ओडिशा: नियमगिरि में आदिवासियों के दमन के खिलाफ वनाधिकार और सामाजिक कार्यकर्ताओं का एकजुटता का आह्वान
"ओडिशा के नियमगिरि और काशीपुर के आदिवासी और दलित अपने जंगल और जमीन के अधिकारों को कॉर्पोरेट लूट से बचाने के लिए साहसपूर्वक अपनी मांगें उठा रहे हैं जिसके चलते वे राज्य के दमन का शिकार हो रहे हैं। पुलिस अन्यायपूर्ण तरीके से कार्यकर्ताओं को हिरासत में ले रही है और वर्तमान में दमनात्मक कार्यवाही करते हुए, 22 कार्यकर्ताओं को यूएपीए (UAPA) और शस्त्र अधिनियम के तहत अन्यायपूर्ण तरीके से जेल में डाल दिया गया है, जबकि 160 से अधिक कार्यकर्ताओं को इसी तरह के आरोपों का सामना करना पड़ रहा है। अब बड़ी संख्या में वनाधिकार और मानवाधिकार से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ताओं ने राज्य के दमन के खिलाफ एकजुटता का आह्वान किया है।"
सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि इस सरकार ने ओडिशा की एक आदिवासी महिला को देश के सर्वोच्च पद पर चुना है, लेकिन समुदाय को बुनियादी अधिकार या न्याय नहीं मिल पा रहा है। उनके गृह राज्य का समुदाय, दुनिया की सबसे पुरानी जनजातियों में से एक है- जिसका इतिहास लगभग 8,000 साल पुराना है। समुदाय ने पहले भी इन भयावह ताकतों का विरोध किया है जब वह एक दशक पहले वेदांता के खिलाफ खड़ा हुआ था, लेकिन कॉर्पोरेट हितों के बरक्स एक बार फिर उन्हें अलग थलग असहाय छोड़ दिया गया है। उन्होंने मीडिया से भी वनाधिकारों, मानवाधिकारों और समुदाय की अभिव्यक्ति और विरोध की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए आगे आने का आह्वान किया। इस दौरान ग्रामीणों और पीड़ितों के परिवारों की प्रत्यक्ष गवाही भी हुई।
*प्राकृतिक संसाधनों की कारपोरेट लूट के साथ आदिवासियों-दलितों के खिलाफ राज्य का दमन जारी*
ओडिशा के रायगड़ा और कालाहांडी में फैली नियमगिरि और सिजिमाली पहाड़ियों को बचाने को आवाज उठा रहे स्थानीय आदिवासी और दलित समुदायों ने राज्य पर दमन और प्राकृतिक संसाधनों की कॉर्पोरेट लूट के आरोप लगाए हैं। कहा उनकी मांग अपने जंगल और पहाड़ों को कॉर्पोरेट लूट से बचाने की है। लेकिन अगस्त, 2023 से इन स्थानीय संघर्षों को कमजोर करने और उनका अपराधीकरण करने के लिए, राज्य द्वारा जानबूझकर एक दमन अभियान चलाया गया हैं। आश्चर्य नहीं है कि यह वन संरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2023 में किए गए संशोधनों से जुड़ा है,जो 'जंगल' की परिभाषा को ही बदलकर रख देना चाहते है। यह ऐसा कदम है जिसे खनन और अनुसूचित क्षेत्रों में विकासात्मक गतिविधियाँ जैसे अन्य कार्य शुरू करने के लिए अनिवार्य ग्राम सभा की सहमति को दरकिनार करने के सीधे प्रयास के तौर पर देखा जा सकता है।
इस पर्यावरण और आदिवासी विरोधी संशोधन में कई बेहद आपत्तिजनक धाराएं शामिल हैं। यह किसी भी परियोजना के लिए सहमति देने या रोकने के ग्राम सभा के संवैधानिक और कानूनी अधिकारों को समाप्त करता है। यहां तक कि संरक्षण के नाम पर वन भूमि के परिवर्तन (डाइवर्जन) के लिए मानदंडों को उदार बनाने, वनों के निजीकरण को बढ़ावा देने और वन प्रशासन पर राज्य सरकारों के अधिकारों को कमजोर करने के लिए केंद्र को अधिक शक्तियां दीं गई हैं। इसके अतिरिक्त, संशोधित नियमों में वनीकरण योजना को भी नया रूप दिया जा रहा है जिसमें व्यावसायिक उपयोग के लिए वृक्षारोपण सहित निजी वृक्षारोपण को प्रोत्साहित करना भी शामिल है।
