Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

ज्ञानवापी: व्यास तहख़ाने में खंडित मूर्तियां रखे जाने से मुस्लिम पक्ष नाराज़, उठाए सवाल!

इस बीच हिंदू पक्ष ने वाराणसी कोर्ट में ताज़ा अर्ज़ी दी है कि सोमनाथ व्यास के अलावा ज्ञानवापी परिसर के बाक़ी सभी तहख़ानों का भी साइंटिफिक सर्वे कराया जाए।
gyanvapi

वाराणसी के ज्ञानवापी परिसर के दक्षिणी हिस्से में बने सोमनाथ व्यास तहख़ाने में खंडित मूर्तियां रखकर पूजा शुरू कराए जाने से मुस्लिम पक्ष नाराज़ है। आपको बता दें बनारस के डिस्ट्रिक्ट कोर्ट ने व्यास तहख़ाने में फैसला सुनाया था कि हिंदू पक्ष उस स्थान पर पूजा-पाठ कर सकता है लेकिन मुस्लिम पक्ष कहना है कि ऐसा कोई आदेश नहीं था कि बाहर से लाकर वहां मूर्तियां रख दी जाएं। मुस्लिम पक्ष की नाराजगी बीजेपी सरकार समेत अदालत की कार्यप्रणाली और मेन स्ट्रीम मीडिया से भी है। वे आरोप लगा रहे हैं कि खबरिया चैनल ज्ञानवापी मामले की कवरेज को नमक-मिर्च लगाकर जनता को परोस रहे हैं।

इस बीच हिंदू पक्ष की ओर से वाराणसी की अदालत में एक नई अर्जी डाली गई है जिसमें मांग की गई है कि सोमनाथ व्यास के अलावा ज्ञानवापी परिसर में मौजूद बाक़ी सभी तहखानों की भी जांच हो और उनका साइंटिफिक सर्वे कराया जाए।

हिंदू पक्ष ने अपनी याचिकाओं में दावा किया है कि साल 1993 तक पंडित सोमनाथ व्यास ज्ञानवापी के तहख़ाने में पूजा किया करते थे और तत्कालीन मुलायम सरकार ने इस पर रोक लगा दी थी। बनारस के डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के फैसले के बाद बनारस के कलेक्टर एस.राजलिंगम, जिन्हें कोर्ट ने रिसीवर नियुक्त किया है, उन्होंने वहां सात घंटे के अंदर पूजा, राग-भोग शुरू करा दिया। जिला प्रशासन ने तहख़ाने तक रास्ता बनाने के लिए लोहे की बैरीकेडिंग काटकर वहां न सिर्फ लोहे का गेट लगवाया, बल्कि बिजली का इंतजाम भी करा दिया। कोर्ट ने प्रशासन को एक हफ्ते में पूजा-पाठ की व्यवस्था करने का आदेश दिया था, लेकिन अफसरों ने कुछ ही घंटों के भीतर पूजा-अर्चना शुरू करा दी।

प्रशासनिक अफसरों ने काशी मंदिर के पुजारी ओमप्रकाश मिश्रा को बुलाया और व्यास तहख़ाने में पूजा शुरू करा दी। बनारस जिला प्रशासन ने अर्धसैनिक बल को लगाकर जिस समय पूजा-अर्चना शुरू कराई उस समय इस मुकदमे से संबंधित पक्ष अथवा विपक्ष का कोई याची मौजूद नहीं था। ज्ञानवापी मस्जिद की देखरेख करने वाली संस्था अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी का कहना है कि प्रशासन ने कोर्ट के आदेश को अवहेलना की और खंडित मूर्तियां रखवाकर वहां पूजा शुरू करा दी।

