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बात-बेबात: हम लोगों को समझ सको तो...

उन्होंने फ़रमाया, ''देखिए, हमारा देश एक हिंदू राष्‍ट्र है। यहां मकानों पर आप हरा झंडा कैसे फहरा सकते हैं। हरा झंडा फहराना है तो पा‍किस्‍तान चले जाइए। हां, आप भगवा झंडा फहरा सकते हैं।''
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प्रतीकात्मक तस्वीर। साभार गूगल

हाल ही में उनसे एक मित्र के यहां एक आयोजन में अचानक मुलाकात हो गई। खाना खाते समय संयोग से हम एक ही टेबल पर आमने-सामने बैठे थे तो बातों का सिलसिला चल पड़ा।

कॉलेज के जमाने में वे मेरे सहपाठी रहे थे। मेरे एक अन्‍य सहपाठी मित्र के तो अजीज मित्र थे इसलिए मेरा भी उनसे सहज परिचय था। मैं उनके नेचर से वाकिफ था और वे भी मेरा स्‍वभाव जानते थे।

वे कॉलेज के दिनों से ही बहुत महत्‍वाकांक्षी थे। छात्र राजनीति में उनकी रूचि थी। खुद भी कॉलेज में चुनाव लड़ते रहते थे। ये बात अलग है कि अक्‍सर हार जाया करते थे। पर छात्रों में उनका दबदबा हुआ करता था। कॉलेज के दिनों में भी वे कोई न कोई मुद्दा उठाकर चर्चा में बने रहते थे। छात्रों के दिलो-दिमाग में छाए रहने के लिए कभी-कभी हिंसा का भी सहारा लेते थे।

आजकल वे एक राजनीतिक दल के नेता हैं। अपनी चुनावी चाणक्‍य नीति के लिए जाने जाते हैं। हर साम दाम दंड भेद अपनाकर अपनी पार्टी के लिए हारी हुई चुनावी बाजी को भी जितवाने की कुव्‍वत रखते हैं। किसी राजनीतिक दुश्‍मनी के चलते किसी राजनीतिक दुश्‍मन का सफाया करवाना भी उनके लिए बड़ी बात नहीं है। वे अपने चेले-चपाटों-चापलूसों में पुलिस प्रशासन से लेकर गुर्गे-गु्ंडे-बदमाश सब रखते हैं। इसलिए पार्टी में उनकी अच्‍छी साख और धाक है।

मैंने उनसे हाय-हैलों के बाद पूछा-''यार, आजकल तो आप अपनी राजनीतिक पार्टी की आंखों के तारे बने हुए हो। क्‍या इरादा है?'’

वे मुस्‍करा कर उवाचे -''इरादे तो हमेशा हमारे नेक रहते हैं। ये अलग बात है कि लोग हमारे इरादों को नेक-नीयत से नहीं देखते हैं।''

''सुना है हरियाणा विधानसभा चुनाव में आपकी पार्टी लगभग हारने जा रही थी पर आपने हारी हुई बाजी जितवा दी। कैसे किया ये करिश्‍मा?'’

''करिश्‍मा कुछ नहीं, देखिए चुनाव जीतना आसान काम नहीं होता। तरह-तरह के हथकंडे अपनाने पड़ते हैं। साम दाम दंड भेद सभी से काम लेना होता है। आजकल लोग आसानी से कन्विंस नहीं होते। पब्लिक से वोट लेना बहुत मुश्किल हो गया है। कही-कहीं फूट डालो राज करो वाली नीति भी अपनानी पड़ती है। झूठे वादे करने पड़ते हैं। मुफ्त की रेवडि़यां बांटनी होती हैं। धर्म और आस्‍था के नाम पर लोगों को इमोशनल या कहिए ब्‍लैकमेल करना होता है। नफरत की राजनीति करनी पड़ती है। हिंसा भी भड़कानी होती है।''

मैंने कहा, ''आप सही कह रहे हैं। हाल ही में उत्तर प्रदेश के बहराइच में सांप्रदायिक हिंसा हुई। इस हिंसा में एक युवा की हत्‍या भी हो गई।'’

