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पड़ताल: क्या यूपी 'एनकाउंटर प्रदेश' बन गया है!

पुलिस और न्यायिक हिरासत में मौत के मामलों में उत्तर प्रदेश देश में पहले स्थान पर है।
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अतीक अहमद और अशरफ हत्याकांड और असद, गुलाम की पुलिस एनकाउंटर में मौत के बाद से यूपी सरकार पर फ़र्ज़ी एनकाउंटर और ख़राब कानून-व्यवस्था के सवाल उठाए जा रहे हैं। सपा नेता अखिलेश यादव और बसपा नेता मायावती सहित कई विपक्षी नेताओं ने मामलों की जांच की मांग की है।

यूपी की कानून-व्यवस्था और एनकाउंटर फिर से चर्चा में है। पुलिस प्रशासन की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं और योगी आदित्यनाथ की भाजपा सरकार पर भी एक विशेष समुदाय को निशाना बनाए जाने के आरोप लग रहे हैं। आइये, हम भी थोड़ी पड़ताल करते हैं कि आखिर यूपी में पुलिस एनकाउंटर की स्थिति क्या है? योगी राज में कितने एनकाउंटर हुए हैं? पुलिस एनकाउंटर में कितने अभियुक्तों की मौत हुई है? उत्तर प्रदेश में पुलिस और न्यायिक हिरासत में मौतों की स्थिति क्या है?

पुलिस एनकाउंटर और उत्तर प्रदेश

पुलिस मुठभेड़ में मौत के मामले पर राज्यसभा में 23 मार्च 2022 को एक सवाल के लिखित जवाब में गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने कुछ आंकड़ें सदन में रखे थे। पिछले पांच सालों के आंकड़ों के अनुसार उत्तर प्रदेश पुलिस मुठभेड़ में मौत के मामले में देश में दूसरे नंबर पर है।

उत्तर प्रदेश में वर्ष 2017-18 में पुलिस मुठभेड़ में मौत के 44 मामले दर्ज किए गए।

वर्ष 2018-19 में 22,

वर्ष 2019-20 में 26,

वर्ष 2020-21 में 16

और वर्ष 2021-22 में पुलस मुठभेड़ में मौत के 9 मामले दर्ज किए गए।

राज्यसभा में गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय के लिखित जवाब के अनुसार उत्तर प्रदेश में इन पांच सालों में पुलिस मुठभेड़ में कुल 117 लोगों की मौत हुई है। पिछले पांच सालों के आंकड़ों के अनुसार पुलिस मुठभेड़ में मौत के मामलों में उत्तर प्रदेश देश में दूसरे नंबर पर है।

13 अप्रैल 2023 को प्रेस वार्ता के दौरान यूपी पुलिस एडीजी प्रशांत कुमार ने बताया कि 2017 से लेकर अब तक यूपी में पुलिस मुठभेड़ में 183 अभियुक्त मारे गये है। यानी पुलिस एनकाउंटर में हर महीने दो से ज्यादा अभियुक्तों की मौत हुई है।

द क्विंट ने यूपी पुलिस के हवाले से लिखा है कि उत्तर प्रदेश में मार्च 2017 से लेकर मार्च 2023 तक लगभग 11,000 पुलिस एनकाउंटर हुए हैं जिनमें 183 अभियुक्तों की मौत हुई है। आंकड़ा बता रहा है कि यूपी में हर रोज पांच पुलिस एनकाउंटर हुए हैं। ऐसे में यूपी सरकार और पुलिस प्रशासन पर सवाल उठना वाजिब ही है।

यूएनओ भी ज़ाहिर कर चुका है चिंता

यूपी में एक समुदाय विशेष को निशाना बनाकार प्रताड़ित करने और एनकाउंटर के मामलों पर यूएनओ मानवाधिकार यूनिट भी चिंता जाहिर कर चुकी है। मार्च 2017 से लेकर जनवरी 2019 के बीच 59 “एक्स्ट्राज्यूडिशियल किलिंग” को यूएनओ ने चिंताजनक बताया था। पुलिस का कहना था कि ये मौत आत्मरक्षा के लिए पुलिस मुठभेड़ के दौरान हुई हैं। जबकि यूएनओ एक्सपर्ट ने कहा था कि ऐसा आरोप लगाया जा रहा है कि एनकाउंटर से पहले अभियुक्तों को गिरफ्तार किया जा चुका था। उनके शरीर पर चोट के निशान प्रमाण हैं कि उनको प्रताड़ना दी गई है। यूएनओ ने स्थिति को “अलार्मिंग” बताया था।

पुलिस और न्यायिक हिरासत में हर रोज़ एक मौत

पुलिस एवं न्यायिक हिरासत में मौत के संदर्भ में लोकसभा में गृहमंत्री से 27 जुलाई 2021 को सवाल पूछा गया।

गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने जिसका लिखित जवाब सदन में रखा।

इसके अनुसार पुलिस और न्यायिक हिरासत में मौत के मामलों में उत्तर प्रदेश देश में पहले स्थान पर है।

उत्तर प्रदेश में वर्ष 2018-19 में पुलिस और न्यायिक हिरासत में मौत के 464 मामले दर्ज किए गये। वर्ष 2019-20 में 403 और वर्ष 2020-21 में 451 मामले दर्ज़ किए गए।

यानी इन तीन सालों में पुलिस और न्यायिक हिरासत में मौत के कुल 1,318 मामले दर्ज किए गए हैं। जो देश में सबसे ज्यादा है। आंकड़े बता रहे हैं कि उत्तर प्रदेश में पुलिस और न्यायिक हिरासत में हर रोज एक से ज्यादा मौत होती है।

उपरोक्त आंकड़े गृहमंत्री अमित शाह और योगी सरकार के अपराधमुक्त और भयमुक्त यूपी के दावों की पोल खोल रहे हैं।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं ट्रेनर हैं। आप सरकारी योजनाओं से संबंधित दावों और वायरल संदेशों की पड़ताल भी करते हैं।)

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