तहख़ाने में कभी नहीं हुई पूजा: मुस्लिम पक्ष

अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी का दावा है कि साल 1993 तक तहख़ाने में पूजा-पाठ की बात सरासर गलत है। वहां कोई पूजा-पाठ नहीं हुई। कमेटी के संयुक्त सचिव मो.यासीन कहते हैं, "कोर्ट ने अपने आदेश में मूर्ति रखने की इजाजत नहीं दी थी, लेकिन बनारस के कलेक्टर एस.राजलिंगम, कमिश्नर कौशलराज शर्मा और पुलिस कमिश्नर मुथा अशोक जैन ने सीआरपीएफ की मदद से कोर्ट के आदेश की अनदेखी करते हुए वहां आठ मूर्तियां रखवा दी।"

यासीन कहते हैं, "डीएम-कमिश्नर जब खुद मूर्ति लेकर जा रहे हैं तो उन पर और उनके न्याय पर भरोसा कौन करेगा? अफसरों ने क्या कोर्ट आर्डर पढ़ा है? क्या आदेश में यह लिखा है कि मूर्ति रख दीजिए? प्रशासन पर किसका दबाव था कि रातो-रात वहां मूर्तियां रखवाकर पूजा शुरू करा दी गई। अगर मूर्तियां तहख़ाने में मिली थी तो क्या हिंदू शास्त्रों के मुताबिक, उनकी प्राण-प्रतिष्ठा कराई गई? सच यह है कि झूठ की बुनियाद पर तमाशा किया जा रहा है।"

यासीन यह भी कहते हैं, "हम बनारस के डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के फैसले पर गहरा आश्चर्य और निराशा व्यक्त करते हैं। हमारे दृष्टिकोण में यह निर्णय बेहद गलत और निराधार तर्क पर आधारित लगता है, जिसमें कहा गया है कि सोमनाथ व्यास का परिवार 1993 तक ज्ञानवापी मस्जिद के तहख़ाने में पूजा करता था और इसे राज्य सरकार के आदेश पर बंद कर दिया गया था। इसके अलावा 24 जनवरी 2024 को उसी अदालत ने तहख़ाने की देखरेख की जिम्मेदारी जिला प्रशासन को सौंप दी। इस तहख़ाने में कभी कोई पूजा नहीं की गई। डिस्ट्रिक्ट कोर्ट का फैसला एक निराधार दावे पर आधारित है।"

"डिस्ट्रिक्ट कोर्ट ने तहख़ाने में पूजा शुरू कराने के लिए एक हफ्ते का वक्त दिया था। फिर उसी शाम मूर्तियां कैसे रख दी गईं? काशी विश्वनाथ मंदिर के मुख्य कार्यपालक अधिकारी सुनील वर्मा ने तबादले के बाद मंदिर का चार्ज छोड़ दिया था लेकिन वो भी मौके पर डटे हुए थे। तहख़ाने में न सिर्फ मूर्तियां रखवाई गईं, बल्कि उसकी फोटोग्राफी कराने के बाद प्रशासनिक अफसरों ने जमकर प्रचार भी कराया। खबरिया चैनलों को पूजा-अर्चना तक के फुटेज बांटे गए। तहख़ाने में घुसने के बाद ज्ञानवापी मस्जिद की सुरक्षा का कोई मतलब नहीं रह गया है। काशी विश्वनाथ मंदिर के कॉरिडोर में हर समय करीब 20 से 30 हज़ार श्रद्धालु रहते हैं। वहां कोई कुछ भी रख सकता है।"

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, व्यास तहख़ाने में एएसआई सर्वे के दौरान कुल आठ मूर्तियां बरामद की गई थीं, जिन्हें ट्रेज़री के डबल लॉक में रखवाया गया था। पूजा के लिए वहां से निकाल कर तहख़ाने में लाया गया। इसमें पत्थर के बिना शिवलिंग के दो अरघे, एक भगवान विष्णु की मूर्ति, दो हनुमान की मूर्ति, एक भगवान गणेश की, एक राम लिखा हुआ छोटा सा पत्थर और एक गंगा का मकर है। इनमें से कोई भी मूर्ति पूरी नहीं है और सभी खंडित हैं। कई लोग सवाल कर रहे हैं कि हिंदू शास्त्र में क्या खंडित मूर्तियों की पूजा का प्राविधान है?

