बीथोवन: मेरा संगीत भविष्य के लिए है
जैसा कि हमेशा होता आया है समाज में सतह के नीचे नयी शक्तियां ऊपर आने के लिए कुलबुलाती रहती हैं। ये शक्तियां अपना स्वर पाना चाहती हैं। एक विचार, एक बैनर का इंतजार करती हैं। विस्फोट के साथ जब भी वह समय आता है वह न सिर्फ खुद को सियासी कार्यक्रमों के साथ-साथ बल्कि कला, कविता, संगीत और चित्रकला में भी खुद को प्रकट करती हैं। स्पेनी चित्रकार फ्रांसिस्को गोया ने जो काम चित्रकला में किया, बीथोवन ने वही भूमिका संगीत के क्षेत्र में निभायी। इनकी कला अपने समय का दस्तावेज होने के साथ-साथ भावी पीढ़ियों से भी संवाद कायम करती प्रतीत होती है।
पांचवी सिंफनी
बीथोवन की पांचवी सिंफनी सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है। एक क्रांतिकारी भावना बीथोवन की सिंफनियों का विस्तार करती चलती है। खासकर पांचवी सिंफनी। इस सिंफनी की शुरूआत से ही ऐसा प्रतीत होता है मानो नियति हमारे द्वार खटखटा रही है। पांचवी सिंफनी का केंद्रीय थीम है सभी बाधाओं को पार करते हुए जीत की ओर बढ़ना। इस सिंफनी की जड़ें भी फ्रांसीसी क्रांति में निहित हैं। क्रांति की भांति यह सिंफनी भी श्रृंखलाबद्ध ढ़ंग गुजरती है। सबसे पहले एक आगे बढ़ता हुआ जर्बदस्त उभार आता है फिर उसके बाद निराशा व अनिर्णय के क्षण आते हैं। फिर शानदार धमाके के साथ आता है अंतिम विजय का घोष।
इस सिंफनी का संदेश है लड़ाई को जारी रखना, कभी भी सर्मपण न करना। अंततः विजय का सेहरा हमारे माथे होगा।
बीथोवन की रिकार्डेड सिंफनियों के लोकप्रिय कंडक्टर रहे निकोलस हर्नानकोर्ट ने बीथोवन की इस सिंफनी पर टिप्पणी की थी ‘‘ यह संगीत नहीं यह राजनीतिक आलोड़न है, प्रतिरोध है। यह संगीत हमसे कह रहा है कि जिस दुनिया में हम रह रहे हैं वह कतई अच्छा नहीं है। आइए हम इसे बदल डालें। आइए आगे बढ़ें।’’
जर्मनी के लोगों ने बीथोवन के जिस संगीत को उनके जीवनकाल में सुना था उससे फ्रांसीसियों सेना के विरूद्ध संघर्ष में इस्तेमाल किया था। लेकिन द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान फ्रांसीसी लोग ही पांचवी सिंफनी का प्रारंभिक भाग सुना करते थे। तब फ्रांसीसियों को जर्मनी की कब्जा करने वाली नाजी फौज के खिलाफ गोलबंद होकर लड़ रहे थे। महान संगीत भावी पीढ़ियों से भी संवाद स्थापित करता है भले ही वह समय विस्मृत हो चुका हो जब उस संगीत का जन्म हुआ था।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के नेता महात्मा गांधी की भेंट जब रोम्या रोलां से हुई। उस वक्त रोलां ने बीमार होने के बावजूद गांधी के सम्मान में बीथावेन की पांचवीं सिंफनी पियानो पर बजाकर सुनाया।
त्रासदी: निजी से लेकर सार्वजनिक
