क्या यह यमन में समुद्री ज्वार के पलटने का समय है?
पिछले हफ्ते, यमन में अंसार अल-अल्लाह ( हुती) लड़ाकों ने एक बड़ी जीत का दावा किया था, जिसमें कहा गया था कि इसके लड़ाकों ने सफलता पूर्वक सऊदी अरब के इलाके पर आक्रमण किया और नजरान प्रान्त के 350 स्क्वायर किलोमीटर इलाके को “आजाद” करा लिया है। हुती लड़ाकों का यह भी दावा है कि उन्होंने गठबंधन सेनाओं के 500 जवानों को मार गिराया है और करीब 2000 सैनिकों को अपने कब्जे में कर लिया है। उसके अनुसार, उसकी गिरफ्त में आये इन 2000 लोगों में से अधिकतर सऊदी अरब के नागरिक हैं। हालाँकि अभी भी इस बारे स्वतंत्र सूत्रों से कोई पुख्ता जानकारी नहीं मिल पाई है, लेकिन यह ऑपरेशन युद्ध में एक अहम और निर्णायक मोड़ साबित हो सकता है।
हुती लड़ाकों का दावा है कि 'विक्ट्री फ्रॉम अल्लाह' (अल्लाह की तरफ से जीत) नाम के इस अभियान में उसने सऊदी नेतृत्व वाली गठबंधन सेना के तीन ब्रिगेड्स और एक रेजिमेंट को तबाह करने में सफलता पाई है। कुछ रिपोर्टों से ऐसा लगता है कि यह ऑपरेशन अगस्त या 14 सितंबर के सऊदी के तेल भण्डारण क्षेत्र पर हुए ड्रोन हमले के बाद सितम्बर के अंत में हुआ होगा, जिसकी जिम्मेदारी हुती लड़ाकों ने ली थी।
हुतियों ने इन दावों को साबित करने के लिए अपने आधिकारिक टीवी चैनल अल-मसिरह पर रविवार को एक वीडियो भी जारी किया है। फुटेज में कई बख्तरबंद गाड़ियों को तबाह होते दिखाया गया है और बड़ी संख्या में उन लोगों को दिखाया है, जिन्हें हुती फ़ोर्स ने कथित तौर पर अपने कब्जे में कर लिया है।
नज़रान सऊदी अरब का सुदूर दक्षिणी प्रांत है, और यमन के साथ इसकी एक लंबी चौड़ी सीमा रेखा है। एक वक्त था जब उत्तरी यमन के जैदी शासकों ने इस क्षेत्र पर अपना दावा पेश किया था। 2015 से सऊदी के नेतृत्व वाली गठबंधन सेना इस प्रान्त का इस्तेमाल देश के उत्तरी हिस्सों में हुती-नियंत्रित क्षेत्रों के खिलाफ जमीनी हमले के रूप में करती आ रही है।
सऊदी अरब का इंकार
सऊदी कमांड के तहत लड़ने वाले अधिकतर सैनिक यमन के अलग-अलग प्रान्तों से आते हैं, जिन्हें अब्द रब्बुह मंसौर हादी के वफादारों द्वारा भर्ती किया जाता है। पिछले कुछ हफ़्तों से, सैकड़ों युवा यमनियों के गायब होने और सऊदी-समर्थक हादी सरकारी बलों द्वारा सेना में भर्ती किये जाने की खबरें कई मीडिया सूत्रों से प्राप्त हुई हैं। 'मिडिल ईस्ट आई' ने अपनी 24 सितंबर की रिपोर्ट में इस बात का जिक्र किया है कि ताईज़ जैसे प्रान्तों, जहाँ से अधिकतर लड़ाकों को भर्ती किया जाता है, में व्यापक तौर पर यह आम धारणा है, कि अधिकतर युवा जो गायब हो गए थे या तो हुती बलों ने उन्हें कैद कर लिया है या वे मारे गए हैं। 30 सितंबर को हुती द्वारा जारी वीडियो भी इस प्रकार की रिपोर्टों की पुष्टि करता है।
हालाँकि, 30 सितंबर को एक संवाददाता सम्मेलन में, सऊदी नेतृत्व वाले गठबंधन के प्रवक्ता तुर्क अल-मलिकी ने हुती के दावे को "भ्रामक मीडिया अभियान" कहकर नकार दिया है।
यमन में सऊदी समर्थित हादी सरकार के सूचना मंत्री ने भी हुती के जीत के दावों को "झूठी खबर" बताया है, और इसे हुती लड़ाकों के भीतर चल रहे “ राजनीतिक अनिश्चय” को छिपाने की एक कोशिश करार दिया।
सऊदी अरब द्वारा इस घटना के खंडन को एक बेहद छोटे और सीमित संसाधनों से लैस हुती सेनालड़ाकों से एक बार फिर मुहँ की खाने के सच को छुपाने के रूप में देखा जाना चाहिए, जिससे वह पिछले 5 साल से यमन में युद्धरत है। अगर सऊदी अरब हुती लड़ाकों की इस सफलता को स्वीकार करता है तो न सिर्फ यह उसके लिए शर्मिंदगी का कारण बनेगा, बल्कि यह मित्र सेनाओं को भी हतोत्साहित करने वाला साबित होगा। शायद यही कारण है कि इस तरह की और शर्मिंदगी से बचने के लिए सऊदी अरब ने हुती इस दावे को भी ख़ारिज कर दिया है कि उसने 14 सितम्बर को उसके तेल के ठिकानों पर हमला किया है,इसके बजाय सऊदी ने बिना किसी सुबूत के इसके लिए ईरान को दोषी करार दिया है।
युद्ध बंदियों की रिहाई का मसला
