अखिल भारतीय चिकित्सा शिक्षा कोटा के तहत ओबीसी को मिला आरक्षण, छात्र संगठनों ने कहा संघर्ष की हुई जीत!
नयी दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अखिल भारतीय चिकित्सा शिक्षा कोटे में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और आर्थिक रूप से पिछड़े (ईडब्ल्यूएस) वर्ग के उम्मीदवारों के लिए आरक्षण लागू करने के केंद्र सरकार के फैसले को बृहस्पतिवार को ‘‘ऐतिहासिक’’ बताया और कहा कि इससे देश में सामाजिक न्याय के क्षेत्र में एक प्रतिमान स्थापित होगा।
केंद्र सरकार ने अखिल भारतीय शिक्षा कोटा के तहत मौजूदा शैक्षणिक सत्र 2021-22 से स्नातक एवं स्नातकोत्तर चिकित्सा एवं दंत पाठ्यक्रमों में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए 27 प्रतिशत और आर्थिक रूप से कमजोर तबके (ईडब्ल्यूएस) के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण की घोषणा की।
देशभर में कई छात्र संगठन और राजनीतिक दल सरकार से नीट में ओबीसी आरक्षण लागू करने की मांग कर रहे थे। इसको लेकर वाम छात्र संगठनों ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) पर प्रदर्शन भी किया था ,जबकि भीम आर्मी और आज़ाद समाज पार्टी ने 16 जुलाई को दिल्ली स्थति अन्य पिछड़ा वर्ग के मुख्यालय का घेराव किया था। जबकि समाजवादी पार्टी , कांग्रेस और वाम दलों ने सोशल मीडिया के माध्यम से यही मांग दोहराई थी। प्रदर्शनकारियों ने आग्रह किया कि नीट में ओबीसी के लिए उनकी आबादी के अनुपात में आरक्षण बढ़ाया जाए और राज्य स्तर पर राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (नीट) में ओबीसी के लिए आरक्षण सुनिश्चित करने का आग्रह किया था।
जिसके बाद कल यानी बुधवार को केंद्र कैबिनेट में ओबीसी मंत्रियो ने संयुक्त रूप से प्रधानमंत्री से मिलकर इस मसले को उठाया था। जिसके बाद आज सरकार ने यह एलान किया है।
प्रधानमंत्री ने सिलसिलेवार ट्वीट कर कहा, ‘‘हमारी सरकार ने अखिल भारतीय चिकित्सा शिक्षा कोटे के तहत अंडरग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट तथा दंत चिकित्सा पाठ्यक्रमों के ताजा शैक्षणिक सत्र में ओबीसी को 27 प्रतिशत और ईडब्ल्यूएस के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण देने का ऐतिहासिक फैसला किया है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘यह फैसला प्रत्येक वर्ष देश के हजारों युवाओं को बेहतर मौका प्रदान करने में मदद करेगा और हमारे देश में सामाजिक न्याय के क्षेत्र में एक प्रतिमान स्थापित करेगा।’’
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी एक बयान में कहा गया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को हुई एक बैठक में लंबे समय से लंबित इस मुद्दे के प्रभावी समाधान का संबंधित केंद्रीय मंत्रालयों को निर्देश दिया था।
चिकित्सा अभ्यर्थियों की ओर से चिकित्सा शिक्षा के अखिल भारतीय कोटे में ओबीसी आरक्षण देने की लंबे समय से मांग की जा रही थी। कुछ दिनों पहले तक केंद्र सरकार इससे अपना पल्ला झाड़ रही तो और इसे न्यायलय में विचारधीन मामला कह रही थी। परन्तु देशभर में बढ़ते विरोध के बिच सरकार ने यह फैसला लिया है, जिसका स्वागत हो रहा है।
छात्र संगठन ऑल इंडिया स्टूडेंट एसोसिएशन ने इसे छात्र संघर्ष की जीत कहा और सरकार से इस निर्णय के क्रियान्वयन सुनिश्चित करने को कहा है।
छात्र संगठन स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ़ इण्डिया के दिल्ली राज्य अध्यक्ष सुमित कटारिया ने सभी छात्रों को बधाई देते हुए कहा, “नीट परीक्षा में इस साल से लागू होगा OBC आरक्षण ,सरकार की भेदभावपूर्ण नीतियों की विभिन्न संगठनों द्वारा आलोचना किए जाने के बाद यह फैसला आया। ये छात्रों के संघर्ष की जीत है।”
इसी तरह आज़ाद समाज पार्टी के दिल्ली अध्यक्ष महेश पालीवाल ने भी इस फैसल का स्वागत किया और उन सभी संगठनों को बधाई दी जो इसके लिए संघर्ष कर रही थी। ये और इनकी पार्टी ने भीम आर्मी के साथ ओबीसी आयोग का घेराव किया था।
पालीवाल के अनुसार उनके आंदोलन का ही दबाब था कि सरकार को आख़िरकार झुकना पड़ा। साथ ही उन्होंने यह भी कहा अगर आगे भी सरकार ऐसा कोई आरक्षण विरोधी कदम उठाएगी तो वो पूरी ताकत से उसका विरोध करेंग।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी एक बयान में कहा गया कि ‘इस निर्णय से एमबीबीएस में लगभग 1,500 ओबीसी छात्रों एवं स्नातकोत्तर में 2,500 ओबीसी छात्रों तथा एमबीबीएस में लगभग 550 ईडब्ल्यूएस छात्रों एवं स्नातकोत्तर में लगभग 1,000 ईडब्ल्यूएस छात्रों को लाभ मिलेगा।’’
देशभर के ओबीसी छात्र अब किसी भी राज्य में सीटों के लिए प्रतिस्पर्धा करने के वास्ते अखिल भारतीय आरक्षण योजना के अंतर्गत इस आरक्षण का लाभ प्राप्त सकेंगे। केंद्रीय योजना होने की वजह से इस आरक्षण के लिए ओबीसी से संबंधित केंद्रीय सूची का इस्तेमाल किया जाएगा।
अखिल भारतीय आरक्षण योजना 1986 में उच्चतम न्यायालय के दिशा-निर्देशों के अंतर्गत लाई गई थी जिससे कि दूसरे राज्य में अच्छे मेडिकल कॉलेज में पढ़ने की आकांक्षा रखने वाले किसी भी राज्य से छात्रों को मूल-निवास मुक्त श्रेष्ठता आधारित अवसर मिल सके।
इस व्यवस्था के तहत सरकारी मेडिकल कॉलेजों में स्नातक पाठ्यक्रमों में कुल उपलब्ध सीटों पर 15 प्रतिशत और कुल उपलब्ध स्नातकोत्तर सीटों पर 50 प्रतिशत अखिल भारतीय आरक्षण उपलब्ध है।
शुरू में, वर्ष 2007 तक इस योजना में कोई आरक्षण नहीं था।
उच्चतम न्यायालय ने 2007 में योजना में अनुसूचित जातियों के लिए 15 प्रतिशत तथा अनुसूचित जनजातियों के लिए 7.5 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था की थी।
वर्ष 2007 में जब अन्य पिछड़ा वर्ग को इसी तरह 27 प्रतिशत आरक्षण उपलब्ध कराने के लिए केंद्रीय शिक्षा संस्थान (प्रवेश में आरक्षण) अधिनियम प्रभावी हुआ तो यह सफदरजंग अस्पताल, लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और काशी हिन्दू विश्वविद्यालय जैसे सभी केंद्रीय शिक्षा संस्थानों में क्रियान्वित हो गया था, लेकिन इसे राज्यों के मेडिकल एवं दंत पाठ्यक्रमों से जुड़े कॉलेजों की अखिल भारतीय आरक्षण सीटों तक विस्तारित नहीं किया गया था।
बयान में कहा गया कि उच्च शिक्षण संस्थानों में प्रवेश के लिए आर्थिक रूप से कमजोर तबके को लाभ उपलब्ध कराने के लिए 2019 में एक संवैधानिक संशोधन किया गया जिससे संबंधित श्रेणी को 10 प्रतिशत आरक्षण उपलब्ध हुआ।
इसमें कहा गया कि ईडब्ल्यूएस को दिए गए 10 प्रतिशत आरक्षण को समायोजित करने के लिए तदनुसार अगले दो वर्षों (2019-20 और 2020-21) में मेडिकल और दंत कॉलेजों में सीटों की संख्या बढ़ाई गई जिससे कि अनारक्षित श्रेणी के लिए उपलब्ध कुल सीटों की संख्या में कोई कमी न आए।
हालांकि, अखिल भारतीय आरक्षण से जुड़ी सीटों के मामले में यह लाभ अब तक विस्तारित नहीं किया गया था।
बयान में कहा गया कि इसलिए अब मौजूदा शैक्षणिक सत्र से ओबीसी और ईडब्यूएस के लिए भी यह लाभ विस्तारित किया जा रहा है।
इसमें कहा गया कि यह निर्णय पिछड़ा और ईडब्ल्यूएस वर्गों के छात्रों को उचित आरक्षण उपलब्ध कराने की सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
पिछले छह साल में देश में एमबीबीएस सीटों की संख्या में 56 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। 2014 में इन सीटों की संख्या 54,348 थी जो 2020 तक बढ़कर 84,649 हो गई। वहीं, इस अवधि में स्नातकोत्तर सीटों की संख्या में 80 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। 2014 में इन सीटों की संख्या 30,191 थी जो 2020 तक बढ़कर 54,275 हो गई।
देश में इस अवधि में 179 नए मेडिकल कॉलेजों की स्थापना हुई है और इस समय कुल 558 मेडिकल कॉलेज हैं जिनमें से 289 सरकारी और 269 निजी कॉलेज हैं।
(समाचार एजेंसी भाषा इनपुट के साथ)
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