वाराणसी जिला प्रशासन का दावा है कि साल 1993 तक पंडित सोमनाथ व्यास साल में एक बार रामायण करवाते थे तो उसके लिए वो प्रशासन से अलग से अनुमति लेते थे, बल्लियां निकाल कर वो टेंट लगाते थे और रामायण के बाद उसे वापस अंदर रख देते थे। सोमनाथ व्यास के निधन के बाद यह सब भी बंद हो गया और चाबियां गुम हो गईं। बाद में तहख़ाने का लकड़ी का दरवाज़ा भी टूट गया। यह तहखाना 35 से 40 फीट लंबा और 25 से 30 फीट चौड़ा है, जिसमें पांच चैंबर हैं। एएसआई का कहना है कि वहां एक कुआं भी है। ज्ञानवापी मस्जिद को अलग करने के लिए डबल-लेयर स्टील बैरिकेडिंग की गई है। साथ ही स्टील गेट लगाने और पुजारियों को मस्जिद के दक्षिणी तहख़ाने में एंट्री कराने के लिए एक रास्ता बनाया गया है। इसके लिए 7 बाई 7 फीट का एक कट बनाया गया है।

सोमनाथ व्यास के तहख़ाने के अंदर सिर्फ एक पुजारी को ही जाने की अनुमति है। बैरिकेडिंग काट कर जो गेट लगाया गया है, वो सुबह पहली आरती के समय 3:30 बजे खुलेगा और रात 10:30 बजे की आरती के बाद बंद हो जाएगा। मौके पर सीआरपीएफ तैनात की गई है। जो श्रद्धालु देखना चाहते हैं वो सिर्फ एक गेट से ही अंदर देख सकते हैं, लेकिन उसके अंदर घुस नहीं सकते हैं। काशी विश्वनाथ मंदिर के ट्रस्ट के सीईओ विश्व भूषण मिश्रा के मुताबिक, तहख़ाने में भी पूजा करने का काम ट्रस्ट कर रहा है।

ज्ञानवापी मस्जिद परिसर स्थित व्यास तहख़ाने में पूजा-पाठ वाले जिला अदालत के आदेश को चुनौती देने के लिए अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी पहले सुप्रीम कोर्ट गई, लेकिन वहां उसे कोई रिलीफ नहीं मिली। शीर्ष अदालत ने व्यास तहख़ाने में पूजा-पाठ रोकने से जुड़ी याचिका पर तत्काल सुनवाई से इनकार कर दिया। साथ ही इस मामले को हाई कोर्ट में ले जाने का सुझाव दिया। मुस्लिम पक्ष जब इलाहाबाद हाई कोर्ट पहुंचा तो वहां उसे कोई रिलीफ नहीं मिली। मुस्लिम पक्ष की याचिका पर 02 फरवरी 2024 को सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने एडवोकेट जनरल (एजी) को लॉ एंड ऑर्डर मेंटेन रखने का निर्देश दिया है। इस मामले पर अगली सुनवाई छह फरवरी को होगी।

क़रीब 1700 नमाजी पहुंचे ज्ञानवापी

मुस्लिम पक्ष ने दो फरवरी 2024, (शुक्रवार) को जुमे पर वाराणसी बंद का आह्वान किया और समुदाय के लोगों से स्थानीय मस्जिदों में नमाज अदा करने की अपील की। इसके बावजूद 1700 लोग नमाज पढ़ने ज्ञानवापी पहुंच गए, जबकि सामान्य दिनों में तीन-चार सौ नमाजी पहुंचते हैं। इस मस्जिद को शाही मस्जिद का दर्जा हासिल है। मस्जिद के अंदर भारी भीड़ जुटने पर पुलिस ने सुरक्षा व्यवस्था के कारण कई नमाजियों को बाहर रोक दिया और उनसे अनुरोध किया गया कि वो आसपास की मस्जिदों में चले जाएं।