इस बीच, ऐसा लगता है कि यमन युद्ध में हुती लड़ाकों ने सऊदी अरब की कमजोरियों को उजागर करने के लिए बेहतर रणनीति अपनाई है। अपने ऑपरेशन की सफलता की घोषणा करने के बाद हुती ने अगले ही दिन हादी सरकार की सेना के 350 युद्धबंदियों को बिना किसी शर्त के रिहा कर दिया।
इंटरनेशनल रेड क्रॉस के अनुसार हुतियों द्वारा रिहा किए गए कैदियों की कुल संख्या 290 थी। हुती नेशनल कमेटी फॉर प्रिजनर्स अफेयर्स द्वारा जारी आधिकारिक बयान में कहा गया है कि यह कदम युद्ध बंदियों के आदान-प्रदान पर संयुक्त राष्ट्र की अगुवाई में बने समझौते को लागू करने के तहत किया गया, जिसपर स्टॉकहोम में दिसंबर 2018 में सहमति व्यक्त की गई थी। वर्तमान सन्दर्भ में युद्धबंदियों की रिहाई एक सुविचारित योजना है, जिससे हुतियों के इस दावे की पुष्टि होती है और सऊदी अरब के दावे खोखले साबित होते हैं , जिसने अपने जन बल की क्षति तक को स्वीकार करने से इंकार कर दिया है।
14 सितंबर के हमले के बाद हुतियों ने संयुक्त अरब अमीरात के भी कई ठिकानों पर हमला करने की धमकी दी है। हालांकि उसने विवाद के निपटारे के लिए अपनी और से तत्परता भी दिखाई है यहां तक कि 20 सितंबर से संघर्ष विराम का प्रस्ताव भी रखा है। सऊदी गठबंधन की ओर से अभी तक इस प्रस्ताव पर प्रतिक्रिया नहीं आई है। असल में, इस प्रस्ताव के कुछ ही दिनों के अंदर, 22 सितंबर को, यमन के ओमरान प्रान्त में सऊदी हवाई हमलों में 5 नागरिकों की मौत हो गई है।
क्या सऊदी मित्र गठबंधन रक्षात्मक मुद्रा में है?
सऊदी अरब दुनिया में सबसे बड़ा हथियार खरीदने वाला मुल्क है। यह वह देश है जिसका रक्षा व्यय दुनिया में सबसे अधिक है, और अमेरिका से इसे सक्रिय समर्थन हासिल है। अमेरिका के अलावा, ब्रिटेन और फ़्रांस भी यमन में सऊदी अरब को युद्ध में मदद देने के लिए परिष्कृत उपकरण और तकनीकी सहायता प्रदान कर रहे हैं।
इन सब संसाधनों और भरपूर मदद के बावजूद, सऊदी अरब न तो अपने भूभाग पर आक्रमण को रोक पाने में सफल हो पा रहा है, और न ही वह उसकी ओर से लड़ रहे मित्र देशों के भीतर होने वाले हमलों से उनकी सुरक्षा कर पा रहा है। अदन और इसके आस-पास के इलाकों में गठबंधन के अन्दर भी संघर्ष जारी है, क्योंकि सऊदी अरब मित्र राष्ट्रों में दूसरे सबसे बड़े भागीदार देश, संयुक्त अरब अमीरात को वह इस बात के लिए राजी कर पाने में सफल नहीं हो पा रहा कि UAE को क्यों इस युद्द में अपनी हिस्सेदारी जारी रखनी आवश्यक है ? ये घटनाक्रम इस बात के लक्षण हैं कि सऊदी अरब अब यमन में लड़ाई हार रहा है।
यमन में युद्ध की शुरुआत 2015 में तब हुई जब सऊदी के नेतृत्व में गठबंधन सेना ने राजधानी सना में हादी सरकार को पुनर्स्थापित करने की जिम्मेदारी ली, जिसे हुती लड़ाकों ने 2014 में अपने नियन्त्रण में ले लिया था। तब से, इस संघर्ष में लाखों लोग अपनी जान गँवा चुके हैं। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार यह “दुनिया की सबसे बड़ी मानव जनित आपदा” है, जिसमें जमीन पर युद्ध के साथ साथ, सऊदी अरब और यूएई द्वारा किये गए हवाई हमले और सभी तरह के व्यापार और आदान प्रदान पर नाकाबंदी लगा दी गई, जिसमें आवश्यक खाद्य पदार्थों और चिकित्सा आपूर्ति पर प्रतिबन्ध शामिल है।
इस युद्ध ने दसियों लाख लोगों को विस्थापित होने पर मजबूर किया है, और लगभग सारी आबादी को ही भुखमरी और अति आवश्यक चिकित्सा सेवाओं की कमी के चलते मौत के कगार पर धकेल दिया है। हालाँकि संयुक्त राष्ट्र की कई रिपोर्टों में हुतियों और सऊदी गठबंधन दोनों को ही युद्ध अपराधों और मानवाधिकारों के उल्लंघन के लिए जिम्मेदार ठहराया है, लेकिन यह सऊदी अरब और उसकी गठबंधन सेना ही है जिसने नाकाबंदी और हवाई हमलों के जरिये उत्पन्न उन दो प्रमुख कारकों को जन्म दिया है, जिसके कारण अरब मुल्कों में सबसे गरीब देश के नागरिक आज दुखों और तकलीफ के अथाह सागर से जूझ रहे हैं।
(साभार पीपुल्स डिस्पैच)
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