“...तो आएंगे घर कई ज़द में”: मोनिका-मोनिस की शादी टलना यानी साथी चुनने की आज़ादी पर हमला!
नफ़रत किसी की सगी नहीं होती, कुछ ऐसा ही हुआ पौड़ी के भाजपा नेता यशपाल बेनाम के साथ जिनकी बेटी शहनाइयों की गूंज और ढोल-नगाड़ों की थाप के बीच अपनी मर्ज़ी से चुने अपने हमसफ़र का हाथ नहीं थाम सकी। धमकियों, विरोध और राजनीति के चलते एक परिवार को विवाह समारोह स्थगित करना पड़ा। हम एक सुरक्षित, सभ्य और मजबूत समाज का संकेत देने में नाकाम हो गए।
28 मई को पौड़ी की मोनिका और अमेठी के मोनिस का विवाह समारोह संपन्न होना था। दस दिन पहले ही कार्ड बांटे जाने लगे थे। मोनिका के पिता यशपाल बेनाम पौड़ी नगर पालिका अध्यक्ष हैं। वह यहां से भाजपा से विधायक भी रह चुके हैं। परिवार ने खुद लोगों को कार्ड बांटे। कार्ड पर माता-पिता के साथ चाचा-चाची, भाई और परिवारजनों को दर्शनाभिलाषी के तौर पर अंकित किया गया। यानी परिवार की सहमति से यह विवाह हो रहा था। हाथों-हाथ बंट रहे कार्ड पर समाज ने भी कोई आपत्ति नहीं जताई।
भाजपा नेता यशपाल बेनाम, एक कवि भी हैं। “बेनाम” उनका उपनाम है। उनकी मुश्किलें सोशल मीडिया से शुरू हुईं। शादी का ये कार्ड सोशल मीडिया पर लव-जिहाद के तौर पर वायरल होने लगा। फेसबुक और व्हाट्सएप पर भड़काऊ संदेश के साथ कार्ड शेयर किया जाने लगा। किसी ने इसे पहाड़ी अस्मिता से जोड़ा, किसी ने धर्म से, वहीं कई लोग परिवार के पक्ष में भी बोल रहे थे।
कार्ड वायरल होने पर यशपाल बेनाम ने मीडिया के ज़रिए एक सशक्त संदेश भी जारी किया। एक मीडिया चैनल को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि "ये शादी पारिवारिक सहमति और हिंदू रीति-रिवाज से हो रही है। लड़का-लड़की बालिग हैं। 21वीं सदी में सबको अपने फैसले लेने का अधिकार है। बहुत सारे लोग कमेंट्स कर रहे हैं। मैं सारी दुनिया की बातों का जवाब नहीं दे सकता। कुछ लोग अच्छी बात भी कर रहे हैं। कुछ अपनी मानसिकता के हिसाब से लिख रहे हैं।"
इस इंटरव्यू में यशपाल कहते हैं, "मैं लड़की का पिता हूं और मैंने अपनी बेटी के प्यार का सम्मान किया है। कई लोगों ने कहा कि तुम्हारा करियर रातों-रात बर्बाद हो जाएगा लेकिन मैं यह नहीं मानता। मैं जब पौड़ी में कार्ड बांट रहा था तो लोगों ने इसे स्वीकार किया और शुभकामनाएं दी। मैं उन लोगों को धन्यवाद देता हूं। मैं एक मजबूत इंसान हूं।"
यशपाल बेनाम के ख़िलाफ़ हिंदू संगठन, शादी को बताया ‘लव जिहाद’
सोशल मीडिया पर आ रही तीखी आलोचनाओं का डटकर सामना कर रहा परिवार उस समय मुश्किलों में घिरने लगा जब कुछ हिंदू संगठन के लोग इस शादी के ख़िलाफ़ शहर की सड़कों पर उतर आए। पौड़ी के कोटद्वार में विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल के कुछ मुठ्ठीभर कार्यकर्ताओं ने ‘यशपाल बेनाम मुर्दाबाद’ और ‘लव जिहाद नहीं चलेगा’ जैसे नारे लगाए। ख़बर है कि एक हिंदूवादी संगठन के पदाधिकारी ने यशपाल बेनाम को फोन पर शादी न कराने की धमकी दी। ये बातचीत भी वायरल हुई। पौड़ी में भी नगर पालिका के दफ्तर के पास विरोध प्रदर्शन हुआ।
(पौड़ी और कोटद्वार में हिंदू संगठनों ने यशपाल बेनाम के ख़िलाफ़ नारे लगाए, शादी को बताया ‘लव जिहाद’)
"शादी का माहौल नहीं"
शादी की बधाइयों की जगह धमकियों ने ले ली। इस बीच पुलिस भी परिवार की सुरक्षा के लिए आगे आई लेकिन परिवार ने बिगड़े माहौल में वैवाहिक कार्यक्रम न करने का फैसला लिया या यूं कहें की उन्हें ऐसा फैसला लेने के लिए मजबूर होना पड़ा।
प्रेस वार्ता कर यशपाल बेनाम ने कहा कि "जब इस तरह का माहौल बना तो हम परिवार वालों ने बैठकर वैवाहिक कार्यक्रम न करने का फैसला लिया है। एक नगर पालिका अध्यक्ष और जनप्रतिनिधि होने के नाते मैंने ये निर्णय लिया कि पुलिस के साये में विवाह समारोह करना सही नहीं है। स्थानीय संगठनों ने भी समारोह के दौरान विरोध प्रदर्शन का मन बनाया है। अनुकूल माहौल न हो पाने के कारण और जनता का ध्यान रखते हुए, दोनों परिवारों ने तय किया कि हम ये वैवाहिक कार्यक्रम नहीं करने जा रहे हैं।"
आख़िर किससे डरे यशपाल बेनाम?
उत्तराखंड कांग्रेस प्रवक्ता गरिमा मेहरा दसौनी कहती हैं, “ये बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है। संविधान दो वयस्कों को ये इजाज़त देता है कि वे अपने जीवन साथी का चुनाव कर सकते हैं, चाहे वे किसी भी धर्म-जाति के हों। भाजपा के तमाम बड़े नेताओं ने खुद या उनके बच्चों ने अंतरधार्मिक विवाह किए हैं। इनमें शहनवाज हुसैन, सुब्रमण्यम स्वामी और सिकंदर बख्त जैसे नाम शामिल हैं। भाजपा की कथनी-करनी उलट है। वे पूरे देश को ‘द केरला स्टोरी’ दिखाकर मुसलमानों के ख़िलाफ़ भड़का रहे हैं। वहीं अपने घर के लड़के-लड़कियों ने अल्पसंख्यक समुदाय में शादी की है।”
कांग्रेस नेता दसौनी यशपाल बेनाम के उस इंटरव्यू का हवाला देती हैं जिसमें उन्होंने कहा है ‘मुझे बंदूक के साए में अपनी बेटी की शादी मंज़ूर नहीं है’, इस पर दसौनी पूछती हैं कि “बंदूक किसके हाथ में है, ये भी बताएं यशपाल बेनाम।”
