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केरल डायलॉग: अमर्त्य सेन ने ‘अधिनायकवादी’ ढंग से लॉकडाउन लागू करने को लेकर केंद्र की आलोचना की

वहीं नोआम चोमस्की का कहना था कि “इस महामारी ने दुनिया में चली आ रही भयानक गैर-बराबरी को उघाड़कर रख दिया है।”
केरल डायलॉग

26 जून के दिन विख्यात दार्शनिक, भाषाविद् और समाज विज्ञानी नोआम चोमस्की, नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन और डब्ल्यूएचओ की प्रधान वैज्ञानिक डॉ. सौम्या स्वामीनाथन विकास को लेकर केरल सरकार द्वारा आयोजित 'केरल संवाद'  नाम के वेबिनार में भागीदारी के तौर पर एक साथ एकत्रित हुए थे।

‘केरल संवाद: कोविड-19 महामारी से बाधित दुनिया में विकास को लेकर पुनर्विचार और पुनरवलोकन’ आज दुनियाभर के अग्रणी विचारकों, नीति निर्माताओं, प्रोफेशनल्स, वैज्ञानिकों और आम जन को एक साझे मंच पर लाने का काम कर रहा है। इसे एक ऐसे माध्यम के तौर पर निर्मित किये जाने की आवश्यकता है जहाँ वे महामारी से बाधित दुनिया के पुनर्निर्माण पर एक बार फिर से विचार करने और पुनर्कल्पना को साकार कर सकें।

कोरोनावायरस के बाद की दुनिया में इस तरह के एक मंच का क्या महत्व है, इस बारे में प्रकाश डालते हुए केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने सत्र के उद्घाटन भाषण में कहा था: “आज समूची मानवता कोरोनावायरस महामारी से जूझने में व्यस्त है। इस महामारी के चलते और इसकी वजह से उपजे संकटों ने हम सभी को अपने जीवन के मुख्य पहलुओं के बारे में एक बार फिर से पुनर्विचार करने पर बाध्य कर दिया है। हम इस बारे में बखूबी वाकिफ हो चुके हैं कि हमें अब इस नई दुनिया के अनुसार खुद को ढालना होगा।

हमारी प्राथमिकताएं भी उसी के अनुरूप बदलने जा रही हैं। यहां तक कि जिस प्रकार से हम अपने समाज को संगठित करते आ रहे थे, उसमें भी बदलाव करने पड़ सकते हैं। कुछ सामान्य ज्ञान जो हम दिया करते रहे थे, हो सकता है कि उसका कोई मोल ही न रहे। नई स्थितियों में खुद को ढालने के लिए हो सकता है कि हमें नए ज्ञान को हासिल करने की आवश्यकता पड़े। ऐसा सिर्फ सरकार के करने से संभव होने नहीं जा रहा है। इसके लिए समूचे समाज को संवाद में जाने की आवश्यकता है। इन वार्तालापों के माध्यम से हमें विभिन्न विचारों और उसके मॉडल को लेकर शोध करने, विकसित करने, बातचीत और डिबेट करने की आवश्यकता है।”

चोमस्की जोकि इस बातचीत की श्रृंखला में हिस्सेदारी कर रहे थे के अनुसार केरल ने जिस प्रकार से इस महामारी से निपटने में अपनी भूमिका का निर्वाह किया है, उससे सारी दुनिया आश्चर्यचकित है।

चोमस्की ने अपने वक्तव्य में कहा कि “केरल और भारत के बाकी हिस्सों और दुनिया के ज्यादातर बाकी हिस्सों के काम के तौर-तरीकों में जो अंतर देखने को मिला, और जिस प्रकार से उन्होंने इस संकट के दौरान अपनी प्रतिक्रिया दी थी वह बेहद चौंकाने वाली थी। कई अन्य स्थानों पर इसे उस तरीके से निपटाया नहीं जा सका, जैसा कि केरल इसे संपन्न कर पाने में सफल रहा है। इस महामारी ने उस बेहद भयंकर गैर-बराबरी को खोलकर रख देने का काम कर दिखाया है जो कि निश्चित तौर पर हमेशा से बनी हुई थी, लेकिन नवउदारवादी शासनकाल के दौर में जिसे बेहद अतिरंजित तौर से संपन्न होते देखा जा सकता है।“