आरोप है कि यूके स्थित स्टरलाइट कंपनी, जिसने खुद को वेदांता के रूप में पुनः स्थापित किया, अब इस क्षेत्र में गुंडों को सशक्त बनाने को पैसा लगा रही है। ये लांजीगढ़ में प्रदूषण फैलाने वाली एल्युमीनियम रिफाइनरी भी चलाता है। इसके लिए निकटवर्ती, सिजिमाली और कुटुरमाली पर्वत श्रृंखलाओं को क्रमशः वेदांत और अदानी समूह को पट्टे पर दिया गया है। नियमगिरि की ही तरह, माइथ्री इंफ्राटेक कंपनी (वेदांता का एक उप-ठेकेदार) द्वारा सिजिमाली पर्वत श्रृंखला में प्रवेश के प्रयास किए गए। आदिवासी अधिकार संगठनों और कार्यकर्ताओं ने इसका विरोध कर रहे आदिवासी युवाओं के पुलिस द्वारा दमन का आरोप आरोप लगाया है।
जी हां, ओडिशा में बॉक्साइट खनन के लिए वेदांता और अडानी समूह को वनभूमि पट्टे पर देने के खिलाफ आदिवासी अधिकार संगठन और कार्यकर्ताओं ने सोमवार को विरोध प्रदर्शन किया और पुलिस द्वारा, आदिवासी युवाओं के खिलाफ दमन अभियान चलाने का आरोप लगाया। द टेलीग्राफ की रिपोर्ट के मुताबिक, मूलनिवासी समाजसेवक संघ (MSS) ने जुलाई में अधिनियमित वन कानूनों में संशोधन, जिसने सरकार को ग्रामसभा की सहमति के बिना दो कंपनियों को वनभूमि पट्टे पर देने की अनुमति दी थी, को रद्द करने की मांग करते हुए दिल्ली में एक प्रेस सम्मेलन किया। इसने आदिवासी युवाओं के खिलाफ दर्ज मामलों को वापस लेने की भी मांग की, जिन पर कथित तौर पर एक खनन कंपनी की एक टीम पर पथराव करने के लिए हत्या के प्रयास जैसे अपराध का आरोप लगाया गया है या आतंकवाद विरोधी कानून यूएपीए के तहत मामला दर्ज किया गया है।
प्रेस कांफ्रेंस में वकील कॉलिन गोंज़ाल्वेस, दिल्ली विश्वविद्यालय के फैकल्टी सदस्य जितेंद्र मीणा और एमएसएस नेता मधु ने वन संरक्षण अधिनियम में संशोधन के लिए मोदी सरकार की आलोचना की। गोंज़ाल्वेस ने कहा कि भारत का एक-चौथाई वन क्षेत्र ‘अधिसूचित वन’ है और तीन-चौथाई ‘गैर-अधिसूचित’ वन है। पुराने कानून के तहत अधिसूचित या गैर-अधिसूचित वन के किसी भी क्षेत्र को पट्टे पर देने के लिए ग्रामसभा की सहमति अनिवार्य थी। संशोधन ने गैर-अधिसूचित क्षेत्रों के लिए इस आवश्यकता को समाप्त कर दिया है।
मधु ने आरोप लगाया कि ओडिशा सरकार ने फरवरी में ग्रामसभा की सहमति के बिना अवैध रूप से खनन पट्टे दिए थे, शायद यह जानते हुए कि केंद्र जल्द ही अधिनियम में संशोधन करेगा। उन्होंने कहा कि इन दो खनन परियोजनाओं से 180 गांवों और 2 लाख आदिवासी लोगों का विस्थापन होगा। वहीं, गोंज़ाल्वेस ने कहा, ‘केंद्र सरकार ने कॉरपोरेट (समूहों) को आदिवासी भूमि पर कब्जा करने में मदद करने के लिए वन कानून में संशोधन किया।’
