कश्मीर फाइल्स फ़िल्म के डायरेक्टर का कश्मीर पर एक और सफेद झूठ
हर मसले में हिंदू-मुस्लिम की बहस करने और बात-बेबात नफ़रत फैलाने के मौके ढूंढने का दौर है। देश की सत्ताधारी पार्टी के नेता, मंत्री, आइटी सेल तो इसमें लगी हुई है। देश में जानबूझकर ऐसा ध्रुवीकरण करके देश की जनता को इसमें झोंक दिया गया है। पठान फ़िल्म के एक गीत के बारे में दकियानूसी बहस अभी चल ही रही है और मंत्रीगण भी इसमें शामिल हैं। दीपिका पादुकोण और शाह रुख खान को निशाना बनाया जा रहा है। एक स्वघोषित साधु ने पब्लिकली धमकी दी है कि अगर शाहरुख खान मिल गया तो उसकी चमड़ी उधेड़ देंगे और उसे ज़िंदा जला देंगे।
ऐसा पुख्ता इंतज़ाम कर रखा है कि नफरत का ये कारोबार किसी भी तरह मंदा ना पड़ने पाए। इसी नफरत की आग में घी डालने का काम कश्मीर फाइल्स के निर्देशक विवेक अग्निहोत्री कर रहे हैं। उन्होंने अपने ट्वीटर पर एक वीडियो पोस्ट किया है, जिसका शीर्षक दिया गया है “तात्कालिक बॉलीवुड कंट्रोवर्सी पर मेरा कमेंटः सच्चाई”। 2:14 मिनट के इस वीडियो के शुरुआती हिस्से में वो कह रहे हैं कि बॉलीवुड एकमात्र ऐसी फ़िल्म इंडस्ट्री है जहां मुस्लिम सोशल जोनर है। आखिरी हिस्से में वे कह रहे हैं कि कश्मीर 100% हिंदू लैंड था। सवाल उठता है कि आखिर ये “मुस्लिम सोशल” क्या है? क्या सचमुच कश्मीर कभी 100% हिंदू लैंड था? आइये पड़ताल करते हैं।
क्या है मुस्लिम सोशल?
विवेक अग्निहोत्री वीडियो में कह रहे हैं कि-
“मैं आज आप लोगों से ऐसी बात करना चाहता हूं जो भारत के सेकुलर या बॉलीवुड वाले कभी नहीं बताएंगे...क्या आपको किसी ने ये बताया है कि पूरे विश्व में भारत एकमात्र ऐसा देश है, भारत का समज एकमात्र ऐसा समाज है, जिसने मुस्लिम लोगों के लिए फ़िल्मों में एक स्पेशल जोनर क्रिएट किया। जिसको कहते हैं मुस्लिम सोशल। अगर आप मुझ पर यकीन नहीं करते हैं तो आप वीकीपीडिया पर जाकर चेक करिये।”
इसके बाद वो बताते हैं कि वीकीपीडियी पर मुस्लिम सोशल की परिभाषा क्या दी गई है। वे अपनी इस वीडियो के जरिये बॉलीवुड और सेकुलर लोगों को निशाना बनाते हुए मुस्लिमों के खिलाफ नफरती प्रोपेगेंडा भी कर रहे हैं।
मुस्लिम सोशल शब्द को एक खुफिया जानकारी की तरह पेश कर रहे हैं, लेकिन सवाल ये उठता है कि क्या बॉलीवुड में सचमुच मुस्लिम सोशल नाम का कोई जोनर है भी? सबसे पहली बात तो यह है कि विवेक अग्निहोत्री वीकीपीडिया का हवाला दे रहे हैं, जो एक भरोसेमंद स्रोत नहीं है। विवेक अग्निहोत्री वीकीपीडिया को एक प्रामाणिक संदर्भ की तरह पेश कर रहे हैं। ऐसा करके विवेक अग्निहोत्री विवेक का परिचय नहीं दे रहे हैं। लेकिन फिर भी अगर विवेक अग्निहोत्री की मान भी लें तो आप एक बार वीकीपीडिया पर Category: Indian films by genre सर्च करें। भारतीय सिनेमा के जोनर की इस सूची में आपको कहीं भी “मुस्लिम सोशल” शब्द नहीं मिलेगा। लेकिन जब आप मुस्लिम सोशल सर्च करेंगे तो वीकीपीडिया पर एक पेज खुलेगा जिसमें वो सब लिखा होगा जो विवेक अग्निहोत्री कह रहे हैं। अब सवाल उठता है कि जब जोनर लिस्ट में कहीं भी मुस्लिम सोशल नहीं है तो अलग से मुस्लिम सोशल कहां से आ गया?