ज्ञानवापी मस्जिद के ताजा घटनाक्रम को रेखांकित करते हुए वरिष्ठ पत्रकार एवं चिंतक प्रदीप कुमार कहते हैं, "इस विवाद में अभी बीजेपी मैदान में नहीं कूदी है। अभी उसने अपने क्षत्रपों को मैदान में उतारा है। ज्ञानवापी का मुद्दा उसने साल 2027 में होने वाले विधानसभा और 2029 के लोकसभा चुनाव के लिए बचाकर रखा है। बीजेपी के एजेंडे को आगे बढ़ाने में अदालतों के फैसले मददगार साबित हो रहे हैं। अयोध्या की मस्जिद में कोई नमाज अदा नहीं करता था। बनारस की ज्ञानवापी शाही मस्जिद है। तमाम फैसले आए लेकिन 02 फरवरी 2024 को ज्ञानवापी में जितने मुसलमान जुटे उतने अयोध्या में कभी नहीं जुटे। मुस्लिम पक्ष ने दुकानें बंद करके विरोध का इजहार किया। यह बात हर कोई जानता है चुनाव से पहले बीजेपी और आरएसएस हिन्दुओं की दुखती रंगों पर हाथ फेरती है और सत्ता पर काबिज हो जाती है।"

बनारस के वरिष्ठ पत्रकार अतीक अंसारी कोर्ट के हालिया फैसलों पर नाराज दिखते हैं। वह कहते हैं, "लगता है कि देश की अदालतें अब न्याय करने के बजाय बहुसंख्यकों का हित साधने में जुट गई हैं। हाल के दिनों में अदालतों से जो भी फैसले आएं है उसमें ज्यादातर ऐसे हैं जो मुसलमानों को मायूस करने वाले हैं। अयोध्या के मुद्दे पर शीर्ष अदालत ने आस्था की बुनियाद पर फैसला सुनाया। कोर्ट के हालिया फैसलों ने अल्पसंख्यक समुदाय को यह सोचने को मजबूर कर दिया है कि कब कौन-सा फैसला हो जाएगा कहा नहीं जा सकता। ज्ञानवापी के तहख़ाने में सोमनाथ व्यास साल में सिर्फ एक बार बांस-बल्ली रखने जाते थे। वहां कोई पूजा-पाठ नहीं होता था। कोर्ट ने फैसला सुनाया है कि साल 1993 तक वहां पूजा होती रही। मेन स्टीम की मीडिया भी धड़ल्ले से दावा कर कर रहा है कि पहले वहां पूजा होती थी जिसे रोक दिया गया था।"

"आखिर मुस्लिम किस पर भरोसा करें। एक समुदाय विशेष के युवाओं को जिस तरह से भड़काया जा रहा है उसका उसका कुरूप चेहरा सामने आने लगा है। मुरादाबाद में गाय काटकर फसाद खड़ा करने की कोशिश की गई। रहस्य खुला तो पता चला कि एक पुलिस अफसर को हटाने के लिए बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने मिलकर यह साजिश रची थी। ज्ञानवापी मस्जिद साइन बोर्ड पर मंदिर लिखकर शहर में उन्माद पैदा करने की कोशिश की गई। इस मामले मं लंका थाना पुलिस ने कथित हिंदू समाज पार्टी से जुड़े रोशन पांडेय नामक युवक के खिलाफ कार्रवाई की है। बिहार के गया जिले के टनकुपार के आरोपी रोशन पांडे ने सोशल मीडिया पर गलत सूचनाएं प्रसारित कर अमन, चैन व शांति व्यवस्था प्रभावित किया। बनारस में जज्बात में बहने वाले ज्यादा हैं। ऐसे लोगों को प्रश्रय मिलता रहा तो वो देश और समाज के लिए मुश्किलें खड़ा करेंगे।"

