झारखंड: केंद्र सरकार की नीतियों को ‘श्रमिक विरोधी’ बताते हुए मज़दूरों ने किया विरोध प्रदर्शन!
हालात और आंकड़े दोनों ही बताते हैं कि मौजूदा समय में देश के संगठित व असंगठित समेत तमाम क्षेत्रों में काम कर रहे मज़दूरों की स्थिति किस तेज़ी से लगातार बद से बदतर और दयनीय होती जा रही है। समान काम और सम्मानजनक वेतन की गारंटी होना तो दूर, रोजी-रोटी की सुरक्षा की चिंता सबको खाए जा रही है। इसके लिए केंद्र सरकार की कॉर्पोरेटपरस्त और मज़दूर विरोधी नीतियां तो ज़िम्मेदार हैं हीं, साथ ही राज्यों की गैर-भाजपा सरकारों का उदासीन रवैया भी कम ज़िम्मेदार नहीं है। पूरे नौकरशाही तंत्र में मज़दूरों की ख़राब हालत को लेकर किसी तरह की संवेदना शायद ही आपको नज़र आए।
इसी संदर्भ में 6 जून को झारखंड राज्य श्रम भवन के सामने राज्य के विभिन्न क्षेत्रों और सेक्टरों से आए सैकड़ों मज़दूरों ने विरोध प्रदर्शन करते हुए श्रम मंत्रालय और राज्य की सरकार को अपनी मांगों का ज्ञापन सौंपा।
इस तपती गर्मी में भी राजधानी रांची में बड़ी संख्या में मज़दूर इकठ्ठा हुए और केंद्र सरकार की नीतियों को मज़दूर विरोधी बताया। साथ ही झारखंड सरकार के उदासीन रवैये को लेकर भी अपनी नाराज़गी जताई।
मज़दूर संगठन सीटू, झारखंड ईकाई के नेतृत्व में राज्य के अलग-अलग इलाकों और सेक्टरों से पहुंचे सैंकड़ों मज़दूर-कर्मचारियों ने अपनी मांग के समर्थन में नारे लगाते हुए विरोध प्रदर्शन किया। इससे पहले रांची के श्रीकृष्ण सिंह पार्क से मज़दूर-रैली निकाली गई जो झारखंड राज्य श्रम भवन के समक्ष जा कर प्रतिवाद-सभा में तब्दील हो गई। इस सभा को कई वरिष्ठ मज़दूर नेताओं ने संबोधित किया।
सीटू झारखंड के नेता प्रकाश विप्लव ने अपने संबोधन में भाजपा सरकार की नीतियों को मज़दूर विरोधी बताते हुए कहा, "हम सभी ने खुली आंखों से देखा कि किस तरह से मोदी-सरकार ने कोरोनाकाल में माला पहनाकर और ताली-थाली बजवाकर स्वास्थकर्मियों का स्वागत किया था। आज उन्हीं संविदाकर्मी स्वास्थकर्मियों को मनमाने ढंग से नौकरी से निकाला जा रहा है। हर दिन देश के सभी इलाकों में बड़े-बड़े हाईवेज़ को अपनी कड़ी मेहनत से बनाने-संवारने वाले मेंटिनेंस मज़दूरों को मनमाने ढंग से नौकरी से हटा दिया जा रहा है। विभिन्न सेक्टरों में अनुबंध और संविदा पर काम करने वाले सभी मज़दूर-कर्मचारियों को परमानेंट किए जाने की बजाय जबरन काम से हटाकर उन्हें पूरे परिवार समेत सड़कों पर दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर कर दिया जा रहा है। मोदी सरकार जो हर दिन मज़दूरों के हित में “सबके हित” की बात करती है, समय रहते उसे ज़मीनी स्तर पर मज़दूरों की ख़राब हालत को दूर करने के प्रति गंभीर होना होगा अन्यथा आने वाले लोकसभा चुनाव में मज़दूर भी अपना हिसाब-किताब करने को विवश हो जाएंगे।"
मोदी सरकार की निंदा करते हुए उन्होंने कहा, "दिल्ली में बैठी मोदी सरकार 44 में से 29 श्रम कानूनों में मनमाना संशोधन लागू कर पूरे मज़दूर समुदाय को 'अघोषित गुलाम' बनाने की कोशिश कर रही है। ऐसे में मज़दूरों को भी जवाब देना होगा।"
'हिंदू-मुसलमान' की विभाजनकारी राजनीति से बचने का आह्वान करते हुए उन्होंने कहा, "मज़दूरों को किसी भी कीमत पर अपना सांप्रदायिक विभाजन नहीं होने देना है। साथ ही, अनेकों कुर्बानियों से हासिल किए गए श्रम-अधिकारों को ख़त्म किए जाने की सरकार की कुटिल चालों पर लगाम लगाना है।"
मज़दूर-सभा के माध्यम से मज़दूर विरोधी रवैये का आरोप लगाते हुए झारखंड सरकार की भी कड़ी आलोचना की गई। कई वक्ताओं ने झारखंड सरकार के शासन में व्याप्त नौकरशाही तंत्र के कॉर्पोरेटपरस्ती और मज़दूरों के प्रति संवेदनहीनता के मुद्दे को ज़ोर देकर उठाया। साथ ही हेमंत सोरेन सरकार से जल्द से जल्द इस समस्या पर गंभीरतापूर्वक संज्ञान लेकर रोक लगाने की मांग की।
पूर्व विधायक व चर्चित कोयला मज़दूर नेता अरूप चटर्जी समेत कई अन्य वरिष्ठ मज़दूर नेताओं के प्रतिनिधि मंडल ने झारखंड के श्रम मंत्री के नाम वहां उपस्थित प्रशासनिक प्रतिनिधि को मांगपत्र सौंपा।
ज्ञापन की मांगें :
*राज्य में न्यूनतम मज़दूरी के दायरे में नहीं आने वाले सभी कामगारों के लिए विशेष ‘कल्याण बोर्ड का गठन’
*मनरेगा मज़दूरों के लिए अधिक बजट राशी सुनिश्चित किया जाए व शहरी रोज़गार गारंटी योजना को सही स्तर पर लागू किया जाए
*राज्य श्रम विभाग के सभी रिक्त पदों को अविलंब भरा जाए
*एनआई एक्ट के तहत मज़दूर-दिवस की छुट्टी सुनिश्चित की जाए
इसके साथ ही केंद्र सरकार द्वारा लेबर कोड में किए गए संसोधन को 'मज़दूर-विरोधी' बताते हुए इसे रद्द करने की मांग की गई। साथी ही "सभी सरकारी सेक्टरों को निजी कंपनियों के हवाले किए जाने तथा मज़दूरों को नए सिरे से ग़ुलामी में धकेले जाने वाले सभी नीतियों को रद्द करने की भी मांग की गई।"
मज़दूरों के इस विरोध प्रदर्शन में झारखंड प्रदेश के कोयला, इस्पात, ताम्बा, हेवी इंजीनियरिंग, माइका व बाक्साईट सेक्टरों के अलावा परिवहन, निर्माण क्षेत्र, बीड़ी, पत्थर, गिज वर्कर, स्कीम वर्कर, हाईवे मेंटेनेंस कामगार समेत कई सेक्टरों के संगठित व असंगठित मज़दूर-कर्मचारी शामिल हुए।
मज़दूर संगठनों का आरोप है कि झारखंड की राजधानी रांची से सटे हटिया स्थित देश की “मदर इंडस्ट्री” कही जाने वाली एचईसी आज खत्म होने की कगार पर है। झारखंड के मज़दूर संगठन लगातार आरोप लगा रहें हैं कि "आज़ाद भारत के राष्ट्र-निर्माण और विकास के नाम पर हज़ारों आदिवासी परिवारों व उनके सैंकड़ों गावों को विस्थापित कर बनाई गयी एचईसी को निजी हाथों में देने की कवायद जारी है। प्रदेश के सभी प्रकार के माइनिंग क्षेत्रों को पूरी तरह से निजी कंपनियों को सौंपने की कोशिशें जारी हैं।"
ऐसे में देखना है इस मामले में झारखंड प्रदेश के लाखों संगठित-असंगठित मज़दूर व उनके संगठन का अगला क़दम क्या होगा। जैसा कि मज़दूर संगठनों का आरोप है कि केंद्र की भाजपा सरकार द्वारा यहां संसाधनों को निजी कंपनियों के हाथों में सौंपने की तैयारी है, ऐसे में राज्य की हेमंत सोरेन सरकार के सामने भी ये चुनौती है कि इस मामले में उनकी सरकार क्या प्रभावी क़दम उठाती है। साथ ही सवाल ये भी है कि सोरेन सरकार झारखंड प्रदेश के मज़दूर-कामगारों के अधिकारों को राज्य में कहां तक सुनिश्चित कर पाती है।
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