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दमन का नया केद्र : सिजिमाली, कुटरूमाली और माजनमाली

सत्ता में आने के बाद बीजेपी का सुर बदल गया और जोर-शोर से खनिज सम्पदा को कंपनियों को देने के लिए सर्वे कराया जा रहा है।
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सिजिमाली में ‘मां, माटी माली सुरक्षा मंच’ का कार्यक्रम

पूंजीपतियों की निगाह कलिंगनगर, नियमगिरि, जगतसिंहपुर (पोस्को), नारयणपटना, काशीपुर के बाद रायगड़ा जिले के सिजिमाली, कुटरूमाली और माजनमाली पर है। यहां पर बॉक्साइट का भंडार बड़ी मात्रा में है। 

कुटरू और माजनमाली अदानी की कम्पनी ‘मुद्रा एल्युमीनयम लिमिटेड’ को दिया जा चुका है, वहीं सिजिमाली को वेदांत कम्पनी को दिया गया है। 

एक कर्मचारी (नाम नहीं बताने की शर्त पर) ने बताया कि फारेस्ट विभाग के पास अदानी की तरफ से पूरे रायगड़ा़ की सर्वे के लिए आदेश आया है, जिसका एम आर नम्बर है क्यू आर-124/123 है। इस तरह अदानी की निगाह न केवल एक दो पहाड़ी से बाक्साइट निकालने का है, उनकी निगाह तो पूरे खदान पर है। 

सिजिमाली में लोगों द्वारा विरोध किया जा रहा है। लिंगराज आजाद बताते हैं कि ‘‘सिजिमाली, कुटरूमाली और माजनमाली को 23 साल की लीज पर वेदांता और अदानी को दिया जा चुका है।’’ 

विपक्ष में रहते हुए भाजपा नेता भृगु बक्शीपात्रा ने कहा था कि ‘‘जो लोग लोकतांत्रिक तरीके से सवाल पूछेंगे या विरोध करेंगे, उन पर झूठे मामले दर्ज किए जाएंगे और उन्हें जेल भेजा जाएगा। कोंडिंगामी में जो कुछ हो रहा था, वही वेदांता द्वारा सिजिमाली में दोहराया जा रहा है। अराजकता को किसी भी हालत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।’’ सत्ता में आने के बाद बीजेपी का सुर बदल गया और जोर-शोर से खनिज सम्पदा को कम्पनियों को देने के लिए सर्वे कराया जा रहा है।  

समाजवादी जन परिषद के महासचिव लिंगराज आजाद का कहना है कि ‘‘कम्पनियां ग्राम सभा की फर्जी मीटिंग करवाती हैं। जो लोग मर चुके हैं उनके भी हस्ताक्षर होते हैं। जो बच्चे पढ़ लिख नहीं सकते, उनके भी अंग्रेजी में हस्ताक्षर हैं सरकार के ग्राम सभा में।’’ सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को वन अधिकार अधिनियम-2006 के तहत नियमगिरि ग्राम सभा आयोजित करने का आदेश दिया, तो चयनित गांव के लोगों ने खनन के खिलाफ सर्वसम्मति से फैसला दिया। इससे वेदांता कम्पनी को बड़ा धक्का लगा। सिजिमाली वेदांता के लिए महत्वपूर्ण है, जिसके पास लांजीगढ़ में 2 मिलियन टन प्रतिवर्ष क्षमता का एल्युमीना रिफाइनरी संयत्र है। नियमगिरि खनन परियोजना सफल न होने के बाद कम्पनी को आयात पर निर्भर रहना पड़ा रहा है और करखाने को कम क्षमता पर चलाना पड़ रहा है। सिजिमाली के पास 311 मिलियन टन का भंडार है, जो कई वर्षों तक चल सकता है। यही कारण है कि वेदांता सिजिमाली को उड़ीसा सरकार से 23 साल के लीज पर ले लिया। 

आजाद का कहना है कि ‘‘हमको विस्थापित करके कहीं भेज सकते हो। हमारे साथ पशु-पक्षी, पेड़ आदि रहते हैं, जिसको हम परिवार के सामान मानते हैं तो उनको कैसे विस्थापित करेंगे। जल-जंगल-जमीन हमारी आजीविका है। मिट्टी से हमारे पुरखा जीते आये हैं। नौकरी दोगे तो एक पीढ़ी भी नहीं चल सकता है, हम तो इसी वातावरण के साथ पुरखों से जीते आये हैं। आदिवासी पेड़-पौधे, नदी, पहाड़ को पूजते हैं। धरती को मां के रूप में, पहाड़ को पिता के रूप में मानते हैं।’’ 

इसी बात को कांटामाल की 70 वर्षीय धनमत माझी दुहराती है-‘‘बचपन से ही हमें अपने खेतों में चावल उगाने के लिए कभी पानी की कमी का समाना नहीं करना पड़ा। सिजिमाली से दर्जनों धाराएं बहती हैं, मानो पहाड़ी ही हमारे गांव की रखवाली कर रही हो। हम बिना किसी बाहरी मद के एक साल तक खुद का पेट भरने लायक भोजन उगा लेते हैं।’’

सामाजिक कार्यकर्ता लक्ष्मण नायक कहते हैं कि ‘‘बापली मली में खनन हो रहा है। वहां पर जिन लोगों की घर-जमीन खनन में गया, उनको भी काम नहीं दिया जा रहा है। उनको दूसरे शहर में जाना पड़ता है। कुछ काम मिल भी जाता है, तो 100-200 रुपये दिहाड़ी दी जाती है। लोकल युवक, युवतियां काम के लिए जाते हैं तो उनको कम्पनी के अंदर भी नहीं जाने नहीं दिया जाता है। वेदांता को आये 20 साल हो गये, स्थानीय लोगों को रोजगार नहीं मिला। पुलिस दमन इतना ज्यादा है कि उन पर झूठा आरोप लगाकर वह जेल में डाल देती है। जो पढ़ रहे हैं उन पर भी केस है। मुंद्रा नाम से अदानी का कम्पनी है। पहले से लोगों पर झूठा केस लगा कर 22 लोग को जेल में डाल दिया है। 12 अगस्त, 2023 से लोगों को जबरदस्ती उठाने लगे।’’ 

लक्ष्मण नायक सवाल करते हैं कि दिल्ली में प्रदूषण के एक दिन दीपावली को पटाखे चलाने पर सुप्रीम कोर्ट प्रतिबंध लगा देता है तो क्या ओड़िसा के लोगों का जीने का अधिकार नहीं है? यहां इतना बलास्ट होता है जिससे छोटे बच्चों, गर्भवती महिलाओं पर असर पड़ता है। हमारा भी तो जीवन है। विकास के नाम पर विनाश किया जा रहा है, प्रदूषण बहुत बढ़ गया है। प्रदूषण फैलने से जानवरों पशु, पक्षियों पर असर पड़ रहा है, झरने हैं वह खत्म हो रहे हैं, झरने के तहत जो जीव जन्तु, मछली है उनका भी तो जीने का अधिकार है। आर्टिकल 21 जीने का अधिकार तो देता है, लेकिन जीने की क्वालिटी तो होना चाहिए!’’

नई दिल्ली में रहने वाले भू-वैज्ञानिक श्रीधर राममूर्ति चेतावनी देते हैं कि- “लोग बॉक्साइट खनन के डाउनस्ट्रीम प्रभाव को पहचानने में विफल रहते हैं। समय के साथ, खेती निस्संदेह प्रभावित होगी।” वे बताते हैं कि अगर कोरापुट जिले में दमनजोड़ी क्षेत्र (नाल्को का खनन क्षेत्र) का अध्ययन किया जाए, तो स्थानीय लोग कहेंगे कि कुछ झरने गायब हो गए हैं। “पूर्वी घाट से निकलने वाले जल संसाधनों पर कोई आधारभूत अध्ययन नहीं किया गया है। बॉक्साइट जमा पानी को संग्रहीत करने के लिए जाने जाते हैं, और अगर ये स्रोत नष्ट हो जाते हैं, तो निस्संदेह यह स्थानीय आबादी के जीवन को प्रभावित करेगा।”