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यह पूछे जाने पर कि क्या महामारी के खात्मे तक सारी दुनिया किसी महत्वपूर्ण बुनियादी मोड़ से गुजर चुकी होगी पर चोमस्की का कहना था कि अमेरिका जैसे देश तानाशाही की ओर मुड़ने की कोशिश में रहेंगे जिसमें ज्यादा से ज्यादा प्रतिबंधों और लोगों पर निगरानी की व्यवस्था की कोशिशें की जाएँगी। “लेकिन दुनिया-भर के हर कोनों से इसके विरुद्ध आवाजें आनी शुरू होने लगेंगी। इन सभी के समन्यव के लिए काफी ताकत जुटाने की आवश्यकता पड़ने वाली है। वे बदलावों को लाने में सक्षम हो सकते हैं और वे सभी एक नई दुनिया बनाने की कोशिशों में लग सकते हैं।”

केरल ने जिस प्रकार से कोरोनावायरस के मामलों से निपटने में अपनी क्षमता को प्रदर्शित किया है उसकी भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए अमर्त्य सेन का कहना था कि राज्य ने इस महामारी का मुकाबला करने के लिए जिस प्रकार से नौकरशाही और लालफीताशाही का जमकर लोहा लिया है, वह एक परिवर्तनकामी आन्दोलन की संभावनाओं को अपने अंदर लिए हुए है।

सेन ने कहा, “भारत में जिस प्रकार से ‘अनियोजित और बिना किसी क्रमबद्ध तरीके से लॉकडाउन’ को लागू किया गया था उसे आड़े हाथों लेते हुए सेन का कहना था कि इसकी वजह से देश को घोर संकट और मुश्किलों का सामना करना पड़ा है। “मेरे विचार में केरल में कोविड एक परिवर्तनकारी आंदोलन के तौर पर साबित होने जा रहा है। आज के दौर में जहाँ भारत में इतने व्यापक पैमाने पर भ्रामक आर्थिक नारे के तहत बहकने के पूरे-पूरे खतरे मौजूद हैं, वहीं उसके प्रति चारों ओर व्यापक प्रतिरोध का माहौल भी व्याप्त है। लेकिन इस दौरान यह भी देखने को मिला है कि नौकरशाही का मुकाबला करते हुए, लालफीताशाही से लड़ते हुए जिस तत्परता से चीजों को संपन्न किये जाने की आवश्यकता पड़ती है ऐसा प्रतीत होता है कि वास्तव में केरल ने उसे कोरोनावायरस से निपटने के दौरान अपना रखा था, जो कि एक बहुत बड़ी बात है।”

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सेन ने राज्य में मौजूदा सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा व्यवस्था और उच्च साक्षरता की दर को लेकर उसकी सराहना की। वहीं सेन का कहना था कि “भारत में जिस प्रकार से लॉकडाउन को बिना किसी योजना और क्रमबद्ध तरीके से थोपा गया वह लोगों के संकटों और मुश्किलों को कई गुना बढाने वाला साबित हुआ है। सरकार को चाहिए था कि वह इस विषय पर नागरिक समाज के साथ आवश्यक चर्चा करती। जबकि सरकार ने लॉकडाउन को पूरी तरह से बेहद निरंकुश ढंग से लागू करने का काम किया है। देशभर में दिहाड़ी मजदूरों के लिए यह किसी आपदा से कम नहीं था।”

सेन ने सार्वजनिक सेवा प्रणाली के पतन की ओर इंगित करते हुए स्पष्ट किया कि यूरोप में जहाँ सार्वजनिक प्रणाली अपने खात्मे की कगार पर है, वहीं केरल में ऐसा नहीं हो सका है। उन्होंने कहा, “हालांकि यूरोप में सार्वजनिक क्षेत्र की ओर से हस्तक्षेप की परंपरा चली आई है, लेकिन अब वहाँ पर ऐसा नहीं है। लेकिन उस प्रकार की सार्वजनिक क्षेत्र पर निर्भरता को अभी भी केरल में देख सकते हैं।