कोर्ट के फैसलों से नया उफान

ज्ञानवापी मामले को लेकर विवाद काफ़ी पुराना है, लेकिन अदालतों के ताबड़तोड़ फैसलों से इन दिनों में उसमें नया उफ़ान दिख रहा है। साल 1991 में देशभर में अयोध्या श्रीराम जन्मभूमि पर मंदिर बनाने के लिए चल रहा आंदोलन अपने चरम पर था। उस समय बीजेपी के नेता लालकृष्ण आडवाणी देश भर में रथयात्रा लेकर निकले थे। बिहार में उनकी गिरफ़्तारी हुई थी। 18 सितंबर 1991 को केंद्र में नरसिम्हा राव की सरकार ने संसद से उपासना स्थल कानून पारित कराया था। उपासना स्थल कानून कहता है कि भारत में 15 अगस्त 1947 को जो धार्मिक स्थान जिस स्वरूप में था, वह उसी स्वरूप में रहेगा, उसकी स्थिति में कोई बदलाव नहीं किया जा सकेगा।

उपासना स्थल कानून का सेक्शन (3) कहता है कि कोई भी व्यक्ति किसी धार्मिक संप्रदाय या उसके किसी अनुभाग (सेक्ट) के पूजास्थल के स्वरूप में किसी तरह का परिवर्तन नहीं कर सकता है। इसी कानून के सेक्शन 4(1) में लिखा है- यह घोषित किया जाता है कि 15 अगस्त, 1947 को मौजूद उपासना स्थल का धार्मिक स्वरूप वैसा ही बना रहेगा जैसा वह उस दिन था। इसके सेक्शन 4(2) में लिखा है, "यदि इस अधिनियम के लागू होने पर, 15 अगस्त, 1947 को मौजूद किसी उपासना स्थल के धार्मिक स्वरूप में परिवर्तन के बारे में कोई वाद, अपील या अन्य कार्रवाई किसी न्यायालय, अधिकरण या प्राधिकारी के समक्ष लंबित है, तो वह रद्द हो जाएगी। और ऐसे किसी मामले में कोई वाद, अपील, या अन्य कार्यवाही दोबारा से किसी न्यायालय, अधिकरण या प्राधिकारी के समक्ष शुरू नहीं होगी।" कानून के सेक्शन (5) के तहत अयोध्या विवाद को इससे अलग रखा गया, क्योंकि यह मामला आज़ादी से पहले अदालत में लंबित था।

उलमाओं ने कहा-फैसला तकलीफदेह

लोकतंत्र में अदालतों को ‘न्याय का अंतिम आश्रय’ करार देते हुए मुस्लिम उलेमाओं ने कहा कि "हाल के फैसले ‘बहुसंख्यक न्यायपालिका’ के निर्माण का संकेत देते हैं। पुरातत्व सर्वेक्षण रिपोर्ट का प्रेस में एकतरफा खुलासा करना चिंता का सबब है।" उन्होंने अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ से समय मांगा है।

इस बीच, अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी के सेक्रेटरी एवं मुफ्ती-ए-बनारस मौलाना अब्दुल बातिन नोमानी ने पिछले जुमे की नमाज़ शांतिपूर्ण होने पर मुस्लिम समाज समेत दुकानबंदी करने वालों का शुक्रिया जताया और कहा, "बनारस के जिला जज और जिला प्रशासन की इकतरफा कार्रवाई से हम मुस्लिम समुदाय की भावनाओं को ठेस पहुंची है। अदालत के इस फैसले की हम कड़ी निंदा करते हैं। ज्ञानवापी मस्जिद के दक्षिणी तहख़ाने में पूजा की अनुमति दिया जाना न्याय संगत नहीं है। जिला प्रशासन ने तहख़ाने में रातों रात मूर्तियां रखवा दी जो मनमानी है। ज्ञानवापी की सुरक्षा और संरक्षण के लिए आखिरी दम तक हम कोशिश करते रहेंगे।"