लक्ष्मण नायक कहते  हैं ‘‘दक्षिण-पश्चिम उड़ीसा के जितने माली (पहाड़) है सब उनकी नजर में हैं। सरकार क्या चाहती है हमें नहीं पता लेकिन हम दलित, आदिवासी को किस नजरिया से देखते हैं, हमें जीना चाहिए या नहीं? हम इस देश के मूल निवासी हैं। भारत के आजाद हुए 75 साल हो गये, लेकिन हम अब भी आजाद नहीं हैं। हमें झूठे केस लगाकर जेल भेज जाता है। हम नियमगिरि में जा भी नही सकते। अगर सही विकास करना है तो वहां पर बहुत सारे फ्रूट मिलते हैं उसको अच्छा रेट दें। नियमगिरि में डोंगरिया समुदाय जहां रहता है, 70 साल बाद भी स्कूल नहीं है, पीने का पानी नहीं है, बिजली नहीं है तो क्या हमें जीने का अधिकार नहीं है? सभी राजनीतिक पार्टी, मीडिया, पुलिस प्रशासन कम्पनी को सर्पोट कर रहे हैं, हम बहुत दबाव में हैं। हमें पेसा कानून के जरिए मौलिक अधिकार मिले। हम दलित, आदिवासी उड़ीसा में जहां भी हैं, विस्थापित किये जा रहे हैं। जब यहां के पीड़ित लोग एकजुट होते हैं तो उनको बांटने की कोशिश की जाती है। काशीपुर के सब इंसपेक्टर पी.के स्वामी ने हमसे कहा कि तुम दलित हो, आदिवासी लोगों को क्यों मदद कर रहे हो। क्या हमारे पास किसी का मदद करने का संवैधांनिक अधिकार नहीं है। मीडिया में भी हमारी बात को नहीं सुनी जाती है।’’ 

‘नियमगिरि सुरक्षा समिति’ के उपेन्द्र आर्य बताते हैं कि ‘‘विस्थापित होने से न रहने की जगह, न खाने का है। पहले सपना दिखाया गया की मकान देंगे, बच्चों को पढ़ायेंगे, नौकरी देंगे-ये सब सपने दिखाकर दलाल बना लिये। वे सभी गांव में जाकर कहते थे कि तुम लोग केरल, बाम्बे जाते हो कमाने, अब यहां पर काम मिलेगा। यह सब कहकर लोगों को आन्दोलन के खिलाफ भड़काते थे। पहले से विस्थापित लोगों को नौकरी नहीं दी जा रही है वह ‘‘लैंड लूजर’ संगठन बनाकर संघर्ष कर रहे हैं।’’ 15 अक्टूबर, 2023 के इंडियन एक्सप्रेस में छपे लेख में लिखा गया है- ‘‘ हर जगह चौकस निगाहें आपका पीछा करती हैं। सड़क के किनारे बाइक पर खड़े युवाओं के छोटे-छोटे समूह किसी अजनबी को देखते ही अपने मोबाइल फोन निकाल लेते हैं और उसका इस्तेमाल करने लगते हैं। वे चुपचाप गाड़ी का पीछा भी करते हैं। इन्हें कंटामाल और अलीगुना के मूल निवासी ’कंपनी के एजेंट’ कहते हैं। गांवों में प्रवेश और निकास के कुछ प्वाइंट पर छद्म वेशधारी लोग दिखाई देते हैं।’’ 

जब लोग सिजिमाली, कुटरूमाली और माजनमाली को खनन के लिए विरोध करने के लिए सड़कों पर उतर रहे हैं तो 12 अगस्त 2023 से पुलिस-प्रशसन द्वारा कम्पनियों की मिलीभगत से दमन शुरू किया गया। मैथरी इंफ्रास्ट्रक्चर एंड माइनिंग इंडिया (एमआईएमआई) प्राइवेट लिमिटेड (इसी कम्पनी को खादानों की संचालन करने को मिला है) के सर्वेक्षकों ने 12 अगस्त, 2023 को पुलिस में दो पन्नों की शिकायत दर्ज कराई। इसमें दावा किया गया था कि कुल्हाड़ी और लाठियों से लैस ग्रामीणों ने उन्हें घेर लिया, उनके साथ दुर्व्यवहार किया और उन पर पत्थर फेंके और उन्हें बंधक बना लिया। 12 अगस्त की घटना के बाद काशीपुर पुलिस ने भारतीय दंड संहिता की कई धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज की, जिसमें 147 और 148 (दंगा), 341 (गलत तरीके से रोकना), 307 (हत्या का प्रयास), साथ ही आर्म्स एक्ट, 1959 की धारा 25 शामिल है। नामजद किए गए ग्रामीण कांतामल, बंतेजी, सरमबाई, सुंगर, शगाबारी, अलीगुना, कुटमल, बुंदेल और डुमरपदर के थे; 23 को गिरफ्तार किया गया है, जबकि 71 छिपे हुए हैं। एफआईआर में 100 अज्ञात “अन्य“ लोग भी  शामिल है।  केरल में काम करने वाले एक ग्रामीण पर मामला दर्ज किया गया है। पांच साल पहले मृत व्यक्ति को पकड़ने के लिए पुलिस आई थी। कार्तिक नायक को सुंगेर इलाके से गिरफ्तार कर लिया। कार्तिक की गिरफ़्तारी के विरोध में 500-700 से ज़्यादा स्थानीय लोगों ने पारंपरिक हथियार लहराते हुए काशीपुर पुलिस थाने का घेराव कर दिया। उन्होंने थाने के परिसर में टायर जलाकर प्रदर्शन किया और कार्तिक की तुरंत रिहाई की मांग की। रायगड़ा के एसपी विवेकानंद शर्मा का कहना है कि काशीपुर में अपरहण और कानून-व्यवस्था के उल्लंघन जैसी कई घटनाएं हुईं। इस कारण से हमें मामले दर्ज करने पड़े और मामले को बढ़ने से रोकने के लिए कार्रवाई करनी पडा।

वेदांता और अदानी के नये खनन को लेकर लोगों में आक्रोश फूट रहा है और जगह-जगह कार्यक्रम हो रहा है। इसी तरह का कार्यक्रम 9 अक्टूबर, 2024 को सिजिमाली में ‘मां, माटी माली सुरक्षा मंच’ का कार्यक्रम स्थानीय लोगों द्वारा रखा गया था, जिसमें लिंगराज आजाद ने बताया कि आदवासी राष्ट्रपति और मुख्यमंत्री बनाकर आदिवासियों को ही मारा जा रहा है। सिजिमाली से 62 गांव प्रत्यक्ष और 200 गांव अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होंगे। अन्य वक्तओं ने भी इस लड़ाई को केवल सिजिमाली की लड़ाई नहीं देश बचाने की लड़ाई बताई। आजादी के बाद भारत के विकास में सबसे ज्यादा विस्थापन की मार आदिवासियों को झेलना पड़ा है। आज आदिवासियों की लड़ाई को पुलिस, पैरा मिलिट्री के बुटों के तले कुचला जा रहा है। आदिवासियों का फर्जी एनकांउटर किया जा रहा है, उनको झूठे केसों में फंसा कर जेल में डाला जा रहा है और उनकी जल-जंगल-जमीन को पूंजीतियों के विकास के लिए हड़पा जा रहा है। इस लड़ाई को समर्थन देने और कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढने के लिए उड़ीसा के समाजवादी जन परिषद, एनपीएम, स्थानीय पत्रकार सहित दिल्ली से संयुक्त किसान मोर्चा से पी. कृष्णाप्रसाद, सामाजिक कार्यकर्त्ता और पत्रकार सुनील कुमार, यूपी से किसान-मजदूर परिषद से अफलातून और राजेन्द्र चौधरी ने भाग लिया। 

सिजिमाली के संघर्ष को संयुक्त किसान मोर्चा ने समर्थन करते हुए 22 नवम्बर, 2024 को समर्थन करते हुए प्रेस वक्तव्य दिया है। एसकेएम ने भाजपा के नेतृत्व वाली ओडिशा सरकार पर आरोप लगाया है कि वह अडानी, वेदांता और लार्सन एंड टूब्रो जैसे बड़े कॉरपोरेट घरानों को ओडिशा के कालाहांडी और रायगड़ जिलों में सिजिमाली, कुटरूमाली, माजनमाली और खंडुआलमाली जैसे बॉक्साइट सहित खनिजों से समृद्ध पहाड़ों को कब्जा करने में मदद कर रही है, जिससे हजारों किसानों, जिनमें से अधिकांश आदिवासी हैं, की बलपूर्वक बेदखली का खतरा पैदा हो गया है।

एसकेएम ने इस क्षेत्र में लगभग 50,000 किसान परिवारों द्वारा चलाए जा रहे जन संघर्षों का समर्थन किया है, ताकि वे अपनी उपजाऊ कृषि भूमि, जंगल, वन्यजीव और 250 से अधिक बारहमासी झरनों, नदियों को बड़े कॉर्पोरेट घरानों द्वारा खनन के लिए अतिक्रमण और कब्ज़ा किए जाने से बचा सके, जिनका उपयोग वे अपनी खेती और सिंचाई के लिए करते है। ये किसान कई पीढ़ियों से इस उपजाऊ भूमि पर धान, रागी, अलसी, तिल, अरंडी, चिरौंजी (कड़वा नट) और काजू उगाते आ रहे हैं।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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