैं। लक्ष्मीना के पति सुक्खू कहते हैं, "वरुणा की बाढ़ में हमारा सब कुछ डूब गया। पेट भरने के लिए रोटी का इंतजाम कैसे होगा, यह समझ में नहीं आ रहा है। आते-जाते लोगों से हम मदद के लिए गुहार लगा रहे हैं, लेकिन भीख मांगने से पेट कैसे भर पाएगा, क्योंकि हम प्रोफेशन भिखारी नहीं हैं।"
शैलपुत्री मंदिर के पास रहने वाली हसीना और इनकी बहन के घर पानी में डूब गए हैं। जब कोई ठिकाना नहीं मिला तो सीवर डालने के लिए सड़क के किनारे रखे पाइप में ही डेरा डाल दिया है। हसीना कहती हैं, "सरैया स्थित राहत शिविर से हम लौट आए हैं। वहां गंदगी है। लोगों को भूसे की तरह रखा गया है। मेनहोल की पाइप में कई दिनों से शरण लिए हुए हैं। किसी भी राहत शिवर में घूम आइए, वहां की स्थिति देखकर दंग रह जाएंगे।"
"न्यूजक्लिक" ने सरैया राहत शिविर का दौरा किया तो हसीना की बातों में दम नजर आया। राहत शिविरों में सचमुच भूसे की तरह लोग रहने को मजबूर हैं। हालांकि सुबह के समय बच्चों को केला-दूध और दोपहर व रात में भोजन मिल रहा है। फिर भी कई लोगों की शिकायत थी कि कई बार उन्हें भोजन नहीं मिल पाता है। शिविर में मौजूद एक तहसीलकर्मी ने बताया कि सिर्फ वही लोग भोजन से वंचित होते हैं जो मौके पर नहीं मिलते। वाराणस प्रशासन 678 परिवारों के 3567 लोगों ने शिविरों में नाश्ता-भोजन समेत बिजली-पानी मुहैया कराने का दावा किया है। प्रशासन की ओर से बताया गया कि वाराणसी जिले के बाढ़ग्रस्त इलाकों और राहत शिविरों में रह रहे लोगों के लिए बड़े पैमाने पर राहत कार्य चलाया जा रहा है। बाढ राहत शिविरों की कुल संख्या 40 और क्रियाशील बाढ़ राहत शिवर 18 हैं। शिविर में करीब 3500 लोग रूके हैं, जिसमें 12 वर्ष से कम बच्चों की तादाद 916 और बुजुर्गों की 245 है।
राहत शिविर में करेंट से मरी महिला
बाढ़ से बेघर हुई लंका थाना क्षेत्र के नगवां की रूबी साहनी (36) की बाढ़ राहत शिविर में 28 अगस्त को करंट से दर्दनाक मौत हो गई। महिला की मौत से उसके तीन बच्चे अनाथ हो गए। तीनों बच्चों के आंसू नहीं थम पा रहे हैं। वो बिलख-बिलकर रो रहे हैं, जिसके चलते शिविर में रहने वाले अन्य बाढ़ पीड़ित गमगीन हैं। महिला की मौत के लिए नगर निगम की लापरवाही को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। 36 वर्षीय रूबी साहनी बंगाल की मूल निवासी रूबी के पति की मौत दो साल पहले हो गई थी। पति की मौत के बाद वह अपने तीन बच्चों को लेकर किराये के मकान में रह रही थी। घरों में बर्तन मांजकर अपने और बच्चों का किसी तरह से गुजारा कर पा रही थी। बाढ़ आई तो लंका थाने के पीछे बने बाढ़ राहत शिविर में उसने डेरा डाल दिया। रविवार की शाम वहां लगे पंखे को अपनी ओर घुमाने के लिए हाथ बढ़ाया, तभी वह करेंट की चपेट में आ गई। राहत शिविर में बाढ़ पीड़ितों के सामने ही रूबी की मौत हो गई।
राहत शिविर में रह रहे रूबी के तीनों बच्चे किशन, अजय और बेटी खुशी का बुरा हाल है। शिविर में रह रहे लोगों का आरोप है कि नगर निगम की तरफ से लगवाए गए शिविर के अंदर पंखा में करंट उतर रहा था। बगैर चेक किए ही पंखे शिविर में लगवा दिए गए थे। इसी शिविर में 28 अगस्त को कलेक्टर कौशल राज शर्मा दोपहर में अपनी अफसरों की टीम के साथ पहुंचे थे। शिविर से 50 मीटर दूर लगे अंडर ग्राउंड बिजली के बोर्ड से बाहर निकले तार को ठीक करने के लिए निर्देशित किया था। कलेक्टर के कड़े निर्देश के बावजूद स्थितियां सुधरने का नाम नहीं ले रही हैं। महिला के बच्चों भरण-पोषण के लिए प्रशासन ने अभी तक कोई इंतजाम नहीं किया है।
ग्रामीण इलाकों में भी तबाही
बनारस शहर ही नहीं, ग्रामीण इलाकों में भी गंगा, वरुणा और गोमती नदियां तबाही मचा रही हैं। पिंडरा इलाके के कोइराजपुर, चमाव, भगतुपुर, दासेपुर, गोसाईपुर, करोमा के अलावा रामेश्वर, पसीपुर, पांडेयपुर, तेंदुई, सत्तनपुर समेत दर्जनों गांवों में सैकड़ों एकड़ फसल जलमग्न हो गई है। बनारस का इकलौता आईलैंड ढाब पूरी तरह टापू बन गया है। बाढ़ का पानी इस आईलैंड पर बसे 35 हजार लोगों से लिए मुसीबत का सबब है। बनारस के दर्जनों गांवों में बाढ़ का पानी निचले इलाकों में घुसकर तबाही मचा रहा है। जिले में करीब 61 गांव बाढ़ की चपेट में हैं। ग्रामीण इलाकों में रमना, डाफी, चिरईगांव, चौबेपुर के अलावा बनारस का इकलौता आईलैंड ढाब भी बाढ़ से चौतरफा घिर गया है। बनारस का इकलौता आईलैंड ढाब पूरी तरह टापू बन गया है। बाढ़ का पानी इस आईलैंड पर बसे 35 हजार लोगों से लिए मुसीबत का सबब है। दर्जनों गांवों में बाढ़ का पानी निचले इलाकों में घुसकर तबाही मचा रहा है। जिले में करीब साठ गांव बाढ़ की चपेट में हैं। ढाब आईलैंड में गंगा नदी की कटान के चलते समस्या गंभीर होती जा रही है।
मुस्तफाबाद के प्रधान राजेंद्र सिंह ने ‘न्यूजक्लिक’ से कहा, "रमचंदीपुर, मोकलपुर, गोबरहां, रामपुर, मुस्तफाबाद में बाढ़ का पानी किसानों की जमीनें लीलती जा रही है। ढाब इलाके के सोता में बड़े पैमाने पर हो रहे कटान के चलते सैकड़ों एकड़ उपजाऊ खेत बाढ़ के पानी में डूब गए हैं। इस इलाके में नदी के किनारे बोई गई मक्का, धान, तिल, नेनुवा, लौकी, परवल आदि फसलें बाढ़ की भेंट चढ़ गई हैं। मोकलपुर स्थित अंबा सोता पर प्रशासन ने नावों का संचालन शुरू करा दिया है। रिंग रोड बनाने के लिए ढाब आईलैंड पर किए गए अवैध खनन के चलते इस टापू पर रहने वाले लोगों की जान सांसत में है।" गोमती किनारे तक दर्जनों गांव-गांव के फसलें जलमग्न हो गई हैं। ढाब क्षेत्र में सोता पुल मार्ग पर गंगा का पानी चढ़ आया है। चिरईगांव, अराजीलाइन और चोलापुर प्रखंड के कई गांवों में खरीफ की फसलें और सब्जियों के खेत बाढ़ में डूब गए हैं। नदियों के किनारे करीब 370.02 हेक्टेयर फसलें पानी में डूब गई हैं। पिंडरा इलाके के कोइराजपुर, चमाव, भगतुपुर, दासेपुर, गोसाईपुर, करोमा के अलावा रामेश्वर, परसीपुर, पांडेयपुर, तेंदुई, सत्तनपुर समेत दर्जनों गांवों में सैकड़ों एकड़ खरीफ की फसलें जलमग्न हो गई हैं।
बनारस में जाने-माने पर्यावरणविद एवं संकटमोचन मंदिर के महंत प्रो.विशंभरनाथ मिश्र कहते हैं, "वक्त किसी के साथ कंप्रोमाइज नहीं करता। हाल के कुछ सालों में बनारस ने जो करवट बदला है उससे यह शहर प्रयोगों की राजधानी बन गया है। बाढ़ के चलते रिस्क और चुनौतियां बढ़ गई हैं। समूचे बनारस को गुजरात माडल को दिखा-दिखाकर तहस-नहस किया गया है। जो लोग बनारसियों को गुजरात माडल दिखाते हैं, वही गुजरात जाकर बनारस माडल का गुणगान करने लगते हैं। दरअसल इनके पाक कोई माडल है ही नहीं। विकास के नाम पर डबल इंजन की सरकार ने न जाने कितने पारंपरिक सिस्टम खत्म कर दिए गए जो बाढ़ की विभीषिका को रोका करते थे। चलते-फिरते और दौड़ते शहर को कुछ ही सालों में तहस-नहस कर दिया गया और बनारस के लोग प्रतिकार तक नहीं कर सके।"
प्रो.मिश्र कहते हैं, "पहले बनारस में बाढ़ आती थी तो शहर में नहीं घुसती थी। इस बार बाढ़ तो आई है, लेकिन वो गंगा का पानी नहीं, बजबजाता हुआ सीवर है। शायद यही बनारस का अनूठा माडल है जो इन दिनों गुजरातियों को दिखाया जा रहा है। रियल्टी तो सामने आएगी ही। खौफ और दशहत का वातावरण भी ज्यादा दिन नहीं चलेगा। देश का डाइमेंशन बहुत बड़ा है। नया सबेरा होगा। काशी विश्वनाथ कॉरिडोर में बाढ़ का पानी इसलिए उथल-पुथल कर रहा क्योंकि एक तरफ नदी को पाट दिया गया तो दूसरी ओर, पक्के महाल का रास्ता ही बंद कर दिया गया। चिंता इस बात की है कि अब एक सनक की कीमत बनारस के हजारों-लाखों लोगों को भुगतनी पड़ रही है। काम तो ऐसा होना चाहिए जिससे हर किसी के चेहरे पर मुस्कान आए, बाढ़ की विभीषिका नहीं।"
(लेखक विजय विनीत बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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