लखीमपुर हत्याकांड: जब तक मंत्री की बर्ख़ास्तगी नहीं तब तक आंदोलन चलता रहेगा
हाथों में बैनर, झंडा, जुबां पर इन्कलाब और दिल में शहीद किसानों की याद संजोए जब हजारों किसानों का काफिला लखीमपुर खीरी से करीब अस्सी किलोमीटर दूर स्थित तिकोनिया पहुंचा तो ऐसा लगा मानो हजारों हजार आवाजें कह रही हों कि- तुम हमारा जितना दमन करोगे हमारे हौसले उतने ही बुलन्द होते जाएंगे। जवान, बुजुर्ग, महिलाएं और बच्चे भी...सब पहुंचे अपने शहीदों को याद करने और उनकी शहादत को संकल्प में बदलने के लिए।
मंगलवार यानी 12 अक्टूबर को सयुंक्त किसान मोर्चा के आह्वान पर शहीद किसानों की याद में श्रद्धांजलि सभा का आयोजन तिकोनिया में किया गया। सिख रिवाज के मुताबिक दसवें दिन अंतिम अरदास को भी संपूर्ण किया गया। तीन अक्टूबर को तिकुनिया में शहीद हुए किसानों की आत्मा की शांति के लिए होने वाले सामूहिक भोग, अंतिम अरदास, अस्थि कलश यात्रा की तैयारियों को लेकर विभिन्न किसान संगठनों के नेता और कार्यकर्ता जुटे। उत्तर प्रदेश के अलावा पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड से भी किसानों का काफिला तिकोनिया पहुंचा।
टकराव की आशंका के मद्देनजर एहतियात के तौर पर जिले में अर्धसैनिक बलों की बड़े पैमाने पर तैनाती कर दी गई है। पुलिस बंदोबस्ती तिकोनिया से लगभग बाइस किलोमीटर दूर यानी निघासन से ही कर दी गई थी। किसी प्रकार की कोई अनहोनी न होने पाए, इसके लिए पुलिस प्रशासन को अलर्ट रहने के लिए कहा गया है। पर्याप्त पुलिस फोर्स लगाए गए। पीएसी, पैरामिलिट्री, आरएपफ और एसएसबी को भी शहर से लेकर तिकुनिया तक मुस्तैद किया गया। ड्रोन कैमरों से निगरानी रहेगी।
हालांकि तीन अक्टूबर की घटना के बाद से जिस तरह का आक्रोश सरकार को लेकर जनता के बीच फूटा उसे देखते हुए उत्तर प्रदेश सरकार ने भले ही यह जताने की कोशिश की हो कि दोषियों के ख़िलाफ़ सख्त एक्शन लिया जाएगा और शहीदों के परिवार से मिलने जाने वाले विपक्षी नेताओं को किसानों और पत्रकार के परिवार से मिलने की इजाजत दे दी गई, बावजूद इसके इतना तय था कि श्रद्धांजलि सभा के दिन दूर दूर से तिकोनिया आने वाले किसानों के जत्थे को प्रशासन की ओर से रोकने की भरपूर कोशिश होती रहेगी और हुआ भी कुछ ऐसा ही। बार बार मंच से पुलिस प्रशासन से यह निवेदन किया जाता रहा कि किसानों को न रोक जाए, क्योंकि उन्हें यह खबर मिल रही है कि कुछ जगह पुलिस द्वारा जत्थे को रोका जा रहा है। बहरहाल इन सब रुकावटों के बावजूद हजारों किसान तिकोनिया पहुंचे और और न सिर्फ शहीदों के अंतिम अरदास में शामिल हुए बल्कि वहां से इस संकल्प के साथ लौटे कि जब तक मंत्री अजय मिश्रा को बर्खास्त नहीं किया जाएगा, आशीष मिश्रा की गिरफ्तारी नहीं होगी और मारे गए किसानों के परिवार को इंसाफ नहीं मिलेगा तब तक उनका यह आंदोलन पूरी सक्रियता के साथ जारी रहेगा तो वहीं शहीद पांच किसानों की याद में घटना स्थल पर स्मृति स्थल बनाने की घोषणा भी मंच से की गई। यह स्मृति स्थल दिल्ली गुरुद्वारा मैनेजमेंट कमेटी की ओर से बनाया जाएगा।