मधु ने कहा कि राज्य पुलिस ने पिछले एक महीने में 22 आदिवासी प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार किया है, जिनमें से 9 पर यूएपीए के तहत मामला दर्ज किया है। मानवाधिकार कार्यकर्ता और वकील बिस्वा प्रिया कानूनगो ने द टेलीग्राफ को बताया, ‘प्रदर्शनकारी आदिवासियों के खिलाफ हत्या के प्रयास और यूएपीए जैसे आरोप लगाए गए हैं। कुल मिलाकर 94 लोगों को नामजद किया गया है और हत्या के प्रयास के लिए मामला दर्ज किया गया है, जबकि करीब 160 अज्ञात लोगों पर भी आरोप लगाया गया है।’ उल्लेखनीय है कि एक दशक पहले वेदांता को ओडिशा की नियमगिरि पहाड़ियों में अपनी खनन योजनाओं को छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा था, क्योंकि 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि स्थानीय ग्राम सभाओं से अनुमति लेना जरूरी था। कानूनगो ने कहा, ‘अगले साल नियमगिरि पहाड़ियों की 12 ग्राम सभाओं ने वेदांता के खनन प्रस्ताव को खारिज कर दिया था।’
भुवनेश्वर में खनन विरोधी कार्यकर्ता प्रफुल्ल सामंतरा ने कहा, ‘खनन लॉबी को सरकारी समर्थन प्राप्त है। यह राज्य प्रायोजित आतंकवाद है।’ वेदांता को कालाहांडी के लांजीगढ़ में अपने स्मेल्टर प्लांट को खिलाने के लिए बॉक्साइट की जरूरत है। वेदांता के एक वरिष्ठ अधिकारी ने विरोध प्रदर्शन को ‘राजनीति से प्रेरित’ बताया और कहा, ‘हम हमेशा पुनर्वास और रिसेटलमेंट पर ध्यान देते हैं।’ अखबार के अनुसार, रायगड़ा के पुलिस अधीक्षक विवेकानंद शर्मा को बार-बार कॉल करने पर कोई जवाब नहीं मिला।
ओडिशा के इस्पात और खान मंत्री प्रफुल्ल कुमार मलिक ने कहा, ‘हमें उनकी (आदिवासी समुदायों की) मांगों के बारे में पता नहीं है। एक बार जब वे अपनी मांगें रखेंगे, तो हम उनकी जांच करेंगे।’ मलिक ने इस आरोप पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया कि पुलिस ने आदिवासी प्रदर्शनकारियों पर अत्याचार किया है. उन्होंने कहा, ‘मुझे इसकी जानकारी नहीं है।’ उधर, वेदांता ने सिजिमाली में खनन का ठेका माइथ्री इंफ्रास्ट्रक्चर एंड माइनिंग इंडिया प्राइवेट लिमिटेड को दिया है। माइथ्री द्वारा दर्ज करवाई गई एक एफआईआर में कहा गया है कि जब उसके कर्मचारी 12 अगस्त को निरीक्षण के लिए सरकारी अधिकारियों के साथ सिजिमाली पहुंचे, तो आदिवासी प्रदर्शनकारियों ने उन पर पथराव किया।
*राज्य दमन की घटनाओं से अपरिचित लोगों के लिए यहां घटनाओं का संक्षिप्त विवरण महत्वपूर्ण है।*
मूलनिवासी समाजसेवक संघ द्वारा प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, 5 अगस्त, 2023 को, लखपदर में रहने वाले एनएसएस के 3 सदस्य- द्रेंजू, कृष्णा और
बारी सिकोका, विश्व आदिवासी दिवस मनाने की व्यवस्था के लिए पड़ोसी कालाहांडी जिले के लांजीगढ़ गए थे। पुलिस ने कृष्णा और बारी को खदेड़ दिया।
इसके विरोध में 6 अगस्त को लखपदर गांव से महिला-पुरुष कल्याणसिंहपुर पहुंचे और शांतिपूर्ण प्रदर्शन किया। आरोप है कि प्रदर्शन से लौटते वक्त पुलिस ने द्रेंजू सिकोका नामक कोंधों के एक युवा नेता को अलग कर, उसका अपहरण कर लिया। चौंकाने वाली बात यह है कि पुलिस पीछे हटने वाले प्रदर्शनकारियों में से किसी एक को बिना किसी चेतावनी के अपहरण करने की कोशिश करेगी। आदिवासी "डोंगोरिया कोंध" पुलिस अपहरण के विरोध में प्रदर्शन कर रहे थे। जिसके चलते 9 लोगों पर एफ़आईआर दर्ज की गई- उनमें लिंगराज आज़ाद, नियमगिरि सुरक्षा समिति (NSS) के सलाहकार, भी शामिल थे जो घटनास्थल पर मौजूद नहीं थे और उपेंद्र भोई, जो भी घटनास्थल से चले गए थे जब हाथापाई शुरू हुई।
एफआईआर में आगे शरारतपूर्ण ढंग से आरोप लगाया कि आदिवासी "डोंगोरिया कोंध" थे जिन्होंने "घातक हथियार (कुल्हाड़ी)" ले रखे थे, और उन्होंने धमकी देने और जान से मारने के इरादे से पुलिस पर अपनी कुल्हाड़ी घुमाई। जबकि कुल्हाड़ी को पारंपरिक रूप से हर जगह "डोंगोरिया कोंध" द्वारा ले जाया जाता है, और इसे अनादि काल से प्रतीक के तौर पर सांस्कृतिक रूप से पहना जाता है। यह दिखाने के लिए कोई सबूत नहीं है कि प्रदर्शनकारी हिंसक थे।
पुलिस ने एनएसएस के 9 दलित-आदिवासी नेताओं के खिलाफ यूएपीए (गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम), 1967 लागू किया जब वो कृष्णा सिकोका व बारी सिकोका के पुलिस अपहरण के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे। प्रदर्शन के दबाव में पुलिस ने बारी सिकोका को छोड़ दिया लेकिन इसके जवाब में कृष्णा सिकोका को 2018 के एक मामले में गिरफ्तार कर लिया। यही नहीं, दलित युवा कार्यकर्ता उपेंद्र भोई और ब्रिटिश कुमार पर भी यूएपीए लगा दिया गया जिन्होंने पुलिस स्टेशन के बाहर प्रदर्शनकारियों को संबोधित मात्र किया था और उसके बाद अपने घर चले गए थे। कई दिनों तक शारीरिक मानसिक यातनाओं के बाद उपेंद्र भोई को 10 अगस्त को गिरफ्तार कर लिया गया।
दूसरी घटना 4 अगस्त की है। रायगड़ा जिले के काशीपुर ब्लॉक के सूंगेर जीपी गांव के करीब 250 लोग लकरिस गांव में इकट्ठा हुए और वेदांता और माईथ्री कंपनी द्वारा किए जा रहे खनन के खिलाफ प्रदर्शन किया। ग्रामीण, कंपनी के पुलिस बल के साथ क्षेत्र में घुसने का विरोध कर रहे थे जिसे लेकर पुलिस ने करीब 200 लोगों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली। 12 अगस्त को कंपनी स्टाफ सिजिमोली पहाड़ियों पर पेड़ काटने और सर्वे का काम शुरू किया जिस पर कंपनी के बिना ग्राम सभा की सहमति के काम करने को लेकर कंपनी से लिखित आश्वासन लिया और वापस चले गए। इसी दिन पुलिस ने 150 से ज्यादा लोगों पर आर्म्स एक्ट में झूठा मामला दर्ज कर लिया जो लोग मौके पर भी मौजूद नहीं थे।
इसके बाद जितनी बार भी स्थानीय लोगों ने कंपनी की सिजिमोली एंट्री का विरोध किया उतनी ही बार 5, 6, 8, 12 और 13 अगस्त को एक नई एफआईआर दर्ज कर ली गई। 25 अगस्त को मूलनिवासी समाजसेवक संघ के दिबाकर साहू की गिरफ्तारी के साथ अब तक कुल 22 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। यहां ध्यान देने वाली बात यह भी है कि हर बार जब किसी को पुलिस द्वारा उठाया जाता था, तो उन्हें कई दिनों तक मजिस्ट्रेट अदालत के सामने पेश नहीं किया जाता है। यह कानून का स्पष्ट उल्लंघन है कि किसी आरोपी को 24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया जाना चाहिए। आरोप है कि गिरफ्तार किए गए सभी कार्यकर्ताओं ने पुलिस द्वारा, उन्हें 'नक्सली' करार देने के साथ, हिरासत में यातना की घटनाओं के बारे में बताया है। इन्हीं गंभीर आरोपों के चलते मूलनिवासी समाजसेवक संघ की तथ्यान्वेषी टीम 10 से 13 अगस्त तक प्रकरण की समीक्षा के लिए क्षेत्र में गई और लोगों से मिलकर सच्चाई जानी। उसी के आलोक में...
*मूलनिवासी समाजसेवक संघ का 8 सूत्री मांग पत्र।*
1. वन संरक्षण संशोधन अधिनियम, 2023 को निरस्त करना जो दक्षिणी और पश्चिमी ओडिशा के स्थानीय समुदायों के, जीवन और आजीविका के साथ, अस्तित्व के लिए खतरा प्रस्तुत करता है
2. ओडिशा पुलिस को कॉरपोरेट्स के लिए गुर्गे के रूप में काम करना बंद करना चाहिए, साथ ही पुलिस हिंसा तत्काल बंद हो और शांतिपूर्वक विरोध करने वालों आदिवासी और दलित के खिलाफ झूठे मामले वापस लिए जाए। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि वहां से अतिरिक्त पुलिस बल हटाते हुए, नियमगिरि, काशीपुर, सिजिमाली के आसपास के गांवों में पुलिस को आतंक पैदा करना बंद करना चाहिए।
3. राज्य सरकार और पुलिस, उन जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं की सूची प्रकाशित करें जिन्हें 5 अगस्त 2023 से 18 सितंबर 2023 तक पुलिस ने सादे कपड़ों में अपहरण कर लिया था और कितने दिनों के बाद पुलिस ने उन्हें रिहा किया।
4. अभियुक्तों के अधिकारों, 24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के सामने पेश होने का अधिकार, परिवार के किसी सदस्य को सूचित करने का अधिकार, गिरफ्तारी और हिरासत में यातना के खिलाफ अधिकार आदि को समाहित करते हुए, के उल्लंघन की पूर्ण पैमाने पर न्यायिक जांच हो।
5. ग्रामीणों के सामुदायिक वन अधिकारों एवं व्यक्तिगत वन अधिकारों को मान्यता मिले जो, वन अधिकार अधिनियम, 2006 के तहत अनिवार्य हैं।
6. हैजा से प्रभावित इन गांवों में स्वच्छ पेयजल और स्वच्छता की व्यवस्था करें।
7. केंद्र सरकार और राज्य सरकार को भूमि अधिग्रहण का काम तब तक रोकना चाहिए जब तक कि झूठा मामला वापस नहीं ले लिया जाता
और प्रदर्शनकारियों को रिहा किया जाता है और जब तक इस मामले की फास्ट ट्रैक कोर्ट में सुनवाई नहीं हो जाती है। वहीं खनन परियोजनाओं के लिए सबसे पहले, ग्राम सभा की सहमति होनी चाहिए और सार्वजनिक सुनवाई होनी चाहिए।
8. भारत के राष्ट्रपति को इस पर संज्ञान लेना चाहिए और उनके मूल राज्य ओडिशा में स्थानीय मूल निवासी लोगों के अपराधीकरण पर चिंता व्यक्त करनी चाहिए।
*छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन भी खनन विरोधी कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी पर जता चुका है चिंता*
ओडिशा में हो रहे निरन्तर दमन और अत्याचार पर छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन ने भी अपनी चिंता व्यक्त करते हुए एक महीने में 22 खनन विरोधी कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी की घोर निंदा की है। इसे लेकर विभिन्न संगठनों द्वारा जारी साझा बयान में आंदोलन के सभी गिरफ्तार साथियों को तत्काल रिहा करने, सारे एफआईआर रद्द करने व स्थानीय निवासियों की बगैर सहमति खनन कंपनियों के प्रवेश पर रोक लगाने की माँग की गई है।
छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन का साझा बयान-
पिछले दिनों, अगस्त महीने में ओडिशा के बॉक्साईट खनन-विरोधी आंदोलनों पर कार्पोरेट सत्ता द्वारा समर्थित राज्य सरकार ने कहर ढ़ाया है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, आंदोलन के नेतृत्व करने वाले लोगों का खुलेआम अपहरण करना, कइयों को झूठे आरोपों के अंतर्गत गिरफ्तार करना, और शांतिपूर्वक प्रदर्शनकारियों पर विधिविरुद्ध काम करने का आरोप लगाकर उन पर यूएपीए की दमनात्मक धाराएं लगाना– यह तो स्पष्ट रूप से कार्पोरेट प्रायोजित सरकार की दादागिरी है, आन्दोलनों को कुचलने की अलोकतांत्रिक साज़िश है, और आदिवासी समुदायों के संवैधानिक अधिकारों पर एकतरफा हमला है। आंदोलनकारियों की गिरफ्तारिया और यूएपीए कानून का उपयोग करते हुए एक विरोध प्रदर्शन की तुलना आतंकवाद से करना, लोकतांत्रिक सिद्धांतो का सीधा उल्लंघन है।
प्रफुल्ल समन्तरा का अपहरण
29 अगस्त को सुविख्यात सामाजिक कार्यकर्ता एवं गोल्डमैन पर्यावरण पुरुस्कार से सम्मानित प्रफुल्ल समन्तरा रायगड़ा के जेल में सिजीमाली और कुटरुमाली के गिरफ्तार आदिवासी नेताओं से मिलने और उनको अपना समर्थन देने गये थे। शाम को उनकी प्रेस कॉन्फ्रेंस थी। पर इससे पहले कि वे प्रेस की बीच अपनी बात रख सके, उनके होटल के कमरे में कुछ साधारण वेशभूषा वाले पुरुष आये, और उनकी आँखो और मुँह पर पट्टी बाँध कर, उनके हाथों को बाँधकर, मोबाईल फोन छीन कर, उनको अपने साथ गाड़ी में ले गये। पाँच घंटो बाद समन्तरा जी को इन लोगों ने बरहमपुर छोड़ दिया। अभी यह स्पष्ट नहीं है कि समन्तरा के अपहरणकर्ता माईनिंग कम्पनी के कर्मचारी थे या फिर स्थानीय पुलिस, पर यह स्पष्ट है कि इनका अपहरण मात्र इसलिये हुआ ताकि वे प्रेस के बीच सिजीमाली और कुटरूमाली माईनिंग के विरोध में बातें नहीं रख सकें।
पेसा कानून और वन अधिकार कानून की खुली अवहेलना
यह गौर करने योग्य है कि कोरापुट, रायगड़ा और कालाहांडी ज़िलों के उक्त तीनों माईनिंग क्षेत्र पाँचवी अनुसूची के अन्तर्गत आते हैं। पेसा कानून और वन अधिकार कानून स्पष्ट हैं कि ग्राम सभा ही निर्णय करेगी कि इनके क्षेत्र में खनन हो कि नहीं, और समता जजमेंट में सुप्रीम कोर्ट ने तो ऐसा भी कहा है कि अनुसूचित क्षेत्रों में निजी माइनिंग कम्पनियाँ खनन नहीं कर सकती हैं। नियमगिरि पर्वत में खनन से संबंधित ऐतिहासिक फैसले पर सर्वोच्च न्यायालय ने शासन को आदेशित किया था कि वे ग्राम सभाओं का आयोजन करें जिनमें आदिवासी ग्रामीण खुल कर माइनिंग पर अपनी राय दे पायें, और इन 12 ग्राम सभाओं ने जब खनन के संबंध में अपनी असहमति व्यक्त की, तब से आज तक नियमगिरि पर्वत पर बॉक्साईट माइनिंग नही हो पाई है। छत्तीसगढ़ में भी कई जन आंदोलनों ने ओडिशा के इन संघर्षों से प्रेरित होकर और अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होकर पर्यावरण विनाशी खनन का विरोध किया है। पर कानून के स्पष्ट होने के बावजूद, अगस्त महीने की उक्त सभी वारदातों से ज़ाहिर है कि देश का कानून भले कुछ कहे, भारतीय सत्तातंत्र बड़ी-बड़ी कंपनियों के इशारे पर ही नाचता है। बार-बार पुलिस और प्रशासन का उपयोग कार्परेट घरानों के पक्ष में आदिवासियों के अधिकारों को कुचलने के लिये ही किया जाता है।
छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन की मांग
छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन ने पुलिस और प्रशासन की घोर निन्दा करते हुए निम्न मांगे की हैं–
1. नियमगिरी सुरक्षा समिति, और सिजीमाली और कुटरुमाली आंदोलन के सभी गिरफ्तार साथियों को तत्काल रिहा करो।
2. नियमगिरी सुरक्षा समिति के साथियों पर यूएपीए वाले एफआईआर को रद्द करो।
3. सिजीमाली और कुटरूमाली आंदोलनकारियों पर सारे एफआईआर रद्द करो।
4. सिजीमाली, कुटरूमाली और माली पर्बत के क्षेत्रों में सर्वप्रथम मैत्री कंपनी के प्रभाव से मुक्त ग्राम सभाओं का आयोजन होना चाहिये, जिनसे ग्रामीणों का मत स्पष्ट हो। उनकी माईनिंग के लिये सहमति के बाद ही, और उनकी सहमति से ही मैत्री और अन्य खनन सम्बंधी कंपनियों को गाँव मे प्रवेश करने की अनुमति हो।
*PUCL बोली ओडिशा में कंपनियों को फायदा पहुंचाने को संघर्षरत आदिवासियों की गिरफ्तारी*
पीयूसीएल अध्यक्ष कविता श्रीवास्तव व महासचिव वी सुरेश ने भी पिछले माह अपील जारी करते हुए कहा था कि पुलिस प्रशासन यह सारा दमन कंपनियों को मदद पहुंचाने के लिए कर रही है। ताकि कंपनियां बॉक्साइट भंडार को खुलेआम लूट सकें। यह काम सड़क साफ़ करने के नाम पर किया जा रहा है। दिन-ब-दिन इस दमन का दायरा फैलता जा रहा है।
खास है कि विगत कुछ वर्षों में नियमगिरि, सिजीमाली, कुट्रुमाली, मझिंगमाली, खंडुआलमाली और कोडिंगमाली, माली पर्वत, सेरुबंधा माली, कोरनाकोंडा माली व नागेश्वरी पर्वत के संघर्षरत लोगों के बीच एकजुटता बनाने के लिए ठोस प्रयास किए गए हैं। इस प्रयास में नियमगिरि और माली पर्वत की पहल और एकजुटता, इनमें से कई आंदोलनों के लिए प्रेरणा और साहस का स्रोत रही है। एकजुटता प्रदर्शित करने और एकता कायम करने के लिए परब, पद यात्राएं, विरोध प्रदर्शन और संयुक्त कार्यक्रम आयोजित किए गए। विश्व आदिवासी दिवस का उत्सव इसी सामूहिक गतिविधि का हिस्सा था। इसे कॉर्पोरेट हित के लिए बड़ा ख़तरा मानते हुए राज्य ने पूरे क्षेत्र में दमन का मौजूदा दौर शुरू किया है। लेकिन बिना किसी डर के, हर क्षेत्र में सैकड़ों लोगों ने आदिवासी दिवस समारोह में भाग लिया। इस बार भी काशीपुर के लोगों ने उसी प्रकार का साहस और दृढ़ संकल्प दिखाया जब माइथ्री खनन कंपनी के अधिकारियों ने पुलिस बलों के साथ सिजिमाली क्षेत्र में ज़बरन प्रवेश करने का प्रयास किया था। महिलाओं और पुरुषों ने जमकर उनका विरोध किया।
पीयूसीएल ने कहा “बदले की कार्रवाई में, पुलिस ने लोगों के प्रतिरोध को तोड़ने के लिए मध्यरात्रि में छापेमारी शुरू की जिसके परिणामस्वरूप लोगों को लापता कर दिया गया और व्यापक स्तर पर गिरफ्तारियां की गईं। कई लोगों को हाटों और सड़कों से उठाया गया। कई अन्य लोगों को या तो कई दिनों तक हिरासत में रखा गया या बाद में जेल भेज दिया गया। रायगढ़ा सब-जेल में 22 लोगों को कैद किया गया है। वहीं, ऐसी कई एफ़आईआर हैं जिनमें 100 से अधिक लोगों के नाम शामिल हैं। प्रथम सूचना रिपोर्ट में “अन्य” जोड़ दिए जाने से और अधिक गिरफ़्तारियों की गुंजाइश बनती है। कई युवा पुलिस से बचने के लिए जंगलों में छिप गये हैं। अलीगुना का एक व्यक्ति बचने के लिए छत से कूद गया। उसे पीठ में चोट आई है। एमकेसीजी बरहामपुर में उसका इलाज किया जा रहा है। कई अन्य घायलों को इलाज नहीं मिल पा रहा है क्योंकि उन्हें डर है कि गांव से बाहर निकलने पर उन्हें गिरफ़्तार कर लिया जाएगा। कई अन्य लोग घायल हैं और इलाज पाने में असमर्थ हैं। तीन गांवों की महिलाओं ने रायगढ़ा जाकर जिला कलेक्टर से मुलाक़ात की और पुलिस तथा कंपनी के गुंडों की बेरहमी के खिलाफ अपना विरोध दर्ज कराया। उन्होंने पूछा, यहां पुलिस वास्तव में किसकी रक्षा कर रही है- कंपनी की या सिजिमाली, कुटरुमाली, मांझीमाली के लोगों की?”
अपील में कहा गया है कि “यह महज संयोग नहीं है कि राज्य व केंद्र में सत्तारूढ़ दलों बीजेडी और बीजेपी- के साथ बॉक्साइट भंडार के अधिग्रहण में तेजी लाने के साथ साथ सत्ता का दमन भी उग्र हो गया है। दोनों सत्तारूढ़ दल आगामी चुनावों के समय आंदोलकारी नेताओं और सक्रिय सदस्यों को सलाखों के पीछे डालकर इन आंदोलनों की आवाज़ को कुचलना चाहते हैं। वहीं, स्थानीय लोग बार-बार लोकतांत्रिक और कानूनी तरीकों से प्रशासन से अपील और अनुसूचित क्षेत्रों से संबंधित कानूनों का सम्मान करने की मांग करते रहे हैं। उनके साथ बातचीत करने के बजाय, सत्ताधारियों ने प्राकृतिक संसाधनों के निर्विवाद कॉर्पोरेट लोभ और पूंजीवाद के अधिक मुनाफे के बेलगाम संचय को संतुष्ट करने के लिए व्यापक दमन और पुलिस हिंसा का सहारा लिया है। अब समय आ गया है कि हम समझें कि ये लोग न केवल अपने पहाड़ों पर कॉर्पोरेट अतिक्रमण को रोककर अपने जीवन और आजीविका की रक्षा के लिए लड़ रहे हैं, बल्कि वे हम सभी के लिए, पूरी मानवता के लिए उन पारिस्थितिक तंत्रों की रक्षा और शांति के लिए भी लड़ रहे हैं। ध्यान रहे "वैश्विक बाज़ार में अस्त्र-शस्त्र उद्योग को एल्युमीनियम की सबसे ज़्यादा आवश्यकता पड़ती है।”
पीयूसीएल ने कहा कि इन्हीं हालातों के मद्देनज़र हम देश के सभी नागरिकों से अपील करते हैं:
• दक्षिणी ओडिशा के संघर्षरत लोगों के साथ एकजुटता प्रदर्शित करें!
• बीजेडी नेतृत्व वाली राज्य सरकार द्वारा पुलिस दमन के कायरतापूर्ण कृत्यों की निंदा करें!
• बीजेडी नेतृत्व वाली राज्य सरकार द्वारा नियमगिरि सुरक्षा समिति को माओवादी फ्रंटल संगठन के रूप में गलत तरीके से ब्रांड करने के प्रयासों का विरोध करें!
• राज्य और पूंजीवाद के खिलाफ संघर्ष को मजबूत करने के लिए समर्थन और एकजुटता प्रदान करें!
• आदिवासी क्षेत्रों में खनन प्रस्तावों और पट्टों को रद्द करने की मांग करें, जो लोगों की स्वतंत्र, पूर्व और सूचित सहमति का उल्लंघन करते हैं!
•मानव आवासों और पारिस्थितिक तंत्रों की रक्षा के लिए पारिस्थितिक विनाश और उसके साथ होने वाले राजनीतिक अन्याय का विरोध करें।
पीयूसीएल ने सभी नागरिकों से अपील की है कि वे इस निर्मम दमन को तत्काल रोकने और कैद किए गए आंदोलनकारियों को तुरंत रिहा करने के लिए ओडिशा के मुख्यमंत्री को +91-0674-2390902 पर फोन करें या [email protected], [email protected] पर ईमेल भेजें।
साभार : सबरंग
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