इसके लिए सबसे पहले आपको ये समझना होगा कि जोनर होता क्या है? जोनर एक तरह कि थीमैटिक कैटेगरी होती है। फ़िल्मों को उसके कथानक, अंतर्वस्तु, इमोशन, स्टाइल, पीरीयड, शैली और ट्रीटमेंट आदि के आधार पर कुछ श्रेणियों में बांटा जाता है। जैसे कॉमेडी, हॉरर, कमर्शियल, रोमांस, प्रयोगधर्मी, ऐतिहासिक आदि। ऐसे और भी अनेक जोनर हैं। जिस वीकीपीडिया का उदाहरण विवेक अग्निहोत्री दे रहे हैं, उसी वीकीपीडियी पर जोनर की सूचि में मुस्लिम सोशल का नाम का कोई जोनर नहीं है।
गौरतलब है कि फ़िल्में बहुत सारे सामाजिक और सांस्कृतिक सवाल भी उठाती हैं। तो उस आधार पर भी शोधार्थी, कार्यकर्ता, समाजशास्त्री आदि फ़िल्मों को श्रेणियों में बांटते हैं। उदाहरण के तौर दलित मुद्दों पर बनी फ़िल्में, फेमिनिस्ट फ़िल्में, आदिवासियों के मुद्दे पर बनी फ़िल्में आदि। फ़िल्म आलोचक, लेखक और शोधार्थियों के बीच मुस्लिम सोशल शब्द प्रचलित था और शायद आज भी इसका इस्तेमाल किया जाता हो। लेकिन बॉलीवुड में मुस्लिम सोशल जैसा कोई जोनर नहीं है।
अपने वीडियो में विवेक अग्निहोत्री कह रहे हैं कि “...पर कभी आपको किसी ने ये सवाल उठाने की अनुमति नहीं दी कि अगर मुस्लिम सोशल है तो हिंदू सोशल, क्रिश्चियन सोशल, जैन सोशल, पारसी सोशल ये क्यों नहीं होते?” यहां भी विवेक अग्निहोत्री झूठ बोल रहे हैं। क्योंकि शुरुआत से ही फ़िल्म इंडस्ट्री के अंदर इस विषय पर कई महत्वपूर्ण फ़िल्मकारों ने सवाल उठाया है और एतराज़ दर्ज़ कराया है। जिन सेकुलरों को विवेक अग्निहोत्री कोस रहे हैं उन्हीं में से एक महत्वपूर्ण फ़िल्मकार एम.एस. सैथ्यू ने इस पर आपत्ती दर्ज़ कराई थी। एम.एस. सैथ्यू ने गर्म हवा जैसी बेमिसाल फ़िल्म बनाई है। ये फ़िल्म 1973 में रिलीज़ हुई थी और विवेक अग्निहोत्री जैसे लोग इस फ़िल्म को भी मुस्लिम सोशल का एक उदाहरण मानते हैं। जबकि एम. एस. सैथ्यू साहब ने साफ कहा था कि इस तरह से सिनेमा को परिभाषित करने का चलन बेहूदा है। काश विवेक अग्निहोत्री वीकीपीडिया के उस पेज को पूरा पढ़ लेते। या यूं कहें कि उन्होंने पढ़ा तो लेकिन ये बात वीडियो में कहना उचित नहीं लगा। उनके एजेंडा के खिलाफ जा रही थी।
क्या कश्मीर में कभी 100% हिंदू आबादी थी?
विवेक अग्निहोत्री वीडियो में कह रहे हैं कि-
“जो भी फ़िल्में व डॉक्यूमेंट्री फ़िल्में बनी हैं वो 85 से 95 के पीरियड पर आधारित हैं। लेकिन इनमें से किसी भी एक फ़िल्म में हिंदूओं का एक जिक्र तक नहीं है। जबकि सारी दुनिया जानती हैं कि कश्मीर 100% हिंदू लैंड होता था और आतंकवाद के कारण सारे हिंदूओं को वहां से भागना पड़ा। एक तरह का झूठ फैलाया जाता है। कभी आपको ये बताया ही नहीं जाता है कि कश्मीर की सच्चाई क्या है?”
अब सवाल उठता है कि क्या सचमुच कश्मीर कभी हिंदू लैंड हुआ करता था? वैसे तो इस दावे के फ़ैक्ट चेक की ज़रूरत नहीं पड़नी चाहिए। आप अपनी कॉमन सेंस से भी समझ सकते हैं कि ये झूठ है। लेकिन फिर भी प्रामाणिक तथ्यों के साथ बात करना ज्यादा उचित है। तो सबसे पहले हम 1941 की जनगणना पर नज़र डालते हैं। ये जनगणना ब्रिटिश शासनकाल में की गई थी। तो 1941 की जनगणना के अनुसार जम्मू-कश्मीर में हिंदू आबादी 57%, मुस्लिम आबादी 39% और सिक्ख आबादी 2% थी। 1981 की जनगणना के अनुसार जम्मू-कश्मीर में 64.19% मुस्लिम और 32.24% हिंदू आबादी थी। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार जम्मू-कश्मीर में 68.31% मुस्लिम और 28.44% हिंदू आबादी है। अगर हम आंकड़ों पर नज़र डालें तो पाएंगे कि हिंदू आबादी में लगातार गिरावट दिख रही है। इसके अनेक कारण हैं जिन पर गंभीरता के साथ विस्तार में बात होनी चाहिये। लेकिन ऊपर दिये गये आंकड़ों से ये स्पष्ट है कि विवेक अग्निहोत्री का ये दावा कि कश्मीर 100% हिंदू लैंड था बिलकुल ग़लत है।
लेकिन विवेक अग्निहोत्री तो फ़ैक्ट को फ़ैक्ट मानते ही नहीं हैं। तभी तो सफेद झूठ को सच्चाई की तरह पेश कर रहे हैं। उनके वीडियो को चार लाख से ज्यादा लोग देख चुके हैं, साढ़े दस हज़ार लोगों ने लाईक किया है और तीन हज़ार के लगभग लोगों ने इसे रिट्वीट किया है। विवेक अग्निहोत्री ने कश्मीर फाइल फ़िल्म बनाई है तो बहुत सारे लोग इन्हें कश्मीर मुद्दे के जानकार के तौर पर मान सकते हैं। इसलिये इनके इस सफेद झूठ का पर्दाफाश करना ज़रूरी है। स्मरण रहे कि गोवा अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म समारोह 2022 में ज़्यूरी हेड और इज़रायली फ़िल्मकार नवद लापिड ने कश्मीर फाइल्स को एक अश्लील प्रोपेगेंडा फ़िल्म कहा था।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं ट्रेनर हैं। आप सरकारी योजनाओं से संबंधित दावों और वायरल संदेशों की पड़ताल भी करते हैं।)
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