देश को गोल्ड दिलाने वाली नसरीन, लॉकडाउन में खाने के लिए कर रहीं हैं संघर्ष!
“मैंने अपने खेल से देश के लिए कई गोल्ड मेडल जीते, लेकिन आज लॉकडाउन में मुझे अपनी डाइट तक के लिए भी संघर्ष करना पड़ रहा है।”
ये दर्द भारतीय महिला खो-खो टीम की कैप्टन नसरीन का है। नसरीन के पिता मो. गफूर शेख दिल्ली के बाज़ारों में पटरी पर बर्तन की दुकान लगाते हैं, लेकिन लॉकडाउन के कारण उनकी दुकान बंद है और परिवार के खर्चे पहले की तरह ही चालू हैं। नसरीन इस वक्त अपने परिवार के साथ गुजर-बसर के लिए संघर्ष कर रही हैं, उन्हें सरकारों से मदद की आस है ताकि वो इस मुश्किल हालात से जल्दी बाहर निकल सकें।
21 साल की नसरीन का नाम उस समय सुर्खियों में आया जब साल 2019 में हुए दक्षिण एशियाई खेलों में उनकी कप्तानी में भारत ने गोल्ड मेडल जीता। अबतक नसरीन लगभग 35 नेशनल और दो इंटरनेशनल खेलों में शिरकत कर चुकी हैं। इसके अलावा एशियन गेम्स 2016 तथा 2018 में भी नसरीन शामिल थीं। फिलहाल नसरीन भारत सरकार के एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया में कार्यरत हैं।
दिल्ली के शकूरपुर निवासी नसरीन ने न्यूज़क्लिक से बातचीत में कहा, “मेरे परिवार में मां-बाप समेत 13 लोग हैं। वह भाई-बहनों में पांचवें नंबर पर हैं। बड़े भाई की शादी हो गई है और वे अलग रहते हैं। बाकी सब भाई-बहन माता-पिता के साथ दो कमरे के किराए के मकान में रहते हैं।”
नसरीन बताती हैं, “लॉकडाउन से कुछ दिन पहले ही मेरे पापा के बर्तन की दुकान पुलिस ने बंद करवा दी थी। कुछ दिनों तक जैसे-तैसे काम चल गया, लेकिन अब हम आर्थिक तंगी से गुजर रहे हैं। परिवार की माली हालत खराब है। मेरी नौकरी भी कोई स्थायी नहीं है। तीन-तीन महीने में सैलरी मिलती है वो भी 26 हज़ार। अन्य भाई-बहन घर में ही रहकर लिफाफे बनाते हैं और स्कूल जाते हैं। लेकिन अब सारा ही काम बंद है। बड़ी बहन की तबीयत ठीक नहीं है और मैं अपनी सही डाइट तक नहीं ले पा रही हूं, जिसके चलते आगे मेरे खेल पर भी असर पड़ेगा।”
नसरीन आगे कहती हैं कि सरकार से जो मदद उन्हें मिलनी चाहिए, वो अभी तक नहीं मिल पाई है वो निराश होकर बताती हैं, “मैंने देश के लिए कई गोल्ड जीते लेकिन सरकार हमारी ओर ध्यान नहीं दे रही है।”
नसरीन के अनुसार खो-खो फेडरेशन ऑफ इंडिया और कुछ गैर सरकारी संस्थानों ने उनकी सहायता ज़रूर की है, लेकिन उन्हें इस कठिन दौर से निकलने के लिए और सरकारी मदद की दरकार है।
नसरीन का संघर्ष
नसरीन के अनुसार उनके जीवन में गरीबी के साथ एक बड़ी समस्या मुस्लिम होना भी रही। जब नसरीन ने खो-खो खेलने की इच्छा जाहिर की, तब पिता मो. गफूर शेख अपनी आर्थिक तंगी से परेशान थे। बावजूद इसके पिता ने बेटी के हौसलों को उड़ान दी और नसरीन को खो-खो की ट्रेनिंग दिलाना शुरू करवा दिया।
नसरीन कहती हैं कि कई बार आस-पड़ोस के लोगों ने कपड़ों को लेकर बातें बनाई। यहां तक कहा कि ‘एक मुस्लिम लड़की शार्ट्स कैसे पहन सकती है’ लेकिन नसरीन के परिवार ने कभी बेटी के आगे दूसरों की नहीं सुनी।
दिल्ली में खो-खो के गुरु अश्विन शर्मा के मार्गदर्शन और एमएस त्यागी के सानिध्य में रहकर नसरीन ने खो-खो के तकनीकी गुर सीखे। इसके बाद अपनी कड़ी मेहनत और कठिन परिश्रम से 2016 में इंदौर में हुई खो-खो चैंपियनशिप के लिए चुनी गईं। इसमें दस देशों के खिलाड़ियों ने हिस्सा लिया था। 2018 में लंदन में हुई खो-खो चैंपियनशिप में नसरीन पहली भारतीय खो-खो खिलाड़ी के रूप में चयनित हुईं। नसरीन पहले दिल्ली खो-खो टीम की कप्तान बनी और फिर उन्होंने भारतीय टीम की कमान संभाली।
देश में ‘पॉपुलर और नॉन पॉपुलर खेलों की त्रासदी
आपने समाचारों में पीएम केयर्स में दान देने वाले बड़े-बड़े खिलाड़ियों की सुर्खियां बनते देखा और सुना होगा। भारतीय क्रिकेटर्स विराट कोहली, सुरेश रैना, सचिन तेंदुलकर, सौरभ गांगुली समेत कई खिलाड़ियों ने इस बीमारी से निपटने के लिए लाखों, करोड़ों रुपये दान दिए हैं लेकिन ये हमारे समाज की कड़वी सच्चाई ही है कि जहां कोरोना काल के लिए ‘पॉपुलर खेलों’ के अमीर खिलाड़ी लाखों का दान दे रहे हैं वहीं नसरीन जैसे खिलाड़ियों को अपनी रोज़मर्रा की बुनियादी जरूरतों के लिए भी संघर्ष करना पड़ रहा है। नसरीन ने अपनी व्यथा खेल मंत्रालय, दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार को भी ट्विटर के जरिये बताई लेकिन अभी तक कोई मदद नहीं मिली। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या सरकार कुछ पॉपुलर खेलों के खिलाड़ियों को ही तवज्जों दे रही है, क्या हमारे बाकी खिलाड़ी संसाधनों के आभाव और गुमनामी में जीवन बीताने को मज़बूर हैं?
गौरतलब है कि लॉकडाउन के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सचिन तेंदुलकर, सौरव गांगुली, बैडमिंटन खिलाड़ी पीवी सिंधु समेत देश के अलग-अलग खेलों से जुड़े 40 खिलाड़ियों से वीडियो कांफ्रेंसिंग के ज़रिए बातचीत की थी। पीएम मोदी ने इन खिलाड़ियों से कहा था कि वे लॉकडाउन में नियमों के पालन के लिए जागरुकता वीडियो बनाएं और सोशल मीडिया पर साझा करें। ऐसे में एक गौर करने वाली बात ये है कि खेल मंत्रालय और पीएमओ ने नसरीन जैसे खिलाड़ियों पर ध्यान क्यों नहीं दिया, आखिर नॉन पॉपुलर खिलाड़ियों को इस कांफ्रेंस में जगह क्यों नहीं मिली।
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