कश्मीर: यासीन मलिक से केंद्र को बातचीत करनी चाहिए!
केंद्र-शासित क्षेत्र जम्मू-कश्मीर में—ख़ासकर कश्मीर में—अगर शांति बहाली की प्रक्रिया शुरू करनी है और लगातार जारी ख़ून-ख़राबा व हिंसा को रोकना है, तो कश्मीरी नेता यासीन मलिक से केंद्र की भारतीय जनता पार्टी सरकार को बातचीत शुरू करनी चाहिए।
इसके लिए ज़रूरी है कि जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ़) के नेता यासीन मलिक को, जो भारत की एक जेल में उम्रक़ैद की सज़ा काट रहे हैं, बिना शर्त रिहा किया जाये और उन्हें बातचीत की मेज़ पर आमंत्रित किया जाये।
उनके साथ ही अन्य कश्मीरी राजनीतिक नेताओं व कार्यकर्ताओं को भी रिहा किया जाना चाहिए, जो अगस्त 2019 से, और उसके पहले से, जम्मू-कश्मीर की जेलों व देश की अन्य जेलों में बंद हैं।
बातचीत बिना किसी पूर्व शर्त के होनी चाहिए। इसका मक़सद होना चाहिएः कश्मीर में शांति की बहाली, ख़ून-ख़राबा रोकना, और हिंसा के माहौल को ख़त्म करना।
यह समझ लेना चाहिए कि भारतीय सेना के बूट व बंदूक के बल पर कश्मीर में शांति हरगिज़ नहीं कायम हो सकती। किसी-न-किसी तरह का औपचारिक युद्ध विराम और शांति वार्ता होनी चाहिए। जैसे वर्षों पहले नगालैंड में हुआ, 1975 से 1995 के बीच।
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दिल्ली में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की अदालत ने 25 मई 2022 को यासीन मलिक को उम्रक़ैद की सज़ा सुनायी थी। जिस मामले में यह सज़ा सुनायी गयी, वह, एनआईए के मुताबिक, 2016-17 के ‘टेरर फंडिंग’ (आतंक के लिए धन जुटाना) मामले से जुड़ा है।
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कश्मीर के कई राजनीतिक नेताओं ने, जिनमें सीपीआई (एम) के नेता यूसुफ़ तारीगामी शामिल हैं, इस सज़ा की निंदा की थी और कहा था कि यासीन मलिक को उनके राजनीतिक विचार के लिए दंडित किया गया है।
यासीन मलिक को 2019 में गिरफ़्तार किया गया था, और तबसे वह जेल में हैं। इसके पहले भी उन्हें कई बार गिरफ़्तार किया जा चुका है।
ध्यान देने की बात है कि यासीन मलिक ऐसे कश्मीरी नेता हैं, जिनसे भारत के दो प्रधानमंत्री—अटलबिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह—मिलते रहे हैं और उनसे कश्मीर के मसले पर विचार-विमर्श करते रहे हैं। सवाल है, यह प्रक्रिया फिर क्यों नहीं शुरू की जा सकती?
यासीन मलिक के राजनीतिक विचार आज भी वही हैं, जो पहले थे, और इसी आधार पर उन्हें दंडित किया गया है। वह भारत से ‘कश्मीर की आज़ादी’ के पक्षधर हैं, ‘कश्मीरियों के आत्मनिर्णय के अधिकार’ की वकालत करते हैं, और चाहते हैं कि कश्मीर के मसले पर भारत, पाकिस्तान व कश्मीरी जनता के बीच (त्रिपक्षीय) बातचीत हो। वह कश्मीर में ‘गांधीवादी’ तरीक़े से शांतिपूर्ण राजनीतिक समाधान चाहते हैं।
यासीन मलिक के राजनीतिक विचार को बख़ूबी जानते हुए ही अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह उनसे मिलते रहे हैं।
1994 में यासीन मलिक व उनके संगठन जेकेएलएफ़ ने कश्मीर की ‘भारत से आज़ादी’ और ‘कश्मीरियों के आत्मनिर्णय के अधिकार’ के लिए हिंसा का रास्ता छोड़ने और अहिंसक रास्ता अपनाने की घोषणा की थी। यासीन मलिक ने कहा था कि 1994 के बाद से हमारे संघर्ष का रास्ता वही रहा है, जो (मोहनदास करमचंद) गांधी और (नेल्सन) मंडेला का था—यानी, संघर्ष का अहिंसक तौर-तरीक़ा। वह अपने को ‘गांधीवादी’ कहते हैं।
जब नगालैंड में नगा विद्रोहियों और भारत सरकार के बीच युद्ध विराम और शांति वार्ता हो सकती है, तो फिर कश्मीर में क्यों नहीं? क्या इसकी वजह यह है कि कश्मीर मुसलमान है?
(लेखक कवि व राजनीतिक विश्लेषक हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)
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