1815 में बीथोवन को दो व्यक्तिगत त्रासदियों से गुजरना पड़ा। पहली वाटरलू की लड़ाई में फ्रांस और नेपोलियन की पराजय और दूसरी बीथोवन के अपने प्रिय भाई कास्पर की मौत। अपने भाई की मृत्यु से गहरे तौर पर विचलित बीथोवन ने उसके पुत्र के देखभाल की जिम्मेवारी ले ली। अपने भाई की मौत ने बीथोवन के अंदर उसके बच्चे की देखभाल का जिम्मा लेने संबंधी सनक पैदा कर दिया। इसके लिए उसके बच्चे को अपने पास रखने के लिए उसकी मां से कटु झगड़े में उलझना पड़ा। बीथोवन ने अपने प्रभाव का उपयोग कर बच्चे को अपने पास रखने में सफलता प्राप्त कर ली। बच्चे की मां को उसकी अपनी ही संतान के पालन-पोषण से महरूम होना पड़ा। पितृत्व या अभिभावकत्व का अनुभव न होने के कारण वह अपने भतीजे कार्ल के साथ रूखाई व कड़ाई से पेश आने लगा। परिणामस्वरूप कार्ल ने आत्महत्या करने का प्रयास किया। इससे बीथोवन और अधिक मानसिक आघात लगा।
बीथोवन और नेपालियन
बीथोवन कोई राजनेता न थे। फ्रांस में होने वाले उतार-चढ़ावों को लेकर थोड़े उलझन में भी थे। लेकिन उनका क्रांतिकारी संवेग व सहज ज्ञान कभी गलत दिशा में नहीं जाता था।
बीथोवन को लगता था कि क्रांतिकारी नेपालियन बोनापार्ट क्रांति को आगे बढ़ाने वाला तथा मनुष्य के अधिकारों की रक्षा करने वाला व्यक्ति है। इसकारण उसने अपनी सिंफनी नेपोलियन को समर्पित करने की योजना बनायी थी। लेकिन , 1799 में, नेपालियन ने क्रांतिकारी उभार की समाप्ति का आगाज करने वाले तख्तापलट को अंजाम दिया।
अपनी तानाशाही को स्वीकृति दिलाने के लिए पुराने कुलीन खिताबों व पदवियों को बहाल कर दिया था। फ्रांसीसी क्रांति के दौरान उत्पीड़नकारी सत्ता के संरक्षक के प्रतीक को ध्वस्त कर दिया था नेपोलियन ने अपनी सत्ता की वैधता के लिए कैथोलिक चर्च के पोप के साथ समझौता भी किया।
नेपोलियन इस दौरान ‘‘ आई एम द चाइल्ड ऑफ रिवोल्यूशन’’ से ‘‘ ‘‘आई डिस्ट्रॉयड द रिवोल्यूशन’’ तक का सफ़र पूरा कर चुके थे।
1802 के बाद से बीथोवन की राय नेपोलियन को लेकर बदलने लगी थी। वे थोड़ी निराशा के साथ घटनाओं को देख रहे थे। उसी वर्ष अपने एक मित्र को लिखे पत्र में बीथोवन ने लिखा ‘‘ नेपोलियन के पोप के साथ समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद सब कुछ पुरानी लकीर पर जाने की कोशिश कर रहा है।’’ 1804 में नेपोलियन फ्रांस का बादशाह बन बैठा। नेपोलियन का ताजपोशी समारोह नोट्रेडेम के प्रधान गिरिजाघर में संपन्न हुआ। पोप ने उनपर पवित्र जल छिड़का और इस तरह युगांतकारी रिपब्लिकन संविधान को मटियामेट कर डाला गया। पुरानी राजशाही पुनः वापस आने लगी थी। और इस प्रकार क्रांति के लिए शहीद होने वाले लोगों का यह तरह से मजाक बन गया था। जब बीथोवन ने इन खबरों के बारे में सुना तो उसे बहुत तकलीफ हुई।
प्रतिक्रियावाद की विजय
