लखनऊ विश्वविद्यालय: एमए में 'प्रयोगशाला फ़ीस' की वृद्धि के ख़िलाफ़ प्रदर्शन
लखनऊ विश्वविद्यालय में हुई फ़ीस वृद्धि के ख़िलाफ़ विभिन्न छात्र संगठनों ने शुक्रवार को एक साथ मिलकर प्रदर्शन किया। छात्रों द्वारा "प्रतिरोध मार्च" निकालते हुए उप-कुलपति ऑफिस के सामने विरोध प्रदर्शन किया गया।
छात्र संगठनों ने एक स्वर में फ़ीस वृद्धि को तत्काल प्रभाव से वापस लिए जाने की मांग की है। प्रदर्शनकारी छात्रों का कहना हैं कि केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा तानाशाही तरीक़े से थोपी गई "नई शिक्षा नीति 2020" को रद्द की जाए।
नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया के विशाल सिंह ने कहा कि छात्र विवि द्वारा इस सत्र से एमए कोर्स में ली जाने वाली फ़ीस में 1000 रुपये की वृद्धि की गई है।
विशाल ने कहा यह "प्रयोगशाला फ़ीस" के नाम पर छात्रों से ली जा रही है। जबकि सामाजिक शास्त्र के विषयों में प्रयोगशाला का कोई प्रावधान ही नहीं है।
छात्र नेता प्रिंस प्रकाश ने बताया कि इस मुद्दे को लेकर छात्र संगठनों का प्रतिनिधि मंडल विवि प्रशासन से बात करने पहुंचा, तो प्रशासन के पास इसका कोई जवाब नहीं था।
छात्र नेताओं ने कहा कि "शिक्षा नीति 2020" के तहत विश्वविद्यालयों की सार्वजनिक वित्त पोषित शिक्षा को ऋण आधारित शिक्षा में बदलने की मोदी सरकार की इस कॉर्पोरेट साजिश को छात्र बिल्कुल बर्दाश्त नहीं कर रहे हैं।
विशाल ने आगे कहा कि, इसमें विवि अगर अपने ख़र्च को अधिक से अधिक दिखा सकते हैं जिस से वह लोन के लिए योग्य हो जाएंगे। उन्होंने कहा की इस क्रम में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय जैसे विश्वविद्यालयों ने 500 करोड़ का लोन लिया है।
ऋण चुकाने के लिए आम छात्रों की फ़ीस में लगातार बढ़ोत्तरी की जा रही है। सार्वजनिक शिक्षा को निजी शिक्षा में तबदील किया जा रहा है।
ऑल इंडिया स्टूडेंटस एसोसिएशन (आईसा) के निखिल और समाजवादी पार्टी छात्र सभा की कांची सिंह ने कहा कि मोदी सरकार द्वारा थोपी गई नई शिक्षा नीति इस देश की सार्वजनिक शिक्षा को व्यवसायीकरण और बाज़ारीकरण की दिशा में धकेलने का एक कॉर्पोरेट परस्त दस्तावेज़ है जिसका विरोध हर विश्वविद्यालय के छात्र कर रहे हैं।
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