डब्ल्यूएचओ की प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. सौम्या स्वामीनाथन ने स्पष्ट किया कि जिन देशों ने विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से जारी की गई शुरुआती चेतावनी को अमल में लाने का काम किया था, कहीं न कहीं वे इस महामारी से बेहतर तरीके से निपट पाने में सक्षम साबित हुए थे।

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स्वामीनाथन ने बताया कि “30 जनवरी तक डब्ल्यूएचओ की ओर से वैश्विक कोविड-19 महामारी को लेकर आपातकालीन चेतावनी जारी कर दी गई थी। लेकिन इस चेतावनी से पहले ही केरल ने जनवरी के शुरूआती दिनों से ही संभावित समस्याओं की आशंका को ध्यान में रखते हुए निवारक उपायों को अपनाने का काम शुरू कर दिया था। यही वजह है कि वुहान से निकलकर आने वाले पहले मामलों को खोज निकाला जा सका। इसे देखते हुए केरल उन लोगों का पता लगा पाने और एकांतवास में रख पाने में सफल हो सका जो उनके संपर्कों में आ चुके थे, और इस प्रकार प्रकोप को रोक पाने में सक्षम हो सका था। समुचित निवारक उपायों को अमल में लाने के चलते ही केरल इस बीमारी पर बेहद फुर्ती से काबू पा सकने में खुद को सक्षम बना सका।”

वहीं चॉम्स्की के अनुसार वियतनाम ने इस वायरस के खिलाफ शुरू से ही कमर कस ली थी, नतीजतन वहां पर एक भी कोविड-19 से संबंधित मौत देखने को नहीं मिली। उन्होंने इस बात का भी उल्लेख किया कि दक्षिण कोरिया ने भी अपने देश में बिना कोई लॉकडाउन थोपे महामारी पर प्रभावी तरीके से नियंत्रित कर पाने में सफलता हासिल कर ली थी।

उन्होंने बताया कि “ताइवान, हांगकांग और न्यूजीलैंड आदि वे कुछ अन्य देश थे जिन्होंने बेहद कुशलतापूर्वक इस बीमारी से निपटने में सफलता प्राप्त की थी। यदि यूरोप में देखें तो जर्मनी भी काफी हद तक इस बीमारी के व्यापक प्रसार को अपने यहाँ रोक पाने में सक्षम रहा। वे इसलिए बच सके क्योंकि जर्मनी ने अमेरिका की तरह मुनाफे पे आधारित अस्पतालों द्वारा इलाज की व्यवस्था को अपनाने से इंकार कर दिया था।

चॉम्स्की के अनुसार "आर्थिक तौर पर गरीब देश क्यूबा, जोकि पिछले छह दशकों से अधिक समय से अमेरिकी आर्थिक हमले का शिकार बना हुआ है" के डॉक्टरों की यह टीम ही थी, जिसने इटली जाकर वहाँ के नागरिकों की मदद करने का फैसला लिया था। अपने वक्तव्य में साफ़-साफ़ इंगित करते हुए वे कहते हैं कि “इस महामारी ने दुनिया में मौजूद भयावह गैर-बराबरी को स्पष्ट तौर पर दिखाने का काम किया है। संयुक्त राज्य अमेरिका में यह सबसे अधिक स्पष्ट तौर पर देखने को मिला था…। स्पेन और दक्षिण अमेरिका से आने वाले काले लोगों और उनके वंशजों को संयुक्त राज्य अमेरिका में सबसे ज्यादा इसका नुकसान उठाना पड़ा है।”

(समाचार एजेंसी पीटीआई के इनपुट के आधार पर)

मूल आलेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

Kerala Dialogue: Nobel Laureate Amartya Sen Slams Centre for Implementing Lockdown in ‘Authoritarian’ Manner

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