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किसानों के ख़िलाफ़ एकजुट हुई खट्टर और भगवंत मान की पुलिस!

किसान नेताओं के मुताबिक किसानों के ख़िलाफ़ हरियाणा-पंजाब और केंद्रशासित प्रदेश चंडीगढ़ पुलिस में ग़ज़ब का तालमेल दिख रहा है। तीनों पुलिस बल किसी भी हाल में किसानों को रोकना चाहते हैं।
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हरियाणा और पंजाब के किसान बाढ़ से हुए नुकसान के उचित मुआवजे की मांग को लेकर सड़कों पर हैं। ये किसान किसी भी हाल मे राजधानी चंडीगढ़ पहुंचना चाहते हैं। जबकि पुलिस किसी भी शर्त पर इन्हें रोकना चाहती है। इसी कड़ी में प्रशासन ने बड़ी संख्या मे किसानों को हिरासत मे लिया था। इसके बाद भी किसान आज, मंगलवार 22 अगस्त को बड़ी संख्या मे चंडीगढ़ कूच के लिए सड़क पर उतरे। जिसके बाद पुलिस ने कई जगह इन्हे रोका और कई जगह किसान और पुलिस आमने सामने हुए।

पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान के गृह जिले संगरूर में किसान आंदोलन कर रहे थे जिसे रोकने के लिए पुलिस ने बल प्रयोग किया। इस अफरातफरी में एक किसान को चोट आई और सोमवार शाम को ही उनकी मौत हो गई। यह घटना पंजाब सरकार के रवैये आर गंभीर सवाल उठा रही है।

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इसी तरह आज, मंगलवार को अंबाला में एक युवा किसान की टांग कटने की खबर आई। भारतीय किसान यूनियन भगत सिंह के प्रवक्ता तेजवीर सिंह ने बताया कि 30 वर्षीय रविंदर पंजाब के सरसिनी गाँव से अंबाला के लोहगढ़ किसान आंदोलन का हिस्सा बनने आए थे। इस बीच पुलिस ने आंदोलनकारियों का पीछा करना शुरू किया। जिसके बाद हादसा हुआ और उनका पाँव ट्रॉली और ट्रैक्टर के पहिया के बीच आ गया और टांग कट गई। जिसके बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया है और वहाँ उनका इलाज चल रहा है।

कई बड़े किसान नेताओ को घर मे भी नज़रबंद किया गया है। तराई किसान यूनियन के नेता तेजिंदर सिंह विर्क को भी पुलिस ने घर मे हिरासत मे ले लिया। विर्क ने पुलिस के रवैये को तानाशाही कहा।

विर्क के अनुसार किसानों के खिलाफ हरियाणा-पंजाब और केंद्रशासित प्रदेश चंडीगढ़ पुलिस में गजब का तालमेल दिख रहा है। तीनों पुलिस बल किसी भी हाल मे किसानों को रोकना चाहते हैं। हालांकि ये किसान किसी राज्य से अधिक केंद्र की सरकार से बाढ़ पीड़ितों के लिए स्पेशल पैकेज की मांग कर रहे हैं।

ये दोनों ही राज्य खेती किसानी का केंद्र हैं। इसलिए हमने देखा है यहाँ हमेशा किसानों के सवाल पर मुखर आंदोलन रहा है। वर्तमान के हालत में खुद को किसान हितैषी कहने वाली आम आदमी पार्टी की पंजाब सरकार पर गंभीर सवाल उठे हैं। जबकि हरियाणा मे बीजेपी सरकार और किसानों का आमना सामना बीते सालों में आम बात हो गई है।

तेजवीर ने कहा कि जिस तरह का समन्वय अभी दोनों राज्यों की पुलिस मे दिख रहा है। वैसा कभी उन्होंने अपराधियों को पकड़ने मे नहीं दिखाया है। हमने देखा है कि कैसे पंजाब पुलिस तेजिंदर सिंह बग्गा को दिल्ली से पकड़ कर ला रही थी और हरियाणा पुलिस ने उसे छीन कर पंजाब पुलिस को वापस भेजा था। कभी ड्रग्स कारोबारी के लिए इस तरह का अभियान नहीं चलाया लेकिन आज किसानों के आंदोलन को खत्म करने के लिए दोनों जॉइन्ट ऑपरेशन चला रहे है और 1500 से अधिक जगहों पर छपेमारी की है। लेकिन इन सबसे हम डरने वाले नहीं हैं।

भारतीय किसान यूनियन एकता के पटियाला जिला प्रधान बेंतसिंह ने न्यूज़क्लिक से बातचीत में कहा कि प्रशासन को लग रहा है कि वो दमन के दम पर हमारा आंदोलन खत्म कर देगा लेकिन उन्हें समझना चाहिए हम वो हैं जिन्होंने दिल्ली में एक साल तक आंदोलन किया और सरकार को झुकाया था। आज भी हमारी ही जीत होगी।