वहीं प्रदेश भाजपा ने यशपाल बेनाम के इस पूरे मामले से खुद को अलग कर रखा है। भाजपा नेता मनवीर चौहान कहते हैं, "भाजपा राष्ट्रवादी विचारधारा की पार्टी है। हमारी पार्टी किसी व्यक्ति के निजी जीवन से प्रभावित नहीं होती है और न ही किसी के निजी जीवन या व्यक्तिगत मामलों में हमारा हस्तक्षेप होता है। ये उनका निजी मामला है।"
महिलाओं की स्वतंत्रता का सवाल
देहरादून के गांधी पार्क में कांग्रेस समेत सभी प्रमुख विपक्षी दलों भाकपा, माकपा, भाकपा (माले), उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी, चेतना आंदोलन आदि ने महिलाओं से जुड़े मुद्दों को लेकर संयुक्त धरना प्रदर्शन किया।
प्रदर्शन में शामिल भाकपा (माले) के नेता इंद्रेश मैखुरी ने मोनिका और मोनिस का विवाह समारोह रद्द होने पर तीखी प्रतिक्रिया दी। वह कहते हैं, “यह सिर्फ़ हिंदू-मुस्लिम की शादी का मामला भर नहीं है। ये महिलाओं की स्वतंत्रता का भी सवाल है। हमारी बेटियां-बहनें पढ़-लिखकर स्वतंत्र हुईं, अब उन्हें कुछ लफंगों से पूछना पड़ेगा कि जीवन साथी हम अपने मन से चुने या न चुने। राज्य में लगातार इस तरह की प्रवृत्तियों को प्रश्रय देने और फलने-फूलने का अवसर दिया जा रहा है।”
(देहरादून में आज महिलाओं से जुड़े मुद्दों को लेकर विपक्षी दलों ने एकजुट होकर धरना दिया।)
इंद्रेश कहते हैं, "देहरादून के पर्वतीय क्षेत्र त्यूणी में धर्म संसद कराई गई। भू-कानून बदलने वाली सरकार खुद लैंड जिहाद का नारा दे रही हैं। मुख्यमंत्री खुद ही इस तरह की उम्मादी प्रवृत्तियों का बढ़कर नेतृत्व कर रहे हैं। वे उन्माद-उत्पात की राजनीति को प्रश्रय दे रहे हैं जिसका ये नतीजा है कि पौड़ी में हो रही ये शादी रद्द करनी पड़ी।
क्या कहते हैं आंकड़े?
“धनक ऑफ ह्यूमैनिटी” नाम का एक गैर-सरकारी संगठन अंतरधार्मिक शादी करने वाले जोड़ों को मदद मुहैया कराता है। इस संगठन के सह-संस्थापक आसिफ़ इकबाल कहते हैं, "मौजूदा समय में अंतरधार्मिक शादियों की संख्या में काफी कमी आई है। सरकार अंतरधार्मिक शादियों के बिलकुल ख़िलाफ़ है। अगर आप अपने परिवार की रज़ामंदी से भी विवाह कर रहे हैं या सिविल मैरिज कर रहे हैं, जिसमें धर्म परिवर्तन नहीं होता, सिर्फ़ नोटिस दिया जाता है, तब भी इतनी अड़चन पैदा की जाती हैं कि शादी न हो सके। अगर कोई स्पेशल मैरिज एक्ट में कानूनी रूप से शादी करता है तो भी इतनी बाधा डाली जाती है कि वह शादी नहीं हो पाती।”
आसिफ़ आगे कहते हैं, “पौड़ी में तो धर्म परिवर्तन नहीं हो रहा था। परिवार मिलकर शादी करा रहा था। ये स्पष्ट है कि आप अंतरधार्मिक विवाह के ही ख़िलाफ़ हैं।”
लव जिहाद और अंतरधार्मिक विवाह को लेकर जितना माहौल बनाया गया है और जितनी बातें हो रही हैं, ऐसे विवाह की संख्या क्या है?
