मध्य प्रदेश : आशा-ऊषा कार्यकर्ताओं की महारैली, बोलीं- भीख नहीं, काम के बदले मांग रहे हैं दाम!
मध्य प्रदेश में एक बार फिर आशा- ऊषा कार्यकर्ता सड़कों पर हैं। बीते 20 दिनों से अधिक अनिश्चितकालीन धरने पर बैठीं ये कार्यकर्त्रियां मानदेय वृद्धि और नियमितीकरण समेत अन्य मांगों को लेकर सरकार के खिलाफ लगातार मोर्चा खोले हुए हैं। इसी कड़ी में आज, 5 अप्रैल को इन कार्यकर्ताओं ने प्रदेशभर में महारैली का आयोजन किया, जिसमें सरकार के प्रतिनिधियों का घेराव भी शामिल था।
बता दें कि बीते लंबे समय से मध्य प्रदेश में आशा और ऊषा कार्यकर्ता स्थाईकरण औऱ न्यूनतम वेतन की मांग को लेकर संघर्षरत हैं। इन प्रदर्शनकारियों का कहना है कि साल 2021 में जारी आश्वासन के बावजूद अब तक सरकार ने इस ओर कोई पहल नहीं की है, नाहीं अब तक सरकार का कोई प्रतिनिधि या नेता इन आंदोलनरत कार्यकत्रियों से मिलने आया है। इनका आरोप है कि चुनावी साल में सरकार महिलाओं के नाम पर तमाम वोट तो हासिल करना चाहती है, लेकिन मेहनतकश महिलाओं को उनकी कमाई नहीं देना चाहती।
क्या है पूरा मामला?
मध्य प्रदेश आशा- ऊषा सहयोगिनी श्रमिक संघ के बैनर तले चल रहे इस अनिश्चितकालीन धरने की शुरुआत 15 मार्च को हुई थी। संगठन के मुताबिक इतना समय बीत जाने के बाद भी अब तक सरकार ने इस पर कोई संज्ञान नहीं लिया है और नाही कार्यकर्ताओं की मांगों की कोई सुध ली है। संगठन का कहना है कि अगर अब भी सरकार ने आशा-ऊषा कार्यकर्ताओं की बात नहीं सुनी तो प्रदर्शन और तेज़ किया जाएगा। ये आंदोलन तब तक चलाया जाएगा तब सरकार द्वारा मांगे पूरी नहीं कर दी जाती।
संगठन की प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मी कौरव ने न्यूज़क्लिक से बातचीत में बताया कि इस प्रदेश में आशा-ऊषा कार्यकर्ताओं को कड़ी मेहनत के बावजूद बेहद कम वेतन पर गुजारा करना पड़ रहा है। लक्ष्मी के मुताबिक काम के बदले दाम कामकाजी महिलाओं का हक़ है, जिसे सरकार नज़रअंदाज नहीं कर सकती है, क्योंकि महिलाएं भी सरकार की वोटर हैं और सरकार बदलने की हिम्मत रखती हैं।
लक्ष्मी कौरव इस प्रदर्शन की गंभीरता को समझाते हुए कहती हैं, “साल 2021 में जब आशा और ऊषा कार्यकर्ताओं ने राजधानी भोपाल में बड़ा प्रदर्शन किया था, तब हमें ये आश्वासन दिया गया था कि जल्द ही प्रदेश की हर आशा को 10 हजार रुपए और पर्यवेक्षकों को 15 हजार रुपए का वेतन निर्धारित कर दिया जाएगा। लेकिन अब दो साल बीत जाने के बाद भी सरकार ने इस पर कोई कार्रवाई नहीं की है। ऐसे में मज़बूरन हमें दोबारा सड़कों पर उतरना पड़ रहा है। क्योंकि ये सिर्फ हमारी मांगों का सवाल नहीं, सरकार की विश्वसनीयता का सवाल भी है।"
लक्ष्मी के मुताबिक इस चुनावी साल में अगर सरकार आशा और ऊषा कार्यकर्ताओं की मांगें नहीं मानती तो ये सभी महिलाएं मिलकर सरकार बदलने का भी माद्दा रखती हैं। क्योंकि जीने लायक जो वेतन ना दे सके, वो सरकार निकम्मी है और जो सरकार निकम्मी है, वो सरकार बदलनी है।
सरकार केवल शाबाशी देती है, पैसे नहीं!
भिंड से ताल्लुक रखने वाली आशा कार्यकर्ता कुसुम बताती हैं कि हम आशा कार्यकर्ता विभिन्न लोगों और स्वास्थ्य प्रणाली के बीच एक कड़ी का काम करती हैं। कोरोना काल में भी हमने अपनी जान पर खेल कर लोगों की जानें बचाई हैं। लेकिन तब शाबाशी देने वाली सरकार के पास अब हमारे लिए कुछ नहीं है। सरकार की दिलचस्पी न तो हमें स्थायी श्रमिकों के रूप में मान्यता देने में है और न ही हमें न्यूनतम वेतन देने में है।
गौरतलब है कि साल 2005 में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के तहत स्वास्थ्य सुविधाओं को जन-जन तक पहुंचाने के उद्देश्य से आशा कार्यकर्ताओं की भर्ती की जाती है। वहीं सहयोगिनी की भूमिका आशा कार्यकर्ताओं की निगरानी और उनका मार्गदर्शन करना है। इनकी ज़िम्मेदारी स्वास्थ्य विभाग को आशा कार्यकर्ताओं के किये गये कार्यों की प्रगति की रिपोर्ट करने की भी होती है।
साल 2021 में मध्यप्रदेश में हज़ारों आशा कार्यकर्ताओं का बड़ा और अहम आंदोलन देखने को मिला था। उनकी मांगों में स्थायी कर्मचारियों के रूप में मान्यता दिये जाने और मानदेय के बदले 18,000 रुपये प्रति माह नियमित वेतन दिये जाने की मांगें शामिल थीं। यह राशि सातवें वेतन आयोग के मुताबिक़ केंद्र सरकार के कर्मचारियों को दिये जाने वाला शुरुआती वेतन मानदंड है। फिलहाल आशा कार्यकर्ता अपनी नियमित गतिविधियों के लिए राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत 2000 रुपये प्रति माह के मासिक मानदेय की हक़दार हैं।
साल 2021 का बड़ा आंदोलन और सरकारी आश्वासन
ध्यान रहे कि साल 2018 से पहले ये सभी कार्यकर्ता केवल 1,000 रूपए मासिक पारिश्रमिक लेती थीं। इस मासिक मानदेय के अलावा इन्हें जननी सुरक्षा योजना, गृह आधारित नवजात शिशु देखभाल (HBNC), आदि जैसे अतिरिक्त कार्यों के आधार पर प्रोत्साहन राशि मिलती है। सरकारी खबरों के मुताबिक आशा कार्यकर्ताओं को महामारी के दौरान किये गये उनके सभी कार्यों के लिए उनके इस मासिक मानदेय 2,000 रुपये के अलावा उन्हें 1,000 रुपये की मामूली राशि का भी भुगतान किया गया है।
प्रदर्शनकारी आशाओं की मानेंं तो, 24 जून 2021 को राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की निदेशक आशा कार्यकर्ताओं को प्रति माह 10,000 रुपये के मानदेय का प्रस्ताव देने और राज्य सरकार और यूनियनों को इस प्रस्ताव के भेजे जाने पर सहमत हुई थीं। उन्होंने इस शर्त पर सहयोगियों के मानदेय में बढ़ोत्तरी किये जाने का भी वादा किया था कि उनके कार्य दिवस 25 दिन से बढ़ाकर 30 दिन कर दिए जायेंगे। उन्होंने ड्यूटी के दौरान कोविड-19 के कारण मरने वाली आशा कार्यकर्ताओं के परिवारों को 50 लाख रुपये का मुआवज़ा देने का भी वादा किया था। लेकिन बीते दो साल में इस पर सरकार ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। ऐसे में ये चुनावी साल इन आशा और ऊषा कार्यकर्ताओं के लिए भी बेहद अहम है।
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