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‘जाति जनगणना को दशकीय जनगणना में शामिल करें’: स्टालिन का पीएम मोदी से आग्रह

“यह साक्ष्य-आधारित नीति निर्माण को सक्षम बनाएगा, जिससे हम सभी को समान और समावेशी विकास सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी।”
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फाइल फ़ोटो। PTI

चेन्नई: तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से शनिवार, 21 अक्टूबर को अपील की कि वह भावी दशकीय जनगणना में जाति आधारित गणना को भी शामिल करें।

स्टालिन ने मोदी को लिखे पत्र में कहा कि यह पहल विकास के लाभों को सबसे कमजोर वर्गों तक पहुंचाने और एक मजबूत एवं अधिक समावेशी भारत का निर्माण करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित होगी।

उन्होंने इस मामले में मोदी से निजी हस्तक्षेप करने का अनुरोध करते हुए कहा कि प्रस्तावित राष्ट्रीय दशकीय जनगणना के साथ जाति आधारित गणना को एकीकृत करने से समाज की जातीय संरचना और सामाजिक-आर्थिक संकेतकों में इसके असर के संबंध में समग्र और विश्वसनीय आंकड़े मिल सकते हैं।

स्टालिन ने कहा, ‘‘यह साक्ष्य-आधारित नीति निर्माण को सक्षम बनाएगा, जिससे हम सभी को समान और समावेशी विकास सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी। इस कार्य (जाति आधारित गणना) को दशकीय जनगणना के साथ-साथ करने से न केवल देश भर में आंकड़ों की तुलना करना सुनिश्चित होगा, बल्कि इससे संसाधनों का भी इष्टतम उपयोग होगा।’’

मुख्यमंत्री स्टालिन ने शुक्रवार को लिखे पत्र में कहा, ‘‘इसलिए, केंद्र सरकार को एक व्यापक, राष्ट्रव्यापी जातीय गणना की तुरंत योजना बनानी चाहिए और इसकी तैयारी शुरू करनी चाहिए।’’

वर्ष 2021 में होने वाली जनगणना कोरोना वायरस वैश्विक महामारी के कारण नहीं की जा सकी थी।

स्टालिन ने कहा कि जाति-संबंधी महत्वपूर्ण आंकड़े करोड़ों पात्र लोगों के जीवन को प्रभावित करेंगे और इसलिए जनगणना में और देरी नहीं की जानी चाहिए।

बिहार जैसी कुछ राज्य सरकारों ने सफलतापूर्वक जाति-आधारित गणना की हैं, जबकि अन्य राज्यों ने इस प्रक्रिया को शुरू करने के लिए कदम उठाने की घोषणा की है।

स्टालिन ने कहा कि इस तरह की राज्य विशिष्ट पहल और उनके आंकड़े बहुत उपयोगी हैं, लेकिन इनका राष्ट्रीय स्तर पर तुलनात्मक अध्ययन नहीं हो सकता।

उन्होंने कहा कि जाति भारत में सामाजिक प्रगति की संभावनाओं का ऐतिहासिक रूप से प्रमुख निर्धारक रही है, इसलिए यह जरूरी है कि इस संबंधी तथ्यात्मक आंकड़े सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराए जाएं।

उन्होंने कहा कि इसी की मदद से विभिन्न हितधारक एवं नीति निर्माता पुराने कार्यक्रमों के प्रभाव का विश्लेषण कर सकेंगे और भविष्य के लिए रणनीतियों की योजना बना सकेंगे।

(न्यूज़ एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ)

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