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जम्मू-कश्मीर में नियमों का धड़ल्ले से उल्लंघन करते खनन ठेकेदार

विशालकाय मशीनें छोटी नदियों का दोहन कर जैव विविधता को नष्ट कर रही हैं। गैरकानूनी ठेके और ज्यादा खनन से जलीय जीवन, वनस्पतियों और जीवों तथा कृषि के अस्तित्व पर खतरा उत्पन्न हो गया है।
jammu kashmir
पत्थर खनन। प्रतिनिधिक चित्र।

कश्मीर घाटी पीर पंजाल और विशाल हिमालय के बीच एक उपजाऊ मैदान है। इसकी छोटी-छोटी और पहाड़ी नदियां न केवल इसकी सुंदरता को बढ़ाती हैं। वे ज्यादातर झेलम नदी में मिल जाती हैं, जो घाटी की प्राथमिक प्राकृतिक जल निकासी प्रणाली है। झेलम की प्रमुख सहायक नदियां लिद्दर, ब्रेनघी, अरिपथ, सिंध और पोहरू स्थानीय रूप से नल्लाह या कुल्स कहलाती हैं। इनके अलावा, रामबियारा, वैशव, दूध गंगा, फिरोजपुर और छोटी सहायक नदियां भी हैं, जो झेलम में विलीन हो जाती हैं।

झेलम नदी की अधिकांश सहायक नदियों का पाट सिर्फ 40 से 50 मीटर चौड़ा है, फिर भी वे स्थानीय परिदृश्य और जनजीवन को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित करती हैं। उनका पानी पीने के काम आता है। इसके साथ ही, खेतों और बगीचों की सिंचाई के लिए उपयोग किया जाता है। बड़े पैमाने पर विस्तृत होते शहरीकरण और बढ़ती जनसंख्या के दबाव के कारण, झेलम और इसकी सहायक नदियां जबरदस्त दबाव में हैं। इन जल निकायों में रेत, बजरी और बोल्डर खनन किए जा रहे हैं, जिससे पिछले 10 वर्षों में बड़े पैमाने पर पर्यावरण का विनाश हुआ है। माफिया की स्थानीय पुलिस एवं सरकारी अधिकारियों की सांठगांठ है, वे सब मिलकर नदियों के प्रवाहों एवं नदियों की खनिज संपदा की लूट मचाए हुए हैं।

नए खनन-नियम

अवैध खनन को नियंत्रित करने के लिए, आज से लगभग छह साल पहले, तात्कालीन पीडीपी-भाजपा सरकार ने जम्मू-कश्मीर माइनर मिनरल रियायत, खनिज भंडारण और परिवहन एवं अवैध खनन रोकथाम नियम-2016 नामक नए नियम बनाए थे। सरकार के उद्योग और वाणिज्य विभाग ने एक आदेश (19 मार्च 2019) में, ई-नीलामी (ई-ऑक्शन) के माध्यम से खनिज ब्लॉक आवंटित करने का फैसला किया। इसके लिए जिला स्तरीय ई-ऑक्शन समितियों का गठन किया गया और कहा गया कि इसकी अध्यक्षता जिलाधिकारी करेंगे। पीडब्ल्यूडी, सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण, भूविज्ञान और खनन और वित्त विभागों के वरिष्ठ अधिकारी और इंजीनियर इन समितियों के सदस्य हैं।

भूविज्ञान और खनन विभाग भी खुली नीलामी की बजाय अब ई-नीलामी की शुरुआत की है। अब तक 173 से अधिक खनिज ब्लॉकों को ई-नीलामी के लिए अधिसूचित किया गया है। पुंछ, राजौरी, जम्मू, सांबा, कठुआ, उधमपुर, रियासी, श्रीनगर, बांदीपोरा, बडगाम, गांदरबल, कुपवाड़ा, बारामूला और पुलवामा जिलों के लिए अधिसूचना जारी की गई है। हालांकि ई-नीलामी की व्यवस्था को 2020 में जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी, लेकिन अदालत ने इस प्रणाली को मामूली खनिजों के लिए बरकरार रखा और कहा कि यह एक अधिक पारदर्शी प्रणाली है, जो सार्वजनिक हित और राष्ट्रीय प्राथमिकताओं को अधिक से अधिक पूरी करेगी।

तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल और न्यायमूर्ति संजय धर की खंडपीठ ने अक्टूबर 2020 में, माइनर मिनरल्स की ई-नीलामी के खिलाफ खनन ठेकेदारों की अपील को खारिज कर दिया था। इसने यह भी कहा कि नीतिगत निर्णय "उचित" है और "ई-नीलामी सबसे पारदर्शी" है।

पीठ ने यह भी कहा, "अपीलकर्ताओं की अवैध कारगुजारियों ने भारी वाणिज्यिक लाभ प्राप्त करते हुए शेष बोली राशि के मामले में मूल्यवान वित्तीय संसाधनों से राज्य को वंचित कर दिया है और पर्यावरणीय मंजूरी लिए बिना ही अंधाधुंध खनन कार्य किया है,जिससे पर्यावरण का भारी क्षरण हुआ है..."। 

ई-नीलामी के बाद परिदृश्य

कई लोगों को उम्मीद थी कि ई-ऑक्शन से कश्मीर की नदियों में अवैध खनन का कारोबार एकदम खत्म हो जाएगा। नतीजतन, रेत, बजरी,पत्थर और बोल्डर जैसी निर्माण सामग्री की कीमतें कम हो जाएंगी। इसके विपरीत, योग्य बोली लगाने वाले और ठेकेदार तब से ही नदियों और उनकी जलधाराओं के बड़े पैमाने पर विनाश में संलिप्त हो गए हैं। वे बड़े पैमाने पर हाइड्रोलिक क्रेन और जेसीबी तैनात करते हैं, जिससे जल पारिस्थितिकी तंत्र, जैव विविधता और सुरमय परिदृश्य को खतरा होता है। जो मजदूर पहले मैन्युअल करते थे, अब उनकी जगह मशीनें ज्यादातर काम करती हैं। वह कई जगहों पर काम कर रही हैं। जाहिर है कि 2016 में बने खनन नियमों के दिशानिर्देशों का खुले तौर पर उल्लंघन किया जाता है। दूध गंगा और शाली गंगा के आसपास रहने वाले लोग झेलम की इन दोनों सहायक नदियों से रेत, बोल्डर, मक, बाजरी आदि के अवैध खनन से परेशान हैं।

दूध गंगा में खनन

दूध गंगा,जिसकी औसत चौड़ाई 35 से 40 मीटर है, आंतरिक हिमालयी क्षेत्र के पीर पंजाल ग्लेशियर में लगभग 4,400 मीटर की ऊंचाई से निकलती है। इसे स्थानीय रूप से चाज कुल कहा जाता है क्योंकि यह चाज कनी नाद नामक एक छोटी घाटी को पार करता है, जहां इसका पानी दूधिया रंग-रूप लेता है। चाज कनी नाद तक पहुंचने से पहले, यह आड़ी-तिरछी मुड़ती है, अपने प्रवाह से मंत्रमुग्ध करती है, छोटी नावकन घाटी पार करती हुई एकदम निर्मल बहती जाती है। लेकिन यह सिर्फ 30 किमी नीचे जा कर अवैध खनन सहित ठोस और तरल अपशिष्ट से दूषित हो जाती है। दूध गंगा में सेब के बागों में इस्तेमाल किए गए कीटनाशक बह-बह कर उसे विषैली बना देते हैं।

लगभग 12 साल पहले, इस नदी प्रवाह को बडगाम जिले के बरनवार गांव में पनबिजली उत्पन्न करने के लिए एक घास के मैदान की तरफ मोड़ दिया गया था। इसने सात किलोमीटर के क्षेत्र में डाउनस्ट्रीम वनस्पतियों और जीवों को नष्ट कर दिया। क्रल्पोरा में दूध गंगा जल निस्पंदन संयंत्र से आपूर्ति किया जा रहा पानी ठोस और तरल अपशिष्टों और कीटनाशक संदूषण के कारण अशुद्ध हो गया है। फिर, श्रीनगर नगर निगम (एसएमसी) का कचरा इसको चनापोरा से लेकर टेंगपोरा तक की चार किलोमीटर की दूरी में कई स्थानों पर और भी प्रदूषित कर देता है। एसएमसी ने अनुपचारित तरल अपशिष्ट को हटाने के लिए कई पंप स्टेशन स्थापित किए हैं, जो जल (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम 1974 का स्पष्ट उल्लंघन है।

खुद इस लेखक ने अधिवक्ता राहुल चौधरी के माध्यम से पिछले साल राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) का दरवाजा खटखटाया था। अधिकरण ने जम्मू-कश्मीर सरकार पर और मार्च 2022 में 3 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया था। एनजीटी ने अपने आदेश में कहा था कि जुर्माने की रकम दोषी अधिकारियों और प्रदूषण फैलाने वालों से वसूली जाएगी।

लेकिन पिछले चार से पांच महीनों में, भारी क्षमता वाले हाइड्रोलिक क्रेन के साथ दूध गंगा में निरंतर खनन ने नदी का पर्यावरणीय विनाश किया है, और उसे प्रदूषित कर दिया है। दरअसल, जब इस लेखक ने प्रदूषण को न्यायाधिकरण के संज्ञान में लाने के लिए एक याचिका दायर की, तो उसमें अवैध खनन इसका हिस्सा नहीं था, क्योंकि उस समय खनन शुरू नहीं हुआ था। इसके बावजूद पिछले दो महीने से दूधगंगा और शालीगंगा में अवैध खनन जोर-शोर से चल रहा है। ये छोटी नदियां केवल पांच या छह किलोमीटर दूर चदूरा तहसील से होकर बहती हैं। चदूरा शहर के पास दूध गंगा के अपस्ट्रीम और डाउनस्ट्रीम के दो हिस्से खनन के लिए लीज पर दिए गए हैं।

विगत में भी खनन कार्य किए जाते थे, लेकिन अपेक्षाकृत एक छोटे पैमाने पर, और शायद ही तब मशीन का इस्तेमाल होता था। यह तब मुख्य रूप से स्थानीय आबादी द्वारा किया गया था, जो सीधे भूविज्ञान और खनन विभाग को रॉयल्टी का भुगतान करती थी। अलबत्ता, इसमें भ्रष्टाचार था, लेकिन निर्माण सामग्री की कीमत हमेशा नियंत्रण में होती थी। सरकार ने इस क्षेत्र में अवैध कारोबार को नियंत्रित करने के लिए 2016 में नए खनन नियम लागू किए थे लेकिन यह कहर बरपा रहा है क्योंकि अब खनन ठेकेदार ही सबसे बड़े उल्लंघनकर्ता हैं।

कीमत में बढ़ोतरी

ई-ऑक्शन के तुरंत बाद, ठेकेदारों को खनन कार्य आवंटित किया गया, और जम्मू-कश्मीर में माइनर मिनरल्स की कीमतें अचानक बढ़ गईं। 2020 में, श्रीनगर और बडगाम जिलों में एक ट्रक (टिपर) रेत की कीमत जहां 4,000 रुपये थी,वही अब वह बढ़कर 10,000 से 12,000 रुपये हो गई है। इसी अवधि में, बजरी का भाव प्रति ट्रक 3,000 से 4,000 रुपये था, वहीं इसकी मौजूदा दर 9,000 से 10,000 रुपये प्रति टिपर है। भूविज्ञान और खनन विभाग और जिला खनिज कार्यालय (श्रीनगर) ने 21 मई 2021 को रेत की प्रति टिपर दर (लगभग 150 क्यूबिक फीट) 3,975 रुपये तय की, वहीं बजरी की कीमत 3,300 रुपये तय की थी। लेकिन ये मैटेरियल तय से कहीं ऊंचे दामों पर बिक रही हैं।

हालांकि डीपीआर केवल एक मीटर गहराई तक ही खनन की अनुमति देता है, जबकि हाइड्रोलिक क्रेन व्यापक रूप से 10 मीटर गहराई से रेत और अन्य सामग्री की खुदाई करते हैं। जो नदी के परिदृश्य और जैव विविधता को नष्ट कर रहा है।

शाली गंगा में खनन

शाली गंगा बडगाम होकर बहती है और हुशरू गांव के समीप चदूरा तहसील में प्रवेश करती है। इसका स्रोत पीर पंजाल रेंज में बडगाम और पुंछ जिलों के बीच तताकोटी ग्लेशियर (4,725 मीटर) है। यह नदी तो खनिज संसाधनों का खजाना है और बडगाम के खानसाहिब और चडूरा तहसीलों में पेयजल की एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है। इससे पानी के स्रोत से पेयजल आपूर्ति की कई सरकारी योजनाएं चलती हैं। ई-नीलामी के बाद, भूविज्ञान और खनन विभाग ने 2016 के समान खनन नियमों के तहत एक ठेकेदार अब्दुल राशिद मीर को मामूली खनिज ब्लॉक पट्टे पर दिया था।

श्रीनगर रिंग रोड का निर्माण करने वाली गुड़गांव स्थित निर्माण कंपनी एनकेसी प्रोजेक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड को खनिज निकालने का अनुबंध दिया गया था। इस मामले में कोई ई-नीलामी नहीं हुई थी, लेकिन फिर भी कंपनी पंजान गांव के पास दो स्थानों पर निर्माण कच्चे माल की खुदाई कर रही है। विशालकाय हाइड्रोलिक क्रेन भारी मात्रा में बोल्डर का उत्खनन करती है, जिसे धान उगाने वाले खेत में स्थित कंपनी की एक स्टोन क्रसर इकाई में ले जाया जाता है। यह मालूम नहीं है कि किसकी इजाजत से यह क्रशिंग इकाई चल रही है। कंपनी ने अपने ट्रकों को शाली गंगा तक आसानी से पहुंचने के लिए चट्टानों और कचरे को मिला कर एक अस्थायी सड़क बनाई है।

शाली गंगा में खनन क्षेत्र से स्टोन क्रसर इकाई की दूरी मुख्य सड़क से ज्यादा से ज्यादा दो किलोमीटर है। कंपनी ने इस दूरी को 500 से 700 मीटर तक कम करने के लिए धान के खेतों को तहस-नहस कर दिया है और राजस्व विभाग इस पर मूकदर्शक बना हुआ है। अगर कोई किसान या गांव वाले इस जमीन से अपने घर तक सड़क बना लेता तो उसको जेल हो जाती। लेकिन जम्मू-कश्मीर भूमि राजस्व अधिनियम का खुले तौर पर उल्लंघन करने के बावजूद, स्थानीय अधिकारियों ने कंपनी के खिलाफ एक भी मामला दर्ज नहीं किया है। श्रीनगर रिंग रोड परियोजना महत्त्वपूर्ण है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि इसके लिए जल निकायों, नदियों और धान के खेतों सहित एक नाजुक पर्यावरण को नष्ट किया जाए।

अवैध ई-नीलामी

2016 के खनन नियम कहते हैं कि शाली गंगा या दूध गंगा हो या अन्य कोई नदी, जिसका पाट 50 मीटर चौड़ा हो या उसके कम हो, उस पर कोई खनन नहीं किया जा सकता। इन दोनों धाराओं की अधिकतम औसत चौड़ाई 40 मीटर है। इसके मद्देनजर भूविज्ञान और खनन विभाग को खनिज ब्लॉक के रूप में क्षेत्र की नीलामी नहीं करनी चाहिए थी। खनन नियम 2016 के उपशीर्षक "अन्य प्रतिबंधों" के तहत नियम 4 कहता है कि खनन एक धारा या नदी के मुख्य किनारे से 25 मीटर की दूरी पर होना चाहिए। यानी किसी भी किनारे से 25 मीटर और नदी की चौड़ाई को ही जोड़ दें, इस मामले में 40 मीटर होना चाहिए।

“भूगर्भ विज्ञान और खनन विभाग कैसे दूध गंगा, शाली गंगा, हरवान श्रीनगर के पास टेलबल नाला, कुपवाड़ा में पोहरू नाला और 50 मीटर से अधिक चौड़ी अन्य धाराओं में ई-ऑक्शनिंग खनिज ब्लॉकों को उचित ठहराएगा? ये आवंटन अवैध हैं और इन्हें तत्काल रद्द किया जाना चाहिए। इसके अलावा, एक मीटर से अधिक गहरे खनन की अनुमति नहीं है, और फिर इसके लिए केवल अर्ध-मशीनीकृत तरीकों का ही उपयोग करना है। यहां तो इसके ठीक विपरीत भारी भरकम जेसीबी और एलएंडटी हाइड्रोलिक क्रेन इन नदियों और धाराओं में पांच या छह मीटर की गहराई तक खनन करते हैं,” जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय के एक वकील बदरुल दुज्जा श्रीनगर में न्यूजक्लिक से बताते हैं।

जब इस लेखक ने शाली गंगा और दूध गंगा खनन स्थलों का दौरा किया, तो वहां के निवासियों ने कहा कि खनन का समय सुबह 9 बजे से शाम 5 बजे तक तय है लेकिन यह पिछली आधी रात से ही शुरू हो जाता है। नदी से रोज केवल 20 ट्रक सामग्री (रेत, पत्थर, मक, आदि) लेने की अनुमति है, लेकिन दूध गंगा और शाली गंगा से प्रतिदिन लगभग 150 ट्रक सामग्री ली जाती है, जो खुली लूट है। बडगाम के पंजान गांव के गुलाम नबी कहते हैं, "नदी की गहराई दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है, जिसका कृषि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा और आसपास के तलछट को सोख लेगा।” नबी कहते हैं, “सरकार से मेरी अपील है कि वह हमारा बचाव करे।”

लेखक स्तंभकार, कार्यकर्ता और स्वतंत्र शोधकर्ता और एक्यूमेन फेलो हैं। वे श्रीनगर में रहते हैं। लेख में व्यक्त विचार उनके निजी हैं।

अंग्रेजी में मूल रूप से लिखे गए लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें

https://www.newsclick.in/Mining-Contractors-Violate-Rules-Jammu-Kashmir 

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