पूरे यूरोप को फतह करते हुए नेपोलियन की सेना को जब 1812 में रूस की सीमा पर रोक दिया गया बीथोवन अपनी सातवीं व आठवीं सिंफनी पर काम कर रहे थे। रूस के बर्फीले मोर्चे पर लगा गहरा धक्का अंततः वाटरलू में 1815 इंग्लैंड व प्रशियाई फौज के हाथों उसकी निर्णायक पराजय का कारण बना। रूस और नेपोलियन की फौज के मध्य यह लड़ाई को रूसी साहित्यकार टॉलस्टाय विश्वविख्यात उपन्यास "युद्ध व शांति"का प्रमुख विषय बना।
1815 में नेपालियन की पराजय के लगभग एक दशक बाद तक बीथोवन किसी सिंफनी की रचना नहीं कर पाते हैं। इनकी अंतिम सिंफनी दस सालों के बाद आती है और जो उनकी सबसे महानतम सिंफनी भी मानी जाती है।
बीथोवन का बहरा हो जाना
बहरेपन की शिकायत तो बीथोवन को एक दशक पूर्व से होने लगी थी। अब वह पूरी तरह बहरे हो चले थे। अपनी ही सिंफनियों को सुनने की कोशिश करने की उनकी जद्दोजहद की मार्मिक कहानियां सुनायी जाती हैं। उनका अकेलापन बढ़ने लगा था। इसने उनको अंर्तमुखी, मूडी व हर चीज पर संदेह करने की आदत ने उनको लोगों से और अधिक अलगाव में डाल दिया।
बीथोवन ने अपनी इन सभी त्रासद मनःस्थिति को संगीत में ढ़ालने का प्रयास किया। इन तरह बीथोवन की नौवीं सिंफनी की सामने आती है ।
नौवीं सिंफनी
बीथोवन की नौवीं सिंफनी सर्वोत्तम मानी जाती है। नौंवी सिंफनी का पहला खाका बथोवन ने 1816 में ही खींचा था। वैसे नौवीं सिंफनी की शुरूआत तो वाटरलू में नेपोलियन की पराजय के एक साल बाद होती है। लेकिन यह सिंफनी पूरी होती है सात वर्षों के बाद 1822-24 में। इसका पहला प्रदर्शन 7 मई 1824को होता है।
यह सिंफनी अपनी प्रारंभिक गतियों में पांचवीं सिंफनी से मिलती जुलती दिखती है लेकिन उससे कहीं बहुत अधिक बड़े स्तर पर। पांचवीं सिंफनी की तरह ही यह एक तरह का जोरदार और हिंसक संगीत था। इस किस्म का संगीत इससे पहले कभी नहीं सुना गया था।
ज्ब बीथोवन ने इस सिंफनी को प्रस्तुत किया था तब बहरे हो जाने के कारण अपने हाथों को तब भी तेजी से हिला रहे थे जबकि संगीत का अंतिम टुकड़ा बज चुका था। बीथोवन श्रोताओं की तालियों की गड़गड़ाहट नहीं सुन पाए। तब किसी ने उनके कंधों को हिलाया और उनको चेहरा श्रोताओंकी ओर कर दिया। श्रोताओं पर इस सिंफनी का इतना गहरा प्रभाव पड़ा कि बीथोवन के सम्मान में कम से कम पांच दफे स्टैंडिंग ओवेशन (खड़े होकर ताली बजाते हुए सराहना करना ) दिया गया। कोलाहल इतना बढ़ गया कि वियना की पुलिस को हस्तक्षेप करना पड़ा था क्योंकि सम्राट को भी तीन बार से अधिक स्टैंडिंग ओवेशन देने की परिपाटी नहीं थी। पांच बार स्टैंडिंग ओवेशन बादशाह की शान में गुस्ताखी की तरह था।
नौवीं सिंफनी के बारे में कम्युनिस्ट नेता सीताराम येचुरी ने " द साउंड ऑफ म्यूजिक'' शीर्षक अपने लेख में कहा है " हमे बीथोवन की 9वीं सिंफनी को समझने की आवश्यकता है। इस सिंफनी में बीथोवन को वाद्ययंत्रों की विविध व व्यापक ध्वनियों की अपर्याप्तता के कारण बीच में मानव स्वर को शामिल करने की जरूरत महसूस हुई। इस संगीत को बीथोवन ने तब बनाया जब वह पूरी तरह बहरे हो गए थे। उन्होंने खुद अपनी इस सिंफनी का संचालन किया। सिंफनी की समाप्ति पर एक प्रत्यक्षदर्शी के अनुसार श्रोताओं की ओर से उन्हें पांच दफे स्टैंडिंग ओवेशन दिया गया। हवा में रुमाल हिलाए जा रहे थे, टोपियां उछाली जा रही थी, हाथ उठाये जा रहे थे ताकि बीथोवन सुन तो नहीं पाएंगे लेकिन कम से कम दर्शकों की देखकर उन्हें उनकी प्रतिक्रिया का अन्दाज़ा लग सकेगा।
नौवीं सिंफनी को अपार सफलता हासिल हुई लेकिन इससे बीथोवन को कुछ खास पैसा हासिल न हुआ। उनकी माली हालत बिगड़ती जा रही थी। इसी बीच उन्हें निमोनिया हो गया और ऑपरेशन से गुजरना पड़ा। उनका स्वास्थ्य बिगड़ चुका था और निजी जिंदगी तो त्रासदियों से ही भरी पडी थी। 27 मार्च 1827 को 56 वर्ष की अवस्था में बीथोवन की मृत्यु हुई।
उनकी अंतिम यात्रा में उस जमाने में लगभग 25 हजार लोग शामिल हुए। इससे उनकी व्यापक लोकप्रियता का पता चलता है।
बीथोवन का संगीत इस कारण क्रांतिकारी माना जाता है कि वो उन मानवीय परिस्थितियों व दुःख-दर्द पर रौशनी डालता है जिसे संगीत में कभी जगह नहीं मिली थी। बीथोवन ने सच को संगीत में अभिव्यक्त किया था। नौवीं सिंफनी हमें स्तंभित व प्रेरित करने की क्षमता आज भी कम नहीं हुई है।
बीथोवन का संगीत एक नये स्कूल रोमांटिसिज्म का जन्मदाता भी माना जाता है। इंकलाब के साथ रोमानीपन का गहरा रिश्ता रहा है। अप्रैल 1849 में जब जर्मनी में क्रांति की हलचलों के दरम्यान युवा संगीतकार रिचर्ड वाग्नर बीथोवन की नवीं सिंफनी को ड्रेसडेन में बजा रहे थे। श्रोताओं में प्रख्यात रूसी अराजकतावादी नेता बाकूनिन भी मौजूद थे। बाकूनिन के विचारों ने युवा वाग्नर पर भी खासा प्रभाव डाला था। नौवीं सिंफनी से प्रभावित होकर बाकूनिन ने कहा "अगर पुरानी दुनिया के खंडहरों से बचाने लायक कुछ है तो संगीत की एकमात्र यही स्वरलिपि है।"
सोनाटा शैली में संघर्ष का संगीत
लेकिन आखिर बीथोवन ने संगीत की अंदरूनी दुनिया में किस किस्म का प्रयोग किया और इसके लिए किस शैली का उपयोग किया? बीथोवन के संगीत की गति बिल्कुल नई थी। उनके पहले के कंपोजर शांत और लाउड हिस्से को लिखा करते थे। दोनों अलग-अलग हुआ करते थे। लेकिन इसके विपरीत बीथोवन एक से दूसरे हिस्से में स्वाभाविक रूप से चले जाते प्रतीत होते हैं।
बीथोवन ने संगीत में सोनाटा शैली का उपयोग किया। सोनाटा शैली को संगीत में लाने का श्रेय मोजार्ट व हायडन को जाता है लेकिन उस शैली को क्रांतिकारी अंर्तवस्तु के साथ मिलाकर बीथोवन ने जादू रच दिया।
मोजार्ट और हायडेन से शैली में समान पर अंर्तवस्तु में भिन्न
सोनाटा शैली 18वीं शताब्दी में हायडेन और मोजार्ट के माध्यम से अपनी ऊंचाई पर पहुंची। एक मायने में कहें तो बीथोवन, मोजार्ट और हायडन की अगली कड़ी की तरह थे। शैली या रूप के स्तर पर बीथोवन हायडेन व मोजार्ट की तरह ही नजर आते हैं परन्तु अंर्तवस्तु के स्तर पर बीथोवन उन दोनों से गुणात्मक तौर पर भिन्न हैं। अपनी अभ्युदय काल में सोनाटा का फॉर्म उसके कंटेंट पर हावी था। अठारहवीं शताब्दी के संगीतकारों की मुख्य चिंता सिर्फ अपने फाॅर्म को ठीक से पकड़ने का था। लेकिन बीथोवन के यहां सोनाटा का फॉर्म पूरी तरह उभर कर आता है। उनकी सिंफनियां एक ऐसा प्रभाव छोड़ती हैं जिसमें अंर्तविरोधों के माध्यम से संघर्ष का आगे विकास होता नजर आता है। यहां हम फार्म व कंटेंट, शैली व अंर्तवस्तु की द्वंद्वात्मक एकता को पाते हैं। तमाम महान कलाओं की तह में यह राज छुपा होता है। लेकिन संगीत के इतिहास में यह शिखर बहुत कम पाया गया है। बीथोवन इस शिखर को पाने वाले विरले हैं।
संगीत मे द्वंद्वात्मक पद्धति का उपयोग
एक हद तक यह तकनीक का मसला था। यानी बीथोवन ने जिस शैली का उपयोग किया वह कोई नई शैली नहीं थी लेकिन, जिस तरीके से उसने किया, उसमें अवश्य नयापन था। चर्चित मार्क्सवादी आलोचक एलेन वुड्स ने बीथोवन द्वारा संगीत में द्वंद्वात्मक पद्धति के उपयोग करने की बात की। उनके अनुसार “ सोनाटा शैली प्रारंभ में त्वरित गति से शुरू होता है उसके बाद एक दूसरा हिस्सा धीमे स्वर में, तीसरा हिस्सा हास-परिहास सरीखा और अंत में बेहद तेज गति से घटित होता प्रतीत होता है। मुख्यतः सोनाटा की शैली अ-ब-अ की पंक्ति पर आधारित होता है। यह पहले की तरह लेकिन उच्च स्तर पर लौटता है। यह पूरी तरह एक द्वंदात्मक अवधारणा है। विरोधाभासों के माध्यम से आगे बढ़ना नकार का निषेध करना। प्रदर्शन, विकास और पुनरावृत्ति या दूसरे शब्दों में कहें तो थीसिस-एंटीथीसिस-सिंथेसिस। बीथोवन की हर संगीतिक कृति में इसी किस्म की द्वंद्वात्मक गति की मिलती है।“
मेरा संगीत भविष्य के लिए है
संगीत में बीथोवन ने जो क्रांति की उसे उनके समकालीन भी ठीक से नहीं समझ पा रहे थे। उनके समकालीनों को बीथोवन का संगीत अजीब, विचित्र , और कई बार तो बेहूदा नजर आता था। ऐसा इस कारण कि बीथोवन का संगीत उन्हें सोचने पर मजबूर करता था। यह मधुर संगीत नहीं था जैसा कि उस वक्त तक समझा जाता था कि संगीत को होना चाहिए। मजेदार व रूचिकर धुनों के बदले बीथोवन सुनने वालों को सार्थक विषयों से साबका कराते हैं। बीथोवन का संगीत विचारों का वाहक था। बीथोवन द्वारा किए गए इस नवाचार ने बाद के दिनों में रोमांटिक संगीत की आधारशिला रखी।
फ्रांसीसी क्रांति के अन्य योद्धाओं की तरह बीथोवन को भी इस बात का पूरा एहसास था कि वे इस संगीत की रचना अपने वर्तमान नहीं भविष्य के लिए कर रहे हैं। जब कुछ संगीतकार उनसे इस बात की शिकायत किया करते थे कि आपका संगीत समझ में नहीं आता? बीथोवन का जवाब होता "आप चिंता न करें, यह संगीत भविष्य के लिए है।"
(अनीश अंकुर स्वतंत्र लेखक-पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)
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