बनारस के ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के व्यास तहख़ाने में पूजा-अर्चना शुरू करने के डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के फैसले पर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने भी कड़ा एतराज जताया है। बोर्ड के अध्यक्ष मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी ने कहा, "वाराणसी कोर्ट ने जल्दबाजी में फैसला सुनाया, सबूतों और तथ्यों को नजरअंदाज किया और पूजा स्थल अधिनियम-1991 को मानने से इनकार कर दिया जो किसी भी पूजा स्थल के स्वभाव और प्रकृति में परिवर्तन पर रोक लगाता है। अगर पूजा स्थल अधिनियम को अदालतों द्वारा बरकरार नहीं रखा जाता है, तो हम इसी तरह के एपिसोड देख सकते हैं, जो देश में अंतहीन सांप्रदायिक संघर्ष को जन्म दे सकते हैं।"

"ज्ञानवापी मामले में कोर्ट ने जिरह का मौका नहीं दिया। कोर्ट के तौर तरीकों से आम लोगों का भरोसा कम हो रहा है। कोर्ट ने यह फैसला जल्दबाजी में दिया है। ज्ञानवापी पर फैसला तकलीफदेह है। मंदिर को गिराकर मस्जिद बनाने की बात गलत है। इतिहास की सच्चाई को समझना चाहिए। जब तक सुप्रीम कोर्ट तक मामला पहुंचेगा, तब तक पानी सिर से ऊपर निकल चुका होगा।"

जमीयत उलमा-ए-हिंद प्रमुख मौलाना अरशद मदनी ने एएसआई सर्वे की विश्वसनीयता पर सवाल उठाते हुए कहा है, "यहां मूर्तियां लाई गई हैं और पूजा की गई है। इससे पहले यहां कोई मूर्तियां नहीं थीं। यह कैसे कहा जा सकता है कि मूर्ति रखी हुई हैं? इसका मतलब ये है कि सर्वेक्षण रिपोर्ट गलत है। ज्ञानवापी परिसर के अंदर जिन मूर्तियों की पूजा की जा रही है, उन्हें बाहर से लाया गया हैं। जहां मस्जिद है, वहां मंदिर था इसका कोई सबूत नहीं है। मथुरा हो या ज्ञानवापी। वहां कभी मंदिर नहीं था। यह इस्लाम की आस्था के खिलाफ है।"

मदनी ने यह भी कहा, "बाबरी मस्जिद के स्थल को हिंदू पक्ष को सौंपने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने भानुमती का पिटारा खोल दिया है और हिंदुत्ववादी ताकतों को देश भर में मुस्लिम पूजा स्थलों पर दावा करने का रास्ता दिखा दिया है। किसी को तो यह पूछना होगा कि अगर ऐसे हालात हैं, तो यह देश कैसे चलेगा और समृद्ध होगा। सरकार को सोचना होगा कि वह देश को किस दिशा में ले जा रही है। फूट डालो और शासन करो’ की ब्रिटिश नीति भारत में आज भी अपनाई जा रही है।"

जमात-ए-इस्लामी के मलिक मोहतसिम खान ने कहा है, "मुसलमानों का न्यायपालिका और प्रशासन से भरोसा उठ गया है। ज्ञानवापी मस्जिद के तहख़ाने में हिंदुओं को पूजा करने की सुविधा प्रदान करने में प्रशासन की तत्परता को अदालत के आदेश के कुछ घंटों के भीतर बैरिकेड खोलने के तरीके में देखा जा सकता है। अदालत ने ऐसा करने के लिए प्रशासन को सात दिन का समय दिया था। अगर अन्याय और शोषण के शिकार लोग अदालतों में अपील नहीं कर सकते हैं, तो उन्हें कहां जाना चाहिए। हमने हमेशा मुस्लिम समुदाय से धैर्य बनाए रखने और शांति बनाए रखने की अपील की है। लेकिन हम ऐसा कब तक कर पाएंगे?"

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के अधिकारी एनए फारूकी ने कहा है कि "हमारी कई अपील के बावजूद हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप नहीं किया। इस तथ्य के बावजूद कि निचली अदालतों के ऐसे फैसलों में देश को मौलिक रूप से बदलने की क्षमता है।" वह कहते हैं, "मुस्लिम समुदाय को यह महसूस कराया जा रहा है कि अदालतें भी ‘जिसकी लाठी, उसकी भैंस’ कहावत को आगे बढ़ा रही हैं।"

इत्तेहाद-ए-मिल्लत-काउंसिल (आइएमसी) के अध्यक्ष मौलाना तौकीर रजा ने कहा है कि हम किसी भी हालत में ज्ञानवापी को छोड़ने वाले नहीं है। वह कहते हैं, पूरे देश में कानून का राज अब नहीं रहा है। अगर ज्ञानवापी को लेने की कोशिश की तो हम जेल भरो आंदोलन शुरू करेंगे। जिसकी शुरुआत मैं बरेली से कर रहा हूं। बीजेपी सरकार 2024 का लोकसभा चुनाव राम मंदिर पर जीतना चाहती है। 2027 का चुनाव ज्ञानवापी और 2029 का चुनाव मथुरा पर जीतना चाहते हैं। ऐसी 3000 मस्जिदों की लिस्ट बनाई गई है। उन्होंने आगे कहा कि मैं किसी जांच एजेंसी पर कोई भरोसा नहीं करता हूं।"

अब तक क्या हुआ?

1. पहला मुकदमा - 1991

1991 में, काशी विश्वनाथ ज्ञानवापी मस्जिद केस का पहला मुकदमा वाराणसी कोर्ट में दाखिल हुआ था। यहां ज्ञानवापी परिसर में पूजा की अनुमति की मांग की गई थी, जिसमें प्राचीन मूर्तियों के साथ कई प्रमुख व्यक्तियों ने शामिल थे।

2. पूजास्थल कानून - 1991

मुकदमा दाखिल होने के कुछ महीने बाद, सितंबर 1991 में, केंद्र सरकार ने पूजास्थल कानून बना दिया। इसके तहत, 15 अगस्त 1947 से पहले अस्तित्व में आने वाले किसी भी धर्म के पूजास्थल को दूसरे धर्म में बदलने का प्रतिबंध था। इसका उल्लंघन करने पर कड़ी कानूनी कार्रवाई की जा सकती थी।

3. इलाहाबाद हाई कोर्ट का आदेश - 1993

1993 में, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने स्थिति को स्थापित रखने के लिए स्टे लगाया। यह आदेश 2018 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रभावी नहीं रहेगा, लेकिन इसने मामले को आगे बढ़ाने का मार्ग प्रदान किया।

4. सुप्रीम कोर्ट का निर्देश - 2018

2018 में सुप्रीम कोर्ट ने स्थिति को स्थापित रखने के लिए स्थानीय अदालत को निर्देश दिया। इसके बाद, 2019 में वाराणसी कोर्ट में मामले की सुनवाई शुरू हुई।

5. पुरातात्विक सर्वेक्षण - 2021

2021 में, वाराणसी की सिविल जज ने ज्ञानवापी मस्जिद के पुरातात्विक सर्वेक्षण की मंजूरी दी। इसके बाद, एक कमीशन को नियुक्त किया गया और उसे श्रृंगार गौरी की वीडियोग्राफी का आदेश दिया गया।

6. आदेश और सर्वे - 2024

2024 में, जिला जज ने मुस्लिम पक्ष की याचिका पर सुनवाई की और सर्वे के दौरान मंदिर का स्ट्रक्चर मिला है, जिससे हिंदू पक्ष को बड़ी खुशी हुई। इसके पश्चात, जिला अदालत ने हिंदू पक्ष को पुनः पूजा करने की इजाजत दी।

(लेखक बनारस स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

इसे भी पढ़ें: ज्ञानवापी सर्वे रिपोर्टः BJP-RSS ने तैयार कर ली है 2027 के यूपी चुनाव जीतने की पटकथा?

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest