Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

मध्य प्रदेश: किसान बदहाल, पहले बारिश ने रूलाया अब इल्लियां चट कर रहीं खेत!

“कुछ घंटे तेज़ बारिश हो जाए तो इल्लियों का प्रकोप ख़त्म हो जाएगा, लेकिन बारिश छिटपुट हो रही है, इससे पौधे ज़िंदा तो हैं लेकिन इल्लियां उन्हें ख़त्म कर रही है। उत्पादन प्रभावित होना तय है।”
Farmer
Photo : PTI

मध्यप्रदेश में किसानों की बदहाली का दौर जारी है। समूचे राज्य में अगस्त महीने में मानसून ब्रेक हो गया था। भोपाल, नर्मदापुरम, हरदा, सीहोर, रायसेन जैसे कई जिलों में लगातार 20 दिन तक बारिश नहीं हुई तो सागर, बैतूल, धार, देवास, खंडवा में 25 दिन तक बारिश की एक बूंद नही गिरी। इस वजह से किसानों के खेतों में खड़ी सोयाबीन, धान, मक्के की फसल सूख गई या सूखने के कगार तक पहुंच गई। अब बीते तीन दिनों से छिटपुट बारिश का दौर जारी है लेकिन यह प्रभावित हो चुकी फसलों के लिए काफी नहीं है। किसानों की मुश्किलें यहां खत्म नहीं हुई हैं, बल्कि बढ़ गई हैं। किसानों ने बारिश के दिनों में सिंचाई करके जिन फसलों को बचाया था, उन पर इल्लियों का प्रकोप बढ़ गया है, जो फसलों को चट कर रही है।

नर्मदापुरम की सिवनी मालवा तहसील के चापड़ाग्रहण के किसान सुरजबली जाट बताते हैं कि उन्होंने 35 एकड़ में सोयाबीन लगाई है, जो पूर्व में सूखे के कारण बर्बाद हुई। अब फसल पर इल्लियां लग चुकी है। वह कहते हैं कि "तेज़ बारिश होती तो इल्लियां नहीं लगती। अभी भी कुछ घंटे तेज़ बारिश हो जाए तो इल्लियों का प्रकोप खत्म हो जाएगा, लेकिन बारिश छिटपुट हो रही है, इससे पौधे जिंदा तो है लेकिन इल्लियां उन्हें खत्म कर रही है। उत्पादन प्रभावित होना तय है।”

वह कहते हैं, "कीटनाशक छिड़काव करके फसल को बचाया जा सकता है, लेकिन क्या भरोसा कि फिर इल्लियां न लगे। वह यह भी कहते हैं कि छिटपुट बारिश का दौर खत्म हो जाए तो फिर फसल सूख जाएगी और कीटनाशक छिड़काव पर खर्च होने वाली राशि भी नहीं निकलेगी।”

हाल में अस्तित्व में आए नए जिले मऊगंज के मऊबगतरा के किसान अनिल मिश्रा बताते हैं कि "वह 5 एकड़ ज़मीन में खेती करते हैं। इस बार धान अधिक लगाई थी, जब बारिश नहीं तो मोटर पंप लगाकर सिंचाई करना पड़ा। तब भी फसल मार खा गई। यही हाल कोदो फसल का होगा, क्योंकि इसे भी अधिक पानी की ज़रूरत होती है जो कि इस वर्ष बहुत ही कम बारिश हुई। दोनों ही फसलों का उत्पादन गिरना तय है।”

नर्मदापुरम जिले के बैराखेड़ी गांव के किसान किसान ओमप्रकाश राजपूत कहते हैं, "मैंने ढाई एकड़ सिकमी ली। ज़मीन मालिक को प्रति एकड़ 20 हज़ार रुपये चुकाए। इसके बाद धान की की रोपाई की थी। बारिश नहीं होने के कारण फसल सूख रही थी, जिसे मवेशियों को खिला दिया। यदि नहीं खिलाता तो फसल पूरी सूख जाती और अंत में वह मवेशियों के खाने योग्य भी नहीं बचती।”

मंडला जिले की घुघरी तहसील के बसनिया गांव के नवल सिंह मरावी बताते हैं कि उनके पास 5 एकड़ ज़मीन है, जिसमें से 2 एकड़ में धान लगाई थी, वह सूख रही थी, जिसे मोटर पंप से पानी देकर बचाया। लेकिन आधा एकड़ में लगाई मक्के की फसल की सिंचाई नहीं कर पाए। क्योंकि इतना पानी ही नहीं था। जिसकी वजह से मक्का फसल बुरी तरह प्रभावित हो गई।

