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ज्ञानवापी केसः बनारस कोर्ट में खोली गई 1600 पन्नों की सर्वे रिपोर्ट, आपत्ति के लिए 6 फरवरी तक का समय

बनारस के डिस्ट्रिक जज डॉ.अजय कृष्ण विश्वेश ने कहा कि सर्वे रिपोर्ट में किसी तरह की आपत्ति होने पर दोनों पक्ष छह फरवरी 2024 तक इसे कोर्ट में दर्ज करा सकता है।  
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उत्तर प्रदेश के बनारस स्थित ज्ञानवापी मस्जिद में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की ओर से किए गए सर्वे की रिपोर्ट के लिफाफों को गुरुवार को डिस्ट्रिक कोर्ट में खोला गया। इस रिपोर्ट में करीब 1600 पन्ने हैं, जिसकी सत्यापित प्रतिलिपि के लिए कुल 11 लोगों ने कोर्ट में अर्जी दी है। इसके लिए आवेदकों को कोर्ट में दो रुपये की दर से करीब 3200 रुपये जमा करने होंगे। अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी और हिंदू पक्ष के अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने तात्कालिक तौर पर ASI सर्वे रिपोर्ट की डिमांड की है। उम्मीद की जा रही है कि देर शाम यह रिपोर्ट दोनों पक्षों को सौंपी जा सकती है। लोकसभा चुनाव नजदीक होने के कारण सर्वे रिपोर्ट सामने आने के बाद ज्ञानवापी का मामला गरमाने की उम्मीद है।

ज्ञानवापी परिसर में ASI की सर्वे की रिपोर्ट के लिफाफों को गुरुवार को डिस्ट्रिक कोर्ट में खोला गया और जिला जज डॉ.एके विश्वेश के सामने पेश किया गया। सबसे पहले रिपोर्ट के सभी पन्नों को गिना गया, जो करीब 1600 हैं। सर्वे रिपोर्ट की सत्यापित प्रतिलिपि के लिए सभी पक्षकारों को दो रुपए प्रति पेज की दर से 3200 रुपये डिस्ट्रिक कोर्ट में जमा करने के निर्देश दिए गए हैं। सर्वे रिपोर्ट की फोटो स्टेट कराई जा रही है। उम्मीद है कि गुरुवार को सिर्फ दो पक्षों को सर्वे रिपोर्ट दे दी जाएगी। हिंदू पक्ष की ओर से पांच याचिकाकर्ताओं के  अलावा अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी, सेंट्रल वक्फ बोर्ड, काशी विश्वनाथ ट्रस्ट, राज्य सरकार, मुख्य सचिव, गृह सचिव और वाराणसी जिला मजिस्ट्रेट का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ताओं ने सर्वेक्षण रिपोर्ट की प्रति के लिए आवेदन किया है।

आपत्ति के लिए छह फरवरी तक का मौका

बनारस के डिस्ट्रिक जज डॉ.अजय कृष्ण विश्वेश ने कहा कि सर्वे रिपोर्ट में किसी तरह की आपत्ति होने पर दोनों पक्ष छह फरवरी 2024 तक इसे कोर्ट में दर्ज करा सकता है। पिछले साल 18 दिसंबर 2023 को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने डिस्ट्रिक कोर्ट में सीलबंद लिफाफे में सर्वे रिपोर्ट सौंपी थी। ज्ञानवापी मस्जिद में मई 2022 में कमिश्नर सर्वे हुआ था। पिछले साल भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की ओर से सर्वे किया गया। हिंदू पक्ष ने कोर्ट से सर्वे रिपोर्ट सार्वजनिक करने की मांग की थी, लेकिन मुस्लिम पक्ष ने इस पर आपत्ति जताई थी। हालांकि मुस्लिम पक्ष ने भी सर्वे रिपोर्ट की सत्यापित प्रतिलिपि की डिमांड की थी। इस मामले में 24 जनवरी 2024 को वाराणसी डिस्ट्रिक कोर्ट में सुनवाई हुई तो जिला जज ने सभी पक्षों को सर्वे रिपोर्ट की हार्ड कॉपी देने का फैसला सुनाया।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने 84 दिनों में ज्ञानवापी मस्जिद में साइंटिफिक सर्वे किया। मौके की फोटोग्राफ लिए गए और वीडियोग्राफी भी कराई गई। ASI ने 36 दिनों में इसकी रिपोर्ट तैयार की। जीपीआर रिपोर्ट तैयार करने में एक महीना लगा। इस रिपोर्ट को अमेरिका के एक विशेषज्ञ से तैयार कराया गया है। हैदराबाद के साथ अमेरिका के वैज्ञानिकों की टीम ने कई दिनों तक मस्जिद का अध्ययन किया गया था, जिसमें स्थलीय बनावट, काल और समय आदि का विवरण है। जीपीआर सर्वे में मस्जिद के नीचे मौजूद अवशेषों का एक्स-रे किया गया है, जिसकी डिजिटल और ग्राफिक्स रिपोर्ट तैयार की गई है।