''देखिए, हमारा देश एक हिंदू राष्‍ट्र है। यहां मकानों पर आप हरा झंडा कैसे फहरा सकते हैं। हरा झंडा फहराना है तो पा‍किस्‍तान चले जाइए। हां, आप भगवा झंडा फहरा सकते हैं। हिंदुओं की आस्‍था से खिलवाड़ नहीं चलेगा। ऊपर से आप हमारे एक युवा की हत्‍या कर रहे हैं तो अंजाम तो भुगतना पड़ेगा। आज हिंदू खतरे में हैं। हिंदू राष्‍ट्र खतरे में हैं। इसलिए आज हिंदुओं में एकता होना बहुत जरूरी है। हम बंटेंगे तो कटेंगे।''

''लेकिन भाई, उत्तर प्रदेश में नौ-दस सीटों पर उपचुनाव हैं। ये दंगे राजनीति से प्रेरित हो सकते हैं। वैसे एक बात तो इस बार के लोकसभा चुनाव में स्‍पष्‍ट हो गई है कि उत्तर प्रदेश में हिंदुओं पर भी आपकी सरकार की पकड़ कमजोर हुई है। खासकर दलितों का वोट आपकी पार्टी को नहीं मिला है या बहुत कम मिला है। इस बार के उपचुनावों में भी दलितों का वोट निर्णायक होगा। दलितों के प्रति आपकी सोशल इंजीनियरिंग जम नहीं पा रही है क्‍या?'’

''ऐसा नहीं है। देखिए हरियाणा में हम सुप्रीम कोर्ट के सुझावों के अनुसार दलितों को आरक्षण के कोटे में से कोटा देने को तैयार हो गए हैं। उनको मं‍त्री भी बना रहे हैं। इस बार दलित हमें ही वोट देंगे।''

''लेकिन हिंदू राष्‍ट्र के नाम पर आप संविधान की बजाय मनुविधान को ज्‍यादा वरीयता देते हैं। हिंदू संस्‍कृति और सनातन धर्म के नाम पर जातिवाद और भेदभाव को बढ़ावा देते हैं। ऐसे में दलित आप को क्‍यों वोट देंगे?''

''ऐसा नहीं है। दलित हों या आदिवासी सभी हिंदू होते हैं। हिंदुओं के लिए मनु महाराज ने बहुत अच्‍छे विधान बनाए हैं। कर्मोंं के आधार पर जातियों का निर्धारण किया है। हिंदू संस्‍कृति और सनातन धर्म से अच्‍छा कोई धर्म नहीं है।

विपक्ष वाले जरूर संविधान को खतरे में बता कर हम पर आरक्षण विरोधी होने का लेबल लगाते हैं। हम न संविधान के विरोध में हैं और न आरक्षण के। दलित और आदिवासी हमारे भाई हैं। हम उनके हितैषी हैं। हम सदैव उनके हित में काम करते रहेंगे। इसलिए अपने लिए वोट की उम्‍मीद से तो हम उनसे करेंगे ही।''

''लेकिन मुसलमानों से आप वोट की उम्‍मीद नहीं करते। क्‍योंकि वे मुसलमान हैं और आप हिंदू।''

''ऐसा कुछ नहीं है यार, मुसलमान या उनके समर्थक ऐसी बातें करते हैं।''

''आपकी बातों से लगता है मुसलमानों से आपको कुछ तो परहेज है। लेकिन महाराष्‍ट्र में आपकी सरकार मुसलमान मदरसों के शिक्षकों का वेतन बढ़ा रही है। वहां चुनाव होने वाले हैं, क्‍या इसलिए?''

''चुनाव की वजह से ऐसा नहीं है। हमारी पार्टी 'सबका साथ सबका विकास' में विश्‍वास करती है। मुसलमान भी इस देश के नागरिक हैं। उनका भी विकास होना चाहिए। लोकतंत्र में सब नागरिकों के समान अधिकार हैं। सबको आगे बढ़ने का तरक्‍की करने का हक है।'' उन्‍होंने एक दम से यूटर्न ले लिया।

''आपकी बातों से ऐसा लग रहा है कि आपका विश्‍वास चित भी मेरी पट भी मेरी में है। समर्थक भी आप हैं विरोधी भी आप हैं। लोकतंत्र पर अंकुश भी आप हैं, निरंकुश भी आप हैं। शासक भी आप हैं विनाशक भी आप हैं। एक साथ आखिर क्‍या- क्‍या हैं आप?''

हम लोग खाना खा चुके थे। बातों को विराम देने के उद्देश्‍य से मैं उठ खड़ा हुआ। वे भी मुस्‍कुराते हुए उठे और बोले- ''छोड़ो यार हम लोगों के बारे मे जानना, हम ऐसे भी हैं और हैं वैसे भी।''

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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