कार्यक्रम में किसान नेता राकेश टिकैत, दर्शन पाल सिंह, जोगिंदर सिंह उगराह, गुरुनाम सिंह चढ़ूनी, रुल्दू सिंह, योगेन्द्र यादव, कृष्णा अधिकारी, जसबीर कौर, प्रेम सिंह गहलावत, आशीष मित्तल, रिचा सिंह आदि समेत सुप्रीम कोर्ट के वकील भानू प्रताप सिंह, सामाजिक कार्यकर्ता संदीप पांडे, जनकवि बल्ली सिंह चीमा, पंजाबी अभिनेत्री सोनिया मान आदि शामिल हुए।
राज्य सरकार ने किसानों के जुटान को देखते हुए यूपी के 20 जिलों में अलर्ट जारी कर दिया था। राकेश टिकैत सहित कई किसान नेता सोमवार रात को ही लखीमपुर पहुंच गए थे। अंतिम अरदास में प्रियंका गांधी भी शामिल हुईं। चूंकि मोर्चे ने पहले ही यह सुनिश्चित कर लिया था कि इस मंच को राजनैतिक मंच नहीं बनाया जाएगा मंच पर केवल शहीदों के परिवार के ही सदस्य बैठेंगे और किसी पार्टी के नेता को मंच साझा नहीं करने दिया जाएगा तो इस निर्णय के मद्देनजर प्रियंका गांधी ने शहीदों को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करके और आम जन के साथ बैठककर ही अपनी सहभागिता जताई।
तिकोनिया गांव में जहां हिंसा हुई थी, वहां से थोड़ी दूर पर एक खेत में अंतिम अरदास का कार्यक्रम किया गया। इस कार्यक्रम में कई राज्यों के किसान नेता और यूनियन नेता भाग लेने पहुंचे। संयुक्त किसान मोर्चा ने देश भर में उसी दिन प्रार्थना और श्रद्धांजलि सभाओं का आयोजन करने की अपील की थी जिसके बाद देशभर में शहीदों की याद में श्रद्धांजलि सभाओं का आयोजन किया गया साथ ही लोगों ने रात आठ बजे घरों के बाहर पांच मोमबत्तियां भी जलाईं जैसा कि मोर्चे की ओर से आग्रह किया गया था।
मंच पर बैठे शहीद लवप्रीत सिंह, नछत्तर सिंह , दलजीत सिंह विर्क, गुरविंदर सिंह, और पत्रकार रमन कश्यप के परिवार को कार्यक्रम के अंत में सम्मानित भी किया गया और भविष्य के कार्यक्रम तय किए गए। फिलहाल एक महीने के कार्यक्रम तय किए गए जो इस प्रकार हैं-
·15 अक्टूबर को देशभर में दशहरे के दिन प्रधानमंत्री का पुतला फूंका जाएगा
·18 अक्टूबर को ट्रेनें रोकी जाएगी
·24 अक्टूबर को उत्तर प्रदेश के 75 जिलों और देश के अन्य हिस्सों में अस्थि विसर्जन किया जाएगा।
·शहीदों की याद में शहीद स्मारक बनाया जाएगा
·26 अक्टूबर को लखनऊ में महापंचायत होगी।
श्रद्धांजलि सभा में विभिन्न जिलों के किसान नेताओं को शहीदों के अस्थि कलश सौंपे गए। तय किया गया कि विसर्जन से पहले अस्थि कलश को लेकर पूरे उत्तर प्रदेश सहित देश के विभिन्न हिस्सों में यात्रा निकाली जाएगी और साथ ही संकल्प लिया गया कि जब तक मंत्री को हटाया नहीं जाएगा आंदोलन जारी रहेगा। अजय मिश्रा के सात केशव प्रसाद मौर्य के इस्तीफे की भी मांग की गई।
किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा कि मंत्री के बेटे आशीष मिश्रा की गिरफ्तारी एक रेड कारपेट गिरफ्तारी है यानी उसके साथ एक आम मुजरिम जैसा बर्ताव नहीं किया जा रहा बल्कि वीआईपी जैसा ट्रीटमेंट दिया जा रहा है। उनके मुताबिक हमें संघर्ष से समाधान की और जाना है लेकिन सरकार चाहती है कि हम समाधान से संघर्ष की ओर जाएं। उन्होंने कहा चर्चा तो यहां तक हुई कि आख़िर इस मामले में कैसे इतनी जल्दी सरकार से समझौता करा दिया गया और किसानों के परिवारों को मुआवजा दिला दिया गया, उनके मुताबिक इस तरह की चर्चा करने वाले वही लोग हैं जो शुरू से ही इस किसान आंदोलन को बदनाम करना चाहते हैं और नुकसान पहुंचाना चाहते हैं।
इस मौके पर अखिल भारतीय किसान महासभा की नेता कृष्णा अधिकारी ने कहा कि अभी तक मंत्री अजय मिश्रा टेनी का बर्खास्तगी न होना इस बात का सबूत है कि योगी मोदी सरकार किसानों की हत्या के आरोपी मंत्री को हर हाल में बचाना चाहते हैं क्योंकि जल्दी ही यूपी में विधानसभा चुनाव हैं और सरकार ब्राह्मण वोट बचाए रखना चाहती है।
सभा में आए सुप्रीम कोर्ट के वकील भानू प्रताप सिंह ने कहा कि जब जांच पूरी हो जाए तो इस केस को दिल्ली शिफ्ट कर जाने मांग की जानी चाहिए चाहिए क्योंकि उत्तर प्रदेश में केस को प्रभावित करने की कोशिश होती रहेगी। उन्होंने कहा जिन्होंने घटना का वीडियो बनाया उनसे अपील है कि उस वीडियो को बहुत हिफाजत से संभालकर रखें।
सामाजिक कार्यकर्ता और मैगसेसे पुरस्कार पाने वाले संदीप पांडेय ने कहा कि भारत के इतिहास में इतना लंबा और शांतिपूर्ण आंदोलन शायद ही चला। उन्होंने कहा यह कैसा लोकतंत्र है जहां देश के प्रधानमंत्री सब ओर जाकर, चाहे देश के भीतर या बाहर, सब से बातचीत कर रहे हैं लेकिन उनके पास किसानों से बात करने का समय नहीं।
कवि बल्ली सिंह चीमा ने राम मनोहर लोहिया को कोट करते हुए कहा कि उनके मुताबिक जब सड़कें वीरान हो जाती हैं तो संसद आवारा और बदचलन हो जाती है, पिछले सात वर्षों से देश में यही हो रहा है लेकिन अब किसानों ने सरकार के फासीवाद का घोड़ा मजबूती से पकड़ हुआ है, आज यह केवल किसानों का आंदोलन नहीं रह गया देश की पूरी जनता का मूवमेंट बन गया है। उन्होंने कहा हमें पूरी उम्मीद है कि अंत में जीत किसानों की ही होगी इसका हमें पूरा विश्वास है।
तिकोनिया में हुई नृशंस घटना के बाद इस किसान आंदोलन ने और व्यापक रूप ले लिया है, इसमें दो राय नहीं कि इस घटना ने किसान आंदोलन का पूरा रुख उत्तर प्रदेश की ओर कर दिया है। आगामी कार्यक्रमों की तैयारियां भी पूरे जोरों पर है। सरकार मंत्री के इस्तीफे के मूड में नहीं तो वहीं आंदोलनकारियों ने भी ठान लिया है कि मंत्री अजय मिश्रा की बर्खास्तगी और गिरफ्तारी से कम कुछ नहीं।
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