उन्होंने कहा कि सरकार हमें चंडीगढ़ नहीं जाने देगी तो हम हर जिले और ब्लॉक मे सड़क जाम करेंगे। कई जगहों पर किसानों ने रेल से लेकर टोल प्लाजा बंद कर दिया है।

इसके अलावा सरकार बड़ी संख्या मे सोशल मीडिया के अकाउंट बंद कर रही है। बताया गया कि हरियाणा और पंजाब में किसानों के आंदोलन को प्रमुखता से दिखाने वाले समाचार पोर्टल गाँव सवेरा का फेसबुक अकाउंट सोमवार देर रात ही बंद कर दिया था। आज मंगलवार को उनका x (ट्विटर अकाउंट) भी बंद कर दिया गया। इसके अलावा कई किसान नेताओं और यूनियन के अकाउंट भी बंद कर दिए गए हैं, जिससे आम लोग तक किसानों से जुड़ी खबरें न पहुँच पाएं क्योंकि जैसा कि आमतौर पर होता है बड़े और कथित तौर पर मुख्यधारा का मीडिया इस तरह के मुद्दों और खबरों से दूर ही रहता है। ऐसे में सोशल मीडिया पर सरकार का प्रतिबंध एक तरह से किसान आंदोलन का ब्लैक आउट करने जैसा है।

कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा ने फेसबुक पर एक पोस्ट किया, जिसमें उन्होंने विरोध-प्रदर्शन कर रहे किसानों पर पुलिस कार्रवाई को दुर्भाग्यपूर्ण कहा।

किसानों के मुताबिक पुलिस की इस सख्त और दमन की कार्रवाई से किसानों के हौसले में कोई कमी नहीं आई है। हरियाणा के अंबाला से किसानों का एक जत्था शाम को पैदल ही चंडीगढ़ को चल दिया। इस जत्थे में शामिल किसान नेता सुरेश कोथ ने गाँव सवेरा से बात करते हुए कहा कि हमने चंडीगढ़ की कॉल दी हुई थी लेकिन पुलिस हमे रोक कर रखी हुई थी। हमें सड़कों पर इसलिए आना पड़ता है क्योंकि हमारे चुने हुए प्रतिनिधि हमारी आवाज नहीं उठाते इसलिए हमें सड़कों पर आना पड़ता है।

हालांकि पुलिस ने कुछ दूर जाते ही इस जत्थे को भी रोक दिया। उसके बाद सुरेश कोथ ने प्रशासन को अपनी मांगें बताईं और साफ कहा कि हम किसी भी हाल में चंडीगढ़ जाएंगे। सड़क पर रोकेंगे तो खेते से जाएंगे लेकिन जाएंगे जरूर। उन्होंने साफ कहा कि अगर हमारी दो मांगें मान ली जाएंगी तो हम वापस चले जाएंगे।

इसके साथ ही उन्होंने कहा कि कानून व्यवस्था पंजाब और हरियाणा की सरकार ने खराब की है। भगवंत मान और खट्टर ने किसानों की बेइज्जती की है। ये सिर्फ हरियाणा पंजाब नहीं पूरे उत्तर भारत का सवाल है। 

आपको बता दें कि बाढ़ ने पंजाब व हरियाणा में किसानों की फसल और उनके कृषि जीवन को बुरी तरह प्रभावित किया है। इस प्राकृतिक आपदा से पीड़ित किसानों ने नुक़सान के उचित मुआवज़े की मांग को लेकर मंगलवार 22 अगस्त को चंडीगढ़ कूच करने का ऐलान किया था। हरियाणा और पंजाब के 16 किसान जत्थों ने इस मार्च का आह्वान किया था। इस ऐलान के बाद से चंडीगढ़ प्रशासन और हरियाणा व पंजाब की सरकारें किसी भी शर्त पर इस मार्च को रोकना चाहती थीं। किसान संगठन चंडीगढ़ न आए इसके लिए रविवार देर शाम तक प्रशासन ने किसान जत्थे-बंदियों और उनके नेताओं से बातचीत की। यही नहीं खुद पंजाब के राज्यपाल ने राजभवन में इन 16 किसान जत्थे-बंदियों के नेताओं से बात की हालांकि इससे कोई हल नहीं निकल सका।

किसान संगठन पूरे उत्तर क्षेत्र में बाढ़ से हुए नुक़सान के लिए 50,000 करोड़ रुपये के पैकेज की मांग कर रहे हैं। इसके साथ ही बाढ़ से क्षतिग्रस्त घरों के लिए 5 लाख रुपये और बाढ़ में मरने वाले व्यक्ति के परिवार के लिए 10 लाख रुपये के मुआवज़े की भी मांग कर रहे हैं।

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