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झारखंड: एचईसी बचाने के लिए 8 जनवरी की हड़ताल में शामिल होंगे कामगार

वर्तमान केंद्र सरकार की उपेक्षापूर्ण रवैये और इसे वित्तीय घाटे से उबारने व इसके आधुनिकीकरण के लिए पैसे देने से इंकार करने के कारण पूरे एशिया व देश का सुविख्यात उद्योग आज बंद होने की कगार पर पहुंचा दिया गया है।
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झारखंड की राजधानी से सटे हटिया स्थित देश के जाने माने औद्योगिक संस्थान हैवी इंजीनियरिंग कॉर्पोरेशन लिमिटेड (एचईसी) के कामगार भी 8 जनवरी की देशव्यापी मजदूर हड़ताल में शामिल होंगे। हटिया कामगार यूनियन ने यहाँ कार्यरत सभी मजदूरों–कर्मचारियों से इस हड़ताल में शामिल होने का आह्वान किया है। गत 3 जनवरी को यूनियन की ओर से बुलाई गई कामगारों की आमसभा से कहा गया कि आज एचईसी को बचाने के लिए यह हड़ताल बेहद ज़रूरी है। क्योंकि आज एचईसी की आर्थिक हालत ठीक नहीं है। उस पर से वर्तमान केंद्र सरकार की घोर उपेक्षापूर्ण रवैये और इसे वित्तीय घाटे से उबारने व इसके आधुनिकीकरण के लिए पैसे देने से इंकार करने के कारण पूरे एशिया व देश का सुविख्यात उद्योग आज बंद होने की कगार पर पहुंचा दिया गया है।

सभा के माध्यम से एचईसी मजदूर वक्ताओं ने एचईसी की बुरी हालत पर रोष प्रकट करते हुए कहा आज एचईसी जैसे प्रतिष्ठित भारी उद्योग संस्थान का बैंक खाता तक फ्रिज हो गया है। लेकिन अभी तक सरकार स्तर पर कोई पहल नहीं की गई है। उल्टे एचईसी को समाप्त करने के लिए सरकार ने संस्थान परिसर में स्मार्ट सिटी की स्थापना की घोषणा कर रखी है। एचईसी प्रबंधन द्वारा पीएफ के 95 करोड़ बकाये की राशि को जोड़ने के अनुरोध को केंद्र सरकार ने अस्वीकार कर इसके आधुनिकीकरण के लिए पैसे देने से भी इंकार कर दिया। पिछले दिनों लोकसभा में एक प्रश्न के जवाब में केंद्रीय मंत्री ने साफ साफ कह भी दिया कि एचईसी के पुनरुद्धार के लिए न कोई योजना है और न ही परमाणु ऊर्जा विभाग के अधीन करने का कोई प्रस्ताव लंबित है। ऐसे में जब एचईसी को बचाना मुश्किल दिख रहा है तो एचईसी के मजदूरों का हड़ताल करना ज़रूरी हो गया है।

बताया जाता है कि देश की आज़ादी के बाद राष्ट्र निर्माण के दौर में तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू सोवियत संघ के दौरे पर गए तो वहाँ के औद्योगिक विकास देखकर काफी प्रभावित होकर वहाँ की सरकार से भारत में भी ऐसे ही उद्योग खड़े करने में सहयोग करने का प्रस्ताव दिया। जिसे सोवियत सरकार ने फौरन मान लिया और भारत – सोवियत मैत्री सहयोग के तहत 31 दिसंबर 1958 में एचईसी की स्थापना हुई। 15 नवंबर 1963 को नेहरू जी ने देश के प्रमुख भारी उद्योग संस्थान के रूप में निर्मित एचईसी को राष्ट्र को समर्पित किया था। जिसे बाद में देश की मदर ऑफ इंडस्ट्री का खिताब दिया गया।

आमतौर पर एचईसी को भारी उद्योग केंद्र के रूप में जाना जाता है लेकिन वास्तव में यह इस्पात के अलावा देश के रेलवे, ऊर्जा, रक्षा, आंतरिक अनुसंधान से लेकर परमाणु और सामरिक कार्य क्षेत्रों के पूंजीगत उपकरणों के अग्रणी निर्माणकर्त्ता–आपूर्तिकर्त्ताओं में सर्वप्रमुख रहा है। 1971 के युद्ध में इंडियन माउंटेन टैंक व 105 mm गन बैरल जैसे महत्वपूर्ण युद्ध हथियारों के निर्माण के अलावा आईएनएस राजा के गियर सिस्टम, कई अन्य युद्धपोतों के आर्मेट प्लेट, आधुनिक रडार तथा परमाणु पनडुब्बी के महत्वपूर्ण उपकरण यहीं बनाए गए थे । चंद्रयान GSLV का लांचिंग पैड बनाने का गौरव इसी महत्वपूर्ण संस्थान को जाता है।

सीटू से जुड़े हटिया मजदूर यूनियन के महामंत्री राजेन्द्र कान्त महतो ने बताया कि केंद्र में बैठी सरकारों की सार्वजनिक उद्योग विरोधी नीतियों के कारण ही ‘ मदर ऑफ इंडस्ट्री' कहलाने वाला यह विशाल उद्योग संस्थान बंदी की कगार पर पहुंचा दिया गया है। जहां से स्थानीय और देश के युवाओं को रोज़ी–रोटी के अवसर मिलते थे। एक समय यहाँ 22 हज़ार स्थायी मजदूर – कर्मचारी और अफसर कार्यरत थे। ’90 के बाद जब से नयी आर्थिक नीतियाँ देश पर थोपकर निजीकरण को बढ़ावा दिया जाने लगा एचईसी जैसे महत्वपूर्ण सार्वजनिक उपक्रमों को ठंडी मौत मारने का शुरू कर दिया गया। 2014 के बाद से मोदी शासन की विनिवेशीकरण की नीतियों ने तो ताबूत में अंतिम कील ठोकने का काम किया है। उसी का परिणाम है कि आज के डेट में सिर्फ 700 स्थायी और 3000 अस्थायी मजदूर–कर्मचारियों के भरोसे इतना विशाल संस्थान छोड़ दिया गया है। 

2018 में आधुनिकीकरण के नाम पर यहाँ के कई विभागों – क्षेत्रों में काट–छांट कर आदमी कम करते हुए पुरानी मशीनों को बेच दिया गया और नयी मशीनें नहीं लगाई गईं। 2018 में ही मोदी की सरकार द्वारा एचईसी परिसर में स्मार्ट सिटी खोलने की घोषणा कर इसके निजीकरण की विधिवत शुरुआत ही कर दी है । कारखाने के आधुनिकीकरण के लिए तो एक पैसा भी नहीं दिया लेकिन स्मार्ट सिटी बनाने के लिए 742 करोड़ का पैकेज फौरन दे दिया गया । बड़े – निजी कॉर्पोरेट घरानों को उनके घाटे से उबारने के लिए हजारों करोड़ की उनके देनदारी माफ या हाफ करने के लिए देश के खजाने से देने के लिए पूरे पैसे हैं लेकिन देश के अपने बड़े उद्योगों को घाटे से उबारने के लिए कोई पैसा नहीं है। क्या यह देशहीत से जुड़ा मामला नहीं है ?

कई दशकों तक एचईसी को अपनी सेवाएँ देकर संस्थान से रिटायर होने वाले वरिष्ठ वामपंथी मजदूर नेता सिद्धेश्वर सिंह बड़े ही दर्द के साथ कहते हैं कि 2014 के बाद 2019 के लोकसभा चुनावों में हम लोगों के लाख समझने के बावजूद यहाँ के अधिकांश मजदूर – कर्मचारियों ने मोदी जी का मुंह देखकर सपरिवार वोट दिया। आज वही मोदी जी जब इस संस्थान को हमेशा के लिए बंद कर उसे निजी हाथों में बेचने की कवायद कर रहें हैं तो सबकी बोलती बंद है और सभी ठगे हुए से महसूस कर रहें हैं। अधिकांश तो डरे हुए हैं कि यदि एचईसी निजी हाथों में चला गया और प्लांट बिक गया तो उनका और परिवार का भविष्य क्या होगा? वहीं जिन आदिवासी बस्तियों के हजारों परिवारों की ज़मीनें राष्ट्र विकास के नाम पर लेकर उन्हें हमेशा के लिए विस्थापित कर दिया गया उनका क्या होगा?

 एकबार फिर से हजारों परिवार सड़कों पर आ जाएँगे। बावजूद इसके भक्त मजदूरों और रसूखदारों नेताओं को इसकी कोई परवाह नहीं है क्योंकि तथाकथित लीज के नाम पर काफी ज़मीनें लेकर अपना सुख साम्राज्य खड़ा कर रखा है। नरेंद्र मोदी जब भी एचईसी परिसर स्थित प्रभातारा मैदान में भाषण देने आए तो समर्थक मजदूरों ने काफी प्रचार चलाया किया कि उनके माननीय – आदर्श नेता जी इस संस्थान की काया पलट कर देंगे। लेकिन जब भी वे यहाँ आकार भाषण दिये तो एचईसी पर एक शब्द भी नहीं बोला । जिससे लोगों में अब क्षोभ भरने लगा है ।

अजीब सा विरोधाभास है कि जिन सार्वजनिक उपक्रम – उद्योग संस्थानों को विनिवेश के नाम पर उन्हें निजी हाथों में देने – बेचने की कवायद वर्तमान की केंद्र सरकार हर दिन करने में मशगूल है। वहाँ के अनेकों भुक्तभोगी मजदूर – कर्मचारी आज भी समर्थक बनकर बुत बने बैठे हैं। हालांकि इन सबों से परे मजदूरों की एक बड़ी तादाद ऐसी भी है जो इस शासन की असलियत समझने लगी है कि राष्ट्रहित और हिन्दू – मुसलमान विवाद की आड़ में कौन सा आर्थिक लूट का खेल किया जा रहा! शायद यही वजह है कि 8 जनवरी को मोदी शासन की मजदूर व देश विरोधी नीतियों के खिलाफ होने वाली मजदूरों के देशव्यापी हड़ताल में उन्होंने भी शामिल होने का फैसला किया है। देखना है कि कितने मजदूर इस संग्राम में शामिल होते हैं!      

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