उल्लेखनीय है कि शृंगार गौरी केस की सुनवाई के दौरान डिस्ट्रिक जज की कोर्ट ने ज्ञानवापी परिसर (सील वजूखाने को छोड़कर) में ASI को सर्वे का आदेश दिया था। हिंदू पक्ष की राखी सिंह, सीता साहू, रेखा पाठक, मंजू व्यास और लक्ष्मी देवी की ओर से सिविल जज (सीनियर डिवीजन) की अदालत में 17 अगस्त 2021 को दाखिल किया गया था। अदालत के आदेश पर एक अधिवक्ता आयुक्त की अगुवाई में 6-7 मई 2022 को ज्ञानवापी में कमिश्नर सर्वे की कार्रवाई हुई थी। इसके बाद 14 से 16 मई 2022 तक तीन अधिवक्ता आयुक्त ने ज्ञानवापी परिसर में सर्वे किया था। 16 मई 2022 को ही ज्ञानवापी स्थित वजूखाने में शिवलिंगनुमा आकृति मिलने का दावा किया गया था। उसी दिन हिंदू पक्ष की मांग पर अदालत के आदेश से वजूखाने को सील कर दिया गया था। इलाहाबाद हाईकोर्ट पहले ही कह चुका है कि ज्ञानवापी के मामले में पूजा स्थल अधिनियम नहीं लागू होता है, इसलिए साक्ष्यों के आधार पर आदेश देने में अदालत को कोई दिक्कत नहीं आएगी।

क्या कहते हैं हिंदू-मुस्लिम पक्ष?

हिंदू पक्ष के अधिवक्ता सुधीर त्रिपाठी का दावा है कि मुगल शासक औरंगजेब ने 1669 में ज्ञानवापी मंदिर को ध्वस्त कराया था। मंदिर के ऊपरी हिस्से को मस्जिद का रूप दिया था। इसके लिए तीन गुंबद बनाए थे। मुख्य गुंबद के नीचे एक और शिवलिंग है। वहां धप-धप की आवाज आती है। सील वजूखाने में शिवलिंग मिला है। सर्वे रिपोर्ट से सच सामने आ जाएगा।

अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी के संयुक्त सचिव एसएम यासीन का दावा है कि ज्ञानवापी अकबर के कार्यकाल से पहले की बनी है, जिसके साक्ष्य मौजूद हैं। औरंगजेब का शासन बाद में आया था। वजूखाने में फव्वारा लगा है। हम चाहते थे कि सर्वे रिपोर्ट सार्वजनिक न की जाए, क्योंकि दूसरा पक्ष इसका गलत इस्तेमाल कर सकता है। संभव है कि तथ्यों को तोड़-मरोड़कर पेश किया जाएगा, जिससे माहौल खराब होगा। अब आदेश आ गया है तो नकल प्राप्त करके आगे की कानूनी लड़ाई लड़ी जाएगी।

‘न्यूजक्लिक’ से बातचीत करते हुए मो.यासीन कहते हैं, "हमें कोर्ट के फैसले के अलावा भारत के संवैधानिक मूल्यों पर हमें पूरा भरोसा है, लेकिन एएसाई सर्वे का निर्णय गलत है। वर्शिप ऑफ़ एक्ट 1991 के अनुसार किसी भी ऐसे स्ट्रक्चर से छेड़छाड़ संविधान के खिलाफ है। ताजा घटनाओं के नेपथ्य में देखें तो हाल के दिनों में कुछ लोगों की भूख लगातार बढ़ती जा रही है और वह शांत होने का नाम नहीं ले रही है। अयोध्या प्राण प्रतिष्ठा के बाद काशी और मथुरा को लेकर जो बयानबाजी की जा रही है वह साबित करता है कि इसकी पटकथा लिखी जा चुकी है। हम सिर्फ इतना कहना चाहते हैं कि हमारे सब्र का इम्तिहान लिया जा रहा है। अयोध्या के बाद काशी और मथुरा की बातें हमारी भावनाओं को कुचलने जैसी है।"

यासीन यह भी कहते हैं, "बनारस के डिस्ट्रिक कोर्ट ने अपने आदेश में ज्ञानवापी परिसर के प्लाट संख्या-9130 का सर्वे करने की बात कही थी, जिसका कुल रकबा एक बीघा, नौ बिस्वा छह धुर है। यह ब्योरा मस्जिद के रिकॉर्ड में भी है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण महकमे ने सिर्फ मस्जिद के अंदर के हिस्से का ही सर्वे किया और बाकी को छोड़ दिया। यह सर्वे अधूरा है, जिसे हम जल्द ही कोर्ट में उठाएंगे। दूसरी बात, कोर्ट ने मस्जिद में खुदाई करने पर रोक लगा रखी थी। कोर्ट के आदेशों को धता बताते हुए सर्वे टीम ने मस्जिद परिसर में काफी गहराई तक खुदाई कराई। वहां जो कुछ मिला, प्रशासन ने उसे सबके सामने हैंडओवर नहीं किया। किसी को यह नहीं दिखाया गया कि ASI टीम क्या लेकर गई? यह कार्रवाई आन द स्पॉट होनी चाहिए थी। कोर्ट ने मस्जिद में खुदाई का कोई निर्देश नहीं दिया था, फिर भी दस-दस फीट जमीन खोदी गई। मनमानी का आलम यर रहा कि जिन औजारों के इस्तेमाल की इजाजत नहीं थी, उसका भी यहां धड़ल्ले से इस्तेमाल किया गया। ऐसे में हम भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की रिपोर्ट पर भरोसा कैसे कर सकते हैं?"

(लेखक  बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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