प्यू रिसर्च सेंटर (Pew Research Center) की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में सिर्फ़ 2.1% अंतरधार्मिक विवाह और करीब 10% अंतर्जातीय विवाह हुए हैं। इस शोध का डेटा राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (2005-06) की रिपोर्ट से लिया गया है। 43 हज़ार 102 जोड़ों से बातचीत कर इस निष्कर्ष तक पहुंचा गया।
उत्तर प्रदेश में विवाह के हालिया आंकड़े भी इसकी तस्दीक करते हैं। 'धनक फॉर ह्यूमैनिटी संगठन' ने इसके आंकड़े जुटाए। इन आंकड़ों के मुताबिक हिंदू मैरिज एक्ट के तहत उत्तर प्रदेश में वर्ष 2018 में 4929 विवाह पंजीकृत हुए। वर्ष 2019 में 5034 और वर्ष 2020 में 3883 शादियां पंजीकृत हुईं। जबकि स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत वर्ष 2018 में 665, वर्ष 2019 में 472 और वर्ष 2020 में 375 शादियां पंजीकृत हुईं। जबकि अनिवार्य विवाह अधिनियम के तहत वर्ष 2018 में 27,055, वर्ष 2019 में 29,215 और वर्ष 2020 में 21,612 शादियां पंजीकृत हुईं।
इन तीन वर्षों में अनिवार्य विवाह अधिनियम के तहत 77,882 शादियां, हिंदू मैरिज एक्ट में 13,846 और स्पेशल मैरिज एक्ट में 1512 शादियां दर्ज हुईं। जो कुल शादियों का महज़ 1.62% है।
क्या एक मजबूत समाज का संकेत देने से चूक गए हम?
अंतर्जातीय और अंतरधार्मिक विवाह एक सभ्य और मजबूत समाज का भी संकेत माना जाता है।
मोनिका और मोनिस की शादी को लेकर जो माहौल बनाया गया उस पर देहरादून निवासी पत्रकार समीना मलिक कहती हैं, “इस शादी को राजनीतिक रंग दे दिया गया। इससे पहले क्या हिंदू-मुस्लिम में शादियां नहीं हुई हैं? क्या वे सफल नहीं हैं? उत्तराखंड में ‘लैंड जिहाद’, ‘लव जिहाद’ का एकतरफा माहौल चलाया जा रहा है। अच्छा होता जो ये शादी होने दी जाती। इससे समाज में एक अच्छा संदेश जाता।”
करीब 18 साल पहले आसिफ़ और कविता ने अंतरधार्मिक विवाह किया था। आसिफ़ कहते हैं, “इस शादी को लेकर सोशल मीडिया पर जिस तरह लोगों के संदेश आ रहे हैं वे बेहद परेशान करने वाले हैं। राजनीतिक रोटी सेंकने के लिए ये सब किया जा रहा है। 18 साल पहले मैं भी यहीं खड़ा था। मेरी शादी के कार्ड में भी आसिफ़ और कविता लिखा था। आप मेरी पत्नी से पूछिए हमारा विवाह कैसा है। 18 साल की उम्र के बाद आपको सरकार चुनने का अधिकार मिल जाता है लेकिन जीवन साथी चुनने का अधिकार नहीं है।”
आसिफ़ अपनी बात जारी रखते हुए कहते हैं, “हमारे समय में सोशल मीडिया नहीं था। आज सोशल मीडिया की वजह से ये मामला इतना ज़ोर पकड़ गया। ये शादी सेलिब्रेट भी की जा सकती थी। किसी ने तो एक अच्छी पहल की थी। सार्वजनिक तौर पर यह विवाह स्वीकार किया गया था। ये सुखद बदलाव था।”
आसिफ़ की पत्नी कविता भी उनके साथ बिताए गए अब तक के जीवन पर खुशी जताती हैं।
उत्तराखंड में अंतरधार्मिक विवाह का एक खूबसूरत उदाहरण मौजूद है। बेड़ू पाको बारो मासा गीत को प्रसिद्धि दिलाने वाले प्रख्यात रंगकर्मी स्वर्गीय मोहन उप्रेती और उनकी पत्नी नईमा खान उप्रेती। बेड़ू पाको समेत पहाड के जंगल, खेत, खलिहानों, घसियारियों के गीतों को रेडियो पर सुनाने वाली लोक कलाकार नईमा की आवाज़ में यहां की संस्कृति सुरीली हुई है। जिन पर पूरा पहाड़ गर्व करता है। मोनिका और मोनिस का विवाह समारोह रद्द होना मोहन और नईमा उप्रेती की परंपरा का उल्लंघन है।
(लेखिका देहरादून स्थित स्वतंत्र पत्रकार हैं।)
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