इसी गांव के रहने वाले हल्केराम पट्टा के पास 2 एकड़ ज़मीन है। वह बताते हैं कि "पूरी ज़मीन पर धान की बुआई की थी, लेकिन मोटर पंप व का साधन नहीं था जिसकी वजह से सिंचाई नहीं कर पाए और इस तरह फसल सूख गई।”

हरदा जिले की टिमरनी तहसील के किसान बसंत कुमार के पास 20 एकड़ ज़मीन है। जिसमें से 15 एकड़ में सोयाबीन व 5 एकड़ में मक्का फसल लगाई है। वह बताते हैं कि "बारिश नहीं होने के कारण फसलों की ग्रोथ रूक गई। हमने किसी तरह फसलों को मोटर पंप से पानी देकर बचा लिया। जिस तरह सोयाबीन फसल में फूल लगने की प्रक्रिया होनी थी वह प्रभावित हो गई, जिसके कारण कम फल्लियां लगी। स्वभाविक है धान भी कम लगेगा। इस तरह मक्का फसल तो बहुत अधिक प्रभावित हुई है। उत्पादन गिरना तय है।”

किसान बसंत कुमार कहते हैं कि "उत्पादन गिरना तय है लेकिन इसकी भरपाई होगी या नहीं, इसका भरोसा सरकार ने नहीं दिया है। जिन किसानों की फसलें पूरी तरह प्रभावित हो चुकी उनका भी सर्वे नहीं हो रहा है।”

मध्य प्रदेश में पर्याप्त बारिश नहीं होने के कारण सूखे जैसे जैसी स्थिति निर्मित हो गई है। सितंबर के पहले सप्ताह में खंडवा, सागर जिले के कुछ किसानों ने अपनी फसलों पर ट्रैक्टर चला दिया है, ताकि समय रहते दूसरी फसल के लिए ज़मीन तैयार कर ली जाए।

सूखे का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि नर्मदापुरम जिले में तवा बांध से बारिश के दिनों में 5 सितंबर को 1000 क्यूसेक पानी छोड़ना पड़ा है जो कि किसानों की मुसीबतों व सूखे को दर्शाने वाली घटना है।

खरीफ फसलों की बुआई

मध्य प्रदेश में इस वर्ष करीब 145 लाख हेक्टेयर में खरीफ फसलों की बुआई हुई है। इनमें मुख्य रूप से सोयाबीन, धान, मक्का, दलहन, कोदो, कुटकी जैसी फसलें हैं। इनमें से धान फसल को सबसे अधिक पानी की ज़रूरत होती है।

पश्चिमी मध्य प्रदेश के हिस्सों में सबसे कम बारिश

प्रदेश में बारिश की स्थिति की बात करें तो अगस्त का महीना तपन और मानसून की बेरुखी में बीतने के बाद बीते तीन दिनों से छिटपुट बारिश हो रही है, लेकिन अब भी प्रदेश में सामान्य से 20 प्रतिशत कम बारिश हुई है। अब बंगाल की खाड़ी में सिस्टम सक्रिय है, जिसकी वजह से सितंबर माह के दूसरे सप्ताह में भी बारिश के आसार बने हुए हैं।

मौसम विभाग से मिली जानकारी के अनुसार प्रदेश में 1 जून से 6 सितंबर तक 26.16 इंच बारिश हुई है, जो कि 32.43 इंच होनी थी। प्रदेश के पूर्वी हिस्से में 16 प्रतिशत व पश्चिमी हिस्से में औसत से 23 प्रतिशत कम बारिश हुई है।

क्या कर रहे किसान?

किसान चाहते हैं कि खराब फसलों को काटकर फेंकने या उस पर ट्रैक्टर चलाने से पहले सरकार सर्वे करा ले ताकि नुकसान का सही आकलन किया जा सके। भारतीय किसान यूनियन लगभग प्रत्येक जिले में इसकी मांग कर रही है। उक्त यूनियन के नर्मदापुरम जिला संगठन मंत्री सुरेंद्र सिंह राजपूत ने बताया कि उन्होंने किसानों के एक प्रतिनिधि मंडल के साथ 6 सितंबर को जिला प्रशासन को ज्ञापन सौंपा है जिसमें नर्मदापुरम समेत सभी जिलों को सूखाग्रस्त घोषित करने, सिंचाई के लिए पर्याप्त बिजली देने, बीमा कंपनियों से सेटेलाइट सर्वे की बजाए मौके पर राजस्व विभाग के साथ मिलकर सर्वे कराने और बारिश की स्थिति को देखते हुए कर्ज की वसूली रूकवाने व खेतों में फैले बिजली तारों को व्यवस्थित किए जाने की मांग शामिल है। इधर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने किसानों को भरोसा दिया है कि सरकार उनके साथ है और किसी भी तरह की मदद के